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Published on Jan 29, 2025 Updated 1 Hours ago

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान हुकूमत की नाकामियों और वैचारिक शून्य का इस्तेमाल करके अल्पसंख्यक नागरिकों को कट्टरपंथ की तरफ़ धकेल रहा है.

पाकिस्तान: सोशल मीडिया पर ज़ोर पकड़ रहा है तालिबान का प्रोपगैंडा

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नवंबर 2024 में तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने 17 पेज का एक दस्तावेज़ जारी किया. इस दस्तावेज़ में युद्ध के दौरान ‘इस्लाम के दुश्मनों’ का सिर क़लम करने और उनको मौत के घाट उतारने के तथाकथित ‘इस्लामिक’ तौर तरीक़ों का ब्यौरा दिया गया था. ये दस्तावेज़ TTP की फतवा कमेटी केंद्रीय दार-उल-इफ़्ता ने जारी किया था. इसमें इस्लाम के ख़ास और चुनिंदा हवाले दिए गए हैं और TTP के लड़ाकों को कहा गया है कि वो लोगों को क़त्ल करने के ‘ग़ैर इस्लामिक’ तरीक़ों से परहेज़ करें. इस दस्तावेज़ को तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की मीडिया शाखा उमर मीडिया के ज़रिए और मीडिया शेयरिंग वेबसाइड इंटरनेट आर्काइव के माध्यम से फैलाया गया था. TTP के ये ताज़ा दिशा-निर्देश उसके मीडिया के इस्तेमाल का हुनर और तरीक़ा जानने का एक और उदाहरण हैं. इससे पता चलता है कि TTP अपने दुष्प्रचार के लिए लगातार अपने तौर तरीक़ों में सुधार ला रहा है और अपने नैरेटिव का प्रचार करने के लिए वो डिजिटल मंचों का ख़ूब उपयोग कर रहा है.

नवंबर 2024 में तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) ने 17 पेज का एक दस्तावेज़ जारी किया. इस दस्तावेज़ में युद्ध के दौरान ‘इस्लाम के दुश्मनों’ का सिर क़लम करने और उनको मौत के घाट उतारने के तथाकथित ‘इस्लामिक’ तौर तरीक़ों का ब्यौरा दिया गया था. 

पाकिस्तानी रियासत को अस्थिर करने की अपनी लगातार कोशिशों के तहत तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान ने सोशल मीडिया और साइबर दुनिया को अपना अहम हथियार बना लिया है, ताकि मनोवैज्ञानिक युद्ध में बढ़त हासिल करके हिंसा को बढ़ावा दे सके. इस लेख में हम TTP के डिजिटल प्रोपेगैंडा की रणनीति की पड़ताल करेंगे. लेक में ये तर्क दिया गया है कि अब ये आतंकवादी संगठन सोशल मीडिया को अपने प्रचार का एक ताक़तवर हथियार बनाकर इस्तेमाल कर रहा है और अपने वैचारिक मक़सद हासिल करने और पाकिस्तानी रियासत को अस्थिर करने के लिए नागरिकों के मज़हबी जज़्बात को तोड़-मरोड़ रहा है. पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के सैन्य अभियानों ने तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान को युद्ध क्षेत्र में तो काफ़ी नुक़सान पहुंचाया है. लेकिन, इस संगठन की डिजिटल दुनिया के मुताबिक़ ख़ुद को ढालने और डिजिटल प्लेटफॉर्म को हथियार की तरह इस्तेमाल करने पर कोई ख़ास लगाम नहीं लग सकी है.

 

हुकूमत के ख़िलाफ़ तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की मुहिम में तेज़ी

 

