Expert Speak India Matters
Published on Sep 21, 2022 Updated 0 Hours ago
भारत में पेट्रोलियम सब्सिडी का दावा हवा-हवाई या सच्ची?

ष्ठभूमि

‘ऊर्जा सब्सिडी’ की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, या सब्सिडी का अनुमान लगाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली पद्धति पर आम सहमति अभी भी नहीं बनी है. आईआईएसडी (इंस्टीट्य़ूट ऑफ सस्टेनेबल डेवलपमेंट)जो एक गैर-सरकारी संगठन है जिसने  2017-19 में भारत की जीवाश्म ईंधन सब्सिडी (कोयला, तेल और गैस के लिए उत्पादक और उपभोक्ता सब्सिडी) को 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर की सीमा पर रखा. आईईए (अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी) और ओईसीडी (आर्थिक सहयोग और विकास संगठन) इसी अवधि के लिए लगभग 10-12 अरब अमेरिकी डॉलर का अनुमान रखते हैं. आईएमएफ (अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष) और डब्ल्यूटीओ (विश्व व्यापार संगठन) जैसी अन्य एजेंसियां अलग-अलग अनुमान पेश करती हैं क्योंकि वे अपने कोर मैंडेट (मूल जनादेश) के अनुसार ऊर्जा सब्सिडी को परिभाषित करती हैं. जो तरीक़ा इस्तेमाल में लाया जाता है उसके बावज़ूद, हमेशा से दुनिया में जीवाश्म ईंधन सब्सिडी को लेकर भारत का स्थान सबसे ऊपर रहा है. ऊर्जा सब्सिडी में सुधार लाना कठिन बताया जाता है क्योंकि वे विभिन्न हित समूहों के समर्थन को सुरक्षित करने के एक तरह से दिए जाने वाले रेंट हैं. हालांकि भारत ने पिछले दस वर्षों में गंभीर राजनीतिक नतीजों के बिना पेट्रोलियम सब्सिडी में काफी कमी की है.

ऊर्जा सब्सिडी में सुधार लाना कठिन बताया जाता है क्योंकि वे विभिन्न हित समूहों के समर्थन को सुरक्षित करने के एक तरह से दिए जाने वाले रेंट हैं. हालांकि भारत ने पिछले दस वर्षों में गंभीर राजनीतिक नतीजों के बिना पेट्रोलियम सब्सिडी में काफी कमी की है.

सब्सिडी

भारत ने छोड़े गए राजस्व की व्याख्या करने के लिए ‘अंडर-रिकवरी’ शब्द का इस्तेमाल किया है क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कच्चे तेल की क़ीमतों में पेट्रोल और डीज़ल के ख़ुदरा मूल्य में बदलाव की अनुमति नहीं थी. इसकी गिनती सब्सिडी के रूप में की जा सकती है. एलपीजी (लिक्विफाइड पेट्रोलियम गैस) और मिट्टी के तेल जैसे चुनिंदा पेट्रोलियम उत्पादों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी ग़रीब परिवारों को लाभ पहुंचाने के लिए अपेक्षित सब्सिडी का एक अधिक प्रत्यक्ष रूप था. एलपीजी और केरोसिन की क़ीमतों में छूट को बाद में ऐसे परिवारों को दिए जाने वाले डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण) के साथ बदल दिया गया. टैक्स के बाद उपभोग सब्सिडी 2012-13 में 3.2 ट्रिलियन रुपए के उच्च स्तर से 98 प्रतिशत से अधिक घटकर 2020-21 में लगभग 36 बिलियन रुपए रह गई है. जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) के प्रतिशत के रूप में, पेट्रोलियम सब्सिडी साल 2010-11 में सकल घरेलू उत्पाद के 94 फ़ीसदी से कम होकर, 1.7 प्रतिशत से घटकर साल 2010-11 में लगभग 0.06 प्रतिशत रह गई.

टैक्स

पेट्रोलियम उत्पादों से मिलने वाला कर राजस्व भारत सरकार के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा है. 2014-15 के बाद से केंद्रीय और राज्य करों ने भारत में पेट्रोल और डीज़ल के ख़ुदरा मूल्य के आधे से अधिक का हिस्सा बनाया है. पेट्रोलियम पर लगने वाले उत्पाद शुल्क का हिस्सा 2020-21 में भारत के अप्रत्यक्ष कर राजस्व में 45 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है. केंद्र सरकार की कुल राजस्व प्राप्तियों के हिस्से के रूप में पेट्रोलियम राजस्व का हिस्सा 2010-11 में 15 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में 29 प्रतिशत हो गया जो क़रीब 93 फीसदी से ज्यादा था. चूंकि भारत कुछ पेट्रोलियम उत्पादों की खपत पर सब्सिडी देते हुए पेट्रोलियम की खपत पर भारी कर लगाता है, ऐसे में यह एक समस्या पैदा करता है जब सब्सिडी की संकीर्ण व्याख्या की जाती है. जीवाश्म ईंधन ‘सब्सिडी’ पर कई अध्ययन केवल उन नीतियों की ओर देखते हैं जो एनर्जी सर्विस (ऊर्जा सेवा) की पूरी लागत से कम क़ीमत निर्धारित करने की सख़्त परिभाषा को पूरा करती हैं. यह देखते हुए कि साल 2020-21 में, पेट्रोलियम उत्पादों पर कर की दर पेट्रोलियम सब्सिडी-आउटगो के 100 गुना से अधिक थी, यह कहना गल़त नहीं होगा कि पेट्रोलियम उत्पादों के उपभोक्ता अनिवार्य रूप से सरकारी बज़ट को ‘सब्सिडी’ मुहैया कराते हैं.

