कथित तौर पर कोरोना वायरस ‘बनाने’ और फिर महत्वपूर्ण जानकारी छिपाने को लेकर चीन के ख़िलाफ़ दुनिया भर में ग़ुस्सा अभी भी ताज़ा है. चीन की वैक्सीन कूटनीति, जिसे पश्चिमी मीडिया के द्वारा व्यापक रूप से ‘ख़ुशामद’ का नाम दिया गया, को दुनिया भर में उसकी कम होती प्रतिष्ठा और दूसरे देशों से ख़राब होते संबंधों को ठीक करने का ज़रिया माना जा रहा है. वैसे तो चीन की शुरुआती ग़लतियां वैश्विक महामारी में जान-बूझकर उसकी भूमिका की तरफ़ इशारा करती हैं लेकिन अब चीन इस बात की भरपूर कोशिश कर रहा है कि वो बेहद मुश्किल हालात में फंसे अपने पड़ोसियों और दुनिया भर के देशों का भरोसेमंद सहयोगी बन कर उभरे.
इस साल की शुरुआत में जब से चीन ने वैक्सीन का व्यापक उत्पादन शुरू किया है, तब से चीन ने 405 मिलियन वैक्सीन डोज– मुख्य रूप से सिनोफार्म, कैनसिनो और सिनोवैक- द्विपक्षीय समझौतों, दान और कर्ज़ के तौर पर दुनिया के अलग-अलग देशों में भेजी है. संख्या के मामले में चीन की वैक्सीन डोज़ हासिल करने में आगे देश (वैक्सीन के लिए दिए गए ऑर्डर समेत) इस तरह हैं- इंडोनेशिया (140.5 मिलियन), ब्राज़ील (100 मिलियन), तुर्की (100 मिलियन), मेक्सिको (67 मिलियन) और पाकिस्तान (65.6 मिलियन). एशिया-पैसिफिक क्षेत्र चीन की वैक्सीन का सबसे बड़ा लाभार्थी है, उसके बाद लैटिन अमेरिका का स्थान है.
सेशेल्स, बहरीन, मंगोलिया, चिली, इत्यादि जैसे देशों, जिन्होंने व्यापक तौर पर चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल किया है, ने ख़तरनाक दूसरी लहर का सामना किया.
तस्वीर 1: दुनिया भर में चीन की वैक्सीन का वितर
अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम से मुक़ाबला करते हुए चीन वैज्ञानिक नेतृत्व की भूमिका में आ गया है. जिस वक़्त बहुत कम देशों ने एक वैक्सीन बनाई है, उस वक़्त चीन में नौ वैक्सीन का तीसरे चरण का परीक्षण हो रहा है. लेकिन इस तरह की वैज्ञानिक ताक़त दिखाने के बावजूद चीन की अग्रणी वैक्सीन अमेरिका और यूरोप के देशों के मुक़ाबले अपेक्षाकृत कम सुरक्षा देती है. सेशेल्स, बहरीन, मंगोलिया, चिली, इत्यादि जैसे देशों, जिन्होंने व्यापक तौर पर चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल किया है, ने ख़तरनाक दूसरी लहर का सामना किया. पश्चिमी मीडिया के मुताबिक़, इसका आरोप चीन की वैक्सीन सिनोफार्म और सिनोवैक पर जाता है.
नीचे उन 25 देशों की सूची है जो वर्तमान में रोज़ाना प्रति 10 लाख आबादी में नये केस में आगे हैं. ये ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाले सभी देश दूसरी अमेरिकी, यूरोपीय या रूस की वैक्सीन का भी इस्तेमाल अपने नागरिकों को टीका लगाने में कर रहे हैं.
