पिछले कुछ वर्षों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) ने तेज़ी से तकनीक़ की क्षमताओं के बारे में बताया है लेकिन विज्ञान पहले से ही कॉग्निटिव (ज्ञान संबंधी) कंप्यूटिंग की सीमा को और आगे बढ़ा रहा है. ऑर्गेनॉइड इंटेलिजेंस (OI) एक उभरता मल्टी-डिसीप्लिनरी क्षेत्र है जो स्टेम सेल से हासिल ब्रेन ऑर्गेनॉइड का उपयोग करके अनूठे कंप्यूटिंग मॉडल की कल्पना करता है. ऑर्गेनॉइड मानव अंग के काम-काज के हिस्से को दोहराने के लिए स्टेम सेल से निकाले गए छोटे टिशू कल्चर हैं. इनका इस्तेमाल अलग-अलग उद्देश्यों जैसे कि डिज़ीज़ मॉडलिंग और दवाओं की टेस्टिंग के लिए किया जाता है लेकिन रिसर्चर्स अब इन्फॉर्मेशन प्रोसेसिंग के लिए इनके इस्तेमाल की संभावना का पता लगा रहे हैं.
ऑर्गेनॉइड इंटेलिजेंस (OI) एक उभरता मल्टी-डिसीप्लिनरी क्षेत्र है जो स्टेम सेल से हासिल ब्रेन ऑर्गेनॉइड का उपयोग करके अनूठे कंप्यूटिंग मॉडल की कल्पना करता है.
OI को आगे बढ़ाना
2022 के आख़िर में कॉर्टिकल लैब की अगुवाई में मेलबर्न के रिसर्चर्स की एक टीम ने इन विट्रो न्यूरल नेटवर्क और सिलिको कंप्यूटिंग का एक इंटीग्रेटेड सिस्टम तैयार किया, जिसे डिशब्रेन कहा जाता है, जो वीडियो गेम ‘पॉन्ग’ खेलने में सक्षम है. इस टीम ने लैब में उत्पन्न 8,00,000 ब्रेन सेल को विकसित किया और एक हाई-डेंसिटी मल्टी इलेक्ट्रोड ऐरे चिप का इस्तेमाल करके ट्रेनिंग दी. वोल्टेज के कंपन ने गेम में अलग-अलग बदलाव जैसे कि बॉल की डायरेक्शन और दूरी का संकेत दिया और जब इसने बॉल को मिस किया तो रैंडम लोकेशन पर इलेक्ट्रिकल कंपन के रूप में फीडबैक दिया. रियल-टाइम इंसेंटिव सिस्टम जैसे कि डोपामाइन पाथवेज़ की गैर-मौजूदगी में वैज्ञानिकों ने फ्री-एनर्जी प्रिंसिपल का उपयोग करके सेल के बर्ताव को नियंत्रित किया. ये थ्योरी मंजूर करती है कि लिविंग सिस्टम, जैसे कि सेल, अनिश्चितता को कम करने में काम करता है. टिशू कल्चर ने गेम सीखकर अपनी दुनिया को ज़्यादा निश्चित बनाया है. गेम खेलने के पांच मिनट के भीतर रिसर्चर्स साफ तौर पर सीखने में कामयाब रहे जो कि कंट्रोल कंडीशन में नहीं देखा गया था.
स्रोत: Kagan et al., Neuron, 2022.
इस तरह की ऑर्गेनॉइड स्टडीज़ दिमाग़ के बारे में हमारी समझ को और बढ़ाने के लिए सीखने और याददाश्त की सेल से जुड़े पहलू को दोहराने का भरोसा देती हैं. रिसर्चर्स ने पहले ही ब्रेन ऑर्गेनॉइड की सीखने की क्षमता पर दवाइयों और शराब जैसी चीज़ों के असर को तय करने के लिए प्रयोग शुरू कर दिया है. ब्रेन ऑर्गेनॉइड को अलग-अलग क्षेत्रों और सेल की परत की नकल करने के लिए भी विकसित किया जा सकता है जो ब्रेन के विकास के शुरुआती चरणों की तरह है. इनका इस्तेमाल न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के कॉग्निटिव (ज्ञान संबंधी) पहलुओं का अध्ययन करने में किया जा सकता है. अल्ज़ाइमर बीमारी से पीड़ित और बिना अल्ज़ाइमर बीमारी वाले लोगों से प्राप्त ऑर्गेनॉइड में मेमोरी फॉर्मेशन की तुलना करने से शायद कमियों को ठीक करने का रास्ता मिल सकता है. वैज्ञानिक पर्सनलाइज़्ड ब्रेन ऑर्गेनॉइड की स्टडी करके ये पता लगा सकते हैं कि कैसे जेनेटिक फैक्टर, दवाइयां और पर्यावरण से जुड़े दूसरे तत्व किसी व्यक्ति के हालात पर असर डालते हैं. इसको AI डेटा एनेलिसिस के साथ जोड़कर आख़िर में पर्किंसन जैसी बीमारियों के कारणों और उसके इलाज के बारे में पता चल सकता है.
