Author : Sohini Nayak

Published on Aug 31, 2022 Updated 0 Hours ago

'अग्निपथ' योजना को लेकर नेपाल के नौजवानों की बेरुख़ी उस वक़्त आई है जब ये योजना भारत के भीतर भी अलग-अलग तरह की आलोचनाओं का सामना कर रही है.

#Agnipath Scheme: क्या अग्निपथ योजना के तहत भारतीय फ़ौज में नेपाली सैनिकों की भर्ती व्यावहारिक है?

पिछले दिनों भारतीय सेना की अग्निपथ योजना में नेपाल के युवाओं को शामिल करने का ऐलान नेपाल के भीतर भी सुर्खियों में है. वैसे तो नेपाल अभी तक अपने युवाओं को गोरखा रेजिमेंट में शामिल करने के लिए तैयार नहीं हुआ है लेकिन भारत ने पहले ही पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग और उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में गोरखा भर्ती डिपो (जीआरडी) की स्थापना कर दी है. इसके अलावा नेपाल के बुटवल (25 अगस्त) और धरान (1 सितंबर) में प्राथमिक परीक्षा कराने का भी फ़ैसला लिया. इस तरह से एक ज़्यादा जटिल स्थिति पैदा हो गई. नेपाल की तरफ़ से साफ़ तौर पर ये बयान आ चुका है कि भारत सरकार ने ये फ़ैसला उससे संपर्क करने के बाद नहीं लिया है. कोविड-19 महामारी की वजह से भारतीय सेना में नेपाली युवाओं की भर्ती पहले से ही रुकी हुई थी. 

नेपाल की तरफ़ से साफ़ तौर पर ये बयान आ चुका है कि भारत सरकार ने ये फ़ैसला उससे संपर्क करने के बाद नहीं लिया है. कोविड-19 महामारी की वजह से भारतीय सेना में नेपाली युवाओं की भर्ती पहले से ही रुकी हुई थी.

अग्निपथ योजना और गोरखा रेजिमेंट 

अग्निपथ योजना को भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के द्वारा ‘ज़्यादा युवा पृष्ठभूमि और  तकनीकी रूप से सक्षम सैनिकों के साथ सशस्त्र सेनाओं की लड़ाई करने की क्षमता बढ़ाने वाला एक परिवर्तनकारी सुधार’ बताया जा चुका है. 17.5 से 21 वर्ष की उम्र सीमा के बीच के 46 हज़ार नौजवान, जिन्हें ‘अग्निवीर’ (2032-33 तक 12 लाख की सेना) के नाम से जाना जाएगा, इस युवा पृष्ठभूमि का हिस्सा होंगे. योजना का हिस्सा बनने वाले युवाओं को सिविल सोसायटी का भाग भी बनाया जाएगा जो राष्ट्र निर्माण में योगदान करेंगे और उन्हें सरकार की सेवा निधि योजनाजो कि समाज के वित्तीय रूप से वंचित युवा लोगों के लिए है, के तहत 11.7 लाख रुपये की सहायता राशि मिलेगी. इसके अलावा हर बैच के 25 प्रतिशत तक सैनिकों को तैयारी का कार्यकाल समाप्त होने के बाद भारतीय सेना में नियमित रूप से शामिल किया जाएगा. 

इस रूप-रेखा के भीतर भारतीय सेना के सात गोरखा रेजिमेंटों- जो 43 बटालियन हैं- में नेपाल के नौजवानों को भर्ती करने के उद्देश्य को भारत सरकार के द्वारा आगे बढ़ाया गया है. दिलचस्प बात ये है कि नेपाल के गोरखा भारत, नेपाल और यूके के बीच हुए 1947 के त्रिपक्षीय समझौते के समय से भारतीय और ब्रिटिश सेना के भाग रहे हैं. लेकिन ब्रिटिश सेना के सिकुड़ते आकार के साथ गोरखा रेजिमेंट को एक सम्मिलित रॉयल गोरखा राइफल्स में शामिल कर लिया गया है. इसमें 1997 के बाद रिटायर होने वाले सैनिकों के लिए वहां स्थायी रूप से रहने का प्रावधान नहीं किया गया है. लेकिन भारत में ये स्थिति नहीं है. यहां गोरखा रेजिमेंट से रिटायर होने वाले सैनिक देश में कहीं भी बस सकते हैं. भारत सरकार गोरखा रेजिमेंट से जुड़े उन रिटायर सैनिकों के लिए भी सहानुभूति का व्यवहार रखती थी जो नेपाल की मुख्यधारा की राजनीति में अपने प्रवेश को लेकर नेपाल सरकार की नकारात्मक प्रतिक्रिया का दावा करती थी. अतीत में नेपाल के माओवादी भारत में गोरखा रेजिमेंट से अलग होने की मांग भी करते थे. 

