Author : Shivam Shekhawat

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 09, 2024 Updated 3 Hours ago

ईरान और पाकिस्तान के रिश्तों के रसातल में पहुंचने के लगभग दो महीने बाद, ईरान के इस्लामिक गणराज्य के राष्ट्रपति इब्राहिम रायसी तीन दिनों के दौरे पर पाकिस्तान पहुंचे थे.

ईरान के राष्ट्रपति का पाकिस्तान दौरा: पाइपलाइन प्रोजेक्ट को फिर से ज़िंदा करने की नई कोशिश

ईरान और पाकिस्तान के रिश्तों के रसातल में पहुंचने के लगभग दो महीने बाद, ईरान के इस्लामिक गणराज्य के राष्ट्रपति ब्राहिम रायसी तीन दिनों के दौरे पर पाकिस्तान पहुंचे थे. 22 से 24 अप्रैल के इस दौरे में ईरान के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान के राष्ट्रपति, वहां के प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष और पाकिस्तान के सूबों के नेताओं से मिले. इब्राहिम रायसी के इस पाकिस्तान दौरे की टाइमिंग काफ़ी अहम थी. पाकिस्तान में 8 फरवरी को हुए विवादित आम चुनावों के बाद, रायसी पहले विदेशी राष्ट्राध्यक्ष थे, जो पाकिस्तान के दौरे पर आए थे. उनका ये पाकिस्तान दौरा ऐसे वक़्त में हुआ, मध्य पूर्व में उथल पुथल मची हुई है. ईरान ने इज़राइल पर हमला किया था और पिछले कुछ महीनों के दौरान ख़ुद पाकिस्तान और ईरान के रिश्तों में भी तनाव पसरा हुआ था.

एक ओर जहां बाहरी निवेश, प्रधानमंत्री हसीना को पर्यावरण से जुड़ी असुरक्षा से निपटने में काम आएगा और दक्षिणी बांग्लादेश के आर्थिक क्षमता का दोहन करने में सहायक साबित होगा, वहीं बंगाल की खाड़ी में चीन के बढ़ते दख़ल की वज़ह से इस क्षेत्र की भूराजनीतिक स्थिति में एक भूचाल भी आएगा.

 

रिश्तों की सारी संभावनाओं को पूरा करने की कोशिश

 

जनवरी महीने में दोनों देशों के संबंधों में आई गिरावट के बाद, इस दौरे का ज़ोर मुख्य रूप से आर्थिक और सुरक्षा, दोनों ही मोर्चों पर सहयोग को बढ़ाना था. रायसी के पाकिस्तान दौरे के दौरान, पाकिस्तान और ईरान के बीच आठ समझौतों पर दस्तख़त किए गए और दोनों ही पक्षों ने आपसी व्यापार को बढ़ावा देने के उम्मीद जगाने वाले वादे भी किए. दोनों देशों के बुरे आर्थिक संबंधों पर अफ़सोस जताते हुए ईरान ने पाकिस्तान के साथ आर्थिक सहयोग बढ़ाने की अपील की और आपसी कारोबार को अगले पांच वर्षों के दौरान 10 अरब डॉलर तक पहुंचाने का मज़बूत इरादा जताया. इब्राहिम रायसी ने व्यापार बढ़ाने में सीमावर्ती इलाक़ों की अहमियत को रेखांकित करते हुए मंद और पिशिन बाज़ार की तर्ज़ पर सरहद के दोनों ओर और बाज़ार खोलने की बात कही. इब्राहिम रायसी के इस दौरे के दौरान, सामानों की अदला बदली के ज़रिए कारोबार बढ़ाने की उपयोगिता पर भी चर्चा की, ताकि दोनों देशों के बीच अच्छे बैंकिंग संबंध होने की चुनौती से पार पाया जा सके. इस दौरान मुक्त व्यापार की वार्ता में तेज़ी लाने पर भी बल दिया गया.

