Author : Shivam Shekhawat

Published on Nov 10, 2023 Updated 28 Days ago

चीन के साथ अपने संबंधों के अन्य पहलुओं में प्रगति करने के बावजूद चीन के साथ मुख्य चिंताओं को उठाने की नेपाल की अक्षमता दीर्घकाल में महंगी साबित हो सकती है. 

प्रचंड का बीजिंग दौरा: संतुलन साधने की मुश्किल क़वायद?

हाल ही में जारी एक रिपोर्ट में बोली प्रक्रिया से लेकर निर्माण तक कई गड़बड़ियों के ख़ुलासे से नेपाल का पोखरा अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा एक बार फिर सुर्ख़ियों में आ गया. रिपोर्ट में इसे नेपाल के गले की फांस माना गया. हालांकि नेपाल सरकार की ओर से कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं आई है, लेकिन ये रिपोर्ट प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ की सितंबर में संपन्न चीन यात्रा की पृष्ठभूमि में आई है. अपनी यात्रा के बाद प्रधानमंत्री ने इसे दोनों देशों के बीच ‘विकास और समृद्धि के लिए टिकाऊ दोस्ती की विशेषता वाले सहयोग की रणनीतिक साझेदारी’ को मज़बूत करने में कामयाब माना. यात्रा के लिए प्रधानमंत्री के रवाना होने से पहले नेपाल ने चीन के साथ उठाए जाने वाले कुछ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को रेखांकित किया था. इनमें चीनी समर्थन से फंड की जाने वाली विशाल परियोजनाओं के लिए वित्तीय तौर-तरीक़े; बिजली व्यापार पर समझौता; चीन के साथ नेपाल का व्यापार घाटा और बीजिंग द्वारा चीन का नया नक़्शा जारी किए जाने के बाद नेपाल की संप्रभुता से जुड़ी चिंताएं शामिल थीं. हालांकि इनमें से किसी भी मसले को संयुक्त बयान में जगह नहीं मिल पाई.  

संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के बाद नेपाली प्रधानमंत्री ने सीधे चीन की उड़ान भरी, जहां हांगझू में उन्होंने चीनी राष्ट्रपति से मुलाक़ात की और ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग से शिष्टमंडल स्तर की वार्ता की.

बढ़ी हुई कनेक्टिविटी की तलाश 

संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के बाद नेपाली प्रधानमंत्री ने सीधे चीन की उड़ान भरी, जहां हांगझू में उन्होंने चीनी राष्ट्रपति से मुलाक़ात की और ग्रेट हॉल ऑफ द पीपल में चीनी प्रधानमंत्री ली कियांग से शिष्टमंडल स्तर की वार्ता की. हफ़्ते भर चली यात्रा (23-30 सितंबर) में 12 समझौतों पर हस्ताक्षर हुए जिनमें सात समझौता ज्ञापन (MoUs) शामिल हैं. संयुक्त विज्ञप्ति के मुताबिक यात्रा में प्राथमिकता के तीन क्षेत्रों- कनेक्टिविटी, सुरक्षा और संप्रभुता पर ज़ोर दिया गया. कनेक्टिविटी पर, दोनों देशों ने बंदरगाहों, सड़कों, रेलवे, हवाई मार्गों और ग्रिड में कनेक्टिविटी मज़बूत करने की इच्छा दोहराई. दोनों पक्षों ने ट्रांस-हिमालयन मल्टी-डायमेंशनल कनेक्टिविटी नेटवर्क पर काम बहाल करने पर सहमति जताई और नेपाल ने लिज़ी-नेचुंग बंदरगाह और झांगमु-खासा बंदरगाह खोले जाने का स्वागत किया. चीनी पक्ष सयाफ्रुबेसी-रसुवागढ़ी राजमार्ग की मरम्मत के लिए भी सहमत हुआ और जिलांग/केरुंग से रसुवागढ़ी/चिलिमे तक 220 केवी क्रॉस-बॉर्डर पावर ट्रांसमिशन लाइन लॉन्च करने को मंज़ूरी दे दी. चीन ने कोविड लॉकडाउन के वक़्त से बंद सीमा बिंदुओं को दोबारा खोलने का भी वचन दिया. दोनों देशों ने नेपाल-चीन ट्रांज़िट परिवहन समझौते के तहत चीन के तियानजिन बंदरगाह और झांगमु तोतापानी सीमा बिंदु के रास्ते से वियतनाम से नेपाल तक हल्दी की पहली खेप पहुंचने का स्वागत किया.       

