Published on Jul 07, 2020 Updated 0 Hours ago

आज भी देश में कुल बारिश का केवल आठ प्रतिशत पानी ही जमा किया जा रहा है. वर्षा जल संचयन के क्षेत्र की प्रगति धीमी रहने के कई कारण हैं. लेकिन, इस लेख में हम केवल बारिश का पानी जमा करने वाले सिस्टम की व्यवहारिक ख़ामियों के बारे में चर्चा करेंगे.

शहरों में बारिश का पानी बन सकता है वरदान: रेन वॉटर हार्वेस्टिंग दिखा रहा है रास्ता

भारत में करोड़ों लोग शहरों में रहते हैं. और इन शहरों में पानी की मांग बहुत ज़्यादा है. शहरी प्रशासन अपनी जल आपूर्ति व्यवस्था के तहत इस मांग के ज़्यादातर हिस्से को पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन, अभी भी तमाम शहरों के बहुत से ऐसे इलाक़े हैं, जहां पर जल आपूर्ति की सरकारी सेवाएं नहीं पहुंच सकी हैं. इसके अलावा, अब शहरों में चौबीसों घंटे पाइप ने पानी की आपूर्ति उपलब्ध नहीं रह गई है. इन समस्याओं की उत्पत्ति के पीछे कई कारण हैं. इसमें नगर निगमों के पास नागरिकों को आपूर्ति के लिए उपलब्ध पानी की तादाद में कमी भी शामिल है. इसके अलावा शहरों के जल प्रबंधन की कमियां भी ऐसे हालात के लिए ज़िम्मेदार हैं. इसीलिए देश के तमाम नगर निगम अब शहरों में पानी की आपूर्ति बेहतर करने के लिए लगातार कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए वो अलग अलग स्रोतों, जैसे कि नदियां, झीलें, नहरें, भूगर्भ जल और बारिश के पानी को जमा करके शहरियं को ज़्यादा पानी उपलब्ध कराने के लिए सतत प्रयत्नशील हैं.

बारिश के पानी को जमा करने के फ़ायदों को देखते हुए, भारत के बहुत से शहरों के प्रशासन बारिश के पानी को इकट्ठा करने के विचार को लोकप्रिय बनाने और इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं

मौसमी बरसात, पानी का एक अच्छा स्रोत रही है. भारतीय उप महाद्वीप के अधिकतर हिस्सों में बारिश होती है. और हमारे देश में बारिश का पानी जमा करके उसे तमाम तरह से काम में लाया जाता रहा है. इस प्रक्रिया को वर्षा जल संचयन या रेन वॉटर हार्वेस्टिंग (RWH) कहा जाता है. इससे भविष्य के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित की जाती है. जिन इलाक़ों में धरती पर पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं उपलब्ध है कि उसे पाइप के ज़रिए सप्लाई किया जा सके. वहां पर बारिश के पानी को जमा करने के सिस्टम की उचित व्यवस्था करके, तमाम समुदायों की पानी की ज़रूरतें पूरी की जा सकती हैं.

बारिश के पानी को जमा करने के फ़ायदों को देखते हुए, भारत के बहुत से शहरों के प्रशासन बारिश के पानी को इकट्ठा करने के विचार को लोकप्रिय बनाने और इस व्यवस्था को लागू करने की कोशिश कर रहे हैं. ताकि, निजी और सरकारी इमारतों, मकानों और हाउसिंग सोसाइटी, संस्थानों और सार्वजनिक स्थलों पर वर्षा जल के संचयन की सुविधा स्थापित की जा सके.

उदाहरण के लिए दिल्ली के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर, बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए तीन सौ से अधिक कुएं बनाए गए हैं. इनसे भूगर्भ जल के ख़ज़ाने को फिर से बेहतर बनाया जाता है. चूंकि, दिल्ली हवाई अड्डे पर पानी का उपयोग बहुत अधिक (45 लाख लीटर प्रतिदिन/mld) है. इसलिए, बारिश के पानी को जमा करके, और उपयोग किए जा चुके पानी को रिसाइकिल करके, हवाई अड्डे के अधिकारी पानी की इस भारी मांग को पूरा करने की कोशिश करते हैं. ऐसा करके एयरपोर्ट, पहले से ही भारी मांग के बोझ तले दबी दिल्ली शहर की जल आपूर्ति व्यवस्था पर दबाव कम करने में भी सहयोग करता है.