 

दोनों देशों की तरफ़ से जो 28 बिंदुओं का साझा बयान जारी किया गया, उसमें अफ़ग़ानिस्तान में मौजूद आतंकवादियों को लेकर तो चिंता जताई गई. पर, दोनों देशों की सीमाओं में घुसकर अपनी गतिविधियां चलाने वाले आतंकवादी संगठनों पर ये साझा बयान ख़ामोश रहा. पाकिस्तान और ईरान के नेताओं ने औपचारिक तौर पर एक दूसरे पर किए गएवार पलटवारवाले हमलों का भी ज़िक्र किया, जिससे ये संकेत मिलता है कि पाकिस्तान और ईरान दोनों ही इस बात को लेकर फ़िक्रमंद हैं कि आगे कैसे बढ़ा जाए. दोनों देशों के गृह मंत्री एक दूसरे की सरहद के भीतर सक्रिय आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगाने और सीमा के प्रबंधन के साथ गोपनीय जानकारियां साझा करने के मामले में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति जताई. ईरान के राष्ट्रपति के साथ अपनी मुलाक़ात के दौरान पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष जनरल आसिम मुनीर ने दोनों देशों की सीमा कोअमन और दोस्ती की सरहदक़रार दिया और वादा किया कि दोनों देशों के सियासी और सैन्य नेतृत्व के बीच नियमित सलाह मशविरा होना चाहिए, ताकि अन्य पक्ष उनके आपसी संबंध को नुक़सान पहुंचा सकें.

 

पुराने सपनों को पंख लगाने की कोशिश: ईरान और पाकिस्तान के बीच गैस पाइपलाइन पर काम दोबारा शुरू करने का प्रयास

 

वैसे तो ईरान के राष्ट्रपति के पाकिस्तान दौरे से आर्थिक सहयोग या फिर ऊर्जा एवं मूलभूत ढांचे के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने का कोई ठोस समझौता नहीं हुआ. लेकिन, साझा बयान में ईरान और पाकिस्तान के बीच गैस पाइपलाइन के ज़िक्र से इस बात की अटकलें लगाई जा रही हैं कि लंबे समय से निष्क्रिय पड़े इस प्रोजेक्ट को शायद दोबारा शुरू किया जाए. इससे पहले फरवरी महीने में पाकिस्तान के तत्कालीन कार्यवाहक प्रधानमंत्री अनवर उल हक़ काकड़ ने ग्वादर से लेकर ईरान की सीमा तक इस पाइपलाइन के पहले 80 किलोमीटर वाले हिस्से का निर्माण शुरू करने को हरी झंडी दिखाई थी. शहबाज़ शरीफ़ ने भी इस परियोजना में तेज़ी लाने के लिए मंत्रालयों के बीच तालमेल के लिए एक समिति बनाने की मांग की थी. शुरुआत में ये पाइपलाइन भारत तक बिछाई जानी थी. इसे लेकर चर्चाएं तो 90 के दशक से चली रही थीं, लेकिन, 2009 में भारत ने पाकिस्तान के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों की वजह से सुरक्षा संबंधी चिंताओं, क़ीमत को लेकर मतभेदों और अमेरिका के दबाव की वजह से इस परियोजना से औपचारिक तौर पर ख़ुद को अलग कर लिया था. क्योंकि, उसी दौरान भारत ने अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील पर हस्ताक्षर किए थे. ईरान और पाकिस्तान ने 2009 में इस प्रोजेक्ट की रूप-रेखा से जुड़े 7.5 अरब डॉलर के समझौते पर दस्तख़त किए थे. 2775 किलोमीटर लंबी इस पाइपलाइन के ज़रिए ईरान के दक्षिणी पार्स गैस फील्ड से 25 वर्षों में 75 करोड़ घनफुट प्राकृतिक गैस की आपूर्ति पाकिस्तान को की जानी थी.

यह आवश्यक है कि इस क्षेत्र में आपदा-लचीला बुनियादी ढांचा तैयार किया जाए. और इस इलाके की आर्थिक क्षमता का दोहन करने के लिए कनेक्टिविटी लिंकेजेस यानी संपर्क मार्ग तैयार करना भी ज़रूरी है. 

