Published on Oct 18, 2021 Updated 0 Hours ago

अगर हम उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ भारत और उत्तर अफ्रीका के देशों के बीच सहयोग के साझा इतिहास को देखें, तो दोनों के बीच रिश्तों को और मज़बूत बनाने की काफ़ी संभावनाएं नज़र आती हैं.

भारत की विदेश नीति के सांचे में उत्तरी अफ्रीका की स्थिति

वैसे तो मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के क्षेत्र में भारत की विदेश नीति के विविध संसाधन लगे हुए हैं. फिर भी, भारत और उत्तर अफ्रीका के रिश्तों को लेकर हमारी समझ में काफ़ी कमियां बनी हुई हैं. इस लेख में हम उत्तरी अफ्रीका और भारत के रिश्तों की पड़ताल, समाचारों और रिपोर्ट के अलावा, भारत की विदेश नीति के दस्तावेज़ों और भारत के विदेश मंत्रालय के बयानों के विश्लेषण से करेंगे.

आधुनिक युग में उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ भारत के रिश्तों को, भारत द्वारा उपनिवेशवाद से मुक्ति और लोकतांत्रिक सुधारों को समर्थन देने की नज़र से देखा जाता था. ये बातें जवाहरलाल नेहरू की विदेश नीति का मुख्य हिस्सा थीं. भारत का मिस्र के साथ मिलकर गुटनिरपेक्ष आंदोलन की शुरुआत करना, और इस आंदोलन में उत्तरी अफ्रीका के चार अन्य देशों की मौजूदगी इस बात का सबूत है. इससे भी अधिक, भारत ने ट्यूनिशिया और अल्जीरिया में स्वतंत्रता के आंदोलनों का समर्थन किया और उपनिवेशवाद के ख़िलाफ़ नेहरू के विचारों के चलते उन्हें लीबिया में काफ़ी सम्मान दिया जाता था. आज के दौर में भारत के लिए उत्तरी अफ्रीका की अहमियत कई बातों पर आधारित है.

उत्तरी अफ्रीका में भारत के लक्ष्य, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण के दायरे में आते हैं, जो उन्होंने वर्ष 2018 में युगांडा की संसद में दिया था. उस भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने ज़िक्र किया था कि भारत रोज़गार पैदा करने, युवाओं के विकास, कृषि तकनीक उन्नत बनाने और जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे मुद्दों से निपटने में अफ्रीका के साथ सहयोग बढ़ाएगा. 

पहली बात तो ये है कि मिस्र, मध्य पूर्व के देशों के बीच संबंधों में अहम भूमिका निभाता है. इससे भारतीय कूटनीति के लिए उत्तरी अफ्रीका पर ध्यान देना अपने आप में काफ़ी लुभावना विचार बन जाता है. इज़राइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) के साथ मिस्र के संबंध उसे मध्य पूर्व में एक अहम साझीदार बना देते हैं, क्योंकि भारत इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी का दायरा बढ़ा रहा है. दूसरी बात ये है कि मोरक्को और अल्जीरिया जैसे देश, अफ्रीका के अन्य हिस्सों तक पहुंच बनाने का भौगोलिक ज़रिया बन गए हैं. ये बात भारत के लिए बहुत अहम हो जाती है क्योंकि वो अफ्रीका के उन देशों तक अपनी पहुंच बढ़ाने की ख़्वाहिश रखता है, जहां फ्रांसीसी भाषा बोली जाती है. भारत के इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए मोरक्को ने ख़ुद को ज़रिया बनाने के रूप में मोटे तौर पर पेश कर दिया है. आख़िर में, उत्तरी अफ्रीका के देश यूरोप के लिए भी अहम हैं. ऐसे में उत्तरी अफ्रीका, भारत के लिए आतंकवाद, अप्रवास और जलवायु परिवर्तन जैसे कई मसलों पर यूरोपीय संघ के साथ सहयोग के भी तमाम मौक़े मुहैया कराता है.