भारत सरकार गोरखा रेजिमेंट से जुड़े उन रिटायर सैनिकों के लिए भी सहानुभूति का व्यवहार रखती थी जो नेपाल की मुख्यधारा की राजनीति में अपने प्रवेश को लेकर नेपाल सरकार की नकारात्मक प्रतिक्रिया का दावा करती थी. अतीत में नेपाल के माओवादी भारत में गोरखा रेजिमेंट से अलग होने की मांग भी करते थे.

इस अलगाव के प्रमुख कारणों में से एक था नेपाल की तरफ़ से ये आशंका कि गोरखा सैनिकों से भाड़े के सैनिकों की तरह सलूक किया जाएगा. नेपाल में भारतीय सेना के लिए गोरखा सैनिकों की भर्ती विरोधी लॉबी भारत के साथ भौगोलिक नज़दीकी होने के बावजूद नेपाली नागरिकों के किसी दूसरे देश की सेना का हिस्सा होने को लेकर अपनी बेचैनी को दिखा रही है. 2012 में नेपाल की बाबूराम भट्टराई की सरकार ने भारतीय सेना में नेपाली नागरिकों के शामिल होने पर रोक लगाने की कोशिश की थी. लेकिन उनकी ये कोशिश वहां के लोगों के विरोध की वजह से कामयाब नहीं हो पाई. इसका कारण ये था कि नेपाल के लोगों ने भारतीय सेना में शामिल होने को आकर्षक वेतन हासिल करने का एक ज़रिया माना जिसकी बराबरी उनका अपना देश नहीं कर सकता था. लेकिन जैसा लगता था, उसी के मुताबिक़ सब कुछ बेहतरीन स्थिति में नहीं था क्योंकि 2020 में भारतीय सेना के 1,600 पूर्व सैन्यकर्मी, ख़ास तौर से नेपाली नागरिक जो गोरखा रेजिमेंट का हिस्सा रह चुके थे, पेंशन हासिल करने में नाकाम रहे. वैसे तो इसकी वजह महामारी थी लेकिन तब भी भारत में मौजूद इस दोषपूर्ण संरचना को लेकर नेपाल में निराशा थी. नेपाल के द्वारा अग्निपथ योजना को लेकर दिखाई जा रही उदासीनता में इस स्थिति का भी योगदान हो सकता है. नेपाल इस बात को लेकर बेहद स्पष्ट है कि भारत सरकार ने आधिकारिक ऐलान करने से पहले उससे सलाह-मशविरा नहीं लिया था. इसके अलावा, इसका 35,000 गोरखा सैनिकों के वेतन और 1.35 लाख पूर्व सैनिकों की पेंशन पर सीधा असर होगा. वेतन और पेंशन की कुल रक़म क़रीब 620 मिलियन अमेरिकी डॉलर है. चूंकि नेपाल का रक्षा बजट सिर्फ़ 430 मिलियन अमेरिकी डॉलर का है, ऐसे में नेपाल की अर्थव्यवस्था पर इससे चोट पहुंचेगी और इससे नौकरी को लेकर बढ़ती असुरक्षा में और बढ़ोतरी होगी. 

