टास्क फोर्स 6 एक्सीलरेटिंग एसडीजीज़: एक्सप्लोरिंग न्यू पाथवेज़ टू द 2030 एजेंडा
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चुनौती
आयुर्वेद, प्राकृतिक उपचारों के उपयोग और स्वास्थ्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण पर ज़ोर देता है. आधुनिक समय में स्वस्थ जीवन शैली की खोज ने आयुर्वेदिक और हर्बल उत्पादों की व्यापक स्वीकार्यता पैदा कर दी है. इससे दुनिया भर में हर्बल क्षेत्र के लिए अच्छी बाज़ार स्थितियां तैयार हुई हैं.[i] हर्बल बाज़ार में तमाम उप-क्षेत्र शामिल हैं, जिनमें औषधीय और सुगंधित पौधे, हर्बल दवाएं, हर्बल अर्क (एक्सट्रैक्ट्स), पौधों के उप-उत्पाद (डेरिवेटिव्स) और पूरक प्रमुख हैं. हर्बल उत्पादों के निर्यात में भारत की हिस्सेदारी विश्व में हर्बल उत्पादों के कुल बाजार का 2.5 प्रतिशत है, जबकि चीन का हिस्सा 13 फ़ीसदी है.[ii] 2014 से 2019 के बीच वैश्विक हर्बल औषधीय क्षेत्र का 7.6 प्रतिशत की दर से विस्तार हुआ.[iii] 2020 में हर्बल क्षेत्र का अनुमानित वैश्विक बाज़ार आकार 657.5 अरब अमेरिकी डॉलर था. उम्मीद की जा रही है कि ये आंकड़ा 2022 तक 746.9 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया होगा.[iv]
भारत सरकार ने अपने आयुष मंत्रालय के ज़रिए हर्बल उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए अनेक उपाय किए हैं. हाल के वर्षों में सभी आयुष उत्पादों का निर्यात मूल्य बढ़ा है. साल 2020 में इसका अनुमानित निर्यात मूल्य तक़रीबन 47 करोड़ अमेरिकी डॉलर था.[v] आयुर्वेदिक उत्पादों में भारत के व्यापार ने पिछले दशक में मिले-जुले रुझान दिखाए हैं. इस कड़ी में 2008-09 से 2011-12 के बीच कुल व्यापार में वृद्धि हुई. इसके बाद के कालखंड में गिरावट के बाद 2015-16 में इसमें दोबारा उछाल देखने को मिला.[vi] 2017-18 में आयुर्वेद उत्पादों का कुल व्यापार 15.10 करोड़ अमेरिकी डॉलर था, जो 2008-09 के स्तरों की तुलना में 10.3 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाता है.[vii] हालांकि वैश्विक हर्बल उत्पादों में भारत के आयुर्वेदिक उत्पादों की हिस्सेदारी ना के बराबर है. ये आंकड़ा 2022 में कुल मिलाकर महज़ 2 प्रतिशत था.[viii] हालांकि, अब 15.5 प्रतिशत की सालाना चक्रवृद्धि दर से वैश्विक आयुर्वेद बाज़ार के 2026 तक बढ़कर 16 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाने की उम्मीद है, ऐसे में भारत के आयुर्वेद निर्यात के लिए एक बड़ा अवसर सामने है.[ix]
अमेरिका, यूरोपीय संघ (EU) और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) भारतीय आयुष उत्पादों के लिए सबसे बड़े बाज़ार हैं. 2021 में भारत के आयुष निर्यातों में इन तीन बाज़ारों का योगदान 59.12 प्रतिशत रहा था.[x] बहरहाल, अपनी पूरी क्षमता हासिल करने के लिए आयुष उद्योग को कई चुनौतियों से पार पाना होगा.