|
Country |
Chinese vaccines used |
Percentage of the population fully vaccinated (%) |
1 |
Seychelles |
Sinopharm |
69.29 |
2 |
Mongolia |
Sinopharm |
54.52 |
3 |
Namibia |
Sinopharm |
1.08 |
4 |
Colombia |
Sinovac |
15.84 |
5 |
Cyprus |
NO CHINESE VACCINE USED |
44.52 |
6 |
Tunisia |
Sinovac |
5.15 |
7 |
Argentina |
Sinopharm |
10.74 |
8 |
Kuwait |
NO CHINESE VACCINE USED |
21.62 |
9 |
Oman |
Sinovac |
4.93 |
10 |
Fiji |
NO CHINESE VACCINE USED |
6.11 |
11 |
UK |
NO CHINESE VACCINE USED |
50.38 |
12 |
South Africa |
NO CHINESE VACCINE USED (slated to receive Sinopharm) |
2.11 |
13 |
Uruguay |
Sinovac |
54.65 |
14 |
Maldives |
Sinopharm |
38.16 |
15 |
Costa Rica |
NO CHINESE VACCINE USED |
16.04 |
16 |
Suriname |
NO CHINESE VACCINE USED |
6.70 |
17 |
Cuba |
NO CHINESE VACCINE USED |
14.70 |
18 |
Panama |
NO CHINESE VACCINE USED |
13.64 |
19 |
Botswana |
Sinovac |
4.52 |
20 |
Brazil |
Sinovac |
13.88 |
21 |
Georgia |
Sinovac, Sinopharm |
2.80 |
22 |
Paraguay |
Sinovac, Sinopharm |
1.91 |
23 |
Kyrgyzstan |
Sinopharm |
1.13 |
24 |
Portugal |
NO CHINESE VACCINE USED |
39.18 |
25 |
Malaysia |
Sinovac |
9.86 |
Source: Our World in Data
इस सूची पर व्यापक नज़र डालने पर पता चलता है कि केस में तेज़ी से बढ़ोतरी उन देशों में ज़्यादा है जिन्होंने ग़ैर-चीनी वैक्सीन उत्पादकों के मुक़ाबले सिनोवैक या सिनोफार्म का इस्तेमाल किया है. ऊपर के 25 देशों में से 15 देश चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल कर रहे हैं जहां कुल 64 प्रतिशत नये मरीज़ आ रहे हैं. अगर इस सूची को बढ़ाते हुए टॉप 30 और टॉप 45 देशों की भी सूची बनाई जाए तब भी 60 प्रतिशत से ज़्यादा नये मरीज़ इन देशों में आ रहे हैं. इससे शक तो खड़ा होता है लेकिन साफ़ तौर पर नहीं कहा जा सकता कि इसकी वजह सिर्फ़ चीन की वैक्सीन है.
दूसरी तरफ़ दुनिया भर में टीकाकरण अभियान की शुरुआत (यानी दिसंबर 2020) के बाद चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाले देशों के आंकड़ों पर क़रीब से निगाह डालें तो पता चलता है कि लगभग सभी देशों ने तेज़ी से मामले बढ़ने का सामना किया. ध्यान देने की बात ये है कि सेशेल्स, मालदीव और उरुग्वे ने दूसरे देशों के मुक़ाबले कोरोना के मामलों में असामान्य तेज़ी देखी.
तालिका 2: ऊपर की तालिका से चीन की वैक्सीन का इस्तेमाल करने वाले देश- चीन से मिली वैक्सीन की डोज और लगाई गई कुल डोज़ (5 जुलाई 2021 तक)
|
Country |
Vaccines used |
Total Vaccine doses administered (in millions) |
Chinese vaccine doses received (in millions) |
Percentage of the population fully vaccinated (%) |
1 |
Seychelles |
Sinopharm |
0.139 |
Un-announced number |
69.29 |
2 |
Mongolia |
Sinopharm |
3.83 |
1.5 |
54.52 |
3 |
Namibia |
Sinopharm |
0.15 |
0.1 |
1.08 |
4 |
Colombia |
Sinovac |
19.44 |
10.47 |
15.84 |
5 |
Tunisia |
Sinovac |
1.84 |
0.7 |
5.15 |
6 |
Argentina |
Sinopharm |
22.44 |
5.909 |
10.74 |
7 |
Oman |
Sinovac |
1.34 |
0.1 |
4.93 |
8 |
Uruguay |
Sinovac |
4.11 |
1.75 |
54.65 |
9 |
Maldives |
Sinopharm |
0.517 |
0.2 |
38.16 |
10 |
Botswana |
Sinovac |
0.26 |
0.4 |
4.52 |
11 |
Brazil |
Sinovac |
106.91 |
57 |
13.88 |
12 |
Georgia |
Sinovac, Sinopharm |
0.37 |
1.2 |
2.80 |
13 |
Paraguay |
Sinovac, Sinopharm |
0.76 |
0.27 |
1.91 |
14 |
Kyrgyzstan |
Sinopharm |
0.173 |
0.15 |
1.13 |
15 |
Malaysia |
Sinovac |
9.32 |
3.5 |
9.86 |
Source: Bridge Beijing and Our World in Data
दिलचस्प बात ये है कि ऊपर के समूह में जिन देशों में आबादी के बड़े हिस्से को वैक्सीन लगाई गई वहां भी कोरोना के केस तेज़ी से बढ़े. इनमें से कई देश निम्न और निम्न मध्यम आय वाले देश हैं जो अपना टीकाकरण अभियान मुख्य रूप से चीन की सहायता के कारण शुरू करने में कामयाब रहे. इस तरह वैक्सीन के कम प्रभावी होने को चीन की वैक्सीन के ज़्यादा अनुपात से जोड़ने पर वैक्सीन का बचाव कमज़ोर लगता है. इसके अलावा वैक्सीन लगने के बाद सुरक्षित बर्ताव का पालन नहीं करने से भी जोखिम बढ़ता है.
