Author : Shoba Suri

Published on Oct 05, 2023 Updated 0 Hours ago
पोषण माह 2023: उज्जवल भविष्य के लिए भारत को पोषण, शिक्षित और सशक्त बनाना

पोषण माह भारत में एक सालाना आयोजन है जिसका मक़सद पोषण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्वस्थ खान-पान की आदत को प्रोत्साहन देना है. पोषण माह 2023 की थीम थी “सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत.” ये थीम देश के विकास में पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण के बीच महत्वपूर्ण परस्पर क्रिया पर ज़ोर देती है. 

कुपोषण के रूप में भारत एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है. 2019-21 का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 5 कुपोषण के अस्वीकार्य स्तर का इशारा करता है. पांच साल से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग , 19.3 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग (कमज़ोरी), 32.1 प्रतिशत बच्चे कम वज़न और सबसे ज़्यादा 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं.

“सुपोषित भारत” भारत के सार्वजनिक स्वास्थ्य में एक अहम हिस्सा और मानव विकास की आधारशिला है. ये कुपोषण की व्यापक समस्या का समाधान करने और देश के नागरिकों के स्वास्थ्य और कल्याण को बढ़ावा देने में देश की प्रतिबद्धता का प्रतीक है. भौतिक और ज्ञान संबंधी विकास, इम्यून सिस्टम के काम-काज और संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त पोषण आवश्यक है. कुपोषण के रूप में भारत एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना कर रहा है. 2019-21 का राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS) 5 कुपोषण के अस्वीकार्य स्तर का इशारा करता है. पांच साल से कम उम्र के 35.5 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग (विकास रुक जाना), 19.3 प्रतिशत बच्चे वेस्टिंग (कमज़ोरी), 32.1 प्रतिशत बच्चे कम वज़न और सबसे ज़्यादा 67.1 प्रतिशत बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. आंकड़े ये भी दिखाते हैं कि पांच साल से कम उम्र के 50 प्रतिशत से भी कम बच्चे मां के दूध के अलावा समय पर दूसरा आहार पाते हैं और केवल 11.3 प्रतिशत बच्चों को न्यूनतम पर्याप्त आहार मिलता है. भारत सरकार ने कुपोषण को दूर करने के लिए कई तरह के उपायों और कार्यक्रमों को लागू किया है. इनमें से कुछ नाम हैं दशकों पुरानी समेकित बाल विकास सेवा (ICDS), मिड डे मील/पीएम पोषण, प्रधानमंत्री मातृ वंदन योजना के ज़रिए सशर्त कैश ट्रांसफर; कमज़ोर और कम आमदनी वाले घरों तक खाद्य की पहुंच को सुनिश्चित करने वाला राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013; एनीमिया के फैलाव को कम करने के मक़सद से की गई पहल एनीमिया मुक्त भारत. कुपोषण का मुकाबला करने के लिए भारत सरकार के द्वारा किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों और उपायों के बावजूद जागरूकता की कमी; आर्थिक एवं लैंगिक (जेंडर) असमानता; बढ़ती जनसंख्या और खाद्य सुरक्षा की चुनौतियों की वजह से ये समस्या बनी हुई है

भारत में शिक्षा की खाई को पाटना

“साक्षर भारत” का उद्देश्य अच्छी शिक्षा तक सार्वभौमिक पहुंच (यूनिवर्सल एक्सेस) के ज़रिए बच्चों को सशक्त बनाने और दूर-दराज में रहने वाले एवं संसाधनों से दूर समुदायों तक पहुंचने, ख़ास तौर पर कोविड-19 महामारी को देखते हुए, में तकनीक एवं ऑनलाइन संसाधनों का फायदा उठाने में मदद करना है. भारत में शिक्षा को लेकर राष्ट्रीय सांख्यिकीय संगठन (NSO) के आंकड़े बताते हैं कि घर से 1 किलोमीटर के भीतर माध्यमिक शिक्षा की पहुंच ग्रामीण घरों के लिए जहां 38 प्रतिशत है वहीं शहरी घरों के लिए 70 प्रतिशत. 7 साल और उससे ज़्यादा उम्र के लोगों के लिए साक्षरता दर ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में क्रमश: 73.5 और 87.7 प्रतिशत है. एकीकृत ज़िला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE) के 2021-22 के डेटा के अनुसार भारत में केवल 33.9 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है और सिर्फ 45.8 प्रतिशत स्कूलों में काम-काज के लायक कंप्यूटर हैं. भारत में इंटरनेट तक पहुंच की दर में लगातार वृद्धि देखी गई है और ये 2007 के 4 प्रतिशत से बढ़कर 2022 में 48.7 प्रतिशत हो गया है. भारत में महिलाओं (33.3 प्रतिशत) की तुलना में ज़्यादा पुरुष (57.1 प्रतिशत) इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं. पढ़ाई की क्वालिटी को सुधारने, शिक्षा तक पहुंच को बढ़ाने और शिक्षा के सेक्टर में विशेष चुनौतियों को हल करने के उद्देश्य से प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के लिए भारत ने विभिन्न शैक्षणिक पहल और कार्यक्रमों को शुरू किया है. अन्य पहल को भी लागू किया गया है जैसे कि हर व्यक्ति तक बुनियादी शिक्षा और जेंडर के अंतर को पाटने के लिए सर्व शिक्षा अभियान; माध्यमिक शिक्षा तक पहुंच को बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान; राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020; बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ और स्कूलों में लड़कियों का नाम लिखवाने और उनकी पढ़ाई को बरकरार रखने के लिए नकद प्रोत्साहन वाली लाडली लक्ष्मी योजना. प्रगति के बावजूद शिक्षा तक असमान पहुंच की चुनौतियां, फंडिंग की कमी, इंफ्रास्ट्रक्चर और कुशल संसाधनों की चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं. 