एक प्राथमिक चुनौती, आयुष चिकित्सकों और संस्थानों के रजिस्ट्रेशन को लेकर नियमनों से जुड़ी है. दरअसल, पश्चिमी देशों में आयुष से जुड़े क्षेत्रों को वैकल्पिक चिकित्सा के तौर पर व्यापक रूप से मान्यता या स्वीकार्यता हासिल नहीं है. इसके अलावा, वैश्विक बाज़ारों में आयुष उत्पादों को बेचे जाने से पहले कुछ नियामक आवश्यकताओं को पूरा किया जाना ज़रूरी है. उदाहरण के लिए, अमेरिका और यूरोपीय संघ में आयुर्वेद उत्पादों को अक्सर दवाओं की बजाए आहार अनुपूरकों (सप्लीमेंट्स) के रूप में प्रचारित और वितरित किया जाता है, क्योंकि ऐसे वितरण से जुड़े नियमनों की अनुपालना आसान होती है.[xi] हर्बल दवाओं के अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर सीमा शुल्क और ग़ैर-सीमा शुल्क, दोनों उपाय लागू होते हैं, जो सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले आयात प्रतिबंधों के आधार पर व्यापार में बाधा बन सकते हैं. स्वच्छता और फाइटोसैनिटरी उपायों (SPS) जैसे तकनीकी हथकंडे, और व्यापार में तकनीकी बाधाओं (TBT) के साथ-साथ ग़ैर-तकनीकी उपाय (जैसे ग़ैर-स्वचालित आयात लाइसेंसिंग, कोटा, पाबंदियां, गुणवत्ता नियंत्रण उपाय, और TBT और SPS को छोड़कर अन्य प्रतिबंध, और मूल्य नियंत्रण उपाय) आयुर्वेदिक उत्पादों के व्यापार को प्रभावित करते हैं.[xii]
उत्पाद पेटेंट, और अनुसंधान और विकास (R&D) से संबंधित मुद्दे भी आयुर्वेद के लिए भारी चुनौतियां हैं. आयुर्वेद उत्पादों को अक्सर पेटेंट नहीं कराया जाता है क्योंकि इस चिकित्सा प्रणाली को पारंपरिक ज्ञान के रूप में देखा जाता है, जिससे दवाओं पर मालिक़ाना अधिकार हासिल करना मुश्किल हो जाता है. इस क्षेत्र में शोध और विकास के लिए कोष सीमित है. साथ ही आयुष उत्पादों को विदेशी बाज़ारों में दवा के रूप में रजिस्टर कराने में कठिनाइयों के चलते क्लिनिकल ट्रायल करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है. आयुर्वेदिक उत्पादों, ख़ासतौर से एक जड़ी-बूटी से तैयार उत्पादों को कुछ देशों में फूड सप्लीमेंट्स या आहार सप्लीमेंट्स के रूप में बेचा जा सकता है. चूंकि इन देशों में आयुर्वेद को स्वास्थ्य देखरेख प्रणाली के तौर पर मान्यता नहीं दी गई है, लिहाज़ा इन उत्पादों को दवाओं के रूप बेचने की इजाज़त नहीं होती है.
आयुर्वेद के लिए एक और भारी चुनौती इस क्षेत्र पर उपलब्ध आंकड़ों का अभाव है. इससे आयुर्वेदिक क्षेत्र के आकार, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में उसके योगदान, रोज़गार क्षमता और सामाजिक-आर्थिक प्रभाव का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है. ऐसे आंकड़ों की अनुपस्थिति में आयुर्वेद क्षेत्र के आकार का व्यापक आकलन करना, इसके भविष्य के विकास का अनुमान लगाना और वैश्विक मंचों पर इस सेक्टर को प्रदर्शित करना मुश्किल हो जाता है.
इन चुनौतियों से निपटने के लिए नीति निर्माताओं, उद्योग और अन्य स्टेकहोल्डर्स के बीच सहभागिता की दरकार होगी.