वैश्विक प्रतिस्पर्धा के बीच चीन के सरकारी अधिकारियों ने अपनी वैक्सीन के अपेक्षाकृत कम प्रभावी होने की बात स्वीकार की है. वो अब दो वैक्सीन को मिलाने या बूस्टर डोज़ जोड़ने की संभावना तलाश रहे हैं ताकि जिस सुरक्षा का वादा किया गया था, वो मिल सके. लेकिन चीन के अधिकारियों ने इस बात को नकारा भी है कि संक्रमण के मामले अचानक बढ़ने के पीछे वैक्सीन का कम असरदार होना मुख्य रूप से ज़िम्मेदार है. इसके बदले वो कोविड से सुरक्षा देने वाले व्यवहार का पालन नहीं होने की तरफ़ इशारा करते हैं. साथ ही नये, ज़्यादा तेज़ी से फैलने वाले वैरिएंट को भी इस घबराहट की साफ़ वजह बताते हैं.
जल्दबाज़ी का काम?
जिस वक़्त दुनिया कोरोना वायरस के बारे में अंदाज़ा लगा रही थी, उस वक़्त चीन ने सबसे ज़्यादा वैक्सीन विकसित करने की एक महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक परियोजना की शुरुआत की (सितंबर 2020 में 42 वैक्सीन में से 11). चीन उन शुरुआती देशों में से था जो सबसे तेज़ी से वैक्सीन लेकर आया. कैनसिनो की सिंगल डोज़ वैक्सीन की आपात मंज़ूरी के साथ चीन का टीकाकरण अभियान 25 जून 2020 को ही शुरू हो गया. जुलाई 2020 तक चीन में आपात इस्तेमाल के लिए दो वैक्सीन को मंज़ूरी मिल चुकी थी. रिसर्च करने वालों ने व्यापक पैमाने पर रैंडमाइज़्ड प्लेसेबो-कंट्रोल ट्रायल के बिना वैक्सीन के इस्तेमाल के ख़िलाफ़ चेतावनी दी लेकिन इसके बावजूद चीन ने सैनिकों, सरकारी कर्मचारियों, उड्डयन कर्मचारियों और स्वास्थ्य कर्मियों को टीका लगाना शुरू कर दिया.
चीन पर बहुत ज़्यादा भरोसा दिखाते हुए दिसंबर 2020 तक संयुक्त अरब अमीरात और बहरीन ने ट्रायल के नतीजों में 86 प्रतिशत असर का संकेत देते हुए सिनोफार्म को पूरी मंज़ूरी दे दी लेकिन कभी भी ट्रायल के आंकड़े नहीं बताए गए. छह महीने बाद प्रति 100 लोगों में 157 और 126 डोज़ लगाने के बाद (जो दुनिया में सबसे ज़्यादा में से है) ये दोनों देश अब बूस्टर डोज़ की पेशकश कर रहे हैं. ये बूस्टर डोज़ केवल छह महीने बाद सिर्फ़ सिनोफार्म वैक्सीन की दोनों डोज़ लगवाने वाले लोगों के लिए है. जिन लोगों को ज़्यादा जोखिम है, उनके लिए तीन महीने बाद बूस्टर डोज़ लगाई जाएगी. बूस्टर डोज़ के असर को लेकर ठोस आंकड़े अभी भी मौजूद नहीं हैं.
वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी एक अध्ययन किया जिसमें कहा गया कि चीन की वैक्सीन लेने वाले सर्बिया के 60 से ज़्यादा उम्र वाले लोगों में से 29 प्रतिशत के शरीर में वायरस के ख़िलाफ़ एंडीबॉडी बनी ही नहीं.