बारिश के पानी की अहमियत को लेकर जागरूकता बढ़ी है. सरकार भी इसे योजना, क़ानून और समुचित भागीदारी से बढ़ावा दे रही है. शहरों की नई इमारतों में वर्षा जल संचयन की सुविधा सुनिश्चित करने के बाद ही ऑक्यूपेंसी सर्टिफ़िकेटदिया जाते हैं. इसके अलावा देश के क़स्बों और शहरों में बारिश के पानी को इकट्ठा करने की निगरानी के लिए प्रकोष्ठ की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है. फिर भी, देश में वर्षा जल संचयन की सुविधाओं का विकास बेहद धीमा है. आज भी देश में कुल बारिश का केवल आठ प्रतिशत पानी ही जमा किया जा रहा है. वर्षा जल संचयन के क्षेत्र की प्रगति धीमी रहने के कई कारण हैं. लेकिन, इस लेख में हम केवल बारिश का पानी जमा करने वाले सिस्टम की व्यवहारिक ख़ामियों के बारे में चर्चा करेंगे. इन सभी दिक़्क़तों के बारे में आगे संक्षिप्त चर्चा की गई है. इस संदर्भ में लेखक का तर्क ये है कि पानी जमा करने के सिस्टम की व्यवहारिक ख़ामियों के चलते ही इनकी व्यापक रूप से स्वीकार्यता नहीं है. और ख़ासतौर पर इमारतों में बारिश का पानी जमा करने की व्यवस्था लागू नहीं हो पा रही है. अगर हमें बारिश के पानी का बेहतर ढंग से इस्तेमाल करना है. फिर चाहे पीने के लिए हो या अन्य ज़रूरतों के लिए, तो इन समस्याओं को दूर करना ही होगा.

वर्षा जल संचयन के लिए जो भी सिस्टम डिज़ाइन किए जाएं और लगाए जाएं, उनका रख रखाव ऐसे होना चाहिए कि नालियां, गटर और पानी जमा करने वाला कैचमेंट एरिया ही नहीं, जहां पानी इकट्ठा होता है, वो भी अशुद्धियों से मुक्त हो

बारिश के पानी की क्वालिटी: हालांकि, बारिश का पानी, काफ़ी हद तक साफ़ होता है. लेकिन अगर वातावरण में प्रदूषण है, तो वर्षा जल के भी प्रदूषित होने का ख़तरा रहता है. अगर बारिश के पानी को ठीक तरीक़े से इकट्ठा और जमा नहीं किया गया, तो भी इसके प्रदूषित होने का ख़तरा रहता है. इस वजह से कई चुनौतियां उठ खड़ी होती हैं. कोविड-19 महामारी का दौर एक अपवाद है. क्योंकि इस दौरान लॉकडाउन के चलते सब कुछ ठप पड़ गया है. वरना तो, भारत के शहरों में प्रदूषण का स्तर बेहद ख़राब रहता है. और इस बात की पूरी आशंका होती है कि इस प्रदूषण का बारिश के पानी पर भी बुरा प्रभाव पड़े. इसी तरह, इमारतों की छतें, या जहां बरसात का पानी जमा होता है. जैसे कि, गड्ढे या ख़ाली ज़मीन. वो जगहें भी धूल, चिड़ियों की गंदगी, कीड़ों और कचरे की शिकार होती हैं. अगर, इन अशुद्धियों को पाइप, पानी जमा करने के टैंक या गड्ढों में जाने से नहीं रोका जाता, तो पानी की गुणवत्ता तो ख़राब हो ही जाती है. और गड्ढे या टैंक भी तलछट से भरने का ख़तरा रहता है. एक और समस्या ये है कि इकट्ठा किए गए बारिश के पानी में ज़िंक या सीसे की मिलावट भी हो जाती है. इसका कारण छतों पर लगी धातुओं, पाइप या टैंक से रिसाव होता है. अगर ऐसी अशुद्धियों वाला पानी पीने में इस्तेमाल होा है, तो सेहत की गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) का कहना है की, ‘बारिश की पहली बौछार में आमतौर पर कीटाणु ज़्यादा पाए जाते हैं. और जैसे-जैसे आगे बारिश होती है, तो उसमें प्रदूषण की मात्रा कम होती जाती है. वहीं पानी जमा करने के लिए बने टैंक अगर खुले हैं, तो वहां मच्छरों की भारी आबादी जमा हो जाती है.’ इसीलिए वर्षा जल संचयन के लिए जो भी सिस्टम डिज़ाइन किए जाएं और लगाए जाएं, उनका रख रखाव ऐसे होना चाहिए कि नालियां, गटर और पानी जमा करने वाला कैचमेंट एरिया ही नहीं, जहां पानी इकट्ठा होता है, वो भी अशुद्धियों से मुक्त हो. इस संदर्भ में, बारिश का पानी जमा करने के लिए निम्नांकित सुझाव उपलब्ध हैं:

-बारिश के पानी के कैचमेंट एरिया और जमा करने वाले टैंक की नियमित रूप से सफाई हो. उसकी जांच पड़ताल होती रहे. साथ ही साथ उनकी क्लोरीन से सफाई होती रहे. ताकि काई, बैक्टीरिया और विषाणु ख़त्म होते रहें.

