Author : Sushant Sareen

Expert Speak Raisina Debates
Published on May 20, 2025 Updated 0 Hours ago

ऑपरेशन सिंदूर बताता है कि पाकिस्तान के परमाणु झांसे में अब भारत नहीं फंसने वाला. इस कार्रवाई ने आपसी रिश्तों में एक नई लक्ष्मण रेखा खींच दी है कि पाकिस्तान को आतंकवाद की क़ीमत अब पहले से अधिक चुकानी होगी. 

#Operation सिंदूर: पाकिस्तान समस्या का अस्थायी समाधान; स्थायी समाधान अभी बाकी...

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भारतीय उप-महाद्वीप में एक नया नियम गढ़ा जा रहा है, जिसे ‘मोदी नीति’ कहा जा सकता है. 12 मई, 2025 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमा पार आतंकवाद पर भारत की नीति बताते हुए कहा कि - अब किसी परमाणु ब्लैकमेल को सहन नहीं किया जाएगा, सीमा पार आतंकवाद को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा और पानी (केवल सिंधु जल संधि- IWT नहीं) व खून एक साथ नहीं बह सकेंगे. ये वे लक्ष्मण रेखाएं हैं, जो न केवल पाकिस्तान के लिए, बल्कि शायद बांग्लादेश और उन सभी पड़ोसी देशों के लिए अब खींच दी गई हैं, जो भारत के प्रति किसी भी तरह की शत्रुतापूर्ण सोच रखते हैं. हालांकि, यह भी सच है कि पाकिस्तान जैसे भारत के दुश्मन देश इन लक्ष्मण रेखाओं को लांघने का प्रयास करते रहेंगे.

12 मई, 2025 को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीमा पार आतंकवाद पर भारत की नीति बताते हुए कहा कि - अब किसी परमाणु ब्लैकमेल को सहन नहीं किया जाएगा, सीमा पार आतंकवाद को युद्ध की कार्रवाई माना जाएगा और पानी व खून एक साथ नहीं बह सकेंगे.

भारतीय वायु सेना (IAF) के हाथों अपने 11 सबसे महत्वपूर्ण एयरबेस का नुक़सान सहने, अपनी वायु रक्षा प्रणालियों के नष्ट होने, आतंकी संगठनों के नौ मुख्यालयों व शिविरों पर बमों की बरसात होने और भारत को कोई उल्लेखनीय नुक़सान पहुंचाने में पाकिस्तानी सशस्त्र बलों के पूरी तरह विफल हो जाने का अपमान सहने वाला पाकिस्तान हिसाब बराबर करने के लिए बेचैन रहेगा. इस्लामाबाद ने कुछ भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने का दावा ज़रूर किया है, पर विमानों की संख्या जिस तरह लगातार बढ़ाई जा रही है, क्योंकि हार के कारण पाकिस्तान की असली सरकार ‘पाकिस्तानी फ़ौज’ का अपमान लगातार बढ़ता जा रहा है, उससे यही लगता है कि भारत ने पाकिस्तान को बुरी तरह हराया है और मुकाबला अपने नाम कर लिया है. हां, इस क्रम में हमने कुछ विकेट भी गंवाए हैं.

सूचना युद्ध

पाकिस्तान को एकमात्र सफलता सूचना-युद्ध में मिली थी. यह कुछ हद तक पाकिस्तानी सेना के मीडिया कोर- इंटर सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) - के कारण हो सका, जो समझौता-परस्त मीडिया का उपयोग करके ख़बरों के प्रवाह को प्रभावित करता रहा. हालांकि, चीन और तुर्की के दुष्प्रचार-तंत्रों ने भी अपने संसाधनों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान की स्थिति बेहतर बताने का प्रयास किया. पश्चिमी मीडिया संगठनों की संदिग्ध रिपोर्ट और शत्रुतापूर्ण रवैये ने भी पाकिस्तान के दुष्प्रचार को आगे बढ़ाने का काम किया. यहां तक कि, जब सैन्य कार्रवाइयां चल रही थीं, तब पाकिस्तानियों और उनके चीनी, तुर्की व पश्चिमी मीडिया सहयोगियों ने भारतीय लड़ाकू विमानों को मार गिराने की ख़बरें ज़ोर-शोर से चलाईं. उन्होंने 8, 9 और 10 मई को पाकिस्तानी हमलों के जवाब में की गई जवाबी कार्रवाई को पूरी तरह से अनदेखा किया. वह तो पाकिस्तान द्वारा फायरिंग रोकने की गुहार लगाने के बाद इनमें से कुछ मीडिया संगठनों ने बेमन से ही सही, यह मानना शुरू किया कि पाकिस्तान को भारत की जवाबी कार्रवाई से कितना नुक़सान हुआ है और भारत को ऐसे किसी संघर्ष में कितनी कम हानि हो सकती है.

पाकिस्तान के हुक्मरानों और ISPR का तोता माने जाने वाले ‘निष्पक्ष और आज़ाद’ मीडिया द्वारा दिखाए जा रहे बहादुरी भरे चेहरों के बावजूद इन स्वतंत्र पत्रकारों और सशस्त्र बलों को पता है कि भारत ने उन्हें सिर्फ़ चार दिनों में ही कितनी बुरी तरह हराया है. ISPR के लिए इतनी बड़ी हार को छिपाना मुश्किल होगा.

