Author : Harsh V. Pant

Published on Sep 21, 2021 Updated 0 Hours ago

2007 के बाद से अगले एक दशक तक चीन के विस्तारवादी रवैये बीआरआइ पर उठ रहे सवालों कर्ज के जाल में फंसाने की रणनीति ने चीन के शांतिपूर्ण उत्थान की धारणा पर प्रश्नचिह्न लगाया.

अमेरिका में होगी क्वॉड की बैठक,चीन की चालबाजियों के ख़िलाफ अहम गठजोड़

मार्च में वर्चुअल प्लेटफार्म पर हुई बैठक के छह महीने के भीतर क्वॉड फिर सक्रिय हो गया है. वाशिंगटन में चारों देशों के प्रमुख मिलेंगे और साझा चिंताओं पर चर्चा होगी. साथ ही चीन को भी संकेत मिलेगा कि जिस क्वॉड को वह पानी का बुलबुला कह रहा था, वह आज कहीं अधिक महत्वाकांक्षी भूमिका निभाने के लिए तैयार है. जहां मार्च की बैठक ने इस समूह का एजेंडा सामने रखा था, वहीं इस बार की बैठक ठोस तरीके से क़दम बढ़ाने का जरिया बनेगी.

अहम गठजोड़

पिछले हफ्ते ब्रिटेन, अमेरिका और आस्ट्रेलिया के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके तहत आस्ट्रेलिया को पहली बार परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियां विकसित करने की अनुमति मिली है. इसके लिए अमेरिका द्वारा दी गई टेक्नोलाजी का प्रयोग किया जाएगा. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बढ़ती सक्रियता दिखाता है. यह स्पष्ट है कि समान विचारधारा वाली स्थानीय शक्तियां ऐसी साझेदारियां विकसित करने की दिशा में बढ़ रही हैं, जिनमें स्थानीय नीतियों का करीबी साम्य दिखे और रक्षा बलों का बेहतर गठजोड़ हो. आस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-अमेरिका का गठजोड़ दिखाता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हलचल की शुरुआत भले चीन ने की हो, लेकिन अब अन्य देश सक्रियता बढ़ा रहे हैं.

आस्ट्रेलिया-ब्रिटेन-अमेरिका का गठजोड़ दिखाता है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हलचल की शुरुआत भले चीन ने की हो, लेकिन अब अन्य देश सक्रियता बढ़ा रहे हैं.

चार लोकतांत्रिक देशों (भारत, जापान, आस्ट्रेलिया और अमेरिका) के समूह यानी क्वॉड ने 2004 में सुनामी के समय मानवीय सहायता कार्यों के लिए साथ मिलकर काम शुरू किया था. जापान के प्रधानमंत्री एबी शिंजो की पहल और अमेरिका की सक्रियता से 2007 में चारों देशों ने पहली बार मालाबार नौसैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया था. चीन ने इसका कड़ा विरोध किया और चीन से अपने संबंधों को देखते हुए आस्ट्रेलिया इससे पीछे हट गया. इस तरह क्वॉड 1.0 कोई खास नतीजा नहीं दे पाया.

2007 के बाद से अगले एक दशक तक चीन के विस्तारवादी रवैये, बीआरआइ पर उठ रहे सवालों, कर्ज के जाल में फंसाने की रणनीति ने चीन के शांतिपूर्ण उत्थान की धारणा पर प्रश्नचिह्न लगाया. समय के साथ आस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका को फिर क्वॉड की ज़रूरत महसूस हुई. 2017 में क्वॉड 2.0 की शुरुआत हुई. उस समय वरिष्ठ अधिकारियों के स्तर पर बातचीत शुरू की गई और 2019 से मंत्री स्तरीय बातचीत की शुरुआत हुई.

क्वॉड को प्राथमिकता

क्वॉड 2.0 नियम आधारित वैश्विक व्यवस्था के तहत मुक्त हिंंद-प्रशांत क्षेत्र सुनिश्चित करना चाहता है. आतंकवाद, साइबर हमले और समुद्री क्षेत्र से जुड़े सुरक्षा के मसले प्राथमिकता में हैं. कोरोना काल में क्वॉड ने वचरुअल प्लेटफार्म के जरिये बैठक की और महामारी से निपटने को बेहतर गठजोड़ के लिए वियतनाम, न्यूजीलैंड और दक्षिण कोरिया को भी जोड़ा. मार्च, 2021 में हुए क्वॉड सम्मेलन ने इसे नया रूप दिया. अपने पहले साझा बयान में चारों देशों के नेताओं ने मुक्त हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर अपनी प्रतिबद्धता पर जोर दिया. क्षेत्रीय अखंडता और राजनीतिक मूल्यों पर भी क्वॉड का जोर रहा. मार्च, 2018 में चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने क्वॉड को पानी का बुलबुला कहा था, जो समय के साथ मिट जाएगा. ऐसा हुआ नहीं. बल्कि जैसे-जैसे चीन की विदेश नीति गैर जिम्मेदार होती गई, क्वॉड मजबूत होता गया. अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने पद संभालने के दो महीने से भी कम समय में पहली बहुपक्षीय चर्चा के तौर पर क्वॉड को प्राथमिकता दी. असल में चीन की नीतियां ही इस नए क्षेत्रीय गठजोड़ का कारण बनीं.

जैसे-जैसे चीन की विदेश नीति गैर जिम्मेदार होती गई, क्वॉड मजबूत होता गया. अमेरिका के नए राष्ट्रपति ने पद संभालने के दो महीने से भी कम समय में पहली बहुपक्षीय चर्चा के तौर पर क्वॉड को प्राथमिकता दी. असल में चीन की नीतियां ही इस नए क्षेत्रीय गठजोड़ का कारण बनीं.

सदस्य देशों की कोशिश

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की मुश्किल यह नहीं कि चीन बड़े रणनीतिक खेल खेल रहा है, बल्कि इस क्षेत्र के कई ऐसे देश हैं जो चीन की चुनौती का सामना किए बिना ही धनुष-बाण रख देने में भी भलाई समझते हैं. उनका यह व्यवहार ही मुश्किल बना है. अब इसी समस्या का हल किया जा रहा है और इससे चीन पर, अन्य छोटे देशों व पूरे क्षेत्र पर प्रभाव पड़ेगा. क्वॉड के सदस्य देशों का प्रयास है कि चीन उनके हितों के लिए ख़तरा न बने. हिंद-प्रशांत क्षेत्र रणनीतिक मंथन का केंद्र बना हुआ है और क्वॉड इसे संतुलित करने वाला सबसे महत्वपूर्ण व तेजी से बढ़ता हुआ क्षेत्रीय समूह है.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की असल समस्या चीन का वर्चस्ववादी रवैया नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र के अन्य देशों की कुछ करने की अनिच्छा बड़ी समस्या है. क्वॉड इसी समस्या का हल है

हिंद-प्रशांत क्षेत्र की असल समस्या चीन का वर्चस्ववादी रवैया नहीं है, बल्कि इस क्षेत्र के अन्य देशों की कुछ करने की अनिच्छा बड़ी समस्या है. क्वॉड इसी समस्या का हल है. यह हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की गतिविधियों को थामने के लिए सबसे अहम क्षेत्रीय गठजोड़ है.

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