  • प्लास्टिक या धातु के टैंक की जगह कंक्रीट के टैंक बनें. कैचमेंट एरिया भी इसी का हो, ताकि रिसाव न हो. और बारिश के पानी की अम्लीयता, तय मानकों के दायरे में रहे (मतलब उसका ph 7 हो).
  • जहां से पानी, पाइप के भीतर जाता हो, वहां जाली और फिल्टर लगे हों, ताकि पानी के साथ कीड़े मकोड़े टैंक में न घुस पाएं.
  • स्टोरेज टैंक के मुंह ढंके रहें. उनके ऊपर जालियां लगी हों, ताकि मच्छर न जमा हो सकें.
  • बारिश की पहली खेप को अलग से निकालने के लिए टैंक से पानी की निकासी की व्यवस्था हो. साथ ही साथ गंदा पानी टैंक में जाने से रोकने के लिए भी इंतज़ाम हों.

बारिश के पानी में खनिज की मात्रा: अच्छी सेहत के लिए लोगों को कई खनिज पदार्थों और विटामिन की ज़रूरत होती है. ये पोषक तत्व पीने के पानी, खाने और सूरज की रौशनी से मिलते हैं. ऐसा पाया गया है कि बारिश के पानी में इन खनिजों जैसे कि कैल्शियम और मैग्नीशियम की कमी होती है. इनकी कमी से पानी का स्वाद भी अलग हो जाता है. बिना खनिज मिलाए, ये पानी पीना भी इंसान की सेहत के लिए नुक़सानदेह हो सकता है. इसीलिए, बारिश के पानी को पीने लायक़ बनाने के लिए, कई खनिज तत्वों से लैस बायोमिनरल कार्ट्रिज कई देशों में उपलब्ध कराए जाते हैं. खनिजों के ये कार्ट्रिज पानी जमा करने वाली टंकियों में लगाए जा सकते हैं.

हमारे देश में कब कितनी बारिश होगी ये पता नहीं होता. ऐसे में कितना पानी जमा हो सकता है, इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है. इसीलिए, ये बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि पानी जमा करने वाली टंकियों का आकार इतना बड़ा हो कि ज़्यादा मात्रा मे पानी इकट्ठा किया जा सके

बारिश का पानी जमा करने वाली टंकियों का आकार: हमारे देश में कब कितनी बारिश होगी ये पता नहीं होता. ऐसे में कितना पानी जमा हो सकता है, इसका अंदाज़ा लगाना भी मुश्किल होता है. इसीलिए, ये बात महत्वपूर्ण हो जाती है कि पानी जमा करने वाली टंकियों का आकार इतना बड़ा हो कि ज़्यादा मात्रा मे पानी इकट्ठा किया जा सके. ताकि उसे भविष्य में इस्तेमाल किया जा सके. ख़ासतौर पर गर्मियों के दिनों में. क्योंकि तब पानी की मांग बहुत ज़्यादा होती है. बारिश का पानी जमा करने की टंकी कितनी बड़ी होगी, ये इस आधार पर तय किया जा सकता है कि किसी इलाक़े में वर्षा जल संचयन की कितनी संभावना है. इस संदर्भ में जो एक और समस्या आती है, वो ये है कि बारिश के पानी से अक्सर टैंक भर कर बहने लगते हैं. इस चुनौती से निपटने के लिए बारिश के पानी को किसी और दिशा में मोड़ने की व्यवस्था होनी चाहिए. जिससे पानी ज़्यादा होने पर भी टंकी ओवरफ्लो न हो. यानी बारिश का पानी टंकी से ज़्यादा हो जाए, तो उसे बाग़बानी या अन्य कामों में इस्तेमाल किया जा सकता है.

ये सुनिश्चित करने के लिए कि ये समस्याएं न हों, वर्षा जल संचयन के लिए काम करने वाली कंपनियां आठ क़दमों का सुझाव देती हैं. जैसे कि पानी के प्रदूषित होने के ख़तरे को कम करना, कितना पानी जमा करना है, उसकी योजना बनाना. पत्तियों और कचरे को फिल्टर करना. पहली बारिश के पानी को किसी और दिशा में मोड़ने की व्यवस्था करना, टैंकों को ढकना. तूफ़ान के पानी को टैंक में घुसने से रोकना. टैंक में जमा पानी का उचित प्रबधन और तलछट जमा होने से रोकने के लिए फिल्टर की व्यवस्था. साथ ही साथ टैंक में जमा पानी का स्तर नियमित रूप से जांचना और पानी का उचित इस्तेमाल सुनिश्चित करना ज़रूरी है.