TTP वैसे तो पाकिस्तानी हुकूमत और उसकी एजेंसियों को 2000 के दशक की शुरुआत से ही निशाना बनाता रहा है. हालांकि, अगस्त 2021 में काबुल की हुकूमत पर पर अफ़ग़ान तालिबान के फिर से क़ाबिज़ होने से TTP को वैचारिक प्रेरणा भी मिली और सरहद के उस पार छुपने का महफ़ूज़ ठिकाना भी, जिससे उसकी गतिविधियों में और तेज़ी आ गई. इसी दौरान पाकिस्तान की सरकार ने ख़ैबर पख़्तूनख़्वा और क़बीलाई इलाक़ों में आतंकवाद निरोधक अभियान भी छेड़ दिया, जिससे तहरीक़-ए-तालिबान के नेटवर्क तो छिन्न भिन्न हो गए. लेकिन, फौजी अभियान में आम लोगों की जान भी गई और बहुतों को अपना घर-बार छोड़कर भागना पड़ा. तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान के आक़ाओं ने स्थानीय स्तर पर समर्थन जुटाने के लिए सरकार से लोगों की इन शिकायतों का बख़ूबी इस्तेमाल किया. ख़ास तौर से पश्तून समुदायों के बीच, जो सरकार पर अनदेखी करने और ज़ुल्म ढाने के इल्ज़ाम लगाते रहे हैं.

 

दोनों पक्षों के बीच हुआ 2022 का युद्धविराम समझौता भी टूट गया. इस वजह से पाकिस्तानी सुरक्षा बलों और TTP के बीच टकराव और बढ़ गया. इसके जवाब में तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान ने एक बार फिर से पुलिस थानों, सैन्य ठिकानों और ख़ुफ़िया एजेंसियों के अड्डों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. पाकिस्तान के लगातार बिगड़ते आर्थिक हालात और राजनीतिक अस्थिरता ने पलटवार करने की हुकूमत की क्षमता को और कम कर दिया. TTP ने पाकिस्तानी हुकूमत की इस कमज़ोरी का उपयोग करते हुए लोगों के बीच ख़ुद को ‘भ्रष्ट और नाइंसाफ़ी वाली व्यवस्था’ के बेहतर विकल्प के तौर पर पेश किया. इन घटनाओं ने कुल मिलाकर पाकिस्तानी रियासत के ख़िलाफ़ TTP के हालिया अभियान को हवा दी. TTP ने वैचारिक बयानबाज़ी और लोगों की शिकायतों का दुरुपयोग करते हुए सरकार की हैसियत पर सवालिया निशान खड़े किए. इसी का एक नतीजा ये निकला कि 2023 की तुलना में 2024 में पाकिस्तान ने तहरीक़-ए-तालिबान के हमलों में 40 प्रतिशत का इज़ाफ़ा होते देखा.  

 

प्रचार की परिष्कृत रणनीति

 

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की मीडिया रणनीति को उसकी उमर मीडिया नाम की शाखा चलाती है. इससे पता चलता है कि अलग अलग तबक़ों के लोगों को आकर्षित करने के लिए TTP बेहद संस्थागत और संगठित तरीक़े से जज़्बात उभारने वाले कंटेंट तैयार करता है. TTP अपनी ऑनलाइन पत्रिका तालिबान के साथ-साथ सावधानी से तैयार किए गए वीडियो के ज़रिए लोगों की राय बदलने, हिंसा का महिमामंडन करने और पाकिस्तान की सेना और उसकी एजेंसियों के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा भड़काने की कोशिश करता है. पाकिस्तानी सेना और पुलिस बलों को भ्रष्ट और इस्लाम विरोधी के तौर पर पेश करके तालिबान पीड़ित होने के नैरेटिव और शहादत वाली विचारधारा को मज़बूत बनाता है, ताकि सुरक्षा बलों के हौसले कमज़ोर कर सके और जनता की नाराज़गी को भड़का सके.

TTP अपनी ऑनलाइन पत्रिका तालिबान के साथ-साथ सावधानी से तैयार किए गए वीडियो के ज़रिए लोगों की राय बदलने, हिंसा का महिमामंडन करने और पाकिस्तान की सेना और उसकी एजेंसियों के ख़िलाफ़ लोगों का ग़ुस्सा भड़काने की कोशिश करता है.

अगस्त 2021 के बाद से उमर मीडिया का पुनर्गठन किया गया है और अब ये पेशेवर और केंद्रीकृत तरीक़े से संचालित किया जाता है. इसी वजह से TTP के कंटेंट की गुणवत्ता बेहतर हुई है और अब TTP अपना संदेश नियमित रूप से लगातार प्रचारित करता रहा है. इस काम में वो मीडिया के प्रोपेगैंडा करने वाले विशेषज्ञों की भी मदद ले रहा है, जो पहले अल क़ायदा इन इंडियन कॉन्टिनेंट से जुड़े रहे थे.