पिछले कुछ महीनों में घटित चंद घटनाओं और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) से बाहर की परियोजनाओं को चीन द्वारा एकतरफ़ा रूप से अपने दायरे में शामिल करने के प्रयासों के चलते ये भी उम्मीद थी कि नेपाल बुनियादी ढांचे की विशाल परियोजनाओं के इर्द-गिर्द वित्तीय तौर-तरीक़ों पर अपना रुख़ साफ़ करेगा. हालांकि, संयुक्त बयान में सिर्फ़ “BRI क्रियान्वयन योजना के संदर्भ को समय से पहले पूरा करने” से जुड़े समझौते का उल्लेख किया गया. दोनों पक्षों ने डिजिटल अर्थव्यवस्था, हरित और निम्न कार्बन विकास और कृषि पर समझौता ज्ञापनों पर भी दस्तख़त किए. साथ ही व्यापार घाटे के मसले के निपटारे के लिए चीन में नेपाल से और ज़्यादा निर्यात की सुविधा की ज़रूरत पर भी चर्चा की. एक ओर चीन ने तक़रीबन 98 फ़ीसदी नेपाली निर्यात को बिना किसी शुल्क के चीन में आने की छूट दी है, लेकिन इनमें से ज़्यादातर सरहद पर ही सड़ जाते हैं. दोनों के बीच व्यापार घाटा पिछले कुछ अर्से से नेपाल के लिए चिंता का कारण रहा है. चीन ने नेपाली रेलवे पेशेवरों के लिए प्रशिक्षण, आपदा जोख़िम कम करने, और चीनी भाषा के ज़्यादा केंद्र खोलकर भाषा प्रशिक्षण के प्रावधान के साथ क्षमता निर्माण में सहायता का प्रस्ताव भी किया है. उसने द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने में कंफ्यूशियस संस्थानों और चीनी सांस्कृतिक केंद्रों की अहमियत को भी रेखांकित किया है.

अस्पष्ट सुरक्षा सहयोग: चीन को फ़ायदा? 

वैसे तो गुटनिरपेक्ष विदेश नीति पर अपनी प्रतिबद्धता को लेकर सुरक्षा के प्रश्न पर नेपाल ने वैश्विक सुरक्षा पहल पर हस्ताक्षर करने से मना कर दिया, लेकिन वो वैश्विक विकास पहल के मित्र समूह में शामिल हो गया है. बहरहाल, सुरक्षा को लेकर कोई भी संबंध बनाने से स्पष्ट इनकार के बावजूद संयुक्त बयान में नेपाल-चीन सीमा के संयुक्त निरीक्षण और दोनों पक्षों की क़ानून लागू कराने वाली एजेंसियों के बीच सहयोग का ज़िक्र किया गया, जिससे कुछ हद तक सुरक्षा सहयोग के संकेत मिलते हैं. दोनों देश आपराधिक मामलों में आपसी क़ानूनी सहायता के लिए चीन-नेपाल प्रत्यर्पण संधि के अनुमोदन को तेज़ करने पर भी रज़ामंद हुए हैं. प्रधानमंत्री प्रचंड ने चीनी प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं के दौरान “राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा सामने रखी गई अहम परिकल्पनाओं और पहलों” के प्रति नेपाल का समर्थन जताया. ये अस्पष्टता चीनी अगुवाई वाली किसी भी सुरक्षा पहल से औपचारिक रूप से जुड़ने में नेपाल के संकोच का प्रदर्शन करती है, लेकिन मौखिक समर्थन और अप्रत्यक्ष सहयोग के साथ ऐसे सुरक्षा पहल को पूरी तरह से ख़ारिज करने को भी संतुलित करती है.

प्रधानमंत्री प्रचंड ने चीनी प्रधानमंत्री के साथ द्विपक्षीय वार्ताओं के दौरान “राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा सामने रखी गई अहम परिकल्पनाओं और पहलों” के प्रति नेपाल का समर्थन जताया. ये अस्पष्टता चीनी अगुवाई वाली किसी भी सुरक्षा पहल से औपचारिक रूप से जुड़ने में नेपाल के संकोच का प्रदर्शन करती है

