Published on Oct 04, 2021 Updated 13 Days ago

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में जैसे-जैसे नई भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक वास्तविकताएं उभर रही हैं, भारत अब इस क्षेत्र की  परिवर्तनशील घटनाक्रम के उभरते नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है.

सामरिक वास्तविकताओं के विकसित और मज़बूत होते ही क्वॉड ने रफ़्तार पकड़ी

वाशिंगटन में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच जैसे ही बहुप्रतीक्षित क्वॉड सम्मेलन शुरू हुआ दुनिया भर में उम्मीद की लहर दौड़ गई. छह महीने पहले वर्चुअल बैठक के बाद पहली बार क्वॉड सदस्य देशों के प्रमुख आमने-सामने मिल रहे थे और विश्व भर में जिस तेजी से भू-राजनीतिक बदलावों  का खाका तैयार हो रहा है उसका संदेश लेकर अपने-अपने वतन लौटे. खुले और मुक्त इंडो- पैसिफिक क्षेत्र को सुनिश्चित करने से लेकर जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों से लड़ने तक इस समूह के सदस्य देशों ने आपसी चिंताओं के लिए क्वॉड की ओर उम्मीद से देखना शुरू कर दिया है.

जैसे ही अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान में जारी लंबे युद्ध को ख़त्म करने का ऐलान किया पूरी दुनिया ने देखा कि काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से परिस्थितियां कैसे ख़राब होती गई. अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी को छोड़ने को लेकर बहुत कुछ कहा भी गया. लेकिन जैसे ही क्वॉड के मंच से साझा बयान आया कि अफ़ग़ानिस्तान में आतंक को रोकने और मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की कोशिशें जारी रहेंगी, ऐसी प्रतिक्रियाओं को विराम दे दिया गया. सदस्य देशों का यह पहचान करना कि “इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में उनका साझा भविष्य लिखा हुआ होगा” यह बात इस प्रतिज्ञा में प्रकट होती है कि “क्वॉड क्षेत्रीय शांति, स्थिरता और समृद्धि के लिए एक शक्ति है जिसे सुनिश्चित करने के लिए ज़रूरी कदम दोहराए जाएंगे”. इसके साथ ही ऑकस सबमरीन संधि की घोषणा के बाद यही निष्कर्ष निकाला गया कि बाइडेन प्रशासन एक बार फिर इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ाने की सोच रहा है. यह किसी भी तरह के इरादे को लेकर दिए गए बयान जितना ही स्पष्ट है : एशिया में अमेरिका एक अहम खिलाड़ी होगा.

 अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय जिम्मेदारी को छोड़ने को लेकर बहुत कुछ कहा भी गया. लेकिन जैसे ही क्वॉड के मंच से साझा बयान आया कि अफ़ग़ानिस्तान में आतंक को रोकने और मानवाधिकारों को सुनिश्चित करने की कोशिशें जारी रहेंगी, ऐसी प्रतिक्रियाओं को विराम दे दिया गया. 

इसके अलावा जो अच्छी बात हुई है वो यह है कि इस समूह ने एक समान विचार वाले सहयोगियों के साथ काम करने की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है. “आशियान केंद्रीयता” जैसी परंपरागत अवधारणाओं पर फिर से ध्यान देकर, चारों देशों ने इंडो-पैसिफिक सहयोग के लिए यूरोपियन यूनियन के लिए नए सिरे से सहयोग को रेखांकित किया है. यह नया दस्तावेज सीधे तौर पर साउथ चाइना सी में चीन के हस्तक्षेप और जिनजियांग प्रांत में मानवाधिकार हनन को रोकेने के लिए ज़रूरी कार्रवाई की वकालत करता है. इसके अलावा नई रणनीति इस बात की भी वकालत करता है कि सुरक्षा, तकनीक, और आर्थिक क्षेत्र में भी यूरोपियन यूनियन नए सहयोगियों जैसे भारत और दक्षिण कोरिया के साथ मिलकर सहयोग बढ़ाए. हितों के ऐसे ही गठजोड़ के बाद क्वॉड-ईयू के बीच इस क्षेत्र में और ज़्यादा सहयोग देखने को भविष्य में मिल सकता है.

पर्यावर्ण को लेकर गंभीरता

अब नीतियों की बात करें. कोरोना महामारी के दुष्प्रभावों को देखते हुए दक्षिण पूर्व एशिया और पैसिफिक क्षेत्र में लोगों के वैक्सीनेशन को सुनिश्चित करने के लिए ऑस्ट्रेलिया, जापान ने ख़ास तौर पर ज़्यादा राशि देने का वादा किया है. इतना ही नहीं चारों शक्तियों ने पर्यावरण को बचाने के लिए ज़रूरी कदम उठाने का वादा भी किया है और ग्रीन शिपिंग नेटवर्क का प्रस्ताव दिया है. यह वैश्विक शिपिंग रूट्स को गैर कार्बन बनाने की दिशा में एक कदम है जो इंडो-पैसिफिक कारोबार को और बढ़ाने का लक्ष्य रखता है.

क्वॉड ने क्वॉड इन्फ्रास्ट्रक्चर कॉर्डिनेशन ग्रुप की स्थापना को लेकर भी घोषणा की है जिससे विकासशील देशों में यह समूह बेहतर तरीके से निवेश के रास्ते खोल सके. ये तमाम बातें इस ओर इशारा करती हैं कि क्वॉड ने चीन के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव को लेकर जिस तरह की हाथ मरोड़ने की नीति और नैतिक पॉस्चरिंग की विशेषता रही है, उसे ख़त्म करने का संकेत दिया है. इस समन्वय प्रक्रिया की स्थापना कर और इसे ब्लू डॉट नेटवर्क के साथ जोड़ कर क्वॉड ने संकेत दे दिया है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए भारी भरकम निवेश करने की चीन की नीति से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिए यह समूह भी इस क्षेत्र में अब ज़रूरी राजनीतिक पूंजी और निवेश करने को तैयार है.

