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Published on Jun 04, 2025 Updated 0 Hours ago

भारत को अपनी राष्ट्रीय AI में नवाचार क्षमताओं को खड़ा करने के लिए मांग, क्षेत्रवार प्राथमिकताओं, नवाचार और कम्यूटिंग तक पहुंच में सुधार करने पर ध्यान देना होगा.

भारत की राष्ट्रीय AI क्षमता के लिए कम्प्यूटिंग रणनीतियों का उपयोग ज़रूरी!

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एक दशक में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) कम्यूटिंग की मांग में बेतहाशा वृद्धि हुई है. 2011 से AI मॉडल्स को प्रशिक्षण देने वाले कम्यूटिंग के उपयोग में 350 मिलियन गुना इज़ाफ़ा हुआ है. 2010 में जब से डीप लर्निंग ने गति पकड़ी है तब से AI मॉडल्स के लिए कम्यूटिंग में AI का उपयोग प्रति 5.7 माह में दोगुना होता जा रहा है. 2015 में बड़े पैमाने पर मशीन लर्निंग (ML) मॉडल्स उभरे थे. इन मॉडल्स की कम्यूटिंग प्रशिक्षण ज़रूरतें 10 से 100 गुणा अधिक थी. AI नवाचार के दो अन्य बिल्डिंग ब्लॉक्स डाटा और मॉडल्स हैं. लेकिन इन दोनों के मुकाबले कम्यूट अथवा कम्प्युटरीकरण बेहद सीमित मात्रा में उपलब्ध है.

डाटा सेंटर की बढ़ती मांग के साथ ही कम्यूटिंग की मांग में भी तेजी से वृद्धि हुई है. मैक्किंज़े की ओर से दिए गए एक मध्यम स्तर के परिदृश्य अथवा आकलन के अनुसार 2030 तक ग्लोबल डाटा सेंटर्स की क्षमता तीन गुणा बढ़ जाएगी. इसमें से 70 फीसदी मांग AI की वजह से होने का अनुमान है. लेकिन डाटा सेंटर के लिए सीमित संसाधनों जैसे रियल एस्टेट और पॉवर (एक अनुमान है कि AI की वजह से डाटा सेंटर के लिए आवश्यक पॉवर में 2030 तक 165 गुणा वृद्धि होगी) के साथ-साथ हाई-एंड यानी उच्च गुणवत्ता वाले स्ट्रैटेजिक और तकनीकी इनपुट जैसे आधुनिक सेमीकंडक्टर की भी ज़रूरत होगी. इस मांग के साथ ही AI की वजह से पड़ने वाले बोझ को समाहित करने वाले क्लाउड सर्विस आपूर्तिकर्ताओं की भी ज़रूरत बढ़ने वाली है. जैसे-जैसे AI तकनीकों एवं कम्प्युटरीकरण की मांग उभर रही है, वैसे-वैसे राष्ट्रीय कम्प्यूटरीकरण रणनीतियों को भी विभिन्न दृष्टिकोण अपनाने होंगे. इसमें केंद्रीकृत डाटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ कम्प्युटरीकरण क्षमताओं का विस्तार शामिल है.

जैसे-जैसे AI तकनीकों एवं कम्प्युटरीकरण की मांग उभर रही है, वैसे-वैसे राष्ट्रीय कम्प्यूटरीकरण रणनीतियों को भी विभिन्न दृष्टिकोण अपनाने होंगे. इसमें केंद्रीकृत डाटा सेंटर इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ कम्प्युटरीकरण क्षमताओं का विस्तार शामिल है.