वर्षा जल संचयन की व्यवस्थाओं की आम समस्याओं से जुड़ी जानकारियों की समीक्षा करने पर ये पता चलता है कि इन चुनौतियों के मुख्य रूप से तीन आयाम हैं. पहला तो बारिश के पानी की गुणवत्ता है. दूसरा पानी में आवश्यक खनिजों की तादाद का है. और तीसरी चुनौती पानी इकट्ठा करने वाले टैंक के आकार से जुड़ी है. इन चुनौतियों से पार पाने के लिए बारिश का पानी इकट्ठा करने वाले किसी भी सिस्टम के तीन प्रमुख हिस्सों से जुड़ी समस्याओं का समाधान खोजना ज़रूरी है. मतलब कि छतों, पाइप, गटर और टैंक से जुड़े सिस्टम को सुधारना ज़रूरी है, ताकि पानी की गुणवत्ता अधिकतम हो और ज़्यादा से ज़्यादा पानी जमा हो सके. इस दिशा में कोई भी कमी रह जाने पर वर्षा जल संचयन की पूरी योजना नाकाम हो जाएगी. या उसका क्षमता से कम इस्तेमाल हो सकेगा. इसके अलावा, अगर पानी जमा करने की व्यवस्था ख़राब है, तो वो जमा किए गए पानी को इस्तेमाल करने वालों के लिए जोखिम को बढ़ा देगा. फिर चाहे ये पानी पीने के लिए इस्तेमाल किया जाए. या फिर नहाने और बर्तन धोने के लिए. इस बात के प्रमाण हैं कि इन चुनौतियों पर उचित रूप से ध्यान न देने के कारण भारत के कई शहरों में बारिश का पानी जमा करने के सिस्टम ख़राब हो रहे हैं. वहीं, कई व्यवस्थाओं को तो यूं ही छोड़ दिया गया है. इससे बारिश का पानी जमा करने का सिस्टम लगाने में जो पैसे ख़र्च किए गए हैं, वो व्यर्थ हो गए हैं.

शहरों के निवासी, ख़ासतौर से ग़रीब समुदायों के लोगों को पानी की सख़्त ज़रूरत है. और बारिश के पानी को जमा करके इनकी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में काफ़ी मदद मिल सकती है. इसके लिए, वर्षा जल संचयन के सिस्टम को और व्यापक बनाना होगा. और इसके लिए शहरों के प्रशासन इन उपायों को आज़मा सकते हैं:

  • नागरिकों के बीच बारिश के पानी को जमा करने से होने वाले आर्थिक और पर्यावरण के फ़ायदों के प्रति और जागरूक बनाएं.
  • रेज़िडेंट एसोसिएशन के साथ नियमित बैठकें करके वर्षा जल संचयन से जुड़े उनके सवालों के जवाब दिए जाएं.
  • इस दिशा में काम करने वाली निजी कंपनियों के साथ सहयोग करें, ताकि वो कम लागत वाले तकनीकी विकल्प और उनके उचित इस्तेमाल के लिए सुझाव दे सकें.
  • ये सुनिश्चित करें कि निजी कंपनियां जब बारिश के पानी को जमा करने का सिस्टम लगा रही हों, तो ऐसी सारी व्यवस्थाएं करें जिससे साफ पानी की उपलब्धता हो.
  • वर्षा जल संचयन के मौजूदा सिस्टम की निगरानी के लिए स्वतंत्र एजेंसियों को ज़िम्मेदारी दी जाए.
  • घनी आबादी वाले इलाक़ों की ऊंची इमारतों, जैसे कि बहुमंज़िला बिल्डिंग, हाउसिंग सोसाइटी, संस्थानों की इमारतें और कारोबारी बिल्डिंगों में बारिश का पानी जमा करने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए.
  • अवैध कॉलोनियों और स्लम के क़रीब सार्वजनिक ज़मीनों पर बारिश का पानी इकट्ठा करने के सिस्टम लगाना सुनिश्चित किया जाए.
  • शहर में बारिश का पानी जमा करने के लिए लगे सभी RWH सिस्टम की लिस्ट उनकी अवस्था और स्थान के साथ बनाई जाए.
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