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15-16 अक्टूबर को जब भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की 23वीं बैठक के लिए पाकिस्तान गए थे, तब पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ के नेता मुहम्मद अली सैफ़ी ने कहा कि भारत के विदेश मंत्री को उनकी पार्टी के सरकार विरोधी प्रदर्शन में शामिल होना चाहिए. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की अगुवाई वाली सरकार ने सैफ़ी के इस बयान की आलोचना करते हुए कहा था कि पीटीआई, इस बैठक की मेज़बानी के पाकिस्तान के आयोजन को चोट पहुंचाने की कोशिश कर रही है और वो ‘पाकिस्तान की दुश्मन’ है. फ़रवरी 2024 में सत्ता में आने के बाद से ही पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार तमाम मोर्चों से जूझ रही है और तहरीक़-ए-इंसाफ़ (PTI), सरकार की तमाम चुनौतियों से जूझ पाने में नाकामी का लाभ उठाकर अपनी हैसियत बढ़ाने में जुटी है.
पिछले साल कई मामलों में इमरान ख़ान को सज़ा होने के बाद से उनकी पार्टी फ़ौज और मौजूदा सरकार पर खुलकर हमले कर रही है. पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर धांधली और हेरा-फेरी के लिए फरवरी 2024 के चुनावों की तीखी आलोचना होती रही है.
मौजूदा सरकार के ख़िलाफ़ लोगों का समर्थन हासिल करने के लिए तहरीक़-ए-इंसाफ़ (PTI) ने तमाम रणनीतियां अपनाई हैं. पिछले साल कई मामलों में इमरान ख़ान को सज़ा होने के बाद से उनकी पार्टी फ़ौज और मौजूदा सरकार पर खुलकर हमले कर रही है. पाकिस्तान में बड़े पैमाने पर धांधली और हेरा-फेरी के लिए फरवरी 2024 के चुनावों की तीखी आलोचना होती रही है. चुनाव से ठीक पहले, 22 दिसंबर 2023 को इमरान ख़ान की पार्टी को एक बड़ा झटका तब लगा था, जब पाकिस्तान के चुनाव आयोग (ECP) ने पार्टी के चुनाव चिह्न- क्रिकेट का बल्ले- को तकनीकी आधार पर छीन लिया था. चुनाव आयोग का कहना था कि पीटीआई ने क़ानून के मुताबिक़ पार्टी के भीतर चुनाव नहीं कराए थे. पाकिस्तान के चुनाव आयोग जून 2023 में तहरीक़-ए-इंसाफ़ के अंदरूनी चुनावों को ये कहते हुए मानने से इनकार कर दिया था कि ये स्वतंत्र और निष्पक्ष नहीं थे. चुनाव आयोग ने 13 दूसरी छोटी पार्टियों के चुनाव चिह्न भी छीन लिए थे.
पीटीआई के उम्मीदवारों को निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मैदान में उतरना पड़ा था. हालांकि, इन मुश्किलों के बावजूद तहरीक़-ए-इंसाफ़ के निर्दलीय प्रत्याशी 93 सीटें जीतने में कामयाब रहे थे. पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज़) केवल 75 सीटें जीत पायी थी, वहीं बिलावल भुट्टो ज़रदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) 54 सीटें जीतकर तीसरे नंबर पर रही थी. चूंकि किसी भी एक दल को बहुमत के लिए ज़रूरी 133 सीटें नहीं मिली थीं, ऐसे में पीपीपी और पीएमएल-एन ने पाकिस्तान मुस्लिम लीग-क़ायद (PML-Q), मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (MQM-P) और बलोचिस्तान अवामी पार्टी (BAP) के साथ मिलकर गठबंधन सरकार बनाई.
सरकार बनाने और तहरीक़-ए-इंसाफ़ को सत्ता से हटाने के बावजूद, पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ ने इमरान की पार्टी के साथ अपनी सियासी दुश्मनी बरक़रार रखी है. इमरान ख़ान की मौजूदा लोकप्रियता और पीटीआई के दोबारा ताक़तवर होकर उभरने की आशंका ने सत्ताधारी दल को डरा रखा है.