अब भारत AI-प्रेरीत बदलाव की दहलीज पर खड़ा है. ऐसे में यह आवश्यक है कि भविष्य की ओर देखने वाली कम्प्यूटरीकरण रणनीति में आने वाले घटकों के बारे में गंभीरता से विचार किया जाए. भारत में कंप्यूटरीकरण का परिदृश्य मजबूत डाटा सेंटर्स में हो रही वृद्धि के लिए पहचाना जाता है. 2019 से इसमें 24 प्रतिशत की कंपाउंड एनुअल ग्रोथ रेट या CAGR देखी जा रही है. इसके अलावा इंडिया AI मिशन के कंप्यूट पोर्टल के माध्यम से ग्राफिक्स प्रोसेसिंग युनिट्‌स (GPUs) के लिए सार्वजनिक प्रावधान भी किया जा रहा है. इसका उद्देश्य सस्ती दरों पर GPUs मुहैया करवाना है. इसके अलावा एक माइक्रो डाटा सेंटर्स का विकेंद्रीकृत नेटवर्क बनाने का भी प्रस्ताव है. यह स्पेस यानी जगह, एनर्जी यानी ऊर्जा और कीमत का सर्वोत्तम उपयोग करने में सहायक साबित होगा. इसके अलावा अकादमिक रिसर्च एंड डेवलपमेंट के लिए नेशनल सुपरकंप्यूटिंग मिशन के तहत सुपरकंप्यूटिंग भी उपलब्ध है. इसी प्रकार जीरोह लैब और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT)-मद्रास का कॉम्पैक्ट AI जैसे नवाचार भी मौजूद है जो AI मॉडल्स को GPUs की बजाय सेंट्रल प्रोसेसिंग यूनिट (CPUs) पर चलने में सक्षम करते हैं. यह प्रगति इस बात की ज़रूरत पर बल देती है कि अब इस गति को कंप्यूट की मांग-ट्रेनिंग यानी प्रशिक्षण से इन्फरन्स अर्थात आकलन/अनुमान की उभरती प्रकृति के साथ संरेखित किया जाना चाहिए और अहम क्षेत्रों में एज कम्प्यूटिंग (AI मॉडल्स को उपकरणों एवं डाटा सोर्सेस के पास चलाना) के बढ़ते महत्व को पहचान कर उसे स्वीकार किया जाना चाहिए. इस क्षेत्र में भी नीति की दिशा तकनीकी, आर्थिक और भू-राजनीतिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखकर तय की जानी चाहिए.

राष्ट्रीय नवाचार क्षमताओं का निर्माण : दृष्टिकोणों की तुलना

किसी भी देश की AI में राष्ट्रीय नवाचार की क्षमताएं उस देश की मौजूदा कम्प्यूट इंफ्रास्ट्रक्चर जैसी आधारभूत क्षमता पर ही निर्भर करती है. आर्थिक विकास और सुरक्षा के लिए इस तरह की मूलभूत क्षमताओं का विकास किया जाना ज़रूरी है. वैश्विक वर्चस्व के लिए अब AI की भूमिका आर्बिटर यानी मध्यस्थ के रूप में रणनीतिक रूप से बेहद अहम हो गई है. कम्प्यूटिंग संसाधन के असमान वितरण की वजह से अब कम्प्यूट यानी कम्प्यूटरीकृत भू-राजनीतिक पैंतरेबाजी अपनाने में केंद्रबिंदु बनकर उभरा है. इसका कारण यह है कि कंप्यूट को लेकर ही निर्यात नियंत्रण, प्रतिरोधी उपाय और राष्ट्रीय AI नवाचार नीतियां ही अब किसी भी देश की AI नवाचार ट्रेजेक्टरी यानी प्रक्षेपवक्र को तय करते हैं.

