Author : Sushant Sareen

Published on Jun 15, 2019 Updated 0 Hours ago

गृहमंत्री अमित शाह, विदेश मंत्री एस. जयशंकर, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की चौक़ड़ी राष्ट्रीय सुरक्षा की ड्रीम टीम है.

मोदी 2.0 की सबसे क़ाबिल और निडर चौकड़ी जिनसे सब डरते हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अजित डोवल को कैबिनेट रैंक के साथ अगले पांच साल के लिए फिर से राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार नियुक्त किया है. इसी के साथ प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति की ज़िम्मेदारी चार ऐसे लोगों के हाथ में दी है, जो बेहद सक्षम और तज़ुर्बेकार लोग हैं. इस टीम में गृहमंत्री अमित शाह हैं, विदेश मंत्री एस.जयशंकर हैं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह हैं और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल हैं. ये चार बेहद क़ाबिल लोग मिलकर सुरक्षा की एक शानदार ड्रीम टीम बनाते हैं. बल्कि, सच तो ये है कि ऐसी टीम का होना एक सपने के पूरा होने से भी बड़ी बात है. इस टीम को लेकर ये अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रधानमंत्री मोदी किसी का कद छोटा करने वाले हैं या फिर किसी एक को दूसरे के मुक़ाबले बढ़ावा देने वाले हैं. लेकिन, ऐसी अफ़वाहों में ज़रा भी सच्चाई नहीं थी. ऐसी अफ़वाहें इसलिए उड़ाई गईं, क्योंकि इसके पीछे जिन लोगों का हाथ था, उनकी पहुंच सत्ता के गलियारों तक नहीं थी. उन्हें इस बात का बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं है कि मोदी की अगुवाई वाली ये हुकूमत कैसे चलती है. इसके सदस्यों के बीच आपसी संबंध कैसे हैं, इसका भी अफ़वाहें फैलाने वालों को कोई अंदाज़ा नहीं है.

ये चार बेहद क़ाबिल लोग मिलकर सुरक्षा की एक शानदार ड्रीम टीम बनाते हैं. बल्कि, सच तो ये है कि ऐसी टीम का होना एक सपने के पूरा होने से भी बड़ी बात है.

हक़ीक़त ये है कि मौजूदा निज़ाम में प्रधानमंत्री मोदी निर्विवाद रूप से बॉस हैं. वो जो भी टीम चुनते हैं, वो टीम मोदी के तय हुए रास्ते से गुज़रते हुए उनके तय किए हुए लक्ष्य को पाने के लिए काम करती है. प्रधानमंत्री मोदी सर्वसुलभ नेता हैं. वो हर बात की जानकारी रखना चाहते हैं. हर प्रक्रिया पर नज़र रखते हैं. फिर भी, वो अपने साथियों को इतने अधिकार देते हैं कि वो ख़ुद भी ऐसे फ़ैसले ले सकें, जो देश की भलाई के लिए हों. उनकी टीम ऐसी होती है, जो आपस में बातचीत करती है. तमाम मुद्दों पर सलाह-मशविरा करती है. ज़ाहिर है कि इस दौरान इस बात पर मतभेद भी होते होंगे कि कौन सी नीति बेहतर होगी, किसका नुस्खा ज़्यादा कारगर होगा. लेकिन, इसका ये मतलब निकालना ग़लत होगा कि इस दौरान व्यक्तित्वों का टकराव होता होगा, इगो की समस्या खड़ी होती होगी और टीम के सदस्यों के बीच ऐसी गला-काट प्रतियोगिता चलती रहती है, जिसमें वो एक-दूसरे को नीचा दिखाकर बॉस यानी मोदी से वाहवाही लूटने की कोशिश करते रहते हैं. जिसने मोदी सरकार के कामकाज को क़रीब से देखा है, उसमें और कुछ हो न हो, पर ये ऐसा दरबार नहीं है, जहां मंत्री अपने किसी साथी को नीचा दिखाकर कोई मोदी से वाहवाही हासिल कर सकते हैं. जब भी अधिकारियों ने प्रधानमंत्री मोदी से अपनी नज़दीकी की नुमाइश कर के अपनी अहमियत बढ़ाने की कोशिश की है, तो उन्हें ये संदेश अच्छे से दे दिया गया है कि प्रधानमंत्री मोदी को ये बिल्कुल पसंद नहीं. मोदी को कामकाजी लोग पसंद हैं. वो नाम से या चेहरों से प्रभावित नहीं होते. मोदी का दिल केवल अच्छे काम से जीता जा सकता है. प्रधानमंत्री मोदी की सरकार में ईमानदारी और अच्छा काम-काज ही आपकी तरक़्की का इकलौता नुस्ख़ा है. उनसे नज़दीकी नहीं. वो ख़ुशामद और तारीफ़ से ज़्यादा वफ़ादारी को अहमियत देते हैं.

