Author : Shivam Shekhawat

Published on Jul 31, 2023 Updated 0 Hours ago

क्या इमरान खान पाकिस्तान में प्रतिकूल घरेलू राजनीतिक स्थिति को बदलने और लोगों के बीच अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए अंतिम उपाय के रूप में ओआईसी मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं?

पाकिस्तान और ओआईसी: मतभेदों से भरा संबंध?
पाकिस्तान और ओआईसी: मतभेदों से भरा संबंध?

दिसंबर 2021 में इस्लामिक सहयोग संगठन (OIC) के सदस्यों के एक आपातकालीन सत्र की मेज़बानी करने के बाद, अफ़ग़ानिस्तान की स्थिति को सुधारने के लिए मुस्लिम विश्व के सामूहिक प्रयासों को जगाने के लिए, पाकिस्तान ने हाल ही में ओआईसी देशों के विदेश मंत्रियों की परिषद (सीएफएम) की 48 वीं शिखर बैठक का आयोजन किया.  इस्लामाबाद में 22-23 मार्च को आयोजित इस सम्मेलन ने दो महत्वपूर्ण कारणों से दुनिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया : इस आयोजन का समय, पाकिस्तान में अस्थिर राजनीतिक स्थितियां और चीनी विदेश मंत्री श्री वांग यी की ‘विशेष अतिथि’ के रूप में मौजूदगी.

पाकिस्तान ने हमेशासे इस मंच का इस्तेमाल सदस्य देशों को भारत की नीतियों और कार्यों पर प्रतिक्रियादेने के लिए किया है और सदस्यों से नई दिल्ली के ख़िलाफ़ एक स्टैंड लेने के लिए उकसाया है.

‘एकता, न्याय और विकास के लिए साझेदारी’ बनाने पर ज़ोर देते हुए, सम्मेलन में 46 मंत्री स्तर के प्रतिनिधिमंडलों ने भागीदारी की, जिसमें लगभग 800 प्रतिनिधि अगल-अलग क्षमताओं में मौजूद रहे थे. बैठक के बाद एक प्रेस वार्ता में पाकिस्तानी विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने विचार-विमर्श के सात प्रमुख नतीज़ों को रेखांकित किया : इस्लामाबाद घोषणा का ऐलान ; जम्मू और कश्मीर पर प्रस्ताव के साथ-साथ एक संयुक्त विज्ञप्ति और एक कार्य योजना को सफलतापूर्वक पारित करना;  इसमें एक मानवीय कोष का संचालन और अफ़ग़ानिस्तान के लिए एक विशेष दूत की नियुक्ति;  दक्षिण एशिया में शांति और सुरक्षा के लिए पैदा होने वाले ख़तरे पर प्रस्ताव; और 9 मार्च को भारत द्वारा दुर्घटनावश मिसाइल लॉन्च होने की संयुक्त जांच की मांग की गई.  इसके  साथ ही सम्मेलन  के दौरान संघर्षों को रोकने, मध्यस्थता और शांति बनाए रखने के लिए एक तंत्र विकसित करने के लिए 2022-23 में एक मंत्रिस्तरीय सम्मेलन बुलाने के पाकिस्तान के प्रस्ताव को भी स्वीकार कर लिया गया और इसके द्वारा प्रायोजित/सह-प्रायोजित 20 प्रस्तावों के पारित होने पर पाकिस्तान ने संतोष जताया.  बैठक के अलावा  मेज़बान देश ने प्रतिनिधियों के साथ 16 द्विपक्षीय बैठकें भी कीं, इसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) के नागरिक सुरक्षा, लोकतंत्र और मानवाधिकार के अवर सचिव (अंडर सेक्रेट्री), उज़रा ज़ेया के साथ एक अलग बैठक की, जिसमें  अमेरिका पाकिस्तान की साझेदारी के विषयों पर चर्चा की गई.

एक अनुकूल छवि बनाने की कोशिश 

पाकिस्तान तहरीक़-ए-इंसाफ़ (पीटीआई) सरकार के लिए यह सम्मेलन तेजी से बिगड़ती घरेलू राजनीतिक स्थिति को ठीक करने और अपने मतदाताओं की नज़र में कुछ हद तक अपनी वैधता पेश करने के लिए यह एक बेहद ज़रूरी आवरण जैसा था. मुस्लिम देशों के बीच इस्लामाबाद के नेतृत्व की भूमिका को सही मायनों में दिखाना भी इसका एक अहम मक़सद था.  क्योंकि पाकिस्तान में किसी भी नागरिक सरकार के लिए एक भरोसेमंद अंतर्राष्ट्रीय छवि स्थापित करना सबसे बड़ी चुनौती रही है.  सरकार और सेना के बीच लगातार टकराव और अविश्वास प्रस्ताव (एनसीएम) को लेकर हाल की खींचतान से पाकिस्तान की नकारात्मक छवि बनी है. किसी भी स्पष्ट नतीज़े को सफलतापूर्वक अपनाने के अलावा इस सम्मेलन का महत्व इसके प्रतीकात्मक संदेश में भी था : दरअसल यह इस्लामाबाद को केंद्र में रखने की एक कोशिश थी, जो सदस्य देशों के बीच एक पुल का काम करता था.  23 मार्च को पाकिस्तान दिवस परेड में अज़रबैजान, तुर्की, सऊदी अरब, बहरीन और उज़्बेकिस्तान जैसे सदस्य देशों की भागीदारी को भी सद्भावना का एक उदाहरण माना जाता था जिसे लेकर पाकिस्तान स्पष्ट रूप से गर्व महसूस करता था.