 

अपनी परिकल्पना के दौर से ही पाइपलाइन बिछाने की ये परियोजना तमाम चुनौतियों का शिकार रही है. इसकी एक वजह तो पाकिस्तान की अंतर्निहित संरचनात्मक बनावट और अन्य देशों के साथ उसके रिश्ते रहे हैं. इस परियोजना से भारत के अलग होने, ईरान पर अमेरिका द्वारा प्रतिबंध लगाने और अमेरिका पर पाकिस्तान की निर्भरता, पाकिस्तान के तेज़ी से चुकते जा रहे ऊर्जा के भंडार और पाइपलाइन के निर्माण के लिए फंड जुटाने की उसकी कोशिशों जैसी तमाम बातों ने मिलकर पिछले कई वर्षों के दौरान इस परियोजना की प्रगति को अटकाए रखा है. जहां ईरान ने दो अरब डॉलर की लागत से अपने यहां इस पाइपलाइन के 900 किलोमीटर लंबे हिस्से का निर्माण कर लिया है. वहीं, पाकिस्तान के हिस्से की पाइपलाइन का निर्माण अटका हुआ है. 2013 में पाकिस्तान ने पाइपलाइन का निर्माण शुरू करने के लिए एक कार्यक्रम भी आयोजित किया था. फिर भी ये परियोजना आगे नहीं बढ़ सकी. 2014 में पहले तो पाकिस्तान ने इस परियोजना को दस साल के लिए आगे बढ़ाने की गुज़ारिश की और उसके बाद अमेरिका के प्रतिबंध लगाने के डर से इस परियोजना से पल्ला ही झाड़ लिया था. 2019 में पाकिस्तान को बताया गया कि अगर वो इस समझौते के तहत अपनी ज़िम्मेदारियां पूरी नहीं करता, तो ईरान उसके ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई भी शुरू कर सकता है. तब पाकिस्तान ने ईरान के सामने गुहार लगाई कि कुछ ऐसे हालात बने जो उसके क़ाबू में नहीं हैं, इसलिए वो इस परियोजना में अपने हिस्से को पूरा नहीं कर सकता. पाकिस्तान की कोशिश अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ना था. लेकिन, ईरान ने इसे ख़ारिज कर दिया था.

 

वैसे तो अब पाकिस्तान के पास अपने हिस्से की पाइपलाइन बिछाने के लिए सितंबर 2024 तक का समय है. लेकिन, बातचीत को हक़ीक़त में तब्दील कर पाने में अपनी नाकामी की वजह से पाकिस्तान को 18 अरब डॉलर तक का जुर्माना भरना पड़ सकता है. पिछले कुछ वर्षों के दौरान पाकिस्तान का ऊर्जा संकट और गहरा हो गया है और अब उसके पास केवल 19.5 ट्रिलियन घनफुट के गैस भंडार ही बचे हैं, जो सिर्फ़ अगले 12 साल तक उसकी ज़रूरतें पूरी कर सकेंगे. पिछले साल पाकिस्तान ने ऊर्जा के आयात में 17 अरब डॉलर की रक़म ख़र्च की थी. हो सकता है कि इन्हीं मजबूरियों ने पाकिस्तान को ईरान के साथ पाइपलाइन के मुद्दे पर फिर से बात शुरू करने के लिए मजबूर किया हो. भले ही भू-राजनीतिक हालात ऐसे नहीं हैं कि पाकिस्तान के लिए इस परियोजना को आसानी से अंजाम तक पहुंचा सके.