वैक्सीन के असर के अध्ययन को लेकर जो क्लिनिकल ट्रायल किया गया था, उसमें दरअसल स्वस्थ पुरुषों के वर्चस्व वाले समूह को शामिल किया गया था जिनकी औसत उम्र 36 साल थी. इसलिए 79 प्रतिशत असरदार होना महिलाओं, बिना लक्षण वाले मामलों या 60 साल से ज़्यादा उम्र वाले बुजुर्गों के लिए भरोसेमंद सूचक नहीं है. ट्रायल के सबूत को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन भी मानता है कि लंबे समय से बीमार लोगों में कोविड-19 की गंभीरता को रोकने की क्षमता को लेकर बेहद कम विश्वास है. इसके समर्थन में वॉल स्ट्रीट जर्नल ने भी एक अध्ययन किया जिसमें कहा गया कि चीन की वैक्सीन लेने वाले सर्बिया के 60 से ज़्यादा उम्र वाले लोगों में से 29 प्रतिशत के शरीर में वायरस के ख़िलाफ़ एंडीबॉडी बनी ही नहीं.
सिनोवैक की कोरोनावैक को भी उस वक़्त आलोचना का सामना करना पड़ा जब अलग-अलग देशों में उसने कम और घटती-बढ़ती प्रभावशीलता दर दिखाई- ब्राज़ील में 51 प्रतिशत, इंडोनेशिया में 65.3 प्रतिशत, चिली में 67 प्रतिशत और तुर्की में 83.5 प्रतिशत. यहां तक कि जिस देश में सबसे ज़्यादा असरदार होने की बात सामने आई यानी तुर्की में भी ये सर्वमान्य नहीं है. जिन लोगों पर वैक्सीन का ट्रायल किया गया वो अपेक्षाकृत युवा थे और उनकी औसत आयु 45 वर्ष थी. साथ ही उनमें बीमारी अपेक्षाकृत कम पाई गई थी. फ़ाइज़र और मॉडर्ना के ट्रायल में ऐसा नहीं था. इस ट्रायल में सिनोफार्म और सिनोवैक के लिए वैक्सीन की दोनों डोज़ लगाने के बाद सुरक्षा की अवधि क्रमश: 112 और 43 दिन थी. इस तरह पता चला कि 60 वर्ष से ज़्यादा उम्र और दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों के लिए वैक्सीन से सुरक्षा अनिश्चित है. इन परिस्थितियों के बीच कुछ समय पहले कैनसिनो बायोलॉजिक्स ने भी दावा किया कि उसकी वैक्सीन की प्रभावशीलता वैक्सीन लगाने के सिर्फ़ पांच से छह महीनों के बाद गिरकर 50 प्रतिशत हो जाने की आशंका है और वैक्सीन के असरदार बने रहने के लिए बूस्टर डोज़ की ज़रूरत होगी.
वैसे तो फरवरी से जून 2021 के बीच भारत समेत लगभग सभी देशों ने दूसरी लहर का सामना किया लेकिन जो देश हर्ड इम्युनिटी के नज़दीक थे, वहां मामलों में ऐसी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं की गई थी. शुरुआती आकलन इस बात की तरफ़ इशारा करते हैं कि चीन की वैक्सीन कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ अच्छी सुरक्षा नहीं देते हैं. ऐसा लगता है कि चीन की सरकार ने कम्युनिस्ट पार्टी की शुरुआती लापरवाहियों को दुरुस्त करने के लिए वैक्सीन की ट्रायल के सभी आंकड़े उपलब्ध हुए बिना जल्दबाज़ी में वैक्सीन को मंज़ूरी दे दी.
बढ़ते शक के बावजूद मांग में तेज़ी
चीन वैक्सीन कूटनीति के ज़रिए अपनी स्वदेशी वैक्सीन के लिए वैश्विक स्तर पर अपील करता रहा है. लेकिन जब शी जिनपिंग चीन की वैक्सीन को ‘वैश्विक सार्वजनिक सामान’ कहते हैं तो अलग-अलग देशों को लेकर उसका नज़रिया और क़ीमत पक्षपातपूर्ण रहा है. कुछ देशों को उसकी कूटनीति में तरजीह मिलने की वजह से शोर-शराबा भी हुआ है. संभवत: श्रीलंका सिनोफार्म के लिए 15 अमेरिकी डॉलर प्रति डोज़ दे रहा है जबकि नेपाल और बांग्लादेश सिर्फ़ 10 डॉलर प्रति डोज़ दे रहे हैं.
