Published on Sep 27, 2022 Updated 0 Hours ago

भारत में हवा की गुणवत्ता सुधारने के लिए सभी भागीदारों को जोड़ने वाली ऐसी रणनीति की ज़रूरत है, जिसमें सरकार, निजी क्षेत्र और आम जनता की भागीदारी हो.

वायु प्रदूषण से निपटने का चार सूत्रीय नुस्खा

हाल के वर्षों में सर्दियों के मौसम में, ख़ास तौर से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश जैसे उत्तरी भारत के राज्यों में पराली जलाने का काम तेज़ हो जाता है. इससे न केवल उत्तर भारत में हवा ख़राब होती है, बल्कि इसका असर पूरे देश पर पड़ता है. दिसंबर 2020 में विज्ञान पत्रिकार लांसेट द्वारा किए गए एक अध्ययन में अनुमान लगाया गया था कि भारत में अकेले वायु प्रदूषण के चलते लगभग 17 लाख लोगों की बेवक़्त मौत हो गई थी. इस मानवीय जीवन वाली भारी क़ीमत के अलावा भी वायु प्रदूषण से देश पर आर्थिक बोझ भी पड़ता है. भारत को वायु प्रदूषण के चलते हर साल 36 अरब डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ता है, जो देश की GDP के 1.736 प्रतिशत के बराबर है. देश को ये नुक़सान, वायु प्रदूषण के चलते समय से पहले मौत और मृत्यु दर की शक्ल में उठाना पड़ता है.

भारत में वायु प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए कई उल्लेखनीय क़दम उठाए गए हैं. 2019 में राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (NCAP) शुरू किया गया था. ये लंबे समय की समय सीमा आधारित राष्ट्रीय स्तर की रणनीति है. इस कार्यक्रम के तहत भयंकर वायु प्रदूषण के शिकार देश के 122 शहरों को चुना गया है और उनके लिए 2024 तक PM 2.5 के उत्सर्जन को 20 से 30 फ़ीसद तक घटाकर 2017 के स्तर तक लाने की कार्य योजना तैयार करना अनिवार्य कर दिया गया है. इसी तरह गाड़ियों के लिए प्रदूषण के BS-VI नियम अपनाने के साथ साथ नेशनल इलेक्ट्रिसिटी मोबिलिटी मिशन योजना के तहत बैटरी से चलने वाली गाड़ियों को बढ़ावा दिया जा रहा है, ताकि कार्बन उत्सर्जन कम किया जा सके. इसी तरह सरकार खाना बनाने के दौरान ईंधन जलाने से होने वाला उत्सर्जन कम करने के लिए, उज्जवला योजना के तहत LPG के इस्तेमाल को बढ़ावा दे रही है.

भारत को वायु प्रदूषण के चलते हर साल 36 अरब डॉलर का नुक़सान उठाना पड़ता है, जो देश की GDP के 1.736 प्रतिशत के बराबर है. देश को ये नुक़सान, वायु प्रदूषण के चलते समय से पहले मौत और मृत्यु दर की शक्ल में उठाना पड़ता है.

सभी भागीदारों को साथ लेकर चलने वाला नज़रिया

हालांकि, भारत में हवा की गुणवत्ता में वास्तविक सुधार लाने के लिए, एक चौतरफ़ा रणनीति की ज़रूरत है, जिसमें सरकार के साथ साथ निजी क्षेत्र, वित्तीय संस्थाएं और नागरिक समुदाय भी शामिल हो.

वायु प्रदूषण से निपटने की किसी भी कार्य योजना को आगे बढ़ाने में सबसे अहम भागीदार सरकार होती है. वायु प्रदूषण की निगरानी करने वाले केंद्रों की तादाद, ख़ास तौर से ग्रामीण क्षेत्र में इज़ाफ़ा करने से उपलब्ध आंकड़ों में काफ़ी सुधार लाया जा सकता है और फिर इन आंकड़ों के आधार पर वायु प्रदूषण कम करने के लिए सटीक लक्ष्यों पर आधारित योजनाएं लागू की जा सकती हैं. क़ानूनी तौर पर बाध्यता वाले लक्ष्य लागू करके और NCAP ट्रैकर के ज़रिए नियमों के पालन पर निगरानी करके, राष्ट्रीय स्वच्छ हवा कार्यक्रम (NCAP) जैसे मौजूदा कार्यक्रमों को और असरदार बनाया जा सकता है. NCAP ट्रैकर के ज़रिए इस बात पर नज़र रखी जाती है कि तमाम शहर अपने यहां हवा की गुणवत्ता सुधारने में किस हद तक कामयाब हो रहे हैं. इसके साथ साथ, सरकारें वायु प्रदूषण पर रिसर्च के लिए और फंड मुहैया करा सकती हैं. वो वायु प्रदूषण से निपटने में कारगर तकनीक हासिल करने और इससे जुड़ी जानकारी साझा करने की एक मज़बूत रूपरेखा तैयार करने के लिए अन्य देशों और बहुपक्षीय संगठनों के साथ साझेदारी को भी बढ़ावा दे सकती हैं.