यहां तक कि भारत में भी सेना की भर्ती को लेकर बड़े बदलाव की व्यापक आलोचना हुई थी. ये दलील दी गई कि ये योजना सैनिकों की “कुशलता, सैन्य आचार-विचार और लड़ने का जज़्बा कमज़ोर करेगी” क्योंकि योजना की शुरुआत करने से पहले इसको लेकर कोई पायलट प्रोजेक्ट नहीं चलाया गया था. इसके अलावा, अग्निपथ योजना की वजह से युद्ध के लिए प्रशिक्षित 35,000 युवा बेरोज़गार हो सकते हैं क्योंकि हर किसी के लिए नौकरी की गारंटी नहीं है. इन दिक़्क़तों के अलावा भारत को इस तरह के कार्यक्रम को लेकर नेपाल के नौजवानों की उम्मीदों का भी ध्यान रखना होगा. नेपाल के 35,000 युवा पहले से ही भारतीय सेना के गोरखा रेजिमेंट में तैनात हैं. अग्निपथ योजना के ज़रिए 1,300 और युवाओं की भर्ती के बाद ये सवाल बना रहेगा कि क्या नेपाल के नौजवान उन 25 प्रतिशत सैनिकों में जगह बना पाएंगे जिन्हें नियमित रूप से सेना में तैनात किया जाएगा. 

चीन का भी ध्यान रखना होगा 

इसके अलावा नेपाल को चीन से भी अच्छी मात्रा में सैन्य सहायता मिल रही है जैसे कि 2018 में एक अलग तरह की सुरक्षा साझेदारी के निर्माण के लिए 2.5 अरब नेपाली रुपये (150 मिलियन चीनी मुद्रा) का वादा. ये ऐसा बिंदु है जिसको ध्यान में रखते हुए नेपाल अग्निपथ योजना का आकलन कर रहा है. लंबे समय से चीन नेपाल के साथ अच्छे संबंध बनाए हुए है जिसका उद्देश्य मुख्य रूप से तिब्बत के अलगाववादियों पर रोकथाम लगाना है. चीन और नेपाल के बीच गहरे सैन्य संबंधों को बढ़ावा देने के लिए 2020 में चीन के रक्षा मंत्री ने नेपाल का दौरा किया था. ये वही समय था जब कालापानी, लिंपियाधुरा और लिपुलेख के राजनीतिक नक्शे को लेकर भारत और नेपाल के बीच विवाद के ठीक बाद भारतीय थलसेना के प्रमुख एम. एम. नरवणे ने काठमांडू घाटी का दौरा किया था. कोविड संकट के दौरान भारत और चीन- दोनों देश नेपाल सरकार की अपील पर मेडिकल सामानों की आपूर्ति के लिए राष्ट्रीय रक्षा बल का हिस्सा भी थे. 

अगर नेपाल को भारतीय सेना में उचित सम्मान मिलता है तो अग्निपथ योजना उसके लिए फ़ायदेमंद होगी, ख़ास तौर से रोज़गार सृजन और भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में नये अध्याय की शुरुआत के लिए.

इस तरह रस्साकशी का ये मुक़ाबला पिछले पांच वर्षों से हमेशा मौजूद रहा है और ये भारत के साथ मिलकर सेना में नेपाल की हिस्सेदारी पर सीधा असर डाल रहा है क्योंकि अब परिदृश्य पहले की तुलना में ज़्यादा जटिल है. अगर नेपाल को भारतीय सेना में उचित सम्मान मिलता है तो अग्निपथ योजना उसके लिए फ़ायदेमंद होगी, ख़ास तौर से रोज़गार सृजन और भारतीय सेना की गोरखा रेजिमेंट में नये अध्याय की शुरुआत के लिए. वो गोरखा रेजिमेंट जिसकी बहुत मांग है और बहादुरी एवं प्रतिबद्धता में जिसका अहम योगदान है. नेपाल को जिस चीज़ का ध्यान रखने की ज़रूरत है वो है संतुलन की कला और रणनीतिक पत्तों का ध्यान रखना क्योंकि वो दूसरी तरफ़ से भी इसी तरह के फ़ायदों को उठा रहा है. चूंकि नेपाल समुद्र से दूर देश है, इसलिए उसके लिए ये लाभदायक होगा कि वो भारत और चीन- दोनों देशों के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखे ताकि मित्रतापूर्ण संबंध बना रहे और उसके संसाधनों का ज़्यादा इस्तेमाल हो सके. 

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