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5Gi का मामला वैश्विक तकनीकी व्यवस्था के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने की भारत की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है.
24 मई 2022 को क्वॉड के चार शीर्ष नेता, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और यूनाइटेड स्टेट्स टोकियो में मिले और इन्होंने एक स्वतंत्र, खुले और नियम आधारित इंडो-पैसिफिक को लेकर अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की. ‘व्यक्तिगत तौर पर और संयुक्त रूप से, हम हमारे वक्त़ की चुनौतियों को जवाब देकर यह सुनिश्चित करेंगे कि यह क्षेत्र हमेशा ही समावेशी, खुला रहे और वैश्विक नियमों और मापदंडों के अनुसार शासित हो’. इस दृष्टिकोण के केंद्र में प्रौद्योगिकी मानक है और 2022 में क्वॉड नेताओं के संयुक्त बयान में 2021 में की गई प्रतिबद्धताओं पर आधारित है. उस वक्त नेताओं ने महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी आपूर्ति श्रृंखलाओं के सिद्धांतों को लांच कर इसके साथ-साथ एक नई, लेकिन रहस्यमय संस्था अंतर्राष्ट्रीय मानक सहयोग नेटवर्क (ISCN) का शुभारंभ किया. क्वॉड का स्टेटमेंट इस तथ्य का प्रतीक है कि टेक्नॉलॉजी स्टैंडर्ड्स केवल टेक्निकल नहीं है, बल्कि वे मूल्यों, राजनीति और शक्ति से भरे हुए हैं.
मानक ही यह तय और सीमित करते हैं कि देश विकास की कौन सी राह पर जाएगा. और इसी तर्क ने भारत को भी अपने लिए 5G लिए स्टैंर्डड्स, 5Gi बनाने के लिए प्रेरित किया. स्टैंर्डड्स डेवलपमेंट सोसायटी ऑफ इंडिया (TSDSI) की ओर से प्रस्तावित स्टैंर्डड्स का उद्देश्य दूरदराज और ग्रामीण क्षेत्र में आने वाली कवरेज की समस्या से मुक्ति दिलवाने की दिशा में काम करना था. 5Gi करने की मूल विशेषता लो मोबिलिटी लार्ज सेल ((LMLC) थी, जिसकी वजह से सेल की रेंज बढ़ती और यह ऐसे इलाकों में लाभदायी साबित होता, जहां खराब बुनियादी ढांचे अथवा इलाके की भौतिक स्थिति या लागत और किसी अन्य वजह से बड़ी मात्रा में बेस स्टेशन स्थापित करना संभव नहीं था. ऐसा नहीं था कि LMLC की वजह से भारत वर्तमान में चल रहे 5G स्टैंर्डड्स से अलग होने वाला था. इन्हें 2017 में आईटीयू ने अनिवार्य आवश्यकताओं के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन इन्हें 3जीपीपी रिलीज 15 का हिस्सा नहीं माना गया था. टीएसडीएसआई ने इसे संभवत: 3जीपीपी (3GPP) पर दबाव डालने का माध्यम बनाया और उसके बदले आईटीयू को अपने 5Gi विकसित कर पेश कर दिया. इसके बाद ही यह स्टैंर्डड्स आईएमटी 2020 सेट ऑफ स्टैंर्डड्स का हिस्सा बन सके. इसके बाद ही 3जीपीपी ने घोषणा की कि वह 5Gi को रिलीज 17 के साथ एक कर देगा.
5Gi करने की मूल विशेषता लो मोबिलिटी लार्ज सेल ((LMLC) थी, जिसकी वजह से सेल की रेंज बढ़ती और यह ऐसे इलाकों में लाभदायी साबित होता, जहां खराब बुनियादी ढांचे अथवा इलाके की भौतिक स्थिति या लागत और किसी अन्य वजह से बड़ी मात्रा में बेस स्टेशन स्थापित करना संभव नहीं था.
जनवरी 2022 के बाद 5Gi कार्यात्मक रूप से मृत है, क्योंकि स्टैंर्डड्स डेवलपमेंट सोसायटी ऑफ इंडिया ने इसे नेशनल स्टैंर्डड के रूप में खारिज कर दिया है. हालांकि 5Gi अपने फंक्शनली डेड होने से पहले काफी हंगामा मचाने में सफल रहा. 5Gi को लेकर की गई घोषणा के बाद अनेक इंटरनेशनल ट्रेड ग्रुपिंग्स ने इन नए मानकों को 5G क्षेत्र में क्वॉड के नवजात सहयोग के लिए नुकसानदेह और घातक बताया था. उनका मानना था कि 3जीपीपी को जस का तस स्वीकार करना बेहद आवश्यक है.