उइगरों के ख़िलाफ़ बुरे बर्ताव के मुद्दे का नहीं रहना, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और उत्तरी अफ्रीका में चीन के व्यापक निवेश की ताक़त और बदले में एक जातीय समूह की पीड़ा को नज़रअंदाज़ करने के लिए सदस्य राज्यों की तत्परता का नतीज़ा ही कहा जा सकता है.

अपने शुरुआती भाषण में इमरान खान ने इस समूह के ‘मतभेदों और एक सामान्य वजह के लिए एक साथ आने में असमर्थता या अनिच्छा पर दुख  व्यक्त किया.  पाकिस्तान के लिए इस क्षेत्र में ओआईसी अपने निहित स्वार्थों का प्रचार करने का एक ज़रिया भर है, ख़ास तौर पर कश्मीर की स्थिति के संदर्भ में.  पाकिस्तान ने हमेशा से इस मंच का इस्तेमाल सदस्य देशों को भारत की नीतियों और कार्यों पर प्रतिक्रिया देने के लिए किया है और सदस्यों से नई दिल्ली के ख़िलाफ़ एक स्टैंड लेने के लिए उकसाया है. जबकि संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), कतर और सऊदी अरब जैसे अधिकांश ओआईसी सदस्य देशों ने कई प्रस्तावों को अपनाया है और कई विज्ञप्तियां भी पारित की हैं लेकिन भारत के साथ इन देशों के संबंध बेहद अहम रहे हैं और ऐसा लगता है कि केवल एक देश के विरोध के चलते भारत के साथ इन देशों के संबंध पर कोई आंच नहीं आने वाली है. हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि वे कश्मीर पर पारित प्रस्तावों का समर्थन नहीं करते हैं लेकिन इनमें से ज़्यादातर देशों ने यह स्पष्ट किया है कि समूह में उनकी सामूहिक स्थिति केवल सतही है.  यह साल 2019 में तब स्पष्ट हुआ था जब भारत की विदेश मंत्री, दिवंगत श्रीमती सुषमा स्वराज को संयुक्त अरब अमीरात के इशारे पर ओआईसी सम्मेलन में आमंत्रित किया गया था, जबकि इस फैसले के ख़िलाफ़ पाकिस्तान के दावे को नज़रअंदाज़ कर ऐसा किया गया था.  इस बार जब ओआईसी की बैठक चल ही रही थी तब  संयुक्त अरब अमीरात का एक प्रतिनिधिमंडल भी जम्मू और कश्मीर में खाड़ी निवेश शिखर सम्मेलन के लिए भारत में मौजूद था.

भारत ने अपनी ओर से समूह पर ‘एक ही सदस्य देश के एज़ेंडे का शिकार होने’ का आरोप लगाया और अपने आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने के उनके अधिकार पर सवाल ख़ड़े किए.  भारत ने की टिप्पणी थी कि कैसे 48वें सीएफ़एम में पारित प्रस्ताव “एक निकाय के रूप में ओआईसी को अप्रासंगिक और पाकिस्तान की नकारात्मक भूमिका” को प्रदर्शित करता है.  कश्मीर मुद्दे के अलावा पाकिस्तान में मियां चन्नू इलाक़े में भारत की ओर से ग़लती से जा गिरी एक मिसाइल पर प्रस्ताव भी लाया गया था, जिसमें भारत से “पाकिस्तान के साथ रचनात्मक रूप से काम करने…और एक रणनीतिक संयम व्यवस्था स्थापित करने” का आग्रह किया गया था.

एक सतही जीत

दिसंबर 2021 की बैठक के बाद, ओआईसी सदस्य देशों ने सम्मेलन से एक दिन पहले एक चार्टर पर हस्ताक्षर किया था और इसके ज़रिए इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक के साथ अफ़ग़ानिस्तान ह्यूमैनिटेरियन ट्रस्ट फ़ंड को औपचारिक रूप से संचालित करने का निर्णय लिया. संयुक्त राष्ट्र में इस्लामोफ़ोबिया का मुक़ाबला करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस को नामित करने के लिए ओआईसी द्वारा प्रायोजित एक प्रस्ताव को सफलतापूर्वक अपनाने को भी इस समूह की जीत के रूप में देखा गया, हालांकि अंतिम मसौदे ने इस प्रस्ताव के मूल में बहुत सारे प्रावधानों को कम कर दिया था. यूक्रेन में जारी संकट पर भी प्रतिनिधियों के बीच अनौपचारिक बातचीत के दौरान प्रधान मंत्री के साथ विचार-विमर्श किया गया था जिसमें सदस्यों से “मध्यस्थता, संघर्ष विराम और युद्ध को समाप्त करने का प्रयास” करने की अपील की गई थी.

