लाल सागर के दक्षिण में बाब अल-मंदेब स्ट्रेट व्यापक ईस्ट कोस्ट नॉर्थ अमेरिकन (ECNA) समुद्री कॉरिडोर में एक महत्वपूर्ण समुद्री चोक प्वाइंट (संकरा रास्ता) है जो यूरोप के ज़रिए उत्तर अमेरिका के पूर्वी बंदरगाहों के साथ एशिया को जोड़ता है. ECNA में महत्वपूर्ण समुद्री चोक प्वाइंट जैसे कि मलक्का स्ट्रेट, बाब अल-मंदेब और जिब्राल्टर स्ट्रेट के साथ-साथ स्वेज़ और पनामा नहर शामिल हैं. विश्व व्यापार का लगभग 58 प्रतिशत हिस्सा इस कॉरिडोर के ज़रिए होता है जो वैश्विक समुद्री व्यापार में इसके महत्व के बारे में बताता है.
हालांकि, इज़रायल-हमास संघर्ष के उसके तटीय इलाकों से दूर बाब अल-मंदेब स्ट्रेट और स्वेज़ नहर तक फैलने के साथ लाल सागर इस ज़रूरी समुद्री कॉरिडोर के दूसरे समुद्री चोक प्वाइंट- जिब्राल्टर स्ट्रेट और पनामा नहर-के साथ जुड़ गया है.
अमेरिका और उसके सहयोगियों की तरफ से सैन्य अभियानों और हूती विद्रोहियों के द्वारा कार्रवाई ने लाल सागर से गुज़रने वाले कमर्शियल जहाज़ों की संख्या पर असर डाला है. नवंबर 2023 में जहां रोज़ 50 जहाज़ लाल सागर से गुज़रते थे, वहीं फरवरी 2024 में ये संख्या गिरकर महज़ आठ रह गई थी.
दिसंबर 2023 और मार्च 2024 के बीच यमन के हूतियों, जो कि ईरान, हमास, लेबनान के हिज़्बुल्लाह और सीरिया एवं ईरान में ईरान के समर्थित मिलिशिया को मिलाकर बने व्यापक स्व-घोषित 'एक्सिस ऑफ रेज़िस्टेंस' (प्रतिरोध की धुरी) का हिस्सा है, ने लाल सागर से गुज़र रहे 44 जहाज़ों पर बमबारी की है. इसके परिणामस्वरूप अमेरिका की अगुवाई में 'ऑपरेशन प्रॉस्पेरिटी गार्जियन', जो कि 20 देशों का नौसैनिक गठबंधन है, ने इस महत्वपूर्ण समुद्री रूट में हूती के दखल का मुकाबला करने के लिए अमेरिकी कंबाइंड टास्कफोर्स 153 (3 अप्रैल 2024 से इटली की नौसेना की कमान के तहत) को बढ़ाया है.
अमेरिका और उसके सहयोगियों की तरफ से सैन्य अभियानों और हूती विद्रोहियों के द्वारा कार्रवाई ने लाल सागर से गुज़रने वाले कमर्शियल जहाज़ों की संख्या पर असर डाला है. नवंबर 2023 में जहां रोज़ 50 जहाज़ लाल सागर से गुज़रते थे, वहीं फरवरी 2024 में ये संख्या गिरकर महज़ आठ रह गई थी. इस तरह समुद्री सप्लाई चेन की कमज़ोरी और दबाव बनाने के लिए हथियार के रूप में उनके भू-आर्थिक इस्तेमाल का पता चलता है. ये लेख वैश्विक शिपिंग उद्योग और जस्ट इन टाइम (JIT) मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों पर लाल सागर के संकट के असर का विश्लेषण करता है. साथ ही ये लेख लाल सागर के संकट की वजह से वैश्विक सप्लाई चेन की कमज़ोरी का भी वर्णन करता है.