इसके बावजूद एलएमएलसी (LMLC) के संबंध में 3जीपीपी के समर्पण से यह संकेत मिला था कि यह मुद्दा केवल तकनीकी व्यवहार्यता का नहीं था. 3जीपीपी के लिए भारत अभी काफी नया था. उसे 2014 में ऑबर्ज़वर का दर्जा दिया गया, जबकि 2015 में वह संगठनात्मक भागीदार बना. चीन के अलावा भारत ही एकमात्र ऐसा विकासशील देश है, जिसे यह दर्जा हासिल है.
Table 1: Composition of 3GPP
Organisation | Membership | Representation |
3GPP |
Seven organisational partners from Japan, the US (ATIS), China (CCSA), European Union (ETSI), India (TDSI), South Korea (TTA), and Japan (ARIB, TTC). 782 individual members. |
Europe: 387 China: 210 individual members U.S.: 60 individual Members India: 55 individual members Japan: 42 individual members South Korea: 26 |
स्रोत: डाटा लेखक द्वारा 3GPP website से लिया गया है.
निश्चित रूप से भारत ने ITU के साथ चल रही अपनी बातचीत, 3जीपीपी में अपनी उभरती मौजूदगी की वजह से 3जीपीपी पर एलएमएलसी को शामिल करने का दबाव बना लिया था. इसके साथ ही वैश्विक गठबंधन और क्वॉड की प्रक्रियाओं में अपने बढ़ते प्रभाव का भी भारत ने उपयोग किया था. दुनिया के अन्य विकासशील देशों के पास भारत जैसी समान स्तर की पहुंच अथवा क्षमता नहीं है. 3जीपीपी में भारत के अलावा विकासशील देशों में से केवल बोत्सवाना, इंडोनेशिया और दक्षिण अफ्रीका समेत तीन देश शामिल हैं.
5Gi की कहानी एक दूसरे मायने में इसलिए भी केवल तकनीक से बड़ी है, क्योंकि इसे महान आत्मनिर्भरता योजना के साथ समाहित कर लिया गया था. इस माह की शुरुआत में ही टेलिकॉम रेग्यूलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (TRAI) के 25 वर्ष पूर्ण होने पर प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में 5Gi की प्रशंसा की थी.
‘हमारे अपने 5G स्टैंर्डड को 5Gi के रूप में विकसित करना हमारे देश के लिए बड़े गर्व की बात है. इससे हमें प्रत्येक गांव तक 5G टेक्नॉलॉजी पहुंचाने का लक्ष्य पाने में सहायता मिलेगी. 21 वीं सदी में कनेक्टिविटी की वजह से ही देश सही मायने में प्रगति कर सकेगा.’
5Gi का मामला हमें बताता है कि तकनीकी मानक काफी जटिल होते हैं. ऐसे में जब क्वॉड स्टैंर्डड्स क्रिएशन का एक नया अध्याय शुरू करने जा रहा है तब साझा मूल्यों के हमेशा ही विवाद रहित सहयोग में बदलने की संभावना काफी कम
इसी वजह से 5Gi तकनीकी राष्ट्रवादी पौराणिक कथाओं का हिस्सा बन सका है. इसके साथ ही इसने यह भी प्रदर्शित किया कि अब भारत वैश्विक स्तर पर प्रौद्योगिकी मापदंड तथा व्यवस्थाओं को आकार देने में एक अहम भूमिका अदा करने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए तैयार है.
5Gi का मामला हमें बताता है कि तकनीकी मानक काफी जटिल होते हैं. ऐसे में जब क्वॉड स्टैंर्डड्स क्रिएशन का एक नया अध्याय शुरू करने जा रहा है तब साझा मूल्यों के हमेशा ही विवाद रहित सहयोग में बदलने की संभावना काफी कम है. ऐसा इसलिए क्योंकि हर देश की अपनी विशेष समस्याएं होती हैं और कुछ ऐसे देश हैं जिनके पास विशेष अधिकार होते हैं. क्वॉड यदि चाहता है कि वह इस मामले पर इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में अन्य देशों के साथ अर्थपूर्ण बातचीत करना चाहता है तो उसे इसी जटिलता की वजह से इस मुद्दे पर बारीकी से आगे बढ़ना होगा.
[1] Of course, membership is not the only way in which countries are able to exert influence in standards bodies. Organisational partners may encourage members to vote as a bloc, provide crucial funding for the standards-setting body, and have key leadership positions in working groups. For more, see.
[2] The original speech is in Hindi. Translation is the author’s own.
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