कुछ महीनों पहले चीन ने एक नया नक़्शा जारी किया था, जिसमें नेपाल द्वारा 2020 में जारी मानक नक़्शे का इस्तेमाल नहीं किया गया था. इससे नेपाल में हंगामा मच गया और विपक्ष के साथ-साथ जनता ये चाहती थी कि प्रधानमंत्री प्रचंड वार्ताओं के दौरान चीनी पक्ष के सामने ये मुद्दा उठाएं. बयान में ‘एक चीन सिद्धांत’ के प्रति नेपाल की प्रतिबद्धता का ज़िक्र किया गया. ये उस ‘नीति’ के विपरीत है जो इससे पहले मानक अभ्यास था. हालांकि बयान में तिब्बत के प्रति अपने समर्थन को दोहराने के साथ-साथ ताइवान के नाम को भी शामिल किया गया है. प्रचंड ने तिब्बत में कुछ चीनी अधिकारियों से मुलाक़ात भी की. इस संदर्भ में, चीन की संप्रभुता के बारे में इतना खुला होने के बावजूद अपनी संप्रभुता से जुड़ी चिंताओं के बारे में चीन से पारस्परिक समर्थन हासिल कर पाने में नेपाल की नाकामयाबी स्पष्ट है. भले ही प्रधानमंत्री ने चीन के साथ इस मसले को उठाने के संकेत दिए थे लेकिन ना तो साझा विज्ञप्ति और ना ही विदेश मंत्रालय, प्रधानमंत्री के निजी सचिवालय और चीन में नेपाली दूतावास द्वारा जारी किसी बयान में इसका उल्लेख किया गया.  

कामयाबी या मौक़ा गंवाया?

प्रचंड के नेतृत्व वाली सरकार ने यात्रा को ‘आर्थिक और कूटनीतिक कामयाबी’ क़रार दिया है, हालांकि चिंताएं बरक़रार हैं. सर्वप्रथम, भले ही दोनों पक्षों ने पोखरा में एक हवाई अड्डा खुलने का स्वागत किया, लेकिन इस हवाई अड्डे पर कोई यातायात नहीं हुआ है. पिछले कुछ महीनों में वहां सिर्फ़ आठ उड़ानों की लैंडिंग हुई है. इसमें चीनी सरकार द्वारा प्रायोजित उड़ान थी जो वहां के एथलीटों को सद्भावना ड्रैगन बोट रेस के लिए नेपाल लेकर आई थी. जून में प्रचंड की नई दिल्ली यात्रा के दौरान नेपाल को भारत की भी कोई निश्चित प्रतिक्रिया हासिल नहीं हुई. भारत ने नेपाल को ये नहीं बताया है कि वो इस हवाई अड्डे से उड़ानों के लिए अपने हवाई मार्ग खोलने पर विचार करेगा या नहीं. अब, हवाई अड्डे पर काम कर रही चीनी कंपनी द्वारा परियोजना पर नेपाली निगरानी की अनदेखी करने और पारिस्थितिक (इकोलॉजिकल) मूल्यांकनों को नज़रअंदाज़ करने के हालिया आरोपों ने इन चिंताओं को और गंभीर बना दिया है. इससे पोखरा हवाई अड्डे द्वारा अंतरराष्ट्रीय यातायात हासिल करने की संभावनाएं और कम हो गई हैं. प्रधानमंत्री की यात्रा से क़रीब एक महीना पहले ऐसी ख़बरें थीं कि लगातार हो रहे घाटे के चलते नेपाली सरकार ने हवाई अड्डे और नेपाली राष्ट्रीय विमान सेवा द्वारा संचालित चीन-निर्मित पांच विमानों के लिए तक़रीबन 21.5 करोड़ अमेरिकी डॉलर के ऋण को माफ़ करने का औपचारिक अनुरोध किया था. 

प्रधानमंत्री ने ये भी कहा था कि नेपाल BRI के तहत एक विशाल परियोजना के लिए चीनी अनुदान मांगेगा, लेकिन बयान या प्रेस वार्ताओं में इसका कोई ज़िक्र नहीं था. हालांकि चीनी राजदूत ने ऋण के जाल से जुड़े दावों को ये कहकर ख़ारिज कर दिया कि ये नेपाल के साथ रिश्तों को ख़तरे में डालने के लिए जानबूझकर रची गई चाल है, लेकिन कुछ सरकारी अधिकारी चीनी अनुदानों की ग़ैर-मौजूदगी में अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं (जैसे नेपाल-चीन रेल मार्ग) के आगे बढ़ने को लेकर आश्वस्त नहीं थे. प्रधानमंत्री ने उम्मीद जताई कि चीनी पक्ष कुछ पहलुओं से अपनी निवेश नीति की समीक्षा कर सकता है. साथ ही उन्होंने BRI परियोजनाओं के क्रियान्वयन में देरी के लिए कोरोना महामारी और अपने देश की बुनियादी सीमाओं को ज़िम्मेदार ठहराया. ऊंची ब्याज़ दरों पर चीनी ऋणों का स्पष्ट भ्रमजाल और BRI से बाहर की परियोजनाओं को इसके दायरे में शामिल कर लेने की चीन की एकतरफ़ा कार्रवाइयां, असहज करने वाले किसी भी मसले को सार्वजनिक रूप से उठाने को लेकर प्रचंड की अनिच्छा का संकेत करती हैं. 8 अक्टूबर को भले ही प्रधानमंत्री ने ये कहा कि BRI का क्रियान्वयन प्राथमिकता के आधार पर आगे बढ़ेगा, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के सचिव ने चीन में BRI के तीसरे फोरम में BRI के तहत किसी भी अहम समझौते पर हस्ताक्षर की संभावना से इनकार कर दिया.       