तूफान से पहले की शुरुआत
एशिया से यूरोप जाने के लिए लाल सागर से होकर गुज़रना सबसे छोटा समुद्री रास्ता है. लगभग 15 प्रतिशत अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग ट्रैफिक, जिसका मूल्य 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष है, वैश्विक कंटेनर ट्रैफिक का 33 प्रतिशत यानी हर महीने 1,500 कमर्शियल जहाज़, वैश्विक तेल सप्लाई का 10 प्रतिशत (8.8 मिलियन बैरल प्रति दिन) और वैश्विक गैस सप्लाई का 8 प्रतिशत लाल सागर से जाता है. लाल सागर ट्रांज़िट चैनल JIT उद्योगों जैसे कि जल्द ख़राब होने वाले सामान, ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरिंग, केमिकल मैन्युफैक्चरिंग, सेमीकंडक्टर उद्योग और ख़ुद ज़्यादातर शिपिंग उद्योग के लिए भी महत्वपूर्ण है. ये परेशानी उस समय खड़ी हुई जब वित्तीय वर्ष 2023 की तीसरी तिमाही में वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग में 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी देखी गई जिसकी वजह से कंटेनर, कार्गो जहाज़ों और कंटेनर वेसेल के लिए मांग में पहले ही काफी बढ़ोतरी हुई थी.
अल्पकालीन कीमत में बढ़ोतरी और वैश्विक समुद्री व्यापार में देरी के लिए भी सीधे तौर पर लाल सागर के संकट को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है. दिसंबर 2023 से कंटेनर वेसेल और जहाज़ यूरोप पहुंचने के लिए लंबे केप ऑफ गुड होप रूट से गुज़र रहे हैं. इसकी वजह से उत्तरी अटलांटिक और यूरोप की मंज़िलों तक पहुंचने में उनका रास्ता 4,575 नॉटिकल माइल अधिक (29 प्रतिशत ज़्यादा) हो रहा है और 12-14 दिन ज़्यादा लग रहे हैं. इसके अलावा लंबी दूरी की यात्रा ने रूट को पार करने वाले बेड़े की क्षमता को हर राउंड ट्रिप के लिए आम तौर पर 11 जहाज़ों से बढ़ाकर 23 जहाज़ कर दिया है. साथ ही इंश्योरेंस प्रीमियम भी बढ़कर कुल शिपमेंट वैल्यू का 2 प्रतिशत (0.5 प्रतिशत से) हो गया है; ईंधन की लागत बढ़कर 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति ट्रिप हो गई है और चीन से नीदरलैंड्स के लिए (उदाहरण के तौर पर) राउंड ट्रिप की कुल लागत में औसतन 250 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. वैश्विक शिपिंग उद्योग के सामर्थ्य और कुछ कंटेनर/कमर्शियल शिपिंग की ज़रूरत से ज़्यादा क्षमता ने फिलहाल के लिए असर को कम किया है. फिर भी इस संकट का लंबे समय के लिए नतीजा न सिर्फ दुनिया भर में महंगाई में बढ़ोतरी के रूप में दिख सकता है बल्कि JIT मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों पर भी एक स्थायी असर हो सकता है.
JIT उद्योग पहले से ही लाल सागर के संकट की वजह से देरी और अधिक लागत से जूझ रहा है. इनमें टेस्ला, टाटा मोटर्स, जेचेम GmbH एंड कंपनी KG, सुज़ुकी, फॉक्सवैगन, मिशेलिन, डनलप, इत्यादि जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां शामिल हैं. ये कंपनियां केमिकल, ऑटोमोबाइल के पुर्जे, माइक्रोचिप्स और रिफाइंड क्रिटिकल मेटल एशिया के बाज़ारों से ख़रीदती हैं. उनके महत्वपूर्ण वैल्यू चेन में अचानक आई रुकावट ने उन्हें (और कई अन्य कंपनियों को भी) उत्पादन और असेंबली लाइन रोकने या अस्थायी रूप से अपनी फैक्ट्री बंद करने के लिए मजबूर कर दिया है. इसके अलावा यूरोप के केमिकल सेक्टर और यूनाइटेड किंगडम (UK) और जर्मनी जैसी अर्थव्यवस्थाओं के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में सप्लाई चेन की बाधाओं के कारण उत्पादन में गिरावट दर्ज की जा रही है. फरवरी 2024 में मैन्युफैक्चरिंग परचेज़िंग मैनेजर इंडेक्स (PMI)- एक व्यापक आर्थिक इंडिकेटर जो किसी अर्थव्यवस्था के मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर की स्थिति के बारे में बताता है- के 5 में से 4 सब-इंडिकेटर (उप-संकेतक) ने साल दर साल के आधार पर जर्मनी और UK के लिए कम संख्या दर्ज की. लाल सागर की सप्लाई चेन में रुकावट का असर व्यापक है और ये कम उत्पादन और नए ऑर्डर में कमी के रूप में दिखता है. ध्यान देने की बात है कि ये अर्थव्यवस्थाएं कई तरह की व्यापक आर्थिक समस्याओं, मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में, ऐसा होने की वजह से पहले से ही दबाव में थीं.