इसके अलावा, आज जब वायु प्रदूषण के स्रोत तमाम राज्यों में फैले हुए हैं और उनका असर एक से ज़्यादा राज्यों के लोगों को भुगतना पड़ रहा है, तो भारत के सहयोगात्मक संघवाद के नुस्खे को आज़माने की ज़रूरत है. तमाम राज्यों के बीच सहयोग बढ़ाने से राज्यों के बीच वायु प्रदूषण से निपटने में तालमेल बढ़ेगा और वो मिलकर इस चुनौती के लिए कार्य योजना तैयार कर सकेंगे. इससे वायु प्रदूषण से निपटने में काफ़ी मदद मिलेगी. इसके लिए एक ऐसी संस्था का गठन किया जा सकता है, जिसमें सभी प्रभावित राज्यों को सदस्य बनाया जाए. ये संस्था, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए रणनीतियां और कार्य योजनाएं तैयार कर सकती है. इसके साथ साथ राज्यों की सदस्यता वाली इये संस्था, स्थानीय निकायों के लिए ऐसी रूपरेखा तैयार कर सकती है, जिसके आधार पर बहुत से शहर अपने अपने शहर की हक़ीक़त के मुताबिक़, स्थानीय स्तर पर हवा की गुणवत्ता सुधार सकते हैं. कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट इन द नेशनल कैपिटल रीजन ऐंड एडज्वाइनिंग एरियाज़ बिल 2021 इस दिशा में उठा एक सही क़दम है. केंद्र सरकार या फिर नीति आयोग ऐसी संस्थाओं के गठन की अगुवाई कर सकती हैं, या फिर राज्यों को इस दिशा में बढ़ने के लिए प्रोत्साहित कर सकती हैं. ऐसी संस्थाओं के ज़रिए, वायु प्रदूषण से निपटने के लिए राज्यों की ताक़त का तालमेल हो सकेगा और उनके बीच सहयोग के ठोस नतीजे निकल सकेंगे.

आज जब वायु प्रदूषण के स्रोत तमाम राज्यों में फैले हुए हैं और उनका असर एक से ज़्यादा राज्यों के लोगों को भुगतना पड़ रहा है, तो भारत के सहयोगात्मक संघवाद के नुस्खे को आज़माने की ज़रूरत है.

वायु प्रदूषण में इज़ाफ़ा करने में निजी क्षेत्र बड़ी भूमिका निभाता है. इसीलिए, इस चुनौती से निपटने में निजी क्षेत्र को भी सक्रिय रूप से जोड़ना चाहिए. आपूर्ति श्रृंखलाओं और प्रक्रियाओं को पर्यावरण के अनुरूप बनाने से वायु प्रदूषण को कम करने में काफ़ी मदद मिल सकती है. निजी क्षेत्र के पास अपने अपने क्षेत्र से जुड़ी तकनीकी विशेषज्ञता और गहराई वाला ज्ञान होता है. मिसाल के तौर पर बड़े पैमाने पर आंकड़ों के विश्लेषण के निजी क्षेत्र के अनुभव का इस्तेमाल करके वायु प्रदूषण से निपटने की चुनौती आसान बनाई जा सकती है. क्योंकि इसके ज़रिए हवा की क्वालिटी की निगरानी को और असरदार बनाया जा सकता है और फिर नीति निर्माता सही समय पर इसमें दखल देकर, वायु प्रदूषण पर लगाम लगा सकते हैं. इसके साथ साथ निजी क्षेत्र ऐसे नए नुस्खे और तकनीक भी उपलब्ध करा सकते हैं, जो वायु प्रदूषण से निपटने वाले पर्यावरण के मुफ़ीद और टिकाऊ माध्यम हों. एक्सनमोबिल द्वारा विकसित किए गए बिजली की खपत कम करने वाले औद्योगिक लुब्रिकैंट जैसे उत्पाद न केवल उत्सर्जन कम कर सकते हैं, बल्कि निजी क्षेत्र की कंपनियों की लागत कम करके उन्हें बाज़ार में बेहतर स्थिति में भी ला सकते हैं. ऐसी पहलों को उचित प्रोत्साहन देने से निजी क्षेत्र ऐसे नए नए विचारों को अपनाने को लेकर उत्साहित होगा, जो पर्यावरण के लिए सही हों और उनके मुनाफ़े में भी बढ़ोत्तरी हो.