भले ही इमरान खान सरकार सत्ता पर अपनी पकड़ दिखाने के लिए ओआईसी सम्मेलन को अंतिम प्रयास के रूप में इस्तेमाल करना चाहती थी और एक अलग-थलग पड़े पाकिस्तान के मिथक को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रही थी लेकिन वह ऐसा करने में बहुत ज़्यादा क़ामयाब होती नहीं दिखी.

हालांकि सम्मेलन और उसके बाद के प्रस्तावों और बयानों का मक़सद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को एक ऐसे नेता के रूप में पेश करना था, जो संकटग्रस्त लोगों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाते हों, जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय कश्मीर और अन्य संघर्षों पर पाकिस्तान की बयानबाज़ी के पीछे निहित स्वार्थों जानता रहा है.  एक सच्चाई यह भी है कि चीनी विदेश मंत्री ने इस सम्मेलन को संबोधित किया और कश्मीर का संदर्भ उसमें शामिल किया, साथ ही इस्लामिक देशों के अपने दोस्तों को यह भरोसा दिलाया कि उनका देश कुछ ‘समकालीन विवादित मुद्दों’ को हल करने में समर्थन देता रहेगा. जबकि चीन में ही लाखों उइगर मुस्लिमों पर ज़्यादतियां होती रही हैं, जो इस बात की गवाही देता है कि मानवाधिकार कैसे संघर्षों को न्यायसंगत और चर्चा के योग्य वर्गीकृत करता है जो देशों के बीच राजनीतिक और आर्थिक संबंधों का एक विस्तार है. उइगरों के ख़िलाफ़ बुरे बर्ताव के मुद्दे का नहीं रहना, मध्य पूर्व, दक्षिण एशिया और उत्तरी अफ्रीका में चीन के व्यापक निवेश की ताक़त और बदले में एक जातीय समूह की पीड़ा को नज़रअंदाज़ करने के लिए सदस्य राज्यों की तत्परता का नतीज़ा ही कहा जा सकता है, जिसका मक़सद चीन द्वारा अपने घरेलू और विदेश नीति के एज़ेंडे को आगे बढ़ाने के लिए मानवीय अत्याचार का प्रतिशोधात्मक इस्तेमाल करना है.

निष्कर्ष 

इस सम्मेलन के औपचारिक रूप से बुलाए जाने से कुछ दिन पहले, पाकिस्तान में विपक्षी दलों के कुछ सदस्यों ने एनसीएम को निर्धारित तिथि पर विधानसभा में पेश नहीं किए जाने पर ओआईसी की बैठक को बाधित करने की धमकी भी दी थी, हालांकि बाद में धमकी भरे बयान वापस ले लिए गए लेकिन सम्मेलन की समाप्ति के बाद के दिन भारी उथल-पुथल वाले रहे. हालात ये हो गए कि सरकार और विपक्ष दोनों ने बड़े पैमाने पर शक्ति प्रदर्शन किया और समाज की ध्रुवीकरण वाले भाषणों की गूंज पूरे पाकिस्तान में सुनाई दी. चूंकि प्रस्ताव पर मतदान अप्रैल के पहले सप्ताह में (इस रविवार को होना है) होने की उम्मीद है, इसलिए आने वाले दिन पाकिस्तान में सभी के लिए मुश्किल साबित होने वाले हैं.  भले ही इमरान खान सरकार सत्ता पर अपनी पकड़ दिखाने के लिए ओआईसी सम्मेलन को अंतिम प्रयास के रूप में इस्तेमाल करना चाहती थी और एक अलग-थलग पड़े पाकिस्तान के मिथक को तोड़ने के लिए संघर्ष कर रही थी लेकिन वह ऐसा करने में बहुत ज़्यादा क़ामयाब होती नहीं दिखी.  सदस्य देशों के बीच असमान शक्ति की गतिशीलता, जो दुनिया में मुसलमानों के अधिकारों के लिए किसी भी आम सहमति के निर्माण को मुश्किल बनाती है और इसकी सतही वकालत करती है, और उन लोगों की उपेक्षा करना जो उनके हितों के अनुकूल नहीं हैं, जिनका इस संगठन के प्रति भरोसा नहीं है, और जो “मुस्लिम दुनिया के लिए सामूहिक आवाज़” बनना चाहते हैं.

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Shivam Shekhawat

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Shivam Shekhawat is a Junior Fellow with ORF’s Strategic Studies Programme. Her research focuses primarily on India’s neighbourhood- particularly tracking the security, political and economic ...

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