एकीकृत ज़िला शिक्षा सूचना प्रणाली (UDISE) के 2021-22 के डेटा के अनुसार भारत में केवल 33.9 प्रतिशत स्कूलों में इंटरनेट की सुविधा है और सिर्फ 45.8 प्रतिशत स्कूलों में काम-काज के लायक कंप्यूटर हैं.

सशक्त भारत: पोषण पहल में चुनौतियों का समाधान

 

“सशक्त भारत” पोषण से जुड़ी समस्या से निपटने के लिए महिलाओं को मुख्यधारा में लाने और महिलाओं के सशक्तिकरण पर ज़ोर देता है. देखभाल करने वाली प्रमुख सदस्य के तौर पर महिलाएं अपने परिवार की पोषण से जुड़ी भलाई को सुनिश्चित करने में मुख्य भूमिका निभाती हैं. शिक्षा और नौकरी के अवसरों की कमी की वजह से महिलाएं जिन अलग-अलग चुनौतियों का सामना कर रही हैं वो उन्हें आर्थिक रूप से निर्भर बनाती हैं और घर के भीतर उनकी मोल-भाव की शक्ति को कम करती हैं. इस तरह खाद्य सुरक्षा पर असर पड़ता है. 2015-16 में घरेलू हिंसा की 29.3 प्रतिशत घटनाएं हुई थीं जो 2019-21 में बढ़कर 31.2 प्रतिशत हो गई. 2005 के ‘घरेलू हिंसा से महिलाओं की सुरक्षा अधिनियम’ के बावजूद लगभग 3.1 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं (18-49 साल की उम्र की) घरेलू हिंसा का सामना करती हैं. महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए अलग-अलग योजनाओं की शुरुआत की गई है जैसे कि गर्भवती एवं बच्चों को दूध पिलाने वाली महिलाओं और किशोरियों में पोषण से जुड़े परिणामों को सुधारने के लिए पोषण अभियान; समर्थ बनाने वाले माहौल के ज़रिए कुपोषण के पीढ़ी-दर-पीढ़ी चक्र को तोड़ने के उद्देश्य से किशोरियों के लिए एक योजना; ग़रीबी रेखा के नीचे रहने वाले घरों तक LPG कनेक्शन पहुंचाने के लिए उज्ज्वला योजना; ज़मीनी स्तर पर महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए आंगनवाड़ी सेवाएं और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के द्वारा अस्पतालों में बच्चों के जन्म को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना. इसके अलावा, कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय बेहतर हुनर के ज़रिए महिला रोज़गार और सशक्तिकरण को बढ़ावा दे रहा है. प्रधानमंत्री मुद्रा योजना महिला उद्यमियों को छोटा कर्ज़ भी मुहैया कराती है. लेकिन योजना और उसको लागू करने के बीच कई फासले बने हुए हैं और विभिन्न कार्यक्रमों को लेकर महिलाओं के बीच जागरूकता तैयार करके और महिलाओं की सुरक्षा एवं सशक्तिकरण के लिए नियमों और नीतियों पर सख्त ढंग से अमल करके इन फासलों को दूर किया जा सकता है.

वैसे प्रगति तो दर्ज की गई है लेकिन भारत का आकार, विविधता और अनगिनत चुनौतियां कुपोषण को एक स्थायी समस्या बनाती हैं जिस पर लगातार ध्यान देने और नीति निर्माण एवं उन पर अमल के मामले में इनोवेशन की ज़रूरत होती है.

कुपोषण का समाधान करना एक जटिल, दीर्घकालीन प्रयास है जिसके लिए लगातार प्रतिबद्धता, कई क्षेत्रों के बीच सहयोग और बदलते हालात के मुताबिक ढलने की आवश्यकता होती है. वैसे प्रगति तो दर्ज की गई है लेकिन भारत का आकार, विविधता और अनगिनत चुनौतियां कुपोषण को एक स्थायी समस्या बनाती हैं जिस पर लगातार ध्यान देने और नीति निर्माण एवं उन पर अमल के मामले में इनोवेशन की ज़रूरत होती है. पोषण माह की थीम “सुपोषित भारत, साक्षर भारत, सशक्त भारत” देश की पोषण से जुड़ी चुनौतियों को हल करने में एक संपूर्ण दृष्टिकोण को समेटे हए है. पोषण, शिक्षा और सशक्तिकरण पर ध्यान देकर भारत एक स्वस्थ, अधिक साक्षर और सशक्त देश की दिशा में काम कर सकता है.


शोभा सूरी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं.

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