प्रांतीय समूहों को तकनीकी मापदंड को बनाने के लिए एक साथ लाकर, क्वॉड अहम मापदंडों को विकसित करना चाहता है, और दुनिया भर में इसे शुरू कर चीन जैसे मुल्क की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त को कम करना चाहता है. 

इसके अलावा तकनीक के मैदान में अमेरिका और चीन के बीच भविष्य में होने वाली जंग महीनों से सुर्खियां बनती रही हैं. क्वॉड के सिद्धान्त से जुड़े नए दस्तावेज वादा करते हैं कि ज़्यादा सीमित प्रतिस्पर्द्धियों के मुकाबले एक “मुक्त, उच्च मापदंड के नवाचार” वाले इकोसिस्टम को तैयार किया जाएगा. प्रांतीय समूहों को तकनीकी मापदंड को बनाने के लिए एक साथ लाकर, क्वॉड अहम मापदंडों को विकसित करना चाहता है, और दुनिया भर में इसे शुरू कर चीन जैसे मुल्क की प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त को कम करना चाहता है. इससे चीन के पास कोई विकल्प नहीं बचेगा और चीन क्वॉड के द्वारा डिज़ाइन किए गए तकनीकी आधार को मानने के लिए मज़बूर होगा. यह समूह सेमीकऩ्डक्टर सप्लाई चेन इनिशिएटिव के जरिए अहम वैश्विक तकनीक के सप्लाई चेन को सुरक्षित करने की दिशा में भी आगे बढ़ चुका है. सेमीकन्डक्टर, 5 जी और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अहम तकनीक को एकजुट होकर विकसित और संचालित करने के लिए क्वॉड ने चीन की चुनौती को पूरी तरह स्वीकार कर लिया है. इरादों को लेकर यह स्पष्टता, भविष्य में वैश्विक तकनीकी प्रतिस्पर्धा को और ज़्यादा बढ़ाने वाला है.

आने वाले समय में साइबर और स्पेस तकनीक को लेकर भी प्रतिस्पर्द्धा में बढ़ोतरी होना लगभग तय है, क्योंकि क्वॉड इस चुनौती का सामना करने के लिए दो नए समूहों की घोषणा कर चुका है. साइबर सिक्युरिटी को लेकर बढ़ती चिंता ख़ास कर रूस और चीन द्वारा अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर पर निशाना साधने की वजह से भी क्वॉड समूह एक मंच पर आ चुके हैं. ऐसे में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जैसे- जैसे चीन सैन्य आधारित स्पेस सैन्य ताकत को लगातार बढ़ाने की कोशिश में जुटा है, वैसे ही क्वॉड समूह के देश भी स्पेस तकनीक को लेकर एक मंच पर सहयोग की बात करने लगे हैं.

बड़ी शक्तियों के बीच प्रतिस्पर्धा

हालांकि क्वॉड के पास अभी भी कई चुनौतियां हैं जिसे पार करना ज़रूरी है. अभी भी बहुप्रचारित क्वॉड वैक्सीन पार्टनरशिप के 1.2 बिलियन डोज़ के लक्ष्य के तहत महज 79 मिलियन वैक्सीन के डोज़ ही सप्लाई किए गए हैं. इसकी बड़ी वजह भारत में आई कोरोना की दूसरी लहर कही जा सकती है लेकिन क्वॉड को इस दिशा में काफी सचेत होकर आगे बढ़ने की ज़रूरत है. अगर यह समूह अपनी पहचान सिर्फ उच्च कूटनीतिक वार्ता और कम कार्रवाई करने वाले समूह के तौर पर नहीं बनाना चाहता है, तो जो वादे इस समूह ने किए हैं उसे पूरा करने पर इसे ध्यान देना चाहिए. आशियान में जो शक्तियां तटस्थ हैं उन्हें इस सम्मेलन के नतीजों से बहुत कम राहत मिलने की उम्मीद है ख़ास कर उनके लिए जो इन शक्तियों के बीच होने वाली प्रतिस्पर्द्धा से ख़ुद को अलग रखने के लिए बेचैन हैं. इस सम्मेलन में चीन को ध्यान में रख कर घोषित किए गए ज्यादा नीतियों के साथ अब कहा जा सकता है कि अब प्रतिस्पर्धा एक सच्चाई बन जाएगी और चारों क्वॉड शक्तियों को अपने अनिच्छुक पड़ोसियों से ज़्यादा चतुराई से निपटने की ज़रूरत होगी.

आशियान में जो शक्तियां तटस्थ हैं उन्हें इस सम्मेलन के नतीजों से बहुत कम राहत मिलने की उम्मीद है ख़ास कर उनके लिए जो इन शक्तियों के बीच होने वाली प्रतिस्पर्द्धा से ख़ुद को अलग रखने के लिए बेचैन हैं. 

वाशिंगटन में ख़ास तौर पर भारत की कूटनीतिक सफलता का परचम लहराया. जैसे-जैसे इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में नई भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक वास्तविकताएं उभर रही हैं, भारत अब इस क्षेत्र की  परिवर्तनशील घटनाक्रम के उभरते नेटवर्क में एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुका है. जैसा कि नए गठजोड़ और लक्ष्य बनते जा रहे हैं वैसे में नई दिल्ली के लिए इस उभरती परिस्थितियों में ख़ास मौका है. सख़्त और मज़बूत फैसला लेना अब वक़्त की मांग है.

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