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G20 की भूमिका
हाल के वर्षों में, G20 देशों के भीतर सतत जीवन शैलियों और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने की अहमियत और मान्यता बढ़ी है. सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को हासिल करने में भी इसका महत्व पहचाना गया है.[xiii]
टिकाऊ जीवन शैलियों और कल्याण पर ध्यान देने के साथ-साथ G20 ने पारंपरिक दवाइयों और वैकल्पिक स्वास्थ्य देखभाल के महत्व को भी पहचाना है. 2016 में बीजिंग में G20 स्वास्थ्य मंत्रियों की बैठक में जारी घोषणा पत्र में कहा गया था कि “पारंपरिक चिकित्सा और स्वास्थ्य सेवा के वैकल्पिक तौर-तरीक़े सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने और वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा को आगे बढ़ाने में योगदान दे सकते हैं”.[xiv] घोषणा पत्र में पारंपरिक चिकित्सा और स्वास्थ्य देखभाल के वैकल्पिक अभ्यासों में शोध और विकास को आगे बढ़ाने और राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणालियों में उनके एकीकरण को बढ़ावा देने का आह्वान किया गया था. जनवरी 2023 में भारत की अध्यक्षता में G20 के स्वास्थ्य कार्य समूह की पहली बैठक आयोजित की गई. इसमें चिकित्सा यात्रा (मेडिकल ट्रैवल) के ज़रिए एकीकृत स्वास्थ्य सेवा की वैश्विक मांग और समग्र स्वास्थ्य सेवा वितरण प्रणाली में आयुर्वेद केंद्रों की भूमिका की पहचान की गई.[xv]
मानसिक स्वास्थ्य, शारीरिक तंदरुस्ती और स्वस्थ जीवन शैलियों के महत्व की बढ़ती मान्यता के चलते हाल के वर्षों में समग्र कल्याण की वैश्विक मांग बढ़ी है. आयुर्वेद में दुनिया भर की सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता है. साक्ष्य-आधारित एकीकृत अभ्यासों के ज़रिए इन क़वायदों को अंजाम दिया जा सकता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने व्यक्तियों के समग्र कल्याण के लिए शारीरिक गतिविधि और स्वस्थ आहार का आह्वान किया है. इसके साथ-साथ डायबिटीज़, दिल की बीमारी और कैंसर जैसे ग़ैर-संचारी रोगों (NCDs) की रोकथाम पर भी ज़ोर दिया गया है. आयुर्वेद, जीवन शैलियों (जैसे खान-पान और कसरत) में बदलाव पर ध्यान देता है, जिसे समग्र स्वास्थ्य के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मान्यता दी गई है. अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि जीवनशैली में बदलावों के ज़रिए अपना स्वास्थ्य सुधारने की कोशिश करने वाले लोगों में आयुर्वेद लोकप्रिय हुआ है. इसके अलावा व्यक्ति-विशेष की ज़रूरतों के हिसाब से चिकित्सा करने के इसके तौर-तरीक़े को वहां सकारात्मक रूप से देखा जाता है.[xvi] जर्मनी में किए गए एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि आयुर्वेदिक उपचार, तनाव को कम करने और जीवन की गुणवत्ता में सुधारने में प्रभावी थे.[xvii] WHO ने बीमारियों के अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण को उन्नत किया है, और इसमें परंपरागत दवाओं के असर और सुरक्षा में सुधार के लिए आयुष शब्दावलियों को शामिल किया गया है. WHO की इस क़वायद ने आयुर्वेद के वैश्वीकरण में अहम भूमिका निभाई है.[xviii]
कोविड-19 के चलते वैश्विक स्तर पर जैव विविधता-आधारित वस्तुओं और सेवाओं (फाइटोफार्मास्यूटिकल्स समेत) की मांग बढ़ गई है. इस कड़ी में हर्बल दवाओं की मांग में अनुमान से कहीं ज़्यादा बढ़ोतरी हुई है.[xix] हर्बल औषधीय क्षेत्र के वैश्विक व्यापार में भारत लगातार अपनी उपस्थिति बढ़ा रहा है. इस क्षेत्र का निर्यात 2017 में 86 करोड़ अमेरिकी डॉलर था जो 2021 में बढ़कर 1.26 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया.[xx] ग़ैर-संचारी रोगों पर आयुष उद्योग के फोकस ने ग्राहकों का एक ऐसा उत्साही आधार तैयार किया है जो स्वास्थ्य देखभाल से जुड़े वैकल्पिक समाधानों में दिलचस्पी रखता है. सेहतमंदी बनाए रखने का रुझान दुनिया भर में बढ़ रहा है, और आयुष उद्योग में इस प्रवृति का लाभ उठाने की पर्याप्त क्षमता है. इससे आयुष उत्पादों और सेवाओं की मांग बढ़ सकती है.
दुनिया भर में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता बढ़ी है. कई देशों ने अपनी स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में इन अभ्यासों को अपनाया है. जर्मनी, स्विट्ज़रलैंड और जापान जैसे देशों में आयुर्वेद को चिकित्सा के वैकल्पिक स्वरूप के रूप में मान्यता मिली है.[xxi] फ़िलहाल, दुनिया भर में लगभग 2,000 आयुर्वेदिक रिट्रीट सेंटर हैं, जिनमें से लगभग 100 अमेरिका में स्थित हैं. ये केंद्र, सेहतमंदी यानी वेलनेस उद्योग में करियर बनाने के इच्छुक व्यक्तियों को प्रशिक्षण और प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) पाठ्यक्रम उपलब्ध कराते हैं. भारत की पारंपरिक चिकित्सा विरासतों ने भी देश में मेडिकल टूरिज़्म को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाई है. भारत में पर्यटन उद्योग तेज़ी से बढ़ रहा है, और आयुष से जुड़े तमाम अभ्यासों के प्रचार-प्रसार ने उद्योग की बढ़ोतरी में योगदान दिया है.[xxii]
चूंकि, आयुर्वेद स्वस्थ और समग्र जीवन पर ध्यान केंद्रित करता है, लिहाज़ा ये वैश्विक स्वास्थ्य में बड़ी भूमिका निभा सकता है. दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के मंच के रूप में, G20 अपने सदस्य राष्ट्रों को आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्यात समेत अंतरराष्ट्रीय व्यापार से संबंधित मुद्दों पर चर्चा और सहयोग करने के लिए एक मंच उपलब्ध करा सकता है. G20 के सदस्य देश, आयुर्वेदिक उत्पादों के निर्यात के लिए अनुकूल माहौल बनाने को लेकर मिलकर काम कर सकते हैं. इन क़वायदों में ऐसे मानक और नियम विकसित करना शामिल है, जो इन उत्पादों की सुरक्षा और प्रभाव सुनिश्चित करते हों!