इस हिसाब से उत्तरी अफ्रीका में भारत के लक्ष्य, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण के दायरे में आते हैं, जो उन्होंने वर्ष 2018 में युगांडा की संसद में दिया था. उस भाषण में प्रधानमंत्री मोदी ने ज़िक्र किया था कि भारत रोज़गार पैदा करने, युवाओं के विकास, कृषि तकनीक उन्नत बनाने और जलवायु परिवर्तन और आतंकवाद जैसे मुद्दों से निपटने में अफ्रीका के साथ सहयोग बढ़ाएगा. ख़ास तौर से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्य की अपनी दावेदारी के लिए भारत, उत्तरी अफ्रीकी देशों का समर्थन जुटाना चाहता है.

साझेदारियां

इस क्षेत्र के साथ भारत के आदानप्रदान को मोटे तौर पर चार बड़े हिस्सों में बांटा जा सकता है. पहला तो है आर्थिक पहलू. उत्तरी अफ्रीका के कई देश भारत के व्यापारिक साझीदार हैं. वो भारत के साथ पेट्रोलियम, मशीनरी, बिजली के उपकरणों, मेडिकल सामान और अन्य कई वस्तुओं का आयात निर्यात करते हैं. इनमें से एक है फॉस्फेट. इसका इस्तेमाल खेती लायक़ ज़मीन को उर्वर बनाने के लिए किया जाता है. ये उत्तरी अफ्रीका से भारत के आयात की प्रमुख वस्तु है. भारत के कुल फ़ॉस्फेट आयात का पचास फ़ीसद अल्जीरिया, ट्यूनिशिया और मोरक्को से आता है. इसकी वजह से कई बार दोनों देशों के बीच व्यापार घाटे की स्थिति भी बन जाती है. कुल मिलाकर कहें तो, वर्ष 2019 के (अलग अलग स्रोतों से जुटाए गए) आंकड़े कहते हैं कि उत्तरी अफ्रीका से भारत का कुल व्यापार लगभग 18 अरब डॉलर सालाना का है. भले ही अन्य देशों, जैसे कि संयुक्त अरब अमीरात (60 अरब डॉलर) के साथ भारत का व्यापार ज़्यादा हो. फिर भी उत्तरी अफ्रीका और भारत के बीच काफ़ी व्यापार होता है.

भारत और उत्तरी अफ्रीका के रिश्तों का दूसरा अहम पहलू, रक्षा और आतंकवाद के ख़िलाफ़ लड़ाई है. उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत के रक्षा संबंधों का सबसे बड़ा हिस्सा मिस्र का है. दो देशों के बीच द्विपक्षीय रक्षा संबंध में मिस्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक है. इसकी बड़ी वजह दोनों देशों के बीच साझा युद्ध अभ्यासों का लंबा इतिहास और भारत द्वारा मिस्र के लिए सैन्य वाहन का निर्माण रही है. वर्ष 2021 में भारत ने भूमध्य सागर में अल्जीरिया के तट के क़रीब नौसैनिक अभ्यास करके, अल्जीरिया के साथ अपने रक्षा संबंधों को भी नई ऊंचाई दी है. ये इस बात का प्रतीक है कि भारत समुद्र क्षेत्र में अपनी ताक़त बढ़ाने में काफ़ी दिलचस्पी ले रहा है. पिछले एक दशक में भारत ने मिस्र और मोरक्को के साथ आतंकवाद निरोधक साझेदारियों को भी मज़बूत बनाया है. इसकी बड़ी वजह ये है कि तीनों ही देश अपने अपने यहां आतंकवाद से जूझ रहे हैं. हालांकि, इस मामले में उत्तरी अफ्रीका के अन्य देशों के साथ भारत का सहयोग नहीं बढ़ता नहीं दिख रहा है.

उत्तरी अफ्रीका के कई देशों को बॉलीवुड से भी काफ़ी लगाव रहा है. इसी वजह से भारत द्वारा इन देशों को दी जाने वाली मदद के अलावा, बॉलीवुड भी भारत की सॉफ्ट पावर का एक बड़ा निर्यात बन चुका है. इसी वजह से अल्जीरिया जैसे देशों ने तो अपने यहां हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता को देखते हुए बॉलीवुड पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है. 

