Published on Feb 27, 2023 Updated 0 Hours ago
क्या भारत से बातचीत को लेकर सच में गंभीर है पाकिस्तान?

दुबई में अल अरबिया टीवी के साथ एक इंटरव्यू में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ ने भारत के प्रति दोस्ताना रवैया दिखाते हुए कहा कि वो भारत के साथ अमन की इच्छा रखते हैं. शहबाज़ शरीफ़ ने भारत के साथ ‘ईमानदार और गंभीर’ बातचीत की विनती भी की. हालांकि, भारत के साथ रिश्ते सुधारने के लिए पाकिस्तान का ये प्रस्ताव ज़्यादा वक़्त तक नहीं टिक सका. क्योंकि, एक दिन के भीतर ही शहबाज़ शरीफ़ के कार्यालय ने दोबारा जम्मू और कश्मीर का राग छेड़ दिया और ज़ोर देकर कहा कि भारत के साथ दोबारा बातचीत शुरू करने के लिए वो अपनी पुरानी शर्त पर बना हुआ है: कश्मीर में धारा 370 दोबारा बहाल हो. पाकिस्तान को ये बात अच्छे से पता है कि भारत जम्मू-कश्मीर को लेकर किसी भी तरह की बातचीत नहीं करना चाहेगा. उसके ‘विशेष दर्जे’ को दोबारा बहाल करने का तो ख़याल भी पाकिस्तान को भूल जाना चाहिए. ऐसे में ये बात स्पष्ट नहीं है कि आख़िर क्या वजह थी कि शहबाज़ शरीफ़ ने पहले तो भारत की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाया और फिर सफ़ाई दे डाली. इससे बातचीत को लेकर पाकिस्तान के प्रस्ताव की ईमानदारी पर सवाल उठने लगे. 

फरवरी 2021 से सीमा पर युद्धविराम के समझौते का प्रभावी रूप से पालन करने के बाद भी, भारत इस साल भी पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार के आतंकवाद में बढ़ोत्तरी को लेकर आशंकित बना हुआ है. इसीलिए, भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक रूप से बातचीत न होने की सूरत में पर्दे के पीछे से होने वाले संवाद का इस्तेमाल करना उपयोगी हो सकता है.

इसके अलावा, पाकिस्तान के सत्ताधारी गठबंधन, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) के भीतर भारत से बातचीत को लेकर मतभेद स्पष्ट दिख रहे हैं. गठबंधन में शामिल कुछ दल, इस मुद्दे पर शहबाज़ शरीफ़ के विचारों से इत्तिफ़ाक़ नहीं रखते हैं. सबसे अहम बात ये कि पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ, जनरल सैयद आसिम मुनीर ने कश्मीर पर उकसावे वाले बयान देने के सिवा, भारत को लेकर अपना नीतिगत रवैया अब तक स्पष्ट नहीं किया है. इससे भारत के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने को लेकर अनिश्चितताएं और बढ़ गई हैं.

फरवरी 2021 से सीमा पर युद्धविराम के समझौते का प्रभावी रूप से पालन करने के बाद भी, भारत इस साल भी पाकिस्तान प्रायोजित सीमा पार के आतंकवाद में बढ़ोत्तरी को लेकर आशंकित बना हुआ है. इसीलिए, भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक रूप से बातचीत न होने की सूरत में पर्दे के पीछे से होने वाले संवाद का इस्तेमाल करना उपयोगी हो सकता है. इस बातचीत से दोनों देशों के बीच टकराव वाली स्थितियों को टालने में काफ़ी मदद मिलती है.

ईमानदार कोशिशों की राह में रोड़े

प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ का भारत से ईमानदार बातचीत का प्रस्ताव उस वक़्त आया है, जब उनकी अपनी हुकूमत के मंत्री, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पूरी ताक़त से भारत विरोधी दुष्प्रचार को बढ़ावा दे रहे हैं. जब भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर एस. जयशंकर ने पाकिस्तान को ओसामा बिन लादेन का मेज़बान और आतंकवाद का गढ़ बताया, तो इसके जवाब में पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो ज़रदारी ने भारत के ख़िलाफ़ आरोप मढ़ने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मंच का इस्तेमाल किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बारे में ‘असभ्य’ बयानबाज़ी की.