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G20 के लिए सिफ़ारिशें
G20 दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं का मंच है, जो अंतरराष्ट्रीय आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने और सतत वृद्धि और विकास को आगे दिशा देने का काम करता है. लिहाज़ा, टिकाऊ जीवन शैली और समग्र कल्याण को बढ़ावा देने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है. ये समूह निम्नलिखित तरीकों से इन क़वायदों को अंजाम दे सकता है:
- वैश्विक स्थिति की समीक्षा करने और राष्ट्रीय और क्षेत्रीय रणनीतियों, नीतियों और चिकित्सा की पारंपरिक प्रणालियों के विकास को सुविधाजनक बनाने के लिए G20 को एक समिति का निर्माण करना चाहिए. ये समिति अपने सदस्य देशों के लिए एकीकृत पेशेवर मानक भी निर्धारित कर सकती है, जो आयुर्वेद के सुरक्षित और प्रभावी अभ्यास को बढ़ावा देने का काम करेगी. इसे आयुर्वेद चिकित्सकों के प्रमाणीकरण (सर्टिफिकेशन) और आयुर्वेद शिक्षा कार्यक्रमों और संस्थानों की मानकीकृत मान्यता के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक भी स्थापित करने चाहिए.
- G20 को सदस्य देशों में वैश्विक स्वास्थ्य के प्रमुख स्टेकहोल्डर्स को समन्वित और निर्देशित करना चाहिए. आयुर्वेद जैसी पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों के ज़रिए समग्र जीवन शैली को बढ़ावा देने के लिए मानदंड और मानक निर्धारित करने को लेकर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाना चाहिए.
- परंपरागत, पूरक और वैकल्पिक स्वास्थ्य सेवा पर राष्ट्रीय नीतियों और विनियमों को तैयार करने में इच्छुक सदस्य राष्ट्रों के प्रयासों को G20 सुविधाजनक बना सकता है. साथ ही ये समूह सदस्य देशों के बीच नियामक नीतियों पर ज्ञान के आदान-प्रदान और सहभागिता को भी बढ़ावा दे सकता है. अनिवार्य रूप से, इन बाज़ारों में आयुर्वेदिक फार्मास्यूटिकल्स के प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिए G20 को अपने सदस्य देशों में नियामक प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के प्रयासों को प्रोत्साहित करना चाहिए.
- G20 का मंच, कारोबार से ग्राहक तक बिक्री और वितरण के मार्गों को बढ़ावा देकर छोटे विनिर्माताओं की क्षमता निर्माण को सहारा दे सकता है. इन मार्गों में खुदरा स्टोरों को सेवा देने वाली थोक वितरण कंपनियां, चिकित्सक, उपभोक्ताओं को सेवा देने वाली मेल ऑर्डर कंपनियां, ऑनलाइन ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स, स्वास्थ्य सेवा स्टोर्स, क्लीनिक, डे-केयर सेंटर और स्पा शामिल होंगे.
- G20 को अपने सदस्य देशों की सरकारों को उद्योग संघों के साथ मिलकर काम करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. इससे डेटा में अंतराल की पहचान हो सकेगी और निजी क्षेत्र की ज़रूरतों और आवश्यकताओं को समझा जा सकेगा. भविष्य की मांग को बनाए रखने के लिए कच्चे माल और मध्यवर्ती उत्पादों पर डेटा की आवश्यकता होगी, और डेटा से सरकारों को नीतिगत स्तर पर जागरूकतापूर्ण निर्णय लेने में मदद मिलेगी.