ऊंची ब्याज़ दरों पर चीनी ऋणों का स्पष्ट भ्रमजाल और BRI से बाहर की परियोजनाओं को इसके दायरे में शामिल कर लेने की चीन की एकतरफ़ा कार्रवाइयां, असहज करने वाले किसी भी मसले को सार्वजनिक रूप से उठाने को लेकर प्रचंड की अनिच्छा का संकेत करती हैं.

कई लोग अनुदान मसले को उठाने में दहल की नाकामी को ‘गंवाए हुए मौक़े’ के तौर पर देखते हैं. हालांकि ये समझना ज़रूरी है कि क्या चीन के साथ अपने रिश्तों को ख़तरे में डाले बग़ैर नेपाल अपनी बात मनवा सकता है. फंडिंग के तौर-तरीक़ों पर कोई अंतिम निर्णय हुए बिना जिलॉन्ग/केरुंग-काठमांडू क्रॉस-बॉर्डर रेलवे की व्यवहार्यता अध्ययन को दोबारा चालू करने से इस परियोजना के भी गले की फांस बन जाने का ख़तरा हो गया है. नेपाल में चीनी परियोजनाएं पर्यावरणीय नियमों के उल्लंघन के चलते भी हाल में जांच के दायरे में रही हैं. टिनाऊ रूरल म्यूनिसिपैलिटी में स्थानीय लोगों ने एक क्रशर प्लांट के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन किया. दरअसल ये संयंत्र चालू होने से पहले प्रारंभिक पर्यावरणीय जांच-पड़ताल (IEE) और पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) से नहीं गुज़रा था.  

एक कठिन संतुलनकारी क़वायद

नेपाल हमेशा इस बात पर ज़ोर देता है कि भारत और चीन के साथ उसके संबंध एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं. बहरहाल, जैसे-जैसे अमेरिका और चीन के बीच दरार बढ़ रही है और चीन, नेपाल में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के प्रयास कर रहा है, नेपाल के लिए अपने रिश्तों को संतुलित करना और अमेरिका और चीन के साथ-साथ चीन और भारत के बीच आगे मतभेदों की आशंकाओं से अपना बचाव करना अनिवार्य हो गया है. मिलेनियम चैलेंज कॉरपोरेशन (MCG) परियोजना के कॉम्पैक्ट अनुदान पर हस्ताक्षर के बाद नेपाल में अपना प्रभाव बढ़ाने की अमेरिकी क़वायदों के प्रति चीन और ज़्यादा चौकन्ना हो गया है. प्रचंड इस यात्रा का उपयोग चीन को ये समझाने के अवसर के रूप में करना चाहते थे कि MCC का कोई सुरक्षा या रणनीतिक विचार नहीं है. चीन की चिंताओं को शांत करने के लिए नेपाल ने चीन-विरोधी क़वायद के रूप में देखे जाने वाले स्टेट पार्टनरशिप प्रोग्राम से बाहर रहने का विकल्प चुना है. चीन के लिए, भारत के साथ उसके रिश्तों की तुलना में तिब्बत मसले पर नेपाल का सहयोग भी अहम है.   

भारत के लिए, नेपाली प्रधानमंत्री की हाल की नई दिल्ली यात्रा के बाद पैदा सकारात्मक गतिशीलता और दोनों पड़ोसियों के बीच ‘पारस्परिक जुड़ावों’ पर ध्यान केंद्रित करने से निकट भविष्य में रिश्ते आगे बढ़ेंगे. हालांकि जैसा इस यात्रा से संकेत मिले हैं, व्यापार घाटे और ऋणों को अनुदानों में तब्दील करने के बारे में नेपाल की चिंताओं को प्रभावी रूप से निपटाने की चीन की नाकामी, नेपाल को भारत के साथ क़रीबी सहयोग करने के लिए प्रेरित करेगी, लेकिन चीन के साथ पेचीदा मसलों को उठाने की नेपाल की अक्षमता भारत के लिए चिंता का सबब होगी.

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