ब्रेन ऑर्गेनॉइड को अलग-अलग क्षेत्रों और सेल की परत की नकल करने के लिए भी विकसित किया जा सकता है जो ब्रेन के विकास के शुरुआती चरणों की तरह है. इनका इस्तेमाल न्यूरोलॉजिकल बीमारियों के कॉग्निटिव (ज्ञान संबंधी) पहलुओं का अध्ययन करने में किया जा सकता है.
हालांकि, फीडबैक के जवाब में डिशब्रेन के द्वारा गतिविधियों को खुद से व्यवस्थित करने की क्षमता इंटेलिजेंस का इशारा करती है और कॉग्निशन समझने के लिए ऑर्गेनॉइड का इस्तेमाल करने की संभावना का संकेत देती है. इस संभावना का पता लगाने के लिए योजना की रूप-रेखा बनाने के उद्देश्य से इस साल की शुरुआत में जॉन हॉप्किन्स यूनिवर्सिटी और कॉर्टिकल लैब के रिसर्चर्स एक साथ आए. टीम को उम्मीद है कि वो सिलिकॉन कंप्यूटिंग और AI की तुलना में तेज़ और ज़्यादा सक्षम बायोकंप्यूटर बनाने के लए ब्रेन ऑर्गेनॉइड का इस्तेमाल करेगी.
बायोलॉजिकल लर्निंग के फायदे
बायोलॉजिकल लर्निंग के तीन मुख्य फायदे हैं. पहला फायदा ये है कि भले ही न्यूमेरिक डेटा जैसी आसान सूचना को प्रोसेस करने में मशीन की तुलना में इंसान का दिमाग धीमा हो लेकिन जब जटिल सूचना को प्रोसेस करने और बेहद अलग-अलग एवं अधूरे डेटा सेट के आधार पर फैसला लेने की बारी आती है तो इंसान का दिमाग मशीन से तेज़ चलता है. 2013 में दुनिया की चौथी रैंकिंग के सुपर कंप्यूटर फुजित्सु को 1 सेकेंड की दिमागी गतिविधि को दोहराने में 40 मिनट लगे और अब तक कोई भी तकनीक़ रियल-टाइम की तुलना में बड़े पैमाने पर दिमागी गतिविधियों की नकल नहीं कर सकी है.
बायोलॉजिकल लर्निंग का दूसरा फायदा ये है कि इसे सीखने के लिए बहुत कम सैंपल की आवश्यकता होती है. मुश्किल गेम ‘गो’ के विश्व चैंपियन को हराने वाला पहला कंप्यूटर प्रोग्राम अल्फागो था. इसने एक इंसान को तो हरा दिया लेकिन इसके लिए इसे 1,60,000 गेम से ट्रेनिंग डेटा की ज़रूरत पड़ी. ये 175 साल तक हर रोज़ पांच घंटे गेम खेलने के बराबर है.
ऑर्गेनॉइड में व्यावसायिक हित की वजह से नैतिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए जीन एडिटिंग के इस्तेमाल की सीमा और रेगुलेशन की ज़रूरत पैदा होती है.
बायोलॉजिकल लर्निंग का तीसरा फायदा है ऊर्जा की दक्षता. दुनिया के सबसे शक्तिशाली सुपर कंप्यूटर फ्रंटियर की तुलना में इंसान 10^6 गुना बेहतर ऊर्जा दक्षता पर काम करता है. ये अंतर महत्वपूर्ण है, यहां तक कि किए गए काम में अंतर को ध्यान में रखते हुए भी. हाल के वर्षों में टेक्नोलॉजी में लगाई गई छलांग ने जिस तरह से कंप्यूटिंग पावर के लिए मांग को पूरा नहीं किया है, उसे देखते हुए ये और भी ज़्यादा अहम होता जा रहा है. ये ‘कंप्यूटेशनल बोझ’ डीप लर्निंग में प्रगति को आर्थिक, तकनीक़ी और पर्यावरण के हिसाब से अस्थिर (अनसस्टेनेबल) बना रहा है.