 

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान अपने प्रचार के लिए वीडियो, दस्तावेज़ और तक़रीरों का प्रचार मुख्यधारा के मीडिया और एनक्रिप्टेड डिजिटल प्लेटफॉर्म जैसे कि टेलीग्राम और व्हाट्सऐप का इस्तेमाल करते हुए करता है. फ़र्ज़ी खातों और एनक्रिप्टेड टूल्स का इस्तेमाल करते हुए TTP ये सुनिश्चित करता है कि उसका कंटेंट दुनिया भर में उसके चाहने वालों तक पहुंचे और पाकिस्तान के अधिकारियों की पकड़ में आने से बच जाए. तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की तरफ़ से जो कंटेंट डिजिटल मीडिया पर अपलोड किया जाता है, वो अलग अलग तबक़ों के हिसाब से तैयार किया जाता है, जिसमें धार्मिक वैधता हासिल करने, हुकूमत के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा भड़काने और दुस्साहस भरे क़िस्सों का प्रचार करने को तरज़ीह दी जाती है, ताकि ख़ास तौर से पश्तून इलाक़ों और अप्रवासी मुस्लिम समुदायों के कमज़ोर तबक़े के युवाओं को आकर्षित किया जा सके. 

 

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान अपने संघर्ष को ग़ैर इस्लामिक पाकिस्तानी रियासत के ख़िलाफ़ मज़हबी जिहाद के तौर पर पेश करता है और सुरक्षा बलों को पश्चिमी ताक़तों के भ्रष्ट और काफ़िर एजेंट कहकर बदनाम करता है. TTP के वीडियो में अक्सर क़ुरान की आयतें पढ़ने, युद्ध की तस्वीरें और आत्मघाती हमलावरों (फिदाईन) को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जाता है और ये दावा किया जाता है कि शहादत सबसे बड़ी उपलब्धि है. यही नहीं, लोगों को क़त्ल करने और सैन्य मुक़ाबलों में विजय के बढ़ा-चढ़ाकर दावे करके TTP एक मनोवैज्ञानिक युद्ध भी लड़ता है, ताकि पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र के हौसले तोड़ने के साथ साथ जनता के बीच अपने लिए डर का माहौल बना सके.

 

ज़बरदस्त तालमेल और पेशेवराना तरीक़े से चलाई जा रही प्रचार की इस मशीनरी के ज़रिए लोगों की नाराज़गी, ख़ास तौर से पश्तून समुदायों की नाख़ुशी का दोहन किया जाता है और नाइंसाफ़ी, दर-बदर होने और सरकार की अनदेखी जैसे नैरेटिव का प्रचार किया जाता है. तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान की रणनीति से पता चलता है कि वो तकनीकी तरक़्क़ी के मुताबिक़ ख़ुद को फ़ौरन ढालने और सामाजिक राजनीतिक अस्थिरता का दोहन करने में बहुत माहिर है.

 

पाकिस्तान के सुरक्षा बलों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव

 

TTP के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रचार का पाकिस्तान की सेना और पुलिस बलों पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है. क्योंकि, इस दुष्प्रचार के ज़रिए सुरक्षा बलों के हौसले और पहचान दोनों को निशाना बनाया जाता है. तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान, सुरक्षा बलों को मुर्तद यानी इस्लाम से मुंह फेरने वाला और विदेशी हितों के लिए काम कर रहे भाड़े के हत्यारे कहता है. ऐसे में TTP के इन संदेशों से सुरक्षा बलों के कर्मचारियों के लिए पहचान का संकट खड़ा हो जाता है. क्योंकि पाकिस्तान के फौजी अक्सर मज़बूत मज़हबी विचार रखने वाले होते हैं. लेकिन, तहरीक़-ए-तालिबान जिस तरह उन्हें काफ़िर या मुर्तद कहता है, उससे उनके पेशे को इस्लाम से ग़द्दारी के तौर पर पेश किया जाता है और इससे फौजी अपनी वास्तविक स्थिति से दूर होते जाते हैं. उनकी इच्छाशक्ति कमज़ोर हो जाती है और कई असाधारण मामलों में बहुत से फौजियों ने तो सेना को ही छोड़ दिया. इसके साथ साथ ‘नैतिक बल’ की परिकल्पना के तहत तहरीक़-ए-तालिबान आत्मघाती हमलावरों को शहीद और मौत को मज़हबी लड़ाई में जिहाद के तौर पर पेश करता है. उसके नैरेटिव से मोर्चे पर लड़ रहे सैनिकों का हौसला डिग जाता है, क्योंकि तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान लगातार हिंसक तस्वीरों, क़त्ल के वीडियो और युद्ध में सफलता के उदाहरणों का प्रचार कर रहा है. इसकी वजह, फौजियों के बीच अपना ख़ौफ़ पैदा करना और उनके आत्मविश्वास को डिगाना होती है.