इसके अलावा, चीन ने हाल ही में सख़्त वीज़ा नियम बनाए हैं जिसके तहत सिर्फ़ उन लोगों को चीन में आने की इजाज़त दी गई है जिन्होंने चीन की वैक्सीन लगवाई है. इस तरह चीन के आस-पास के क्षेत्रों हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, वियतनाम, इंडोनेशिया, इत्यादि के लोगों के पास दूसरी वैक्सीन का विकल्प होने के बावजूद उन्हें मजबूर होकर चीन की वैक्सीन को चुनना पड़ेगा ताकि मेनलैंड चीन में आना-जाना सुनिश्चित किया जा सके.
चीन के आस-पास के क्षेत्रों हॉन्ग कॉन्ग, सिंगापुर, वियतनाम, इंडोनेशिया, इत्यादि के लोगों के पास दूसरी वैक्सीन का विकल्प होने के बावजूद उन्हें मजबूर होकर चीन की वैक्सीन को चुनना पड़ेगा ताकि मेनलैंड चीन में आना-जाना सुनिश्चित किया जा सके.
विकासशील देशों में सिनोफार्म और सिनोवैक को प्रभुत्व और चीन को रणनीतिक फ़ायदा इस बात से मिलता है कि इन टीकों में ज़्यादा स्थापित और लंबे समय तक टेस्ट किए जा चुके तरीक़े यानी निष्क्रिय वायरस का इस्तेमाल संक्रमण से लड़ने में किया जाता है. इसकी वजह से चीन के टीकों को विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के बीच ज़्यादा प्राथमिकता मिलती है. साथ ही चीन की वैक्सीन को बेहद कम तापमान पर रखने की ज़रूरत नहीं होने की वजह से वो मूलभूत स्वास्थ्य ढांचे को जंचते हैं. इसलिए चीन के ब्रांड पर सवाल उठने और कड़वाहट के बावजूद इन वैक्सीन की मांग अभी भी बढ़ रही है. 500 मिलियन डोज़ के ऑर्डर दिए जा चुके हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन दोनों वैक्सीन को मई और जून 2021 में आपात मंज़ूरी दी, इसके बाद उनकी मांग में तेज़ बढ़ोतरी देखी गई. इस बात पर विचार करते हुए कि चीन ने सिर्फ़ अपने देश में वैक्सीन की 1.35 अरब डोज़ लगाई है, उसकी वैक्सीन उत्पादन की क्षमता दुनिया भर में वैक्सीन की कमी को देखते हुए वैक्सीन समानता के उद्देश्यों को पूरा कर सकती है और वैक्सीन के लिए सीरम इंस्टीट्यूट पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता को कम कर सकती है.
वैक्सीन को लेकर दुनिया भर में व्यापक हिचकिचाहट के बीच चीन की वैक्सीन का ख़राब प्रदर्शन टीकाकरण अभियान के लिए मुश्किल साबित हो सकता है. जिस वक़्त चीन के इरादों को लेकर पहले से दुनिया भर में अविश्वास मंडरा रहा है, उस वक़्त बड़े वैक्सीन उत्पादक के तौर पर उसकी विश्वसनीयता के लिए वैज्ञानिक समर्थन ज़रूरी है. चीन की वैक्सीन की प्रभावशीलता को लेकर भरोसेमंद आंकड़े के बिना कोई फ़ैसला देना जल्दबाज़ी होगी. विशेषज्ञों का कहना है कि कम प्रभावशीलता के बावजूद चीन की वैक्सीन ने सफलतापूर्वक कोविड-19 से अस्पताल में भर्ती कराने की नौबत और मौतों को कम किया है. इस तरह वैक्सीन के असली मक़सद को उन्होंने पूरा किया है. सेशेल्स ने ये कहते हुए वैक्सीन का बचाव किया है कि क़रीब 80 प्रतिशत मौतें और गंभीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराने की स्थिति उन्हीं लोगों के साथ हुई है जिनका आंशिक टीकाकरण हुआ है या जिन्होंने टीका नहीं लगाया है.
इसलिए चीन की वैक्सीन की प्रभावशीलता को लेकर संपूर्ण, वास्तविक जानकारी की अनुपस्थिति और वैक्सीन समानता में उसकी आने वाली भूमिका को देखते हुए चीन के उत्पादकों को शक का फ़ायदा देना ज़रूरी है. आख़िरकार, ये एक ऐसी दौड़ है जो साथ मिलकर ही जीती जा सकती है.
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