सियासी तौर पर शहबाज़ शरीफ़ के पास वो राजनीतिक हैसियत नहीं है कि वो भारत के साथ शांति वार्ता शुरू कर सकें. क्योंकि उनकी गठबंधन सरकार बेहद कमज़ोर स्थिति में है और पाकिस्तान में इसी साल चुनाव भी होने हैं.

भारत और पाकिस्तान के बीच बातचीत दोबारा शुरू करने को लेकर, पाकिस्तान डेमोक्रेटिक मूवमेंट (PDM) के दो मुख्य दल, पाकिस्तान मुस्लिम लीग नवाज़ (PML-N) और पाकिस्तान की पीपुल्स पार्टी (PPP) एक दूसरे के विरोधाभासी संकेत दे रहे हैं. पाकिस्तान का विदेश विभाग, भारत के ख़िलाफ़ बेहद आक्रामक है, जिस पर PPP का दबदबा है. जनवरी में विश्व आर्थिक मंच की सालाना बैठक में पाकिस्तान की विदेश मामलों की राज्यमंत्री हिना रब्बानी खर ने कहा कि, पाकिस्तान नरेंद्र मोदी को दोनों देशों के बीच शांति को बढ़ावा देने के लिए ‘उपयोगी साझीदार’ नहीं मानता है. इसके अलावा पाकिस्तान की सीनेट के हालिया सत्र के दौरान हिना रब्बानी खर ने भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के मौजूदा दौर के लिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की सरकार और मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया. ये ध्यान देने वाली बात है कि हिना रब्बानी खर ने ये बयान, शहबाज़ शरीफ़ द्वारा बातचीत का प्रस्ताव देने के कुछ दिनों बाद ही दिया था.

पिछले साल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद से शहबाज़ शरीफ़ ने अलग अलग मौक़ों पर भारत के साथ शांति की अपनी ख़्वाहिश ज़ाहिर की है और कश्मीर को दोनों देशों के बीच सबसे अहम मसला बताया है. पिछले साल अप्रैल में प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद, मोदी के बधाई वाले ट्वीट के जवाब में शहबाज़ ने ट्वीट किया था कि, ‘पाकिस्तान, भारत के साथ शांतिपूर्ण और सहयोगात्मक रिश्ते चाहता है.’ शहबाज़ ने ‘दोनों देशों की जनता के सामाजिक आर्थिक विकास को प्राथमिकता देने पर ध्यान केंद्रित करने’ की बात भी कही थी. जब प्रधानमंत्री मोदी की मां का देहांत हुआ था, तो भी शहबाज़ शरीफ़ ने मां के निधन पर मोदी को शोक संदेश भेजा था. शहबाज़ शरीफ़ ने कहा था कि, ‘अपनी मां को खोने से बड़ा कोई और नुक़सान नहीं होता.’ शहबाज़ शरीफ़ के इन बयानों के बाद भी, पिछले नौ महीनों से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते जस के तस बने हुए हैं.

पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर शुरू करने को लेकर भारत तैयार तो है. लेकिन, पाकिस्तान की सरकार आगे बढ़ने के लिए ज़रूरी ठोस क़दम उठाने में बार-बार नाकाम रही है. पूर्व विदेश मंत्री मिफ़्ताह इस्माइल ने पिछले साल अपने मुल्क में आई भयानक बाढ़ के बाद, भारत से कारोबारी रिश्ते दोबारा ज़िंदा करने की कोशिश की थी, मगर वो असफल रहे थे. यहां तक कि पूर्व प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के वाणिज्य सलाहकार रज़ाक दाऊद ने भी अलग अलग मौक़ों पर भारत के साथ दोबारा व्यापार शुरू करने की मांग उठाई थी. यहां तक कि विदेश मत्री बिलावल भुट्टो ने भी पिछले साल भारत के साथ ‘आर्थिक कूटनीति’ की वकालत की थी. लेकिन, जैसी उम्मीद थी, बाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बिलावल के बयान पर सफ़ाई देते हुए कहा था कि, ‘उनके बयानों का ग़लत मतलब निकाला गया और तोड़-मरोड़कर पेश किया गया.’

दोनों देशों की ताक़त में लगातार बढ़ती असमानता, पाकिस्तान का लगातार भारत विरोधी रुख़ अपनाने और उसकी सरकार की ओर से बातचीत के अविश्वसनीय प्रस्तावों ने भारत के लिए इन रिश्तों की अहमियत ख़त्म कर दी है. इसी का नतीजा है कि भारत, पाकिस्तान से सीमित संवाद ही चाहता है, और वो भी शायद पर्दे के पीछे वाली कूटनीति के ज़रिए पाकिस्तान के सैन्य तंत्र के साथ.