मुस्लिम लीग (नवाज़) अभी भी तहरीक़-ए-इंसाफ से लड़ रही है
इस साल फरवरी में जब पीटीआई ने चुनाव के दौरान वोटों की धांधली के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन बुलाया, तो पाकिस्तान के सोशल मीडिया यूज़र्स ने ट्विटर (अब X) के इस्तेमाल में दिक़्क़तें आने की शिकायत की. राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए मुस्लिम लीग सरकार ने एक्स को ब्लॉक कर दिया था. अप्रैल 2024 में आंतरिक मंत्रालय ने एक्स के बंद होने के पीछे इस सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म द्वारा पाकिस्तान सरकार के क़ानूनी निर्देशों का पालन नहीं करने को वजह बताया था. यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि, जब से देश के पारंपरिक मीडिया में तहरीक़-ए-इंसाफ़ से जुड़ी ख़बरों को सेंसर किया जाने लगा था, तब से पीटीआई के नेता और इमरान ख़ान के समर्थक, एक्स का काफ़ी उपयोग कर रहे थे. एक्स पर पाबंदी को चुनौती देने वाले कार्यकर्ताओं ने दावा किया कि सरकार ने ये क़दम आठ फ़रवरी को हुए आम चुनावों का विरोध दबाने के लिए उठाया था, क्योंकि चुनाव में PML-N ने वोट हासिल करने के लिए ग़ैरवाजिब तरीक़ों का इस्तेमाल किया था. लोगों ने कहा कि 8 फरवरी के चुनाव, ‘पाकिस्तान के हालिया इतिहास में सबसे ज़्यादा हेरा-फेरी वाले चुनाव थे, जबकि दुनिया भर का मीडिया और सोशल मीडिया इसकी निगरानी कर रहा था.’
जुलाई 2024 के दूसरे हफ़्ते में पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ ने उस वक़्त एक बड़ी क़ानूनी लड़ाई जीत ली, जब सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया कि पार्टी को केंद्रीय असेंबली और राज्यों की विधानसभाओं में आरक्षित सीटों का वाजिब हिस्सा मिलना चाहिए.
जुलाई 2024 के दूसरे हफ़्ते में पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ ने उस वक़्त एक बड़ी क़ानूनी लड़ाई जीत ली, जब सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला दिया कि पार्टी को केंद्रीय असेंबली और राज्यों की विधानसभाओं में आरक्षित सीटों का वाजिब हिस्सा मिलना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि बिना चुनाव चिह्न के चुनाव लड़ने से पार्टी को अपने उम्मीदवार उतारने के क़ानूनी हक़ पर कोई असर नहीं पड़ता है. पीटीआई ने इसे अपनी बड़ी जीत के तौर पर देखा. लेकिन, सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला आने के कुछ घंटों के भीतर ही PML-N की सरकार के सूचना मंत्री अताउल्लाह तारड़ ने तहरीक़-ए-इंसाफ़ पर पाबंदी लगाने की योजना का एलान किया. तारड़ ने कहा कि पिछले साल हुए हिंसक विरोध प्रदर्शनों में पार्टी (PTI) की अहम भूमिका रही थी और उस पर गोपनीय सूचना को लीक करने के इल्ज़ाम भी सही पाए गए हैं. सूचना मंत्री ने ये भी कहा कि उनकी सरकार इमरान ख़ान और पीटीआई के दो वरिष्ठ नेताओं- पूर्व राष्ट्रपति आरिफ़ अल्वी और अवामी असेंबली के पूर्व डिप्टी स्पीकर क़ासिम सूरी के ख़िलाफ़ देशद्रोह का केस भी दर्ज करने वाली है. इसके अलावा शहबाज़ शरीफ़ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फ़ैसले के ख़िलाफ़ भी याचिका दायर करने की योजना बताई, जिससे पीटीआई को नेशनल असेंबली और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए आरक्षित सीटों में हिस्सेदारी देने का आदेश दिया गया था.
पीटीआई के ख़िलाफ़ शहबाज़ सरकार के हालिया क़दम
विरोध प्रदर्शन करने की आज़ादी को सीमित करने के लिए शहबाज़ सरकार ने 2 सितंबर को नेशनल असेंबली में शांतिपूर्ण तरीक़े से इकट्ठा होने और सार्वजनिक व्यवस्था बनाने का क़ानून पेश किया. एक हफ़्ते के भीतर हड़बड़ी में सारी क़ानूनी औपचारिकताएं पूरी करके ये विधेयक क़ानून के तौर पर पारित भी कर दिया गया. इस क़ानून के तहत, इस्लामाबाद में ग़ैरक़ानूनी तरीक़े से भीड़ जुटाने पर तीन साल की सज़ा/या और सदस्यों पर जुर्माने का प्रावधान है. इस क़ानून के तहत किसी कार्यक्रम के आयोजत को कम से कम सात दिन पहले ज़िला मजिस्ट्रेट से इसकी इजाज़त लेनी होगी और क़ानून में सरकार को ये अधिकार भी दिया गया है कि वो इस्लामाबाद के किसी भी इलाक़े को ‘रेड ज़ोन’ या फिर ‘हाई सिक्योरिटी ज़ोन’ घोषित कर सकती है, ताकि उस इलाक़े में किसी भी तरह से भीड़ जुटाने को रोका जा सके.
