इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया भर में एसडीजी7 से अरबों लोग लाभान्वित हो रहे हैं. लिहाजा बंगाल की खाड़ी के इलाक़े में इसके असर की पड़ताल करना ज़रूरी हो जाता है
सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)7का मकसद ठोस कार्ययोजना, रणनीति, अंतरसरकारी और समयबद्ध क्रियाओं द्वारा हासिल नए आर्थिक अवसरों और रोज़गारों के ज़रिए 2030 तक ऊर्जा, ऊर्जा की बढ़ती कार्यक्षमता और नवीकरणीय उर्जा के इस्तेमाल का प्रसार सुनिश्चित करना है. इसके तहत “कोई भी पीछे न छूटे” के आदर्श सिद्धांत के साथ समाज में ऊर्जा तक पहुंच बनाने में आए अंतर को पाटकर एसडीजी 7 और सतत विकास से जुड़े दूसरे लक्ष्यों को मज़बूत करने का इरादा है. अपने इसी एजेंडे के चलते एसडीजी7 सीमा पार ग्रिड कनेक्शन, ऑन-ग्रिड नवीकरणीय ऊर्जा समाधानों और विक्रेंद्रीकृत विकल्पों को बढ़ावा देता है. देशों और क्षेत्रों की बदलती ज़रूरतों के जवाब के तौर पर ये तमाम चीज़ें निहायत ज़रूरी हैं.
इसमें कोई शक नहीं कि दुनिया भर में एसडीजी7 से अरबों लोग लाभान्वित हो रहे हैं. लिहाजा बंगाल की खाड़ी के इलाक़े में इसके असर की पड़ताल करना ज़रूरी हो जाता है. इस क्षेत्र में बिजली की मांग और आपूर्ति का अंतर नकारात्मक है और 2030 तक इसके और बढ़ने की आशंका है. इन परिस्थितियों में क्या इस इलाक़े में ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए सीमा-पार ग्रिड कनेक्शन की कोई गुंज़ाइश है? एसडीजी7 के लक्ष्यों को हासिल करने के रास्ते में अगर कुछ अड़चनें हैं तो वो क्या हैं? इस संक्षिप्त लेख में केवल परंपरागत ऊर्जा को केंद्र में रखते हुए ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करने पर विशेष ध्यान दिया गया है.
एक नज़र में बिम्सटेक
बिम्सटेक देशों यानी बांग्लादेश, भूटान, भारत, नेपाल, श्रीलंका, थाईलैंड और म्यांमार में तेज़ आर्थिक प्रगति, औद्योगिकरण और वस्तुओं और सेवाओं की बढ़ती मांग सेप्राथमिक ऊर्जाके प्रति व्यक्ति उपभोग में तेज़ी का रुख़ देखा गया है.बिम्सटेक एनर्जी आउटलुक 2030के मुताबिक बिम्सटेक क्षेत्र में 2008 में प्राथमिक ऊर्जा की कुल आपूर्ति 77 करोड़ 20 लाख टन तेल के बराबर (एमटीओई) थी. 2030 तक ये बढ़कर 1 अरब 75 करोड़ 80 लाख एमटीओई हो जाने का अनुमान है. अगर इसी कालखंड की बात करें तो 2008 में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपभोग 539 एमटीओई था, जिसके 2030 तक बढ़कर 1210 एमटीओई हो जाने का अनुमान है. कोयला अब भी ऊर्जा आपूर्ति का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है. प्राथमिक ऊर्जा के कुल उपभोग में तेल का हिस्सा 2008 में31 प्रतिशतथा जिसके 2030 में घटकर 29 फ़ीसदी तक आ जाने का अनुमान है. हालांकि तेल का हिस्सा ऊर्जा के तमाम स्रोतों में अब भी सबसे बड़ा है. इसके बाद दूसरे नंबर पर बिजली का उपभोग आता है. ऊर्जा के समस्त स्रोतों में प्रतिशत के हिसाब से देखें तो बिजली का उपभोग 2008 में 13 प्रतिशत था. 2030 में ये बढ़कर 20 प्रतिशत तक पहुंच जाने का अनुमान है.
अगर इसी कालखंड की बात करें तो 2008 में कुल प्राथमिक ऊर्जा उपभोग 539 एमटीओई था, जिसके 2030 तक बढ़कर 1210 एमटीओई हो जाने का अनुमान है. कोयला अब भी ऊर्जा आपूर्ति का प्राथमिक स्रोत बना हुआ है.