OI का भविष्य
बायोलॉजिकल लर्निंग के ये फायदे OI को अपनाने की दिशा में एक लुभावनी सोच है. लेकिन एक OI बायोकंप्यूटर को विकसित करने से पहले हमें महत्वपूर्ण नैतिक और तकनीक़ी बाधाओं से पार पाना होगा. नैतिकता से जुड़ी ज़्यादातर चिंताएं चेतना और दुख से जुड़े सवालों के इर्द-गिर्द केंद्रित हैं. लेकिन OI के मामले में नैतिकता से जुड़ी चिंताएं सेल डोनेशन स्टेज से शुरू होती हैं और तकनीक़ को बढ़ावा, सीखने और इस्तेमाल तक जारी रहती हैं. इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं: डोनेशन के समय स्वेच्छा से सोच-समझकर मंज़ूरी देना डोनर के अधिकारों और गरिमा की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है. भेदभाव के जोख़िमों को कम करने और न्यूरोडायवर्सिटी को बढ़ावा देने के लिए चयन में पक्षपात को भी रोकना चाहिए. ऑर्गेनॉइड में व्यावसायिक हित की वजह से नैतिक विकास को सुनिश्चित करने के लिए जीन एडिटिंग के इस्तेमाल की सीमा और रेगुलेशन की ज़रूरत पैदा होती है. सीखने और कंप्यूटेशन के चरण में टेक्नोलॉजी की डेटा शेयरिंग और हर किसी तक उसकी पहुंच जानकारी बढ़ाने में समावेशन (इनक्लूज़िविटी) और बहुलता (प्लूरेलिटी) के लिए महत्वपूर्ण हैं. इसको उपयोग में लाने के दौरान इस्तेमाल के बारे में भागीदारों (स्टेकहोल्डर) को मालूम रेगुलेशन की ज़रूरत पड़ेगी. जैसे-जैसे ये क्षेत्र विकसित होगा, वैसे-वैसे नैतिक रूप से OI के विकास को सुनिश्चित करने के लिए कई और चिंताओं का समाधान करना होगा.
सॉफिस्टिकेटेड कॉग्निशन के साथ ऑर्गेनॉइड बनाने के लिए मेमोरी स्टोरेज अहम है. सीमित रिसर्च और आगे बढ़ने में बाधाओं के साथ तकनीक़ के ऐसे कई पहलू हैं जिनको विकसित किया जाना अभी बाकी है.
तकनीक़ी तौर पर OI की कॉग्निटिव क्षमता को बढ़ाने के लिए पहला कदम होगा ब्रेन ऑर्गेनॉइड को 100 गुना बढ़ाना यानी मौजूदा 1,00,000 सेल से बढ़ाकर 1 करोड़ सेल करना. सेल की संख्या को बढ़ाने से ब्रेन के ऑर्गेनाइज़ेशन और साइनैप्टिक इंटरेक्शन (चेतना से जुड़ी बातचीत) को बेहतर ढंग से जगह मिलेगी और इस तरह ऑर्गेनॉइड जटिल कंप्यूटिंग के लिए सक्षम बन जाएंगे. इसके लिए प्रगतिशील (सॉफिस्टिकेटेड) ब्लड फ्लो सबस्टिट्यूशन सिस्टम को विकसित करने की आवश्यकता होगी. सेल में विविधता को भी पेश करने की ज़रूरत होगी ताकि सीखने और याददाश्त में शामिल मानी जाने वाली नॉन-न्यूरल सेल को भी शामिल किया जा सके. सॉफिस्टिकेटेड कॉग्निशन के साथ ऑर्गेनॉइड बनाने के लिए मेमोरी स्टोरेज अहम है. सीमित रिसर्च और आगे बढ़ने में बाधाओं के साथ तकनीक़ के ऐसे कई पहलू हैं जिनको विकसित किया जाना अभी बाकी है.
वैसे तो ये शुरुआती चरण में है लेकिन डिशब्रेन का पोंग एक्सपेरिमेंट इंटेलिजेंस की मूलभूत परिभाषा को पूरा करता है. इस क्षेत्र के विकसित होने के बारे में अब सवाल अगर की जगह कैसे का है. वैसे तो इस्तेमाल में आने वाला OI अभी भी सामने नहीं है लेकिन हाल के इनोवेशन ने मुश्किल कॉग्निशन, सीमित या अधूरे डेटा से सीखने और ऊर्जा दक्षता में हमारी मौजूदा सिलिकॉन और AI-बेस्ड तकनीकों की कमियों को उजागर किया है. ये हमें याद दिलाता है कि चूंकि हम ऊर्जा के ज़्यादा इस्तेमाल वाली तकनीक़ी प्रगति की हदों की तरफ बढ़ रहे हैं, ऐसे में ये हमारे साझा हित में है कि टिकाऊ (सस्टेनेबल) विकल्पों की तरफ नज़र डालें.
अमोहा बसरूर ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में रिसर्च असिस्टेंट हैं.
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