संसद के दोनों सदनों में विपक्षी दलों ने पब्लिक ऑर्डर क़ानून को ये कहते हुए ख़ारिज कर दिया कि ये सिर्फ़ तहरीक़-ए-इंसाफ़ पर क़ाबू पाने के लिए ठीक उस वक़्त लाया गया, जब कुछ दिन बाद ही 8 सितंबर को पीटीआई इस्लामाबाद में अपना शक्ति प्रदर्शन करने वाली थी. इसके बावजूद सरकार ने सख़्त पाबंदियों के साथ पीटीआई का जलसा होने दिया. ये जलसा इमरान ख़ान की क़ैद का एक साल पूरा होने के मौक़े पर आयोजित किया गया था और वैसे तो पीटीआई आधिकारिक रूप से कोई पार्टी नहीं है. फिर भी उसके जलसे में समर्थकों और पार्टी के नेताओं की काफ़ी भीड़ जुटी. रैली के दौरान पुलिस द्वारा समर्थकों की पिटाई के इल्ज़ाम लगे और हालात तब और बिगड़ गए, जब पीटीआई के अंतरिम अध्यक्ष गौहर ख़ान और सांसदों शेर अफ़ज़ल ख़ान मरवत और शोएब शाहीन को फ़ौरन गिरफ़्तार कर लिया गया.
पीटीआई कैसे कर रही है हुकूमत का मुक़ाबला?
तहरीक़-ए-इंसाफ़ ने इस्लामाबाद के जलसे पर सरकार के सख़्ती करने और लोगों को गिरफ़्तार किए जाने की कड़ी आलोचना की. पीटीआई ने इल्ज़ाम लगाया कि पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत शहबाज़ शरीफ़ की हुकूमत ने ‘अघोषित मार्शल लॉ’ लगाया हुआ है और उसके 13 राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया, जबकि पार्टी के बहुत से दूसरे नेता गिरफ़्तारी के डर से छुप गए हैं. पीटीआई, सरकार की इस कार्रवाई को ‘फ़र्ज़ी बहुमत वाली सरकार का षडयंत्र’ कहती है. हाल ही में जब विरोध प्रदर्शन के दौरान ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह सूबे में पीटीआई सरकार के मुख्यमंत्री अली अमीन गंडापुर के बारे में ख़बर आई कि वो पांच अक्टूबर की शाम को अचानक लापता हो गए, तब पार्टी ने सरकार के ख़िलाफ़ अपने आंदोलन को जारी रखने का प्रण लिया.
पीटीआई ने इल्ज़ाम लगाया कि पब्लिक ऑर्डर एक्ट के तहत शहबाज़ शरीफ़ की हुकूमत ने ‘अघोषित मार्शल लॉ’ लगाया हुआ है और उसके 13 राष्ट्रीय नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया, जबकि पार्टी के बहुत से दूसरे नेता गिरफ़्तारी के डर से छुप गए हैं.
इससे पहले जुलाई 2024 में तहरीक़-ए-इंसाफ़ ने पाकिस्तान में सरकार द्वारा एक्स पर पाबंदी लगाने का भी कड़ा विरोध किया था. शहबाज़ सरकार ने ये फ़ैसला राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लिया था और पीटीआई ने इस पर सख़्त ऐतराज़ किया था. तहरीक़-ए-इंसाफ ने एक्स पर पाबंदी को असंवैधानिक क़रार देते हुए कहा था कि हुकूमत ने ये क़दम ‘हताशा में उठाया’ है, ताकि वो राजनीतिक विरोध के सुरों को दबा सके और मौजूदा राजनीतिक उथल पुथल में अपने हक़ में माहौल बना सके.
शहबाज़ हुकूमत के लिए क्यों ख़तरा है तहरीक़-ए-इंसाफ़?
तमाम चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, पीटीआई सत्ताधारी गठबंधन सरकार के ख़िलाफ़ ख़तरा पैदा करने में लगातार कामयाब हो रही है. पाकिस्तान की सियासत में तहरीक़-ए-इंसाफ़ का दबदबा लगातार बने रहने के पीछे कई कारण हैं.
