आने वाले समय में इस महामारी के फैलने की रफ़्तार स्थिर होने से पहले इससे मरने वालों की संख्या में इज़ाफ़ा होने का डर है.
एक जून से देश में लॉकडाउन में रियायतें देने या अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद से कोविड-19 के मरीज़ों की संख्या बहुत तेज़ी से बढ़ रही है. इसका मतलब है कि केंद्र और राज्यों की सरकारों ने अनचाहे में ही देश की जनता में इस महामारी के प्रति हर्ड इम्युनिटी विकसित करने के दरवाज़े खोल दिए हैं. देश में क़रीब ढाई महीने तककड़े लॉकडाउन या सख़्त कर्फ्यू जैसे हालात रहे थे. इसे, नए कोरोना वायरस का प्रकोप रोकने के लिए लगाया गया सबसे सख़्त लॉकडाउन कहा गया था, जिसे 24 मार्च से चार चरणों में लागू किया गया था. इसके बाद एक जून 2020 से गृह मंत्रालय ने लॉकडाउन का पांचवां चरण शुरू करने का एलान किया था. लेकिन, असल में ये अनलॉक-1 की प्रक्रिया लागू करने की शुरुआत थी. उसी दिन, कोविड-19 से सबसे बुरी तरह प्रभावित महाराष्ट्र ने ‘मिशन बिगन अगेन’ यानी दोबारा शुरुआत करने का अभियान आरंभ करते हुए लॉकडाउन में भारी रियायतें देने की घोषणा की थी. केवल वायरस से सबसे बुरी तरह प्रभावित कंटेनमेंट ज़ोन को इस अभियान से अलग रखा गया था.
भारत की विशाल आबादी को देखते हुए भारत ने न केवल कोरोना वायरस के विस्फोटक प्रकोप को रोकने में सफलता हासिल की है, बल्कि इस महामारी के कारण केस फैटेलिटी रेट (CFR) को भी सीमित रखने में कामयाब रहा है. बाक़ी दुनिया के मुक़ाबले भारत में इस महामारी से मृत्यु दर काफ़ी कम रही है.
शुरु से ही लॉकडाउन लगाने और महामारी रोकने के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान छेड़ने, जैसे कि सोशल डिस्टेंसिंग और निजी साफ़ सफ़ाई के प्रति लोगों को सचेत करने के कारण भारत ने कोरोना वायरस के संक्रमण में विस्फोट की स्थिति से ख़ुद को बचा लिया. जबकि भारत में नए कोरोना वायरस के संक्रमण का पहला मामला जनवरी में ही सामने आया था. भारत की विशाल आबादी को देखते हुए भारत ने न केवल कोरोना वायरस के विस्फोटक प्रकोप को रोकने में सफलता हासिल की है, बल्कि इस महामारी के कारण केस फैटेलिटी रेट (CFR) को भी सीमित रखने में कामयाब रहा है. बाक़ी दुनिया के मुक़ाबले भारत में इस महामारी से मृत्यु दर काफ़ी कम रही है.
16 जून को देश में नए कोरोना वायरस के 3 लाख 53 हज़ार, 853 मामलों की पुष्टि हो चुकी थी. उस समय तक भारत में इस महामारी से केवल 12 हज़ार लोगों की मौत हुई थी. इसका मतलब उस समय तक भारत में कोविड-19 से मृत्यु दर (CFR) केवल 3.4 प्रतिशत था. जो अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर आता था. अमेरिका में प्रति दस हज़ार संक्रमित लोगों में से मरने वालों का प्रतिशत 2.98 ही था. हालांकि, दुनियाभर में कोविड-19 से जुड़े जो आंकड़े जुटाए गए हैं, और भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अपनेआंकड़े कहते हैं किज़्यादातर देशों ने कोविड-19 से दस हज़ार लोगों की जान जाने के बाद अपने यहां साप्ताहिक आंकड़ों में संक्रमण और मृत्यु दर को क़ाबू पाने में सफलता प्राप्त कर ली है. लेकिन, भारत में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोविड-19 के संक्रमण की दर में तेज़ी से वृद्धि होती देखी गई. इसके अलावा, जिस तरह से अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होते ही भारत के तमाम शहरों में ज़िंदगी ने दोबारा पहले जैसी रफ़्तार पकड़नी शुरू कर दी, उससे मरीज़ों की संख्या में और वृद्धि होने की आशंका है.
भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के अपने आंकड़े कहते हैं कि ज़्यादातर देशों ने कोविड-19 से दस हज़ार लोगों की जान जाने के बाद अपने यहां साप्ताहिक आंकड़ों में संक्रमण और मृत्यु दर को क़ाबू पाने में सफलता प्राप्त कर ली है. लेकिन, भारत में अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद कोविड-19 के संक्रमण की दर में तेज़ी से वृद्धि होती देखी गई.
भारत में ये महामारी किस समय अपने शीर्ष पर पहुंचेगी, इसे लेकर लगातार विरोधाभासी बयान आते रहे हैं. इन बयानों के करण देश की स्वास्थ्य सेवा की क्षमता और इस महामारी से निपटने की तैयारी को लेकर भी संशय बना हुआ है. बड़ा सवाल यही पैदा हो गया है कि क्या हमारे देश की स्वास्थ्य व्यवस्था, आने वाले महीनों में कोरोना वायरस के संक्रमण के विस्फोट की स्थिति से निपटने के लिए तैयार है. मिसाल के तौर पर मशहूर मेडिकल संस्थानों के डॉक्टरों ने पूर्वानुमान लगाया है कि भारत में कोविड-19 का संक्रमण अगस्त तक शीर्ष पर पहुंच जाएगा. वहीं, इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च (ICMR) के एक अध्ययन में ये अनुमान लगाया गया है कि भारत में कोरोना वायरस का संक्रमण नवंबर के मध्य तक जाकर अपने उरूज पर होगा. आईसीएमआर की इस स्टडी में दावा किया गया था कि जब कोविड-19 की महामारी अपने शिखर पर होगी, तो भारत में आईसोलेशन बेड, आईसीयू और वेंटिलेटर्स की भारी कमी होगी. हालांकि, जल्द ही आईसीएमआर ने ख़ुद को इस स्टडी से अलग कर लिया था. एकट्वीटमें ICMR ने इस अध्ययन को, ‘भटकाने वाला’ कहा. और ये दावा किया कि इस पेपर की इसके समकक्ष के विशेषज्ञों द्वारा समीक्षा नहीं की गई थी. इसे ख़ुद आईसीएमआर ने नहीं कराया था और ये स्टडी ICMR के आधिकारिक रुख़ की नुमाइंदगी नहीं करता.
इन आंकड़ों में लॉकडाउन के दौरान जो सामान्य ट्रेंड दिख रहा है, उसके मुताबिक़, संक्रमण के मामलों की तादाद में फेज़ चार से लेकर अगले 29 दिनों तक कमी आई थी. लेकिन, लॉकडाउन के पांचवें चरण की शुरुआत के बाद से इसमें काफ़ी इज़ाफ़ा होता देखा जा रहा है. 18 मई से 16 जून तक संक्रमण के मामले 253 प्रतिशत तक बढ़ गए. वहीं, मौत के आंकड़े में 287 फ़ीसद की वृद्धि देखी गई.
इसके अलावा, नए कोरोना वायरस से सबसे अधिक प्रभावित देश के दस राज्यों में संक्रमण के मामलों में एक जून से 17 जून के दौरान, 112 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज गई. 31 जुलाई तक भारत में कोरोना वायरस के संक्रमण के 16 लाख 69 हज़ार केस की पुष्टि हो चुकी थी. इनमें से क़रीब 90 प्रतिशत केस सबसे बुरी तरह प्रभावित राज्यों से आए थे. 31 जुलाई तक कोविड-19 से हुई 35 हज़ार से अधिक मौतों में 96 फ़ीसद, दस सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में हुई थीं.
कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण और लॉकडाउन के कारण ठप होती अर्थव्यवस्था के कारण, सरकार के सामने दोहरी चुनौती थी. ज़िंदगी बचाई जाए या रोज़ी रोज़गार. इस मुश्किल सवाल से दो-चार सरकार ने संक्रमण के तेज़ी से फैलने के संकेत मिलने के बावजूद, लॉकडाउन से ठप पड़ी अर्थव्यवस्था को रफ़्तार देने का फ़ैसला किया. देश के राजनीतिक नेतृत्व ने भी ये उम्मीद जताई है कि धीरे-धीरे लॉकडाउन से रियायत देने और हालात सामान्य बनाने की कोशिशों के चलते, अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत दिखने लगे हैं. हालांकि, लॉकडाउन के शुरुआती चरण में देश में मांग बढ़ने और खपत में वृद्धि होने के संकेत मिल रहे हैं. लेकिन, अगले कुछ महीनों तक ये बढ़ोत्तरी जारी रहेगी या नहीं, ये कह पाना मुश्किल है. ख़ासतौर से जब कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों में वृद्धि हुई तो क्या होगा. इस सवाल का फिलहाल हमारे पास कोई ठोस जवाब नहीं है. हमें इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए मॉनसून के सीज़न में फैलने वाली बीमारियों का हिसाब भी जोड़ना होगा. इन सीज़नल बीमारियों के चलते भी अगले तीन महीनों में ग़रीब तबक़े के बीच मरने वालों की तादाद में इज़ाफ़ा होगा.
जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ द्वारा प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि, ‘जब किसी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा किसी महामारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है, तो इससे अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा मिलती है. इसे हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है
इन हालात में देश ग़ैरइरादतन तरीक़े से उस दिशा में बढ़ रहा है, जहां पर भारत की आबादी ख़ासतौर से ग़रीब और कमज़ोर तबक़े के लोगों में कोरोना वायरस के प्रति हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाने की उम्मीद की जा रही है.जॉन हॉपकिंस ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ़ पब्लिक हेल्थ द्वारा प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि, ‘जब किसी देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा किसी महामारी से लड़ने की क्षमता विकसित कर लेता है, तो इससे अप्रत्यक्ष रूप से सुरक्षा मिलती है. इसे हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है. इस हर्ड इम्युनिटी से उन लोगों को भी सुरक्षा मिलती है, जो उस रोग से लड़ने की क्षमता विकसित नहीं कर पाए हैं.’ इस लेख में कहा गया कि किसी भी देश की जनता में हर्ड इम्युनिटी विकसित होने के लिए 70 से 90 प्रतिशत आबादी को पहले वायरस से संक्रमित होना होगा, तभी आबादी के एक बड़े हिस्से में नए कोरोना वायरस के प्रति हर्ड इम्युनिटी का विकास होगा. इस लेख में खसरा, मम्प्स, पोलियो, और चेचक जैसी बीमारियों का हवाला दिया गया है. जो कभी बहुत आम हुआ करती थीं. लेकिन, अब अमेरिका में ये बीमारियां नहीं के बराबर पायी जाती हैं. क्योंकि इन बीमारियों के टीके की वजह से लोगों में इनसे लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी है. अभी चूंकि, कोविड-19 को हराने वाली वैक्सीन के अगले कुछ महीनों तक भारत को मिलने की संभावना कम ही है. तो ऐसे में भारत द्वारा लॉकडाउन में रियायत और संक्रमण को सीमित रखने के बीच संतुलन बनाने का प्रयास किया जा रहा है. ताकि अर्थव्यवस्था को बंदी से लगे झटकों से उबारा जा सके. सरकार की इस नीति में जोखिम तो है. लेकिन, मौजूदा हालात में सरकार ये रिस्क लेने के लिए तैयार है.
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.
Dhaval is Senior Fellow and Vice President at Observer Research Foundation, Mumbai. His spectrum of work covers diverse topics ranging from urban renewal to international ...