सियासी तौर पर शहबाज़ शरीफ़ के पास वो राजनीतिक हैसियत नहीं है कि वो भारत के साथ शांति वार्ता शुरू कर सकें. क्योंकि उनकी गठबंधन सरकार बेहद कमज़ोर स्थिति में है और पाकिस्तान में इसी साल चुनाव भी होने हैं. इन हालात में इमरान ख़ान और पाकिस्तानी सैन्य तंत्र के लगातार बिगड़ते रिश्तों और पंजाब सूबे में नवाज़ शरीफ़ की पार्टी की घटती लोकप्रियता के बीच, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) मुल्क के सभी सूबों में अपने राजनीतिक प्रभाव को बढ़ाने का मौक़ा देख रही है. इसी का नतीजा है कि पाकिस्तान में बढ़ती सियासी उथल-पुथल के बीच, भारत के साथ औपचारिक बातचीत की संभावना बहुत कम है. क्योंकि पाकिस्तान में कोई भी ऐसा जोखिम लेने से बचना चाहेगा.

पाकिस्तान की सरकार की तरफ़ से भारत को अमन का संकेत देने के पीछे ईमानदारी की कमी नज़र आती है और ऐसा लगता है कि या तो ये प्रस्ताव अंतरराष्ट्रीय समुदाय को दिखाने के लिए दिया गया, या फिर घरेलू मसलों से ध्यान हटाने के लिए. आख़िरकार, भारत के साथ किसी भी तरह के रिश्ते का फ़ैसला पाकिस्तान का ताक़तवर सैन्य तंत्र ही करेगा. आर्मी चीफ बनने के क़रीब तीन महीने बाद भी जनरल आसिम मुनीर मोटे तौर पर भारत को लेकर उसी नीति पर चलते नज़र आए हैं, जो उनके पूर्ववर्ती सेनाध्यक्ष जनरल (रिटायर्ड) क़मर जावेद बाजवा ने शुरू की थी. बाजवा के दौर में पाकिस्तानी फ़ौज, फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा और दूसरे सरहदी इलाक़ों में 2003 में हुए युद्ध विराम के समझौते को लागू करने को राज़ी हुई थी. ये उम्मीद की जा रही है कि जनरल मुनीर भी युद्ध विराम का पालन करते रहेंगे और सीमा पर यथास्थिति नहीं बदलना चाहेंगे. इसके बावुजूद पाकिस्तान से भारत में सीमा पार आतंकवादी गतिविधियां जारी रहने की ही आशंका है.

बातचीत हो या नहीं

भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक बातचीत न होने और निकट भविष्य में इसकी कोई संभावना न होने को देखते हुए, सैन्य टकराव टालने और दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए पर्दे के पीछे होने वाली वार्ताओं का इस्तेमाल काफ़ी उपयोगी हो सकता है. पाकिस्तान की विदेश राज्यमंत्री हिना रब्बानी खर ने दावा किया था कि जब पिछले साल अप्रैल में PDM ने सत्ता संभाली है, तब से भारत और पाकिस्तान के बीच पर्दे के पीछे कोई बातचीत नहीं हुई है और ‘भारत ने बाक़ी दुनिया को ग़लत जानकारी दी’ है. वैसे तो इस दावे पर सवाल खड़े किए जा सकते हैं. वहीं शहबाज़ शरीफ़ द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच फ़ौरी मसले सुलझाने के लिए संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को मध्यस्थ बनाने की संभावना तलाशी जा सकती है. भारत कश्मीर जैसे सामरिक मसले पर किसी ‘तीसरे पक्ष’ की भूमिका को क़तई भाव नहीं देगा.

अप्रैल 2021 में अमेरिका में UAE के राजदूत यूसुफ अल-ओतैबा ने दावा किया था कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव कम करने में उनके देश ने भूमिका अदा की है और उनके रिश्तों को दोबारा ‘स्वस्थ और सक्रिय’ बनाया है. UAE के राजदूत का ये बयान भारत और पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम के 2003 के समझौते को दोबारा जीवित करने पर सहमत होने के बाद आया था. सीमा पर शांति कायम रखना दोनों देशों के लिए अहम है, ख़ास तौर से पाकिस्तान के लिए, जो इस वक़्त भयंकर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है और दिवालिया होने के कगार पर खड़ा है. इसके अलावा पाकिस्तान की फौज इस वक़्त अवाम के बीच अपनी छवि सुधारे में लगी है, जो इस समय अपने सबसे ख़राब दौर में है.