- उत्पाद की गुणवत्ता और प्रभाव सुनिश्चित करने, दिशानिर्देशों और सुरक्षा मानकों का अनुपालन करने और आयुर्वेदिक अभ्यासों से संबंधित सूचना के आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए G20 को अपने सदस्य देशों को विशेषज्ञ और तकनीकी सहायता मुहैया करनी चाहिए. इस तरह एक निगरानी तंत्र का निर्माण किया जा सकेगा.
- G20 समूह, अन्य प्रमुख स्टेकहोल्डर्स के सहयोग से मेडिकल टूरिज़्म सर्किट को बढ़ावा देने के लिए अपने सदस्य देशों के बीच साझेदारी को सुविधाजनक बना सकता है.
- क्लीनिकल डेटा के विश्लेषण के लिए G20 को अपने सदस्य देशों को टेक्नोलॉजी (जैसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग) में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. साथ ही अधिक से अधिक ग्राहकों और उपभोक्ताओं तक पहुंच बनाने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों का उपयोग करने पर भी ज़ोर दिया जाना चाहिए.
एट्रिब्यूशन: अनिश्री सुरेश और धर्मराजन धनुराज, “प्रमोटिंग आयुर्वेदा एज़ ए पाथवे टू होलिस्टिक वेल-बींग,” T20 पॉलिसी ब्रीफ, जून 2023.
a आयुष (AYUSH) आयुर्वेद, योग, प्राकृतिक चिकित्सा (नेचुरोपैथी), यूनानी, सिद्ध, और होमियोपैथी का संक्षिप्त रूप है.
[i] Avvinish Narine, Fatemeh Moazzami Peiro, and Gopesh Mangal, “Globalization of Ayurveda”, International Ayurvedic Medical Journal, 9 (10), 2021.
[ii] Narine, Peiro, and Mangal, “Globalization of Ayurveda”
[iii] Namrata Pathak and Sanjna Agarwal, Ayush Exports: Regulatory Opportunities and Challenges in Key Markets, (Forum on Indian Traditional Medicine-Research and Information System for Developing Countries, 2023).
[iv] Ayush Exports: Regulatory Opportunities and Challenges in Key Markets
[v] Export value of Ayush and herbal products from India from FY 2015 to FY 2023, Statista, 2023.
[vi] Confederation of Indian Industry, Ayurveda Industry- Market Size, Strength and Way Forward, 2018, CII.
[vii] Ayurveda Industry- Market Size, Strength and Way Forward
[viii] Ayurveda Industry- Market Size, Strength and Way Forward
[ix] Suhayl Abidi, “Ayurveda: A US$ 10 billion export opportunity,” Trade Promotion Council of India, March 24, 2023.
[x] Ayush Exports: Regulatory Opportunities and Challenges in Key Markets
[xi] Ayush Exports: Regulatory Opportunities and Challenges in Key Markets
[xii] Mathias Helble and Ben Shepherd, Win-Win: How International Trade Can Help Meet the Sustainable Development Goals (Tokyo: Asian Development Bank Institute, 2017).
[xiii] G20 2020, G20 Riyadh Summit Leaders’ Declaration.
[xiv] G20 2017, “G20 Berlin Health Ministers’ Meeting Declaration”, G20, 2017.
[xv] G20 2023, “1st G20 Health Working Group Meeting to Commence from 18-20 January at Thiruvananthapuram, Kerala”, G20, January 18, 2023.
[xvi] Tobias Esch, Gregory L. Fricchione, and George. B. Stefano, “The therapeutic use of the relaxation response in stress-related diseases“, Medical Science Monitor: International Medical Journal of Experimental and Clinical Research 14, no. 2, (March 2003).
[xvii] Priya Vrat Sharma, Charaka Samhita Chaukhamba Sanskrit Pratishthan Vol I, (Varanasi: Chaukambha Orientalia, 1983).
[xviii] World Health Organization, “International Classification of Diseases (ICD) 11 For Mortality and Morbidity Statistics”, World Health Organization, 2023.
[xix] UNCTAD, “Implications of COVID-19 for Biodiversity-based Products and Services, including BioTrade”, United Nations Conference on Trade and Development, Geneva, 2022.
[xx] Ayush Exports: Regulatory Opportunities and Challenges in Key Markets
[xxi] C. Raja Mohan, “Modi’s Diplomacy: Yoga, Democracy and India’s Soft Power,” Indian Express, December 15, 2014.
[xxii] “Modi’s Diplomacy: Yoga, Democracy and India’s Soft Power”
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