अब जब देश घरेलू नवाचार क्षमताओं में वृद्धि करने की कोशिश कर रहे हैं तब बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे में निवेश भी आवश्यक हो गया है. अब ‘AI फैक्टरिज’ की अवधारणा जोर पकड़ती जा रही है. यह एक ऐसा ऑप्टिमाइज्ड कम्प्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर मॉडल है जो AI वर्कलोड और लाइफ-साइकिल मैनेजमेंट को संभालने की क्षमता रखता है. अब AI के लिए स्पेशलाइज्ड डाटा सेंटर ही सेंट्रल इंफ्रास्ट्रक्चर ट्रेंड बनते जा रहे हैं और इस क्षेत्र में निजी निवेशक बड़ी मात्रा में आकर्षित हो रहे हैं. इस उद्योग में एनवीडिया जैसे अग्रणी खिलाड़ी अब फॉक्सकॉन, डेल तथा ASUS जैसे प्रतिष्ठानों के साथ समन्वय साधते हुए जनरेटिव AI (Gen AI) वर्कलोड्‌स के लिए डेडिकेटेड फैसिलिटी यानी समर्पित सुविधाओं को स्थापित कर रहे हैं. इसके अलावा एनवीडिया भविष्य की AI फैक्टरिज को चलाने में सक्षम AI सुपरकम्प्यूटर के विकास के लिए यूनाइटेड स्टेट्‍स (US) में निवेश भी कर रही है. AI मूल्य श्रृंखला की बड़ी तकनीकी फर्मों जैसे कि ओपन AI जैसे डेवलपर्स, क्लाउड सर्विस आपूर्तिकर्ता जैसे अमेजॉन वेब सर्विसेस, माइक्रोसॉफ्ट और गूगल की US मेज़बानी करता है. इसके अलावा एनवीडिया, AMD और इंटेल जैसे चीप डिजाइनर्स और विनिर्माताओं तथा KLM, LAM और एप्लाइड मैटेरियल्स जैसे सेमीकंडक्टर उपकरण विनिर्माता भी US में ही काम कर रहे है. यह माहौल AI इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए निजी क्षेत्र प्रेरित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करता है. अपने यहां AI इंफ्रास्ट्रकचर और टेक मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती प्रदान करने के लिए देश में रणनीतिक तकनीकी क्षमताओं को विकसित करने की US की वर्तमान नीति ही वहां निजी निवेश को प्रोत्साहित कर रही है.

अपने यहां AI इंफ्रास्ट्रकचर और टेक मैन्युफैक्चरिंग को मजबूती प्रदान करने के लिए देश में रणनीतिक तकनीकी क्षमताओं को विकसित करने की US की वर्तमान नीति ही वहां निजी निवेश को प्रोत्साहित कर रही है.

AI फैक्टरिज के चीनी संस्करण को ‘इंटेलिजेंट कम्प्यूटिंग सेंटर्स’ के रूप में जाना जाता है. हाल के वर्षों में सरकार की अगुवाई में अपनाए गए दृष्टिकोण और निजी खिलाड़ियों जैसे अलीबाबा, टेंसेंट और बैदू के समर्थन से इन सेंटर्स में काफ़ी तेजी से वृद्धि हुई है. चीन ने अंडरवॉटर कम्प्यूटिंग सेंटर, जैसे कि हाइनान, में भी विकसित किया है. इसका लक्ष्य AI विकास और अपने राष्ट्रीय AI कम्प्यूटिंग नेटवर्क को प्रोत्साहित करना है. ये सारे समूह मिलकर उच्च दर्ज़े की, कथित रूप से डीपसीक, जैसी AI एप्लीकेशन का समर्थन करते हैं. अंडरवॉटर कम्प्यूटिंग सेंटर्स न केवल ऊर्जा कुशल होते हैं, बल्कि ये रियल एस्टेट यानी भूमि संबंधी परेशानियों से निपटने में भी सहायक होते हैं. इसके अलावा ये संभावित रूप से भूमि आधारित मॉडल्स के मुकाबले अधिक कम्प्यूटिंग कुशलता के साथ काम करते हैं.

हालांकि चीन के आक्रामक निर्माण शैली के कारण घटिया दर्ज़े की सुविधाएं तैयार हुई और अत्यधिक आपूर्ति होने लगी. अनेक डाटा सेंटर्स को मुख्यतः आकलन कार्यों की बजाय पूर्व प्रशिक्षण कार्यभार के लिए डिजाइन किया गया था. ऐसे में ये सेंटर्स रनिंग मॉडल्स की बजाय प्रशिक्षण के ही ज़्यादा काम में आते हैं. डीपसीक के आगमन और उसके उपयोग में वृद्धि से कुल-मिलाकर उद्योग की मांग अब इन्फरन्स यानी अनुमान की दिशा में बढ़ गई है और इसके लिए एक अलग हार्डवेयर प्रोफाइल की आवश्यकता है.