प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों का ध्यान रखने के लिए जो टीम चुनी है, उस पर वो पूरा भरोसा करते हैं. इस टीम के पास तजुर्बा है, गंभीरता है और वो अपने काम को लेकर प्रतिबद्ध है. आपस में मिलकर इस टीम के सदस्य राजनीतिक चतुरता, कामकाजी तजुर्बे और बौद्धिक वज़न का शानदार मेल प्रस्तुत करेंगे. इन ख़ूबियों की मदद से वो ऐसी नीतियां बनाएंगे और ऐसे फ़ैसले लेंगे जो देशहित में सबसे बेहतर हो. मोदी जैसे बॉस की अगुवाई में ये टीम एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए नहीं, बल्कि आपसी तालमेल से काम करेगी. इस टीम के सदस्य अलग-अलग दिशा में नहीं चलेंगे, बल्कि एक लक्ष्य पाने के लिए मिल-जुलकर एक दिशा में आपसी तालमेल से काम करेंगे. इस टीम के सदस्य अपना अलग-अलग साम्राज्य नहीं खड़ा करेंगे. कद्दावर और क़ाबिल लोगों वाली इस ताक़तवर टीम के हर सदस्य का काम करने का अपना तरीक़ा है. वो लक्ष्य हासिल करने के लिए अपने-अपने तरीक़े से काम करते हैं. लेकिन, राष्ट्रहित में वो ऐसे काम करेंगे कि एक-दूसरे के पूरक बनें. वो एक दूसरे की कमियां दूर करने का भी काम करेंगे ताकि बड़े लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा न आए.

मोदी को कामकाजी लोग पसंद हैं. वो नाम से या चेहरों से प्रभावित नहीं होते.

जिन लोगों के ज़ेहन में ये सवाल घूम रहा है कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल साथ कैसे काम करेंगे, उन्हें याद करना चाहिए कि इन दोनों ने कैसे मोदी सरकार की पहली पारी में बेहतर तालमेल के साथ काम किया था. कैसे इन दोनों ने मिलकर बड़ी कामयाबियां हासिल की थीं. हो सकता है कि इस दौरान इन दोनों के बीच कुछ नीतियों को लेकर मतभेद भी उभरे होंगे. लेकिन, ये तय है कि किस बुनियादी लक्ष्य को हासिल करना है, उसे लेकर इन दोनों की राय एक ही रही होगी, ताकि भारत के हितों की रक्षा की जा सके. कई ऐसे मुद्दे भी हैं, जो टीम के दो या अधिक सदस्यों के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. कश्मीर का मसला इस की सबसे अच्छी मिसाल है. क्योंकि ये मामला इन चारों के अधिकार क्षेत्र में आता है. एक और मसला है पाकिस्तान के साथ संबंध का, जिसमें इन चारों से सलाह-मशविरे की ज़रूरत होगी. जिससे निपटने के लिए इन चारों को मिलकर काम करना होगा. इसी तरह और भी कई मसले ऐसे होंगे, जिन पर अजित डोवल और अमित शाह या एस. जयशंकर और अमित शाह या राजनाथ सिंह को मिलकर काम करना होगा.