बिम्सटेक के ज़्यादातर देश अपनी प्राथमिक ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति के लिएआयात पर निर्भरहैं. आयात पर निर्भरता की बात करें तो 2018 भारत में 41.5 फ़ीसदी, 2014 में बांग्लादेश में 16.8 फ़ीसदी, 2014 में नेपाल में 16.7 फ़ीसदी, 2017 में श्रीलंका में 57.5 फ़ीसदी और दिसंबर 2018-19 में थाईलैंड में 64 फ़ीसदी थी. हालांकि ऊर्जा ज़रूरतों की पूर्ति के लिए विदेशी स्रोतों पर निर्भरता के बावजूद ये तथ्य अपनी जगह कायम है कि बिम्सटेक क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक संसाधन मौजूद हैं. इस इलाक़े में 324 अरब टन कोयला, 66 करोड़ 40 लाख टन तेल, 99 खरब क्यूबिक फ़ीट प्राकृतिक गैस, 11 अरब टन बायोमास, 328 गीगावाट (बड़ी) पनबिजली और 1000 गीगावाट से ज़्यादा नवीकरणीय उर्जा की संभावित क्षमता मौजूद है.
बिम्सटेक के ज़्यादातर देशों ने बिजली तक पहुंच सुनिश्चित करने के मामले में बहुत तरक्की की है लेकिन इस क्षेत्र में प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग अब भी काफ़ी कम है. भूटान को छोड़कर बाक़ी के तमाम बिम्सटेक देशों का प्रति व्यक्ति बिजली उपभोग 2019 मेंविश्व के औसत3501 किलोवाट प्रति व्यक्ति के आंकड़े से नीचे है. बंगाल की खाड़ी के इलाक़े में हालात विश्व की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं जैसे अमेरिका (13,375 किलोवाट प्रति व्यक्ति), ऑस्ट्रेलिया (10519 किलोवाट प्रति व्यक्ति), फ्रांस (8835 किलोवाट प्रति व्यक्ति) और यूनाइडेट किंगडम (4794 किलोवाट प्रति व्यक्ति) की तुलना में काफ़ी अलग हैं. 2019 के आंकड़ों के अनुसारनेपालमें प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग बहुत कम (177 किलोवाट) है जबकि भूटान में 9000 किलोवाट से ज़्यादा, म्यांमार में 442 किलोवाट, बांग्लादेश में 550 किलोवाट, श्रीलंका में 759 किलोवाट और भारत में 1141 किलोवाट है. ऐसे में बिम्सटेक देशों को इस इलाक़े में मौजूद संसाधनों का समुचित इस्तेमाल करते हुए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने की पुरज़ोर कोशिश करनी चाहिए. निकट भविष्य में प्राथमिक ऊर्जा उपभोग में बिजली का हिस्सा बढ़ेगा लेकिन इसके मुक़ाबले आपूर्ति अपर्याप्त ही रहेगी. लिहाजा इस इलाक़े में ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लक्ष्य को ध्यान में रखकर बनाई जाने वाली समेकित रणनीति में सीमापार से होने वाले बिजली के व्यापार को बढ़ाना एक महत्वपूर्ण कारक साबित होगा.
बिम्सटेक के भीतर सीमा पार ऊर्जा सहयोग: कुछ अहम मुद्दे
ऊर्जा परबिम्सटेक का पहला मंत्रिस्तरीय सम्मेलन2005 में नई दिल्ली में हुआ था. इस सम्मेलन में “बिम्सटेक के भीतर ऊर्जा सहयोग की कार्ययोजना” तय की गई थी. आगे चलकर 2018 में बिम्सटेक के सदस्य देशों द्वारा ग्रिड-इंटरकनेक्शन पर तैयार समझौता पत्र पर दस्तख़त किए गए.बिम्सटेक ग्रिड इंटरकनेक्शनका मकसद सदस्य राष्ट्रों के बीच ऊर्जा के व्यापार को बढ़ावा देना है. इसके साथ-साथ नई पनबिजली परियोजनाओं के विकास, बिजली और प्राकृतिक गैस के ग्रिड की परस्पर संबद्धता, नवीकरणीय ऊर्जा की व्यवहार्य परियोजाओं पर अमल और ऊर्जा की कार्यक्षमता वाली परियोजनाओं से जुड़ी सूचनाओं, ज्ञान और अनुभवों की साझेदारी को बढ़ावा देना भी इसके लक्ष्यों में शामिल है. विशेषज्ञों का कहना है कि सीमा पार बिजली के जाल के प्रसार से न सिर्फ़ कम लागत पर बिजली की गुणात्मक रूप से आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी बल्कि ऊर्जा की कार्यक्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी. हालांकि संसाधनों का अभाव इस मकसद की प्राप्ति के रास्ते की एक सबसे बड़ी चिंता बनकर उभरी है.