एक ख़ास निवेश फंड स्थापित करने की ज़रूरत

वायु प्रदूषण कम करने वाले रास्तों की तरफ़ बढ़ने के लिए भारी मात्रा में निवेश की दरकार है. अपनी वित्तीय मजबूरियों के चलते सरकारें इस मामले में बहुत अधिक पैसे ख़र्च करने की स्थिति में नहीं होती हैं ऐसे में निजी निवेशकों की भूमिका बहुत अहम हो जाती है. ऐसे में स्वच्छ हवा के लिए एक ऐसे उचित वित्तीय ढांचे की ज़रूरत है, जो निजी निवेश को बढ़ावा देने वाला हो. पर्यावरण के लिए मुफ़ीद तकनीकें अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक ख़ास निवेश फंड स्थापित किया जाना चाहिए, जो प्रदूषण कम करने वाली तकनीकें अपनाने में आने वाले ख़र्च की भरपाई कर सके. ये निवेश फंड ऐसी स्टार्ट अप कंपनियों को बढ़ावा देने में भी इस्तेमाल हो सकता है, जो वायु प्रदूषण से मुक़ाबला करने के क्षेत्र में काम करती हों.

पर्यावरण के लिए मुफ़ीद तकनीकें अपनाने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए एक ख़ास निवेश फंड स्थापित किया जाना चाहिए, जो प्रदूषण कम करने वाली तकनीकें अपनाने में आने वाले ख़र्च की भरपाई कर सके.

इस वक़्त वायु प्रदूषण का लोगों की सेहत पर क्या असर होता है, इसकी निगरानी सिर्फ़ शहरी क्षेत्रों में होती है. इस सोच के चलते, ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली देश की 70 प्रतिशत आबादी पर वायु प्रदूषण के असर का अध्ययन नहीं हो पाता है. लकड़ी जलाकर खाना बनाने से होने वाले घरेलू वायु प्रदूषण का सबसे बुरा असर सबसे ज़्यादा ग्रामीण महिलाएं झेलती हैं. चूंकि खनन और दूसरी औद्योगिक गतिविधियां, अक्सर आदिवासी बस्तियों के पास होती हैं, तो आदिवासी समुदाय भी वायु प्रदूषण के बुरे नतीजे भुगतते हैं. ऐसे में वायु प्रदूषण का सबसे ज़्यादा बुरा असर झेलने वाले समुदायों को भी इससे जुड़े अभियानों में शरीक़ किए जाने की ज़रूरत है. तभी, वायु प्रदूषण से निपटने का कोई समावेशी फॉर्मूला निकाला जा सकता है. पर्यावरण से जुड़ी नीतियां बनाने में महिलाओं और आदिवासी समुदायों को भागीदार बनाया जाना चाहिए और बड़े स्तर पर औद्योगीकरण और खनन से जुड़ी परियोजनाओं के लिए उनकी सहमति ज़रूरी बनाई जानी चाहिए. इसके साथ साथ वायु प्रदूषण से निपटने के लिए सामुदायिक स्तर की रणनीतियों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. ये समाधान अलग अलग तरह के हो सकते हैं, जैसे कि समुदायों की मदद से पेड़ लगाना और जंगलों को संरक्षित करना. स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिए ऐसे स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित करना जो अपने सदस्यों के बीच जागरूकता बढ़ाते हों और ग्रामीण समुदायों को स्वच्छ ईंधन अपनाने के लिए राज़ी करते हों.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.