 

पाकिस्तान के लिए आगे कुआं तो पीछे खाई है

 

अमेरिका ने ईरान के साथ कारोबार की संभावनाएं तलाश रहे सभी देशों को चेतावनी दी है और उन्हें याद दिलाया है कि ईरान के साथ कारोबार करने पर उनके ऊपर भी प्रतिबंध लग सकते हैं. अमेरिका ने पाकिस्तान और ईरान के बीच पाइपलाइन को लेकर अपनी सख़्त नाख़ुशी ज़ाहिर करते हुए पाकिस्तान से कहा है कि वो इस मामले में आगे बढ़ने से पहले इससे जुड़े जोखिमों का हिसाब लगा ले. 19 अप्रैल को इज़राइल पर हमला करने के बाद ईरान के ऊपर प्रतिबंधों की नई किस्त लगाने का एलान किया गया था. अमेरिका ने हाल ही में पाकिस्तान के बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम से जुड़े सप्लायर्स पर भी पाबंदी लगा दी थी. इनमें से तीन चीन के और एक बेलारूस का है. वहीं, पिछले ही महीने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने अमेरिका से इस मामले में रियायत की गुज़ारिश करने से तो इनकार किया था. हालांकि, बाद में ऐसी ख़बरें आईं कि पाकिस्तान ने ऐसी अर्ज़ी अमेरिका को भेजी है. ऐसे में जिन चुनौतियों की वजह से पाइपलाइन की ये परियोजना अटकी थी वो आज भी इस मामले में प्रगति की राह में बाधा बनी हुई हैं.

अब दोनों देशों के बीच लंबे समय से प्रलंबित मुद्दे जैसे तीस्ता वाटर-शेयरिंग यानी तीस्ता जल-बंटवारा पर ध्यान देना अनिवार्य हो गया है.

 

इस्लामाबाद के इंस्टीट्यूट ऑफ स्ट्रीटजिक स्टडीज़ के मुताबिक़, इस पाइपलाइन के लिए पूंजी, स्पेशल इन्वेस्टमेंट फेसिलिटेशन काउंसिल (SFIC) के गैस इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट सेस के ज़रिए सकती है. SFIC ‘सेना और सरकारका एक संयुक्त मंच है, जिसका मक़सद पाकिस्तान में विदेशी निवेश लाना है. सरकार ने इस मद में 15.2 करोड़ डॉलर जारी भी कर दिए हैं. ग्वादर में इस परियोजना के लिए ज़मीन जुटाना और चीन की गतिविधियों की वजह से स्थानीय आबादी के बीच बढ़ती नाराज़गी के साथ साथ ये आशंकाएं भी हैं कि ईरान अपने वादे के मुताबिक़ पाकिस्तान को गैस दे भी पाएगा या नहीं. अगर पाकिस्तान इस रक़म को इस्तेमाल कर भी ले और बाक़ी की लागत जुटा भी लेगा, तो प्रतिबंधों की तलवार तो लटकी ही रहेगी. कुछ लोगों की नज़र में इस परियोजना को पूरी करने के लिए पाकिस्तान को विदेशी मदद मिलने को सबसे अच्छा विकल्प मानते हैं, ताकि पाकिस्तान इस पाइपलाइन का निर्माण कर ले और प्रतिबंधों से भी बच जाए.

 

2006 से 2018 के दौरान पाइपलाइन में चीन के शामिल होने और पाइपलाइन को ग्वादर से बढ़ाकर चीन तक ले जाने या फिर इस पाइपलाइन के निर्माण भर में चीन के सहयोग की चर्चाएं कई मौक़ों पर चलीं. 2019 में ईरान ने कहा कि वो इस पाइपलाइन को चीन तक बढ़ाने के लिए तैयार है. लेकिन इनमें से कोई भी चर्चा हक़ीक़त में तब्दील नहीं हुई. जब इस साल जनवरी में ईरान और पाकिस्तान के रिश्ते ख़राब हुए थे, तब चीन ने दोनों के बीच मध्यस्थता करने का भी प्रस्ताव रखा था. ऐसे में ईरान और पाकिस्तान के रिश्तों में आई इस नई गर्मजोशी को एक सकारात्मक बदलाव के तौर पर ही देखेगा. भले ही चीन इस पाइपलाइन में अपनी भूमिका को लेकर कभी हां तो कभी ना करता रहा है. लेकिन, ईरान और पाकिस्तान के बीच इसे लेकर फिर बातचीत शुरू होने को भी चीन एक ख़ुशख़बरी के तौर पर ही देखेगा. 2013 में ईरान ने पाकिस्तान को उसके हिस्से की पाइपलाइन बिछाने का ठेका किसी ईरानी कंपनी को देने के बदले में 50 करोड़ डॉलर का क़र्ज़ देने के लिए भी तैयार हो गया था; अब ईरान ने कहा है कि वो पाकिस्तान कोतकनीक और इंजीनियरिंग में मददकरेगा. थर्ड पोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, पाकिस्तान के एक सीनेटर ने कहा है कि इस परियोजना में रूस भी दिलचस्पी ले रहा है और वो पाकिस्तान में पाइपलाइन के पहले 80 किलोमीटर का हिस्सा बिछाने के लिए 16 करोड़ डॉलर की शुरुआती मदद देने के लिए भी तैयार है. हालांकि, इब्राहिम रायसी के इस दौरे में पाइपलाइन परियोजना से जुड़े तमाम पेचीदा मसलों को हल करने में कोई सफलता नहीं हासिल हुई. अमेरिका में चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अमेरिका, पाकिस्तान को इस पाइपलाइन को बनाने की इजाज़त देगा इसकी संभावनाएं कम ही हैं. क्योंकि अमेरिका के लिए इस क़दम से काफ़ी सियासी जोखिम जुड़े हुए हैं.