अब रिजनिंग मॉडल्स अर्थात तर्क मॉडल्स तेजी से अहम होते जा रहे हैं. इनके लिए उपयोगकर्ता के सवालों के सक्सेसिव लॉजिकल डिडक्शंस यानी क्रमिक तार्किक निष्कर्षों की आवश्यकता है. ऐसे में हाई स्पीड और लो लेटेंसी (यानी नेटवर्क में डाटा को एक स्थान/बिंदु से दूसरे स्थान/बिंदु तक जाने में लगने वाला वक्त) काफी महत्वपूर्ण हो गए हैं. इस बदलाव के कारण असंतुलन पैदा हो गया है. चूंकि डाटा सेंटर्स को अब मेजर टेक हब्स यानी मुख़्य तकनीकी ठिकानों के पास स्थापित करना ज़रूरी है, अत: मध्य, पश्चिमी तथा ग्रामीण चीन में सस्ती भूमि और बिजली की वजह से स्थापित सेंटर्स का कम उपयोग हो रहा है.

AI फैक्टरिज अब यूरोपियन यूनियन (EU) की AI स्ट्रैटेजी में भी केंद्रीय स्थान पर है. अनुसंधान और तकनीकी हब्स यानी ठिकानों के माध्यम से कंप्यूटिंग क्षमता तक पहुंच को सुनिश्चित करने के लिए EU अब संस्थागत दृष्टिकोण अपना रहा है. इसका उद्देश्य र्स्टाट-अप्स, मध्यम एवं लघु उद्यमों (SMEs) तथा अनुसंधानकर्ताओं को AI सिस्टम और सोल्युशंस विकसित करने में सक्षम बनाना है. इन प्रयासों से रणनीतिक क्षेत्र जैसे स्वास्थ्य, अंतरिक्ष, वित्त, जलवायु और विनिर्माण को प्रोत्साहित करने का लक्ष्य है. यह पहल यूरोपियन हाई परफॉर्मेंस कम्प्यूटिंग ज्वाइंड अंडरटेकिंग(EuroHPC) के तहत काम कर रही है.

भारतीय आवश्यकता : स्तर, कुशलता और पहुंच में संतुलन

US, चीन तथा EU ने कम्प्यूटरीकरण इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण को लेकर विषम दृष्टिकोण का उदाहरण पेश करते हैं. US जहां बाज़ार प्रेरित मॉडल के माध्यम से इसे विकसित कर रहा है, वहीं चीन ने सरकार-निर्देशित इंफ्रास्ट्रक्चर विस्तार को अपनाया है. इसके अलावा EU ने पब्लिक-इंस्टीट्यूशनल फ्रेमवर्क यानी सार्वजनिक-संस्थागत ढांचे को अपनाया है. इंडिया AI मिशन के तहत भारत ने पहले चरण में 14,000 GPUs उपलब्ध करवाए हैं. ताजा ख़बरों के अनुसार भारत अब अपने पहले अधिग्रहण में हासिल 18,700 में अब 14,000 का और इज़ाफ़ा करने जा रहा है. हालांकि सरकार की ओर से किए जा रहे प्रावधान और बाज़ार की तोड़-मरोड़ से जुड़े ख़तरे को लेकर चिंताएं उभरने लगी है. इसके अलावा नौकरशाही के संभावित अड़ंगों को लेकर भी चिंता है जिसकी वजह से इस कम्प्यूटरीकरण क्षमता तक पहुंच सीमित हो सकती है. ये चिंताएं मांग में देखे जा रहे बदलाव के बीच पैदा हो रही हैं. अब मांग प्रशिक्षण की बजाय अनुमान तथा एज पर डाटा प्रोसेसिंग की तरफ मुड़ गई है. इसके अलावा विकेंद्रीकृत कम्प्यूटिंग इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित प्रस्ताव भी लंबित हैं.