लाल सागर की सप्लाई चेन में रुकावट का असर व्यापक है और ये कम उत्पादन और नए ऑर्डर में कमी के रूप में दिखता है. ध्यान देने की बात है कि ये अर्थव्यवस्थाएं कई तरह की व्यापक आर्थिक समस्याओं, मुख्य रूप से मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में, ऐसा होने की वजह से पहले से ही दबाव में थीं.
इन समस्याओं के बावजूद फिलहाल के लिए वैश्विक कमोडिटी की कीमत काफी हद तक संकट से अछूती लग रही है. हालांकि लगातार समुद्री रास्ते को बदलना भारत, यूरोपियन यूनियन (EU), चीन और नीदरलैंड्स जैसे बड़े व्यापारिक देशों/संघों के लिए एक मुद्दे के रूप में उभर रहा है क्योंकि ये लाल सागर के ज़रिए कई सामानों का आयात-निर्यात करते हैं जिनमें तेल और गैस मुख्य हैं. हर साल EU को चीन और भारत का लगभग 80 प्रतिशत निर्यात (क्रमश: 559 अरब अमेरिकी डॉलर और 200 अरब अमेरिकी डॉलर) भी लाल सागर से होकर गुज़रता है.
भारतीय सप्लाई चेन और अर्थव्यवस्था पर असर
मात्रा के हिसाब से भारत का 80 प्रतिशत विदेशी व्यापार (50 प्रतिशत निर्यात और 30 प्रतिशत आयात) लाल सागर से होकर गुज़रता है. भारत इस ट्रांज़िट रूट के ज़रिए दूसरे सामानों समेत जल्द ख़राब होने वाले सामानों जैसे कि अनाज, चावल, गेहूं और मसालों का निर्यात करता है और पश्चिम एशिया एवं यूरोप से फर्टिलाइज़र, कैपिटल गुड्स, तेल एवं गैस का आयात करता है. हालांकि, केप ऑफ गुड होप के रास्ते जाने और लाल सागर की लगातार घेराबंदी के कारण भारत की सप्लाई चेन पर असर पड़ सकता है.
ट्रांज़िट लागत, समुद्र में समय और इंश्योरेंस प्रीमियम में बढ़ोतरी के मिले-जुले असर से लंबे समय में महत्वपूर्ण सामानों जैसे कि तेल, ऑटोमोबाइल के पुर्जे, उर्वरक और कैपिटल गुड्स महंगे हो सकते हैं. शिपिंग में देरी के कारण न चाहते हुए भी कैपिटल गुड्स की इन्वेंट्री (भंडार) बढ़ सकती है और पश्चिम एशिया से फर्टिलाइज़र (मुख्य रूप से इज़रायल, जॉर्डन और मिस्र से पोटाश और फिटकिरी) भेजने में लगातार देरी लंबे समय में कृषि उत्पादन पर असर डाल सकती है.
इन अटकलों का सबूत लाल सागर से होकर गुज़रने वाले इन उत्पादों के कमोडिटी व्यापार की मात्रा से पता चलता है. दिसंबर 2023 से फरवरी 2024 के बीच यूरोप को भारत के प्रोसेस्ड क्रूड के निर्यात में 18 प्रतिशत की गिरावट आई (1.31 मिलियन बैरल प्रतिदिन से घटकर 1.11 मिलियन बैरल प्रतिदिन). इसके अलावा तेल से समृद्ध पश्चिम एशिया के देशों और अमेरिका से भारत का आयात (जो लाल सागर के रास्ते से आता है) इसी अवधि के दौरान आधा हो गया. रूस और इराक़ से भारत का तेल आयात दिसंबर 2023 से मार्च 2024 के दौरान दोगुना हो गया. लंबे केप ऑफ गुड होप रूट से आने की वजह से भारत का तेल आयात ज़्यादा महंगा होना तय है. इराक़ से तेल आयात 24 महीनों में सबसे ज़्यादा हुआ है. बढ़ती घरेलू ऊर्जा की मांग और तेल एवं शिपिंग की लागत में संतुलन लाने की मजबूरी ने भारत को अमेरिका और सऊदी अरब से तेल आयात को बदलने पर विवश कर दिया. इस तरह रूस और इराक़ी तेल के आयात में बढ़ोतरी हुई, विशेष रूप से फरवरी और मार्च 2024 में.