 

बहुत से विश्लेषकों की नज़र में इब्राहिम रायसी का ये दौरा, मध्य पूर्व में घटित हो रही घटनाओं के लिए पाकिस्तान का समर्थन जुटाने का एक ज़रिया था. जहां इब्राहिम रायसी ने पाकिस्तान के साथ सहयोग बढ़ाने का विरोध करने वालों को सिरे से ख़ारिज करते हुए इशारों इशारों में अमेरिका को संदेश दे दिया. वहीं, पाकिस्तान अभी भी मुश्किलों में फंसा हुआ है. पाकिस्तान के एक अख़बार के संपादकीय में सवाल किया गया था कि आख़िर पाकिस्तान कब वो लक्ष्मण रेखा खींचेगा कि वो कब तक अंतरराष्ट्रीय दबावों के आगे झुकता रहेगा? अभी तो ये कहना काफ़ी मुश्किल है कि पाकिस्तान के लिए ऐसे दबाव का विरोध करने की गुंजाइश बची है. वैसे तो पाकिस्तान काफ़ी बुरी स्थिति में है, क्योंकि उसे या तो प्रतिबंध झेलकर इस पाइपलाइन की परियोजना को आगे बढ़ाना होगा या फिर उसे भारी जुर्माना अदा करना होगा. पाकिस्तान के लिए आगे कुआं, तो पीछे खाई है. लंबे इंतज़ार के बाद आख़िरकार पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मदद की आख़िरी किस्त मिलने जा रही है और पाकिस्तान की हुकूमत मदद की अगली किस्त के लिए IMF के पास जाने के लिए तैयार है. ऐसे में पाकिस्तान के लिए इस परियोजना को अंजाम तक पहुंचाना काफ़ी मुश्किल लग रहा है. ऐसे में अगर ईरान, पाकिस्तान को रियायत में और वक़्त देने के लिए तैयार हो भी जाता है, तो भी तमाम मुसीबतों से जूझ रहे पाकिस्तान के लिए इस प्रोजेक्ट को दोबारा पटरी पर लाना मुश्किल होगा. पिछले साल सऊदी अरब और ईरान के रिश्ते सामान्य होने के बाद से पाकिस्तान के लिए कुछ गुंजाइश के विकल्प खुल गए थे. क्योंकि, जनवरी के टकराव के बाद ईरान और पाकिस्तान दोनों ही ये मानते हैं कि उनके बीच अच्छे रिश्ते होने के सिवा कोई और विकल्प नहीं है. हालांकि, इस पाइपलाइन को लेकर अमेरिका की तीखी प्रतिक्रिया से ज़ाहिर है कि पाकिस्तान अभी भी उन भू-राजनीतिक दबावों के आगे कमज़ोर स्थिति में है, जिनकी वजह से ईरान के साथ उसके संबंध सीमित रहे हैं.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.