इन बातों की वजह से अब एक ऐसे नीति विकास और कम्प्यूटिंग रणनीति की आवश्यकता है जो नीचे दिए गए मुद्दों को ध्यान में रखती हो :

(a) कंप्यूट डिमांड की मांग की उभरती प्रकृति

(b) उच्च AI पैठ वाले महत्वपूर्ण क्षेत्र और उद्योग

(c) भारतीय र्स्टाट-अप पारिस्थितिकी तंत्र की नवाचार महत्वकांक्षाएं

(d) पहुंच तक न्यूनतम बाधाएं सुनिश्चित करना

आमतौर पर मांग अब अनुमान की ओर झुकती दिखाई दे रही हैं, लेकिन भारत अपने घरेलू LLMs को भी विकसित कर रहा है. इन LLMs के लिए बड़े पैमाने पर प्रशिक्षण क्षमता की आवश्यकता है. ऐसे में ट्रेनिंग एंड इंफरंस अर्थात प्रशिक्षण और अनुमान कम्प्यूटरीकरण क्षमताओं के बीच संतुलन बेहद अहम है. इसके अलावा भविष्य की मांग का पूर्वानुमान करने में AI एकीकरण के संभावित क्षेत्रों की क्षमता को समझना ज़रूरी है. टेलीकम्युनिकेशंस, मैन्युफैक्चरिंग, ऑटोमोटिव और हेल्थकेयर जैसे उद्योगों में एज कम्प्यूटिंग की मजबूत संभावना दिखाई देती है. इन क्षेत्रों में डाटा को प्वाइंट ऑफ यूज यानी उपयोग के स्थान पर ही प्रोसेस करना ज़रूरी है ताकि बेहतर गति और कुशलता हासिल की जा सके.

वर्तमान में अधिकांश र्स्टाट-अप्स एप्लीकेशन-केंद्रित नवाचार की दिशा में जाते हैं, क्योंकि वे अपने निवेश पर जल्दी से मुनाफ़ा कमाना चाहते है. लेकिन जैसे-जैसे डीप टेक की अहमियत बढ़ रही है वैसे-वैसे कम्प्यूट डिमांड की उभरती प्रकृति को समझना ज़रूरी है ताकि व्यापक नवाचार क्षमताओं की संभावना का दरवाजा खोला जा सके.

वर्तमान में अधिकांश र्स्टाट-अप्स एप्लीकेशन-केंद्रित नवाचार की दिशा में जाते हैं, क्योंकि वे अपने निवेश पर जल्दी से मुनाफ़ा कमाना चाहते है. लेकिन जैसे-जैसे डीप टेक की अहमियत बढ़ रही है वैसे-वैसे कम्प्यूट डिमांड की उभरती प्रकृति को समझना ज़रूरी है ताकि व्यापक नवाचार क्षमताओं की संभावना का दरवाजा खोला जा सके. इसके साथ ही पहुंच तक आने वाली बाधाओं को कम करना भी ज़रूरी है. यह न केवल नवाचार को अंतिम मील तक विस्तारित करने के लिए आवश्यक है, बल्कि ऐसा होने पर AI एडॉप्शन यानी AI को अपनाने से SMEs की उत्पादकता के लाभ को भी बढ़ावा दिया जा सकता है.

ऐसे में स्तर, कुशलता एवं पहुंच को संतुलित करने वाला ऑप्टिमाइजिंग कम्प्यूटिंग एप्रोच यानी अनुकूलित कम्प्यूटरीकरण दृष्टिकोण अपनाना बेहद ज़रूरी हो गया है. भारत को अपनी रणनीति मांग की गतिकी, क्षेत्रवार प्राथमिकताओं, नवाचार सक्षमता और समावेशी पहुंच के हिसाब से तैयार करनी होगी. यह संतुलन हासिल करने के लिए मार्केट डायनैमिक्स यानी बाज़ार गतिकी का दोहन करना होगा और निजी निवेश को बढ़ावा देना होगा. इसके साथ ही विकेंद्रीकृत कम्प्यूट इंफ्रास्ट्रक्चर को लक्षित करने वाली नीति पेश करनी होगी. इतना ही नहीं सरकारी चैनल्स के माध्यम से केंद्रीकृत कम्प्यूट संसाधनों तक पहुंच को सुगम करना भी सुनिश्चित करना होगा.


अनुलेखा नंदी, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्योरिटी, स्ट्रैटेजी एंड टेक्नोलॉजी में फैलो हैं.

अनुषा गुरु, ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में रिसर्च इंटर्न हैं.

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