पहला, इमरान ख़ान के नेतृत्व में तहरीक़-ए-इंसाफ़ को अवाम का ज़बरदस्त समर्थन मिल रहा है. जब इमरान ख़ान को सत्ता से हटा दिया गया था, उसके बाद भी जब चुनाव हुए तो पीटीआई देश की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी और उसने चुनाव चिह्न के बग़ैर चुनाव लड़कर भी सबसे ज़्यादा सीटें हासिल कीं. देश में पीटीआई काफ़ी लोकप्रिय है और ख़ास तौर से पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे पंजाब में तहरीक़-ए-इंसाफ़ लगातार मुस्लिम लीग (नवाज़) के ख़िलाफ़ बेहतर प्रदर्शन कर रही है. एक कमज़ोर गठबंधन सरकार के लिए किसी विपक्षी दल की ऐसी लोकप्रियता ख़तरनाक है. गठबंधन सरकार की ये कमज़ोरी उस वक़्त तो साफ़ नज़र आई जब पीएमल-एन ने पीटीआई पर पाबंदी लगाने के अपने इरादे का एलान किया. सत्ताधारी गठबंधन में शामिल पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ने पीटीआई पर पाबंदी के इस एलान से ख़ुद को अलग कर लिया. पीपीपी ने कहा कि इस बारे में उसके नेताओं से कोई सलाह मशविरा नहीं किया गया था.
दूसरा, संसद और विधानसभाओं की आरक्षित सीटों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने जब पीटीआई के पक्ष में फ़ैसला सुनाया, तो इससे भी तहरीक़-ए-इंसाफ़ की स्थिति बेहतर हुई है. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद पीटीआई को दोबारा एक ताक़तवर राजनीतिक दल का दर्जा हासिल करने का मौक़ा मिला, जिससे उसे हाशिए पर धकेलने के मौजूदा गठबंधन सरकार के प्रयासों को झटका लगा.
तहरीक़-ए-इंसाफ़ ख़ुद को एक बेहतर विकल्प के तौर पर पेश करते हुए लोगों की नाराज़गी को भुना रही है. पार्टी जनता को ये बताती है कि इन मसलों से निपटने में वो ज़्यादा सक्षम है और वो जनता की मदद से कहीं ज़्यादा स्थिर सरकार दे सकती है.
तीसरा, शहबाज़ शरीफ़ की सरकार, पाकिस्तान में इस वक़्त कई बड़ी चुनौतियों से जूझ रही है. आर्थिक चुनौतियां, भ्रष्टाचार के इल्ज़ाम और बलोचिस्तान व ख़ैबर पख़्तूनख़्वाह सूबों में राजनीतिक चुनौतियों ने जनता की नाराज़गी को बढ़ा दिया है. सरकार, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) से मदद हासिल करने के लिए कई शर्तें पूरी करने की कोशिश कर रही है. शहबाज़ सरकार ने जब अपने मौजूदा कार्यकाल का पहला बजट पेश किया, तो इसमें नौकरीपेशा लोगों पर टैक्स बढ़ा दिया गया था. मई 2023 में पाकिस्तान में सालाना महंगाई दर लगभग 38 प्रतिशत तक पहुंच गई थी, उस समय मौजूदा गठबंधन सरकार ही अंतरिम हुकूमत के तौर पर सत्ता में थी, और जून 2024 तक पाकिस्तान की महंगाई दर 23 प्रतिशत थी. तहरीक़-ए-इंसाफ़ ख़ुद को एक बेहतर विकल्प के तौर पर पेश करते हुए लोगों की नाराज़गी को भुना रही है. पार्टी जनता को ये बताती है कि इन मसलों से निपटने में वो ज़्यादा सक्षम है और वो जनता की मदद से कहीं ज़्यादा स्थिर सरकार दे सकती है.
कुल मिलाकर, जनता के बीच अपने ज़मीनी समर्थन की वजह से तहरीक़-ए-इंसाफ़, पाकिस्तान की मौजूदा गठबंधन सरकार के लिए एक बड़ा ख़तरा बनी हुई है और वो सत्ताधारी गठबंधन की कमज़ोरियों का बख़ूबी फ़ायदा उठाने के साथ साथ सामरिक तौर पर कई अहम क़ानूनी लड़ाइयां भी जीत रही है. शहबाज़ शरीफ़ की गठबंधन सरकार जिस तरह से पीटीआई के ख़िलाफ़ बार बार सख़्ती भरे क़दम उठा रही है, उससे ज़ाहिर होता है कि इमरान ख़ान की पार्टी अभी भी सत्ता पक्ष के लिए बड़ा ख़तरा बनी हुई है.
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