मगर उससे भी अहम बात ये है कि पाकिस्तान की जनता खाने के सामानों में लगी आग, ईंधन की क़िल्लत, बार-बार बिजली कटौती और टैक्स की भयंकर मार जैसी चुनौतियों से जूझ रही है. PDM की सरकार अपने मुल्क के लिए अहम आर्थिक स्थिरता देने में पूरी तरह असफल रही है. ऐसे मुश्किल हालात में पाकिस्तान को भारत से दोबारा कारोबार शुरू करने से काफ़ी फ़ायदा मिल सकता था. ये आपसी संबंधों को सुधारने का सबसे आसान रास्ता था. फिर भी दोनों देशों के बीच व्यापार शुरू करने की हर कोशिश पाकिस्तान नाकाम करता रहा है. इसके अतिरिक्त, कश्मीर मसले को लेकर पाकिस्तान की ज़िद, कश्मीर की जनता के मुद्दे हल नहीं करती. इससे केवल पाकिस्तान के सत्ताधारी वर्ग के हित सधते हैं.

भारत, पाकिस्तान के साथ तब तक एक ‘सामान्य पड़ोसी वाले रिश्ते’ चाहता है, जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को, दुश्मनी या हिंसा को बढ़ावा न दे. हालांकि, ऐसा लगता है कि भारत, पाकिस्तान के साथ बातचीत शुरू करने को लेकर किसी हड़बड़ी में नहीं है. पिछले नौ वर्षों में नरेंद्र मोदी सरकार ने पाकिस्तान के साथ रिश्ते सुधारने के कई प्रयास किए हैं. लेकिन सब बेकार साबित हुए हैं. इसके अलावा दोनों देशों की ताक़त में लगातार बढ़ती असमानता, पाकिस्तान का लगातार भारत विरोधी रुख़ अपनाने और उसकी सरकार की ओर से बातचीत के अविश्वसनीय प्रस्तावों ने भारत के लिए इन रिश्तों की अहमियत ख़त्म कर दी है. इसी का नतीजा है कि भारत, पाकिस्तान से सीमित संवाद ही चाहता है, और वो भी शायद पर्दे के पीछे वाली कूटनीति के ज़रिए पाकिस्तान के सैन्य तंत्र के साथ.

निष्कर्ष

भारत के साथ बातचीत का प्रस्ताव देने के बाद शहबाज़ शरीफ़ अपने गठबंधन के साझीदारों, सैन्य तंत्र और विपक्षी दलों के दबाव में आ गए. ‘कश्मीर एकता दिवस’ पर एक भारत विरोधी बयान के अलावा उनकी सफ़ाई ने संवाद के प्रस्ताव को तब तक के लिए लगभग बेकार कर दिया, जब तक भारत, जम्मू-कश्मीर के मसले पर कुछ रियायतें न दे और ख़ास तौर से वहां दोबारा धारा 370 बहाल न करे. ऐसे में भारत और पाकिस्तान के बीच किसी भी औपचारिक वार्ता की संभावना दूर दूर तक नहीं दिख रही है. इसके अलावा, भारत द्वारा शंघाई सहयोग संगठन की बैठक के लिए पाकिस्तान को भेजे गए हालिया निमंत्रण को दोनों देशों के रिश्तों की बर्फ़ पिघलने का संकेत नहीं माना जाना चाहिए. तीसरा, जनरल आसिम मुनीर को भारत को लेकर अपनी नीति में और स्पष्टता दिखाने की ज़रूरत होगी, जो अब तक तो कम से कम बाजवा की नीति पर ही आगे बढ़ते दिख रहे हैं. आख़िर में भारत के साथ बातचीत के लिए पाकिस्तान को ‘आतंकवाद मुक्त’ माहौल बनाना होगा. महत्वपूर्ण बात ये है कि पाकिस्तान ये समझे कि समय समय पर भारत से बातचीत के इस प्रस्ताव को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अब कोई भाव नहीं देने वाला है.

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