पाकिस्तान के हुक्मरानों और ISPR का तोता माने जाने वाले ‘निष्पक्ष और आज़ाद’ मीडिया द्वारा दिखाए जा रहे बहादुरी भरे चेहरों के बावजूद इन स्वतंत्र पत्रकारों और सशस्त्र बलों को पता है कि भारत ने उन्हें सिर्फ़ चार दिनों में ही कितनी बुरी तरह हराया है. ISPR के लिए इतनी बड़ी हार को छिपाना मुश्किल होगा. हालांकि, वह हार मान भी नहीं सकता, क्योंकि सैन्य-राजनीतिक शासन (फ़ौज और सियासी दलों का मिलकर सरकार चलाना) का अस्तित्व दांव पर लगा हुआ है. इसीलिए, भारत के जवाबी हमलों से सदमे में आने व ख़ौफ़ खाने के ढेरों सुबूतों और पाकिस्तान को पीछे हटने के लिए मजबूर करने की भारतीय तैयारी के बावजूद इस्लामाबाद के बेहद अलोकप्रिय और नाजायज़ हुक्मरान अपनी कायराना हरकतों को बेशर्मी से जारी रखेंगे.

यही पाकिस्तानी परंपरा है, जिसे उनका आज्ञाकारी और समझौतावादी मीडिया पूरी ईमानदारी से निभाएगा. वहां हार को यह कहकर नकारने का प्रयास होगा कि उन्हें इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण उपलब्धियां हासिल हुई हैं, जो हैं - अमेरिकियों को मध्यस्थ बनाने का प्रयास करके जम्मू-कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करना और अमेरिका व भारत के बीच में दरार पैदा करना. यह सच है कि अमेरिका की पाकिस्तान में बहुत कम रुचि होगी और मध्यस्थता का प्रस्ताव या जम्मू-कश्मीर के अंतरराष्ट्रीयकरण की कोई संभावना नहीं है, फिर भी, जब तक यह बात वहां के अवाम को समझ में आएगी, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी.

पाकिस्तानी फ़ौज के लिए मुश्किल यह है कि भारत पर पलटवार करने की मंशा के बावजूद वह ऐसा नहीं कर सकती. उसकी वायु रक्षा प्रणाली पूरी तरह से चरमरा गई है. भारत ने तकनीकी रूप से इतनी श्रेष्ठता हासिल कर ली है कि पाकिस्तान को बराबरी करने में काफ़ी समय लगेगा. इस दौरान, भारत भी चुपचाप नहीं बैठेगा. वह अपने दुश्मन पर तकनीकी बढ़त बनाए रखने के लिए अपने सिस्टम को अपग्रेड और विकसित करेगा, साथ ही, नई ख़रीद कर उनकी तैनाती करेगा. पाकिस्तान के जिस चीन-निर्मित एयर डिफेंस सिस्टम की खूब चर्चा हो रही थी, वह इस कार्रवाई में बुरी तरह विफल साबित हुआ है. इस चीनी कबाड़ की बराबरी तुर्की के कथित तौर पर ‘विनाशकारी’ ड्रोन ने की, जो पाकिस्तानियों द्वारा भारत के सैन्य और नागरिक ठिकानों पर किए गए हमलों में पूरी तरह बेकार साबित हुए.

तुर्की ड्रोन और चीनी एयर डिफेंस व इलेक्ट्रॉनिक युद्ध-सामग्रियों को पहुंचे इस भयानक नुक़सान का मतलब है कि इन देशों से पाकिस्तान को अब जो भी सिस्टम मिलेंगे, उस पर उसे बहुत कम भरोसा होगा. इसका यह भी अर्थ है कि पाकिस्तान अपने रक्षात्मक और आक्रामक सिस्टम को फिर से बनाने के लिए कई रातें जागकर ख़र्च करेगा. इतना ही नहीं, इसका यह भी मतलब है कि पाकिस्तान के लिए भारत की नीति को परखना तब तक मुश्किल होगा, जब तक कि वह कमज़ोर कर देने वाली अपनी इस हार से उबर नहीं जाता. हां, अपने लोगों को यह समझाने के लिए कि वह कोई कार्रवाई क्यों नहीं कर रहा, यह बहाना ज़रूर बनाएगा कि कश्मीर पर अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता बस होने ही वाला है.