यह देखते हुए कि साल 2020-21 में, पेट्रोलियम उत्पादों पर कर की दर पेट्रोलियम सब्सिडी-आउटगो के 100 गुना से अधिक थी, यह कहना गल़त नहीं होगा कि पेट्रोलियम उत्पादों के उपभोक्ता अनिवार्य रूप से सरकारी बज़ट को ‘सब्सिडी’ मुहैया कराते हैं.


सब्सिडी रिफॉर्म

मशहूर एनर्जी इकोनॉमिस्ट डेविड विक्टर ने तर्क दिया है कि यद्यपि ऊर्जा सब्सिडी सुधार, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन सब्सिडी सुधार, विकासशील देशों के लिए एक नो-रिग्रेट या विन-विन क़दम के रूप में प्रस्तुत किया जाता है (राजकोषीय घाटे में कमी और जीवाश्म ईंधन के उपयोग में कमी से कार्बन उत्सर्जन में कमी आती है), लिहाज़ा इसे पूरा करना कठिन है क्योंकि सब्सिडी राजनीतिक तर्क में गहराई से अपनी जगह बना चुका है जिसमें किसी भी तरह का बदलाव आसान नहीं है. इस धारणा के साथ शुरू करते हुए कि सरकारी नेताओं का लक्ष्य सत्ता में बने रहना है, विक्टर ने देखा कि सरकारी नेता संसाधनों को इंटरेस्ट ग्रुप्स के लिए चैनल करेंगे जो उनके राजनीतिक अभियान को वोट मुहैया कराएंगे. भारतीय मामले में लागू  पेट्रोलियम उत्पाद सब्सिडी ने पारंपरिक रूप से वोटरों को, ख़ास तौर पर ग़रीब और मध्यम वर्ग के परिवारों को लक्षित किया है. साल 2014-15 के बाद से, इन कल्याणकारी प्रावधानों (सार्वभौमिक मूल्य छूट, उपभोक्ताओं को डायरेक्ट ट्रांसफर बेनिफिट का लाभ) से एक स्पष्ट बदलाव आया है. 2010 के मध्य और अंत में कच्चे तेल की क़ीमतों में गिरावट (महामारी के बाद वैश्विक आर्थिक मंदी) ने शुरू में सब्सिडी को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करने के लिए मौक़ा दिया. हालांकि कच्चे तेल की कम क़ीमतों का यह मौक़ा 2020 के दशक की शुरुआत से बंद हो गया है लेकिन सब्सिडी को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त किया जा रहा है. इसने कुछ अर्थों में ‘ऊर्जा के लिए बाज़ार’ के निर्माण की शुरुआत की है जो कॉरपोरेट डोनर्स के बाद के हित समूह को लाभान्वित करेगा जो सरकार के सत्ता में बने रहने का समर्थन करते हैं. सरकार द्वारा और कॉरपोरेट डोनर्स द्वारा नियंत्रित मीडिया आउटलेट्स की पहचान की राजनीति को अपनाने से, ऊर्जा और अन्य हैंडआउट्स से ध्यान भटकाने वाली प्रमुख और अल्पसंख्यक पहचान के बीच ज़ीरो-सम कॉम्पिटिशन पैदा हुई है. एनर्जी वेलफेयर पॉलिटिक्स से दूर हटना, जिसमें गंभीर राजनीतिक या सामाजिक परिणामों के बिना पेट्रोलियम सब्सिडी को चरणबद्ध तरीक़े से समाप्त करना शामिल है लेकिन यह सीमित नहीं है. यह दर्शाता है कि सरकार बाज़ार में अपने हस्तक्षेप में उतनी ही शक्तिशाली है जितनी कि इससे वापसी को लेकर है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.

Authors

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati

Akhilesh Sati is a Programme Manager working under ORFs Energy Initiative for more than fifteen years. With Statistics as academic background his core area of ...

Read More +
Lydia Powell

Lydia Powell

Ms Powell has been with the ORF Centre for Resources Management for over eight years working on policy issues in Energy and Climate Change. Her ...

Read More +
Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar Tomar

Vinod Kumar, Assistant Manager, Energy and Climate Change Content Development of the Energy News Monitor Energy and Climate Change. Member of the Energy News Monitor production ...

Read More +

Related Search Terms