उल्लेखनीय है कि बिम्सटेक क्षेत्र में ऊर्जा सहयोग द्विपक्षीय व्यवस्थाओं के ज़रिए उभरकर सामने आए हैं. अपनी भौगोलिक बनावट और वृहत अर्थव्यवस्था के चलते इस व्यवस्था में भारत की केंद्रीय भूमिका रही है. भारत-भूटान, भारत-बांग्लादेश और भारत-नेपाल के बीच ऐसी द्विपक्षीय व्यवस्थाएं अब सुचारू रूप से स्थापित हो गई हैं. इस व्यवस्था के तहत बांग्लादेश, भूटान, भारत और नेपाल (बीबीआईएन) के संस्पर्शी या एक-दूसरे के साथ लगे इलाक़े बिम्सटेक के लिए ऊर्जा संसाधनों के अड्डे के रूप में उभर सकते हैं. इस संदर्भ में सीमा पार ऊर्जा व्यापार (सीबीईटी) से जुड़ी भारत की राष्ट्रीय नीति बेहद अहम स्थान रखती है. 2016 में जारी सीबीईटी के पहले मसौदे काभूटानऔर नेपाल ने विरोध किया था. भूटान और नेपाल का तर्क था कि भारत को बिजली का निर्यात उन्हीं कंपनियों द्वारा किया जा सकता है जिन कंपनियों का मालिकाना हक़ यहां की सरकारों के पास हो, या जिन कंपनियों में भारत के सार्वजनिक या निजी क्षेत्र का कम से कम 51 फ़ीसदी इक्विटी निवेश हो. भूटान और नेपाल के मुताबिक सिर्फ ऊपर बताई गई कंपनियां ही निर्दिष्ट प्राधिकृत संस्थाओं से एक-बार की मंज़ूरी हासिल कर निर्यात का काम कर सकती थीं. 2018 में जारीसंशोधित दिशानिर्देशोंके तहत ये पाबंदियों हटा दी गईं. हालांकि निर्यात (आयात) अब भी मांग की तुलना में निर्माण क्षमता की अधिकता (या कमी) के हिसाब से ही तय की जाती रहेगी.
विशेषज्ञों का कहना है कि सीमा पार बिजली के जाल के प्रसार से न सिर्फ़ कम लागत पर बिजली की गुणात्मक रूप से आपूर्ति सुनिश्चित की जा सकेगी बल्कि ऊर्जा की कार्यक्षमता बढ़ाने में भी मदद मिलेगी.
नतीजतन, सीमा पार व्यापार की बहुपक्षीय कवायदों में कामयाबी हासिल होना अब भी बाकी हैं. अब समय आ गया है कि इस रास्ते पर आगे बढ़ने में आने वाली बाधाओं से जुड़े कारकों की बारीकी से पड़ताल की जाए. द्विपक्षीय व्यवस्था पर ज़रूरत से ज़्यादा निर्भरता कई बार सीमा-पार बहुपक्षीय सहयोग के प्रसार के रास्ते में रुकावटें खड़ी करती हैं. बिम्सटेक क्षेत्र ख़ासकर बीबीआईएन में ऊर्जा और चुनावी राजनीति के बीच स्थापित सहज कड़ी के चलते ऊर्जा को सीमा के आरपार आम लोगों के हालात सुधारने वाली आर्थिक वस्तु के रूप में न देखकर राजनीतिक वस्तु के तौर पर देखा जाता है. ऊर्जा पर लगे इस राजनीतिक ठप्पे से इस क्षेत्र में सीमा के आरपार जारी असहयोग की असल आर्थिक क़ीमत का पता ही नहीं चल पाता. इतना ही नहीं विकास की गतिविधियों और पर्यावरण की चिंताओं के बीच संतुलन बिठाना भी कभी-कभी काफी चुनौतीपूर्ण लगने लगता है. एसडीजी7 के तहत सबके लिए ऊर्जा सुनिश्चित करने के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परस्पर राजनीतिक समझदारी और सद्भाव ही समय की मांग है. ऐसा नहीं हुआ तो संसाधनों की प्रचुरता के बावजूद बिम्सटेक देश आने वाले समय में भी आयातित ऊर्जा पर ही आश्रित रहेंगे.
(लेखक़ ओआरएफ़ कोलकाता के जूनियर फेलो रौशन साहा द्वारा दी गई मदद के लिए उनका आभार व्यक्त करता है.)
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Anasua Basu Ray Chaudhury is Senior Fellow with ORF’s Neighbourhood Initiative. She is the Editor, ORF Bangla. She specialises in regional and sub-regional cooperation in ...