ऑपरेशन सिंदूर के महत्व पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और काफ़ी कुछ लिखा जाएगा. मगर यह बात पूरी तरह से साबित हो चुकी है कि परमाणु हमले की सीमा रेखा तक पहुंचने से पहले आतंकी हमलों का सैन्य कार्रवाई से जवाब देने की काफ़ी गुंजाइश है. पाकिस्तान को यह बात हमेशा से पता थी, क्योंकि 2019 में बालाकोट हवाई हमले में यह साबित हो चुका था. ऑपरेशन सिंदूर ने इस सच को अब पाकिस्तानी एयरबेसों की दीवारों पर लिख दिया है. बात सिर्फ़ इतनी नहीं है कि परमाणु हमले की दहलीज़ तक पहुंचने से पहले भी काफ़ी कुछ करने की संभावनाएं हैं, बल्कि यह भी है कि पाकिस्तान पारंपरिक संघर्ष की सीमा पार न करने के प्रति भी सावधान था. इसका पता इससे चलता है कि पाकिस्तान के अंदर भारत द्वारा नौ आतंकी ठिकानों पर बमबारी किए जाने के जवाब में उसने ड्रोन, कम दूरी की मिसाइलें व सशस्त्र मानव रहित विमानों (UAV) के अलावा तनातनी बढ़ने पर फ़तह शृंखला की कुछ कम दूरी की सतह से सतह मार करने वाली मिसाइलें (SSM) दागीं. हालांकि, इसे विडंबना ही कहेंगे कि फ़तह (जीत) मिसाइलों से भी वह अपनी शिकस्त (हार) नहीं बचा सका.

भारत की तरफ़ से भी इसी तरह के हथियारों का इस्तेमाल किया गया, साथ ही हवा से जमीन पर मार करने वाली मिसाइलें भी दागी गईं, जिनसे पाकिस्तान बुरी तरह तबाह हो गया और उसे पुराने बुरे ख़्वाब (कमज़ोर बचाव से नुक़सान) आने लगे. भारत ने भी अपनी शक्तिशाली SSM का इस्तेमाल नहीं किया, जो पाकिस्तान को पीछे हटाने से कहीं अधिक तबाही मचा देती और विनाश का कारण बन सकती थीं. शायद पाकिस्तान जानता था कि अगर उसने अपनी लंबी दूरी की एक भी SSM दागे, तो भारत की तरफ़ से असीमित जवाबी कार्रवाई होगी. भारत और पाकिस्तान को इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि उन्होंने पिछले युद्धों के विपरीत, इस बार काफ़ी हद तक आम आबादी और बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने से परहेज़ किया. इसमें जम्मू-कश्मीर में नियंत्रण रेखा के पास दोनों पक्षों द्वारा की गई गोलीबारी को अपवाद मानना चाहिए.

भारत ने भी अपनी शक्तिशाली SSM का इस्तेमाल नहीं किया, जो पाकिस्तान को पीछे हटाने से कहीं अधिक तबाही मचा देती और विनाश का कारण बन सकती थीं. शायद पाकिस्तान जानता था कि अगर उसने अपनी लंबी दूरी की एक भी SSM दागे, तो भारत की तरफ़ से असीमित जवाबी कार्रवाई होगी.

यही कारण है कि भारत पूरे विश्वास के साथ यह दावा कर सकता है कि उसने इस संघर्ष में बढ़त हासिल की. 9 और 10 मई को विनाशकारी हमलों के बाद, जब भारत ने पाकिस्तान के लगभग सभी महत्वपूर्ण शहरों और एयरबेसों- कराची, लाहौर, रावलपिंडी, गुजरांवाला, चकवाल और सरगोधा- पर हमले किए, तो इसने पाकिस्तान को गोलीबारी बंद करने के लिए मजबूर कर दिया. इस बढ़त के अलावा, परमाणु सीमा तक पहुंचने से पहले के विकल्पों के इस्तेमाल में कमी नहीं करके भारत ने पाकिस्तान के परमाणु झांसे को भी प्रभावी ढंग से ख़त्म कर दिया. यह सच अब पाकिस्तान के फौजी और नागरिक प्रतिष्ठान पूरी तरह से समझने लगे हैं. हालांकि, पाकिस्तान ने अपने पुराने रवैये की तरह परमाणु धमकी देने की कोशिश ज़रूर की और उसके रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ ने पहले परमाणु कमान प्राधिकरण की बैठक बुलाकर और फिर उसे रद्द करके हमेशा की तरह भारत व पूरी दुनिया को परमाणु तबाही की चेतावनी का संकेत दिया. मगर अंत में, पाकिस्तानी मंत्री परमाणु ब्लैकमेल से पूरी तरह से हटते ही दिखे. विदेश मंत्री इशाक डार ने यहां तक कहा कि पाकिस्तान ने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान कभी भी परमाणु विकल्प पर गौर नहीं किया था. जबकि, वाशिंगटन में कुछ लोग बेवज़ह यह प्रचारित करके डर का माहौल बनाने में लगे थे.

निष्कर्ष

बहरहाल, ऑपरेशन सिंदूर का एक और महत्वपूर्ण पहलू यह है कि अब पाकिस्तान को आतंकवाद की अधिक क़ीमत चुकानी होगी. इसका प्रयास भारत दशकों से करता रहा है. अगर पाकिस्तान अपनी जिहादी गतिविधियां जारी रखता है, तो सैन्य कार्रवाई के साथ-साथ सिंधु जल समझौता, व्यापार, परिवहन और संचार संबंध तोड़ने जैसी असैन्य कार्रवाइयों से पाकिस्तान को भारी क़ीमत चुकानी होगी. इतना ही नहीं, उसे अपनी पारंपरिक सेना को