उत्तरी अफ्रीका के साथ भारत के सहयोग का तीसरा अहम आयाम है, मेडिकल, वित्तीय और कृषि क्षेत्र में मदद. भारत लंबे समय से उत्तरी अफ्रीकी देशों को इन क्षेत्रों में मदद से अपनी छवि बेहतर बनाने की कोशिश करता रहा है. जैसे कि 2010 में गद्दाफी सरकार के पतन के बाद भारत ने लीबिया में स्थिरता लाने के लिए 10 लाख डॉलर से ज़्यादा की मदद दी थी. कोविड-19 का टीके बांटने के भारत के वैक्सीन मैत्री अभियान का कुछ हिस्सा उत्तरी अफ्रीकी देशों को भी मिला. लीबिया जैसे देश में भारतीय कामगारों का भी काफ़ी सम्मान होता है, क्योंकि भारतीय मेडिकल के अच्छे पेशेवर कामगार होते हैं. इसके अलावा, भारत ने उत्तरी अफ्रीकी देशों के नागरिकों को पढ़ाई करने के लिए कई वज़ीफ़े भी देता है. उत्तरी अफ्रीकी देशों के छात्र अक्सर पढ़ाई करने के लिए भारत आते हैं, क्योंकि यहां रहना और पढ़ना उन्हें सस्ता पड़ता है.

और आख़िर में उत्तरी अफ्रीका के कई देशों को बॉलीवुड से भी काफ़ी लगाव रहा है. इसी वजह से भारत द्वारा इन देशों को दी जाने वाली मदद के अलावा, बॉलीवुड भी भारत की सॉफ्ट पावर का एक बड़ा निर्यात बन चुका है. इसी वजह से अल्जीरिया जैसे देशों ने तो अपने यहां हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता को देखते हुए बॉलीवुड पर डॉक्यूमेंट्री भी बनाई है. मिस्र और मोरक्को जैसे देशों में शाहरुख़ ख़ान और ऐश्वर्या राय समेत कई कलाकारों के बहुत से फैन रहते हैं. इससे पता चलता है कि इन देशों में भारत के मनोरंजन जगत की धाक है.

इस तरह से, ये बिल्कुल साफ़ है कि भारत ने उत्तरी अफ्रीकी देशों के साथ लंबे समय से अपने रिश्तों को मज़बूत बनाया है, और आज भी वो इन संबंधों को अलग अलग साझेदारियों के ज़रिए मज़बूत बनाने में जुटा हुआ है. हालांकि इसकी रफ़्तार धीमी है.

भविष्य की संभावनाओं को समझने की कोशिश

आगे चलकर, भारत को उत्तरी अफ्रीकी देशों से ऐसे मसलों पर सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए, भारत और पांच उत्तरी अफ्रीकी देशों पर असर डालते हों. मिसाल के तौर पर, भले ही वर्ष 2019 में दुनिया के कुल सैलानियों में भारतीयों की संख्या 2.7 करोड़ रही हो. लेकिन, इनमें से कितने भारतीय घूमने के लिए ट्यूनिशिया और अल्जीरिया गए, इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं थी. जबकि, वर्ष 2017 में 1,25,000 भारतीय मिस्र और 2018 में 20 हज़ार भारतीय पर्यटक घूमने के लिए मोरक्को गए थे. वहीं, घरेलू संघर्ष के चलते किसी भारतीय के लीबिया जाने की संभावना नहीं थी. कुल मिलाकर देखें, तो भारत के कुल सैलानियों में से 0.5 प्रतिशत ही घूमने के लिए उत्तरी अफ्रीकी देशों में गए थे. इन आंकड़ों से साफ़ है कि जैसे ही महामारी का प्रकोप कम होगा, वैसे वैसे भारतीय पर्यटकों के उत्तरी अफ्रीकी देशों में जाने की संभावनाएं बढ़ेंगी.

एक और चुनौती, जिसका सामना भारत और उत्तरी अफ्रीकी देश दोनों ही करेंगे, वो है जलवायु परिवर्तन. ये सभी देश कृषि उत्पादों में कमी, पानी की क़िल्लत, तटीय इलाक़ों से भीतरी क्षेत्रों में आबादी का प्रवास और बढ़ते हुए तापमान की चुनौती झेलेंगे. इन सभी चुनौतियों का आर्थिक गतिविधियों और संपत्ति के निर्माण पर बुरा असर पड़ेगा. ऐसे में ये ज़रूरी हो जाता है कि भारत अपने उत्तरी अफ्रीकी साझीदारों के साथ सहयोग करके स्वच्छ तकनीकों का विकास करे और उन्हें सस्ती दरों पर उपलब्ध कराए. इसके साथ साथ संसाधनों के बेज़ा इस्तेमाल को सीमित करने के लिए उन्हें रिसाइकिल करके दोबारा इस्तेमाल करने को बढ़ावा दे.