 

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान, युद्ध में फौज की नाकामियों को और भी बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है. अचानक हमला करने, टारगेट करके हमला करने और पाकिस्तानी फौज और पुलिस बलों के ऊपर जीत हासिल करने जैसी घटनाओं को दिखाने वाले वीडियो का मक़सद क़ानून व्यवस्था बनाए रखने की राज्य की क्षमता पर सवालिया निशान लगाना होता है. TTP जिस तरह प्रचार के मोर्चे पर अपना दबदबा बनाए हुए है, उससे लोगों के ज़हन में उसकी छवि एक पकड़ में न आने वाले अजेय दुश्मन की बनती है. इस तरह के प्रचार से आतंकवाद के नासूर को बंद करने में जुटे सैनिकों की मानसिक स्थिति पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं.

 

निष्कर्ष

 

तहरीक़-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा सोशल मीडिया का इस्तेमाल पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के लिए एक ऐसा ताक़तवर और उभरता हुआ दुश्मन है, जिससे निपटने के लिए फ़ौरन तैयारी करनी होगी. पुलिस बल के जवानों और सैनिकों का हौसला तोड़ने की लगातार कोशिशों के तहत TTP जज़्बाती और धार्मिक बयानबाज़ी के ज़रिए सैनिकों के ज़हन में आशंका, डर और मोहभंग का भाव भर देता है. सैन्य अभियानों के बावजूद पाकिस्तान की आतंकवाद निरोधक रणनीति तहरीक़-ए-तालिबान के प्रोपेगैंडा युद्ध से असरदार तरीक़े से निपटने में नाकाम है.

TTP जिस तरह प्रचार के मोर्चे पर अपना दबदबा बनाए हुए है, उससे लोगों के ज़हन में उसकी छवि एक पकड़ में न आने वाले अजेय दुश्मन की बनती है. इस तरह के प्रचार से आतंकवाद के नासूर को बंद करने में जुटे सैनिकों की मानसिक स्थिति पर भी सवाल खड़े हो जाते हैं.

TTP के नैरेटिव के मुक़ाबले एक जवाबी नैरेटिव की ग़ैर-मौजूदगी ने कट्टरपंथी संदेशों के प्रचार के लिए हरी झंडी दे दी है. क्योंकि, पाकिस्तानी हुकूमत इस्लामिक शिक्षा पर आधारित एक ऐसा वैचारिक जवाब देने में नाकाम रही है, जो इस्लाम की विरोधाभासी व्याख्या की तहरीक़-ए-तालिबान की पोल खोल सके. ये समस्या इसलिए और बढ़ जाती है, क्योंकि पाकिस्तान की सरकार साइबर दुनिया की पर्याप्त रूप से निगरानी नहीं रख पाती है, जहां तहरीक़-ए-तालिबान के लिए व्हाट्स ऐप और टेलीग्राम जैसे एनक्रिप्टेड प्लेटफॉर्म कट्टरपंथी संगठनों में भर्ती कराने और विचारधारा का प्रचार करने की खुली छूट रहती है. पाकिस्तान के सुरक्षा बलों के लिए ये डिजिटल चुनौती, पहले से ही जटिल लड़ाई को और पेचीदा बना देती है. क्योंकि, युद्ध क्षेत्र में हर नाकामी और परिचर्चा में जवाबी नैरेटिव न होने से विचारधारा पर चलने वाले एक फ़ुर्तीले दुश्मन की बातों का जवाब देना मुश्किल हो जाता है.

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Authors

Sameer Patil

Sameer Patil

Dr Sameer Patil is Director, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation.  His work focuses on the intersection of technology and national ...

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Soumya Awasthi

Soumya Awasthi

Dr Soumya Awasthi is Fellow, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. Her work focuses on the intersection of technology and national ...

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