लोकसभा चुनाव के नतीजों के उत्साह और जश्न के बीच हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर कई बड़ी चुनौतियों का सामना करना है. घरेलू मोर्चे पर कश्मीर का मसला ऐसा है जिस पर बहुत ध्यान देने की ज़रूरत है. अगर कोई ये सोचता है कि अमित शाह के पास कोई जादुई छड़ी है, जिसे घुमाकर वो कश्मीर में हालात सामान्य कर देंगे, तो वो सच नहीं होगा, द न्यूयॉर्क टाइम्स वाले सपनों की दुनिया में रहता है. हम इस सरकार से यही उम्मीद कर सकते हैं कि वो कश्मीर को लेकर अगले बीस साल की नीतियों पर काम करेगी. आने वाले 20 सालों के लिए कश्मीर को लेकर हमारी क्या नीति होगी, उसकी बुनियाद रखेगी, जिससे आगे चल कर कश्मीर के हालात सामान्य हों. ऐसा करने के लिए गृहमंत्री अमित शाह को हर तरह की मदद और सलाह की ज़रूरत होगी. इस ताक़तवर चौकड़ी में से जो कोई भी उनका हाथ बंटा सके. इसी तरह नक्सलियों से निपटना एक बड़ी चुनौती बना हुआ है. इसके अलावा लेफ्ट-लिबरल जमात की तरफ से तरह-तरह के विवाद और चुनौतियां भी समय-समय पर खड़ी की जाती रहेंगी, जिससे माहौल को गरम रखा जा सके, विवादों को हवा दी जा सके. भाषा का विवाद इसकी एक मिसाल है. ऐसे मामलों से निपटने के लिए काफ़ी चातुर्य की ज़रूरत होगी.

घरेलू मोर्चे पर कश्मीर का मसला ऐसा है जिस पर बहुत ध्यान देने की ज़रूरत है. अगर कोई ये सोचता है कि अमित शाह के पास कोई जादुई छड़ी है, जिसे घुमाकर वो कश्मीर में हालात सामान्य कर देंगे, तो वो सच नहीं होगा.

आतंकवाद की समस्या भी छूमंतर नहीं होने जा रही है. बल्कि इसके बढ़ने की ही ज़्यादा आशंका है. पिछले पांच साल में मोदी सरकार ने इस समस्या का काफ़ी हद तक अच्छे से मुक़ाबला किया है. लेकिन, अगले पांच साल में आतंकवादी हिंसा की समस्या के और बढ़ने की आशंका है. अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठन भी भारत में घुसपैठ कर रहे हैं. फिर हमारा पड़ोसी देश भी है, जो आतंकवादियों की जन्नत है और उनका हमारे देश को निर्यात करता रहता है. राष्ट्रीय सुरक्षा की इस चौकड़ी को मोदी सरकार की पहली पारी में मिली कामयाबियों की बुनियाद पर भविष्य की नीतियां बनानी होंगी, ताकि दूसरी पारी में आतंकवाद का डटकर मुक़ाबला किया जा सके. इसके लिए इन चारों को आपसी सहयोग और मेल-जोल से काम करने की ज़रूरत होगी. एक और बड़ा मुद्दा, पी-5 यानी सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों से संबंध का है. इस मोर्चे पर भी ये चारों अलग-अलग काम करेंगे, तो कामयाबी संभव नहीं है. भारत को ऐसी विदेश नीति बनानी होगी, जो उसके आर्थिक और सामरिक हितों की रक्षा कर सके. इसीलिए, इस मोर्चे पर भी राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर बनाई गई इस टीम को मिलकर काम करना होगा. जिसमें हर इंसान की अपनी ख़ूबियां काम आएंगी. अगर चीन के साथ सीमा विवाद पर बातचीत के लिए एनएसए अजित डोवाल की भूमिका अहम होगी, तो एस. जयशंकर की भागीदारी से ज़रूरी राजनयिक नरमी का सहयोग भी मिलेगा. रक्षामंत्री इसमें भारत की सैन्य ताक़त और राजनीतिक समझदारी वाला सहयोग देंगे. सेनाओं के आधुनिकीकरण और रक्षा प्रबंधन की व्यवस्था के पुनर्गठन के लिए हर तरह की राय को शामिल किया जाना ज़रूरी है. तभी हम बड़े फ़ैसले ले कर बोल्ड नीतियां बना सकेंगे.

राष्ट्रीय सुरक्षा की टीम के सामने पहाड़ जैसी चुनौतियां हैं. लेकिन उनकी नियुक्ति से ये भरोसा जगता है कि देश की सुरक्षा मज़बूत हाथों में है. ख़ासतौर से तब और जब उनके बॉस यानि प्रधानमंत्री ने देश की हिफ़ाज़त में कड़े फ़ैसले लेने की दृढ़ता दिखाई है. ये ताक़तवर चौकड़ी निश्चित रूप से भारत की पश्चिमी सरहद के पार बैठे लोगों को कंपाने वाला संदेश देगी. ये भी तय है कि इन चारों की वजह से देश के अख़बारों के संपादकीय पन्नों पर लिखने वालों के भी दिल जलेंगे. लेकिन, ये ऐसी टीम है, जो भारत मां के हितों की रक्षा बख़ूबी करेगी.

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