उत्तर अफ्रीका के पांच देशों के साथ कारोबार को बढ़ावा देने के लिए, दोनों समूहों को विमान सेवाओं के ज़रिए धीरे-धीरे कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ज़ोर देने के बारे में सोचना चाहिए. 

इसके अलावा, उत्तरी अफ्रीका और भारत के बीच सहयोग का एक और क्षेत्र, आतंकवाद से मुक़ाबला भी है. 2014 के बाद से भारत मोटे तौर पर, कश्मीर से बाहर कोई बड़ा आतंकवादी हमला रोकने में सफल रहा है. हालांकि वो कई क्षेत्रों में सक्रिय उग्रवादी गतिविधियों का सामना कर रहा है. इन चुनौतियों से निपटने के दौरान भारत में सीखे गए सबक़, भौगोलिक और आबादी से जुड़े अंतर से तालमेल बिठाकर, उत्तरी अफ्रीकी देशों पर भी लागू किए जा सकते हैं. वहीं, भारत इस मामले में मोरक्को से भी काफ़ी कुछ सीख सकता है, जिसने काफ़ी कामयाबी से आतंकवादी गतिविधियों को रोकने में सफलता प्राप्त की है. मोरक्को का ये तजुर्बा भारत के आतंकवाद निरोधक/ उग्रवाद निरोधक अभियानों के दौरान काफ़ी काम  सकता है.

और आख़िर में, उत्तर अफ्रीका के पांच देशों के साथ कारोबार को बढ़ावा देने के लिए, दोनों समूहों को विमान सेवाओं के ज़रिए धीरे-धीरे कनेक्टिविटी बढ़ाने पर ज़ोर देने के बारे में सोचना चाहिए. भारत और उत्तरी अफ्रीका के अलग अलग देशों के बीच अगर फ्लाइट खोजें, तो पता चलता है कि भारत से उत्तरी अफ्रीका के किसी भी पांच देश के लिए सीधी उड़ान नहीं है. जो फ्लाइट कहीं और ठहरकर इन देशों तक पहुंचती हैं, वो काफ़ी लंबी होती हैं कई बार तो सफर पूरा करने में 20 घंटे तक का समय लग जाता है या फिर काफ़ी महंगी होती हैं एक तरफ़ के सफर के लिए क़रीब एक हज़ार डॉलर ख़र्च करने पड़ जाते हैं. हो सकता है कि इसकी एक वजह यात्रियों की कम तादाद हो. लेकिन दोनों पक्षों के बीच द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने के साथ साथ आवाजाही के लिए कनेक्टिविटी बढ़ाने पर भी ज़ोर देना होगा, तभी दोनों इलाक़ों के कारोबारी एक दूसरे के यहां आसानी से जा सकेंगे, और ज़ाहिर है इससे कारोबार तो बढ़ेगा ही.

निष्कर्ष

उत्तरी अफ्रीका के देशों के साथ भारत के ऐतिहासिक रिश्ते रहे हैं. फिर भी, संयुक्त अरब अमीरात या सऊदी अरब की तुलना में ये संबंध उतने नज़दीकी नहीं हैं. भारत के सामने इस बात की काफ़ी संभावनाएं हैं कि वो व्यापार, रक्षा और आतंकवाद निरोध के क्षेत्र में उत्तरी अफ्रीका में अपनी मौजूदगी को बढ़ाए. इसके अलावा भारत इस क्षेत्र में रोज़गार पैदा करने, पर्यटन को बढ़ावा देने और जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. इन कोशिशों से ख़ुद भारत को भी बहुत फ़ायदा होगा. लंबी अवधि में भारत की वैश्विक शक्ति बनने की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में उत्तरी अफ्रीका के देश अहम भूमिका निभा सकते हैं. ऐसे में यहां अपनी गतिविधियां बढ़ाना भारत के हित में ही होगा.

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