भारत बड़ी मात्रा में म्यूरेट ऑफ पोटाश या पोटैशियम क्लोराइड (MOP), जो कि एक उर्वरक है, का आयात जॉर्डन और इज़रायल (आयात का क्रमश: 15 और 30 प्रतिशत) से करता है. वैसे तो भारत सरकार इसका पर्याप्त भंडार रखती है लेकिन लंबे समय तक लाल सागर के ज़रिए सप्लाई चेन में रुकावट से फर्टिलाइज़र के दाम में बढ़ोतरी होगी. वैश्विक वैल्यू चेन के जाल के माध्यम से काम करने वाले और कैपिटल गुड्स पर निर्भर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में केमिकल, ऑटोमोबाइल और सेमीकंडक्टर जैसे JIT मैन्युफैक्चरिंग उद्योगों को लेकर ज़रूरी मुद्दे उस समय अधिक प्रमुखता से सामने आते हैं जब सप्लाई चेन खिंच जाती है क्योंकि देरी से डिलीवरी ऑर्डर को पूरा करने की महत्वपूर्ण प्रक्रिया में गिरावट के साथ-साथ लॉजिस्टिक की लागत में बढ़ोतरी में योगदान देती है. इसके नतीजतन ये सेक्टर अधिक इन्वेंट्री से निपटने और संभावित ऑर्डर में मंदी की दोहरी चुनौतियों से जूझ सकता है. इस तरह इन उद्यमों की कुल व्यावसायिक गतिशीलता (डायनैमिक्स) और प्रदर्शन पर असर पड़ता है.
निष्कर्ष
लाल सागर के संकट ने वैश्विक सप्लाई चेन, ख़ास तौर पर JIT मैन्युफैक्चरिंग, की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है जो सक्षम समुद्री परिवहन पर बहुत ज़्यादा निर्भर करती है. लंबे केप ऑफ गुड होप रास्ते के ज़रिए जहाज़ों के आने-जाने का नतीजा लागत में महत्वपूर्ण बढ़ोतरी, देरी और रुकावट के रूप में निकला है. वैसे तो वैश्विक शिपिंग उद्योग के सामर्थ्य ने शुरुआती असर का बोझ उठा लिया है लेकिन लंबे समय में इसका नतीजा अधिक शिपिंग लागत एवं उपभोक्ताओं के लिए ज़्यादा लागत, कमज़ोर JIT मैन्युफैक्चरिंग और वैश्विक व्यापार पर ख़राब असर के रूप में सामने आ सकता है, कम-से-कम अल्पकाल में.
वैसे तो वैश्विक शिपिंग उद्योग के सामर्थ्य ने शुरुआती असर का बोझ उठा लिया है लेकिन लंबे समय में इसका नतीजा अधिक शिपिंग लागत एवं उपभोक्ताओं के लिए ज़्यादा लागत, कमज़ोर JIT मैन्युफैक्चरिंग और वैश्विक व्यापार पर ख़राब असर के रूप में सामने आ सकता है, कम-से-कम अल्पकाल में.
रूस-यूक्रेन संघर्ष की शुरुआत के समय वैश्विक कीमत में काफी बढ़ोतरी हुई थी. हालांकि, पिछले दिनों अपने वैश्विक आर्थिक दृष्टिकोण (आउटलुक) में विश्व बैंक ने संकेत दिया कि वैश्विक कमोडिटी की कीमत रूस-यूक्रेन संघर्ष के अनुरूप समायोजित (एडजस्ट) हो गई है. फिर भी 2022 में खाद्य और ऊर्जा की वैल्यू चेन पर गंभीर असर पड़ा और इसके व्यापक प्रभाव को अभी भी दुनिया भर में महसूस किया जा सकता है. दोनों संकट किसी एक चोक प्वाइंट पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता कम करने, बफर स्टॉक बनाने (एक के ऊपर दूसरे सामानों या स्टैकेबल गुड्स के लिए) और जोखिम कम करने एवं सप्लाई चेन के सामर्थ्य को तैयार करने के लिए वैकल्पिक स्रोतों/रूट का पता लगाने की अपील करते हैं.
पृथ्वी गुप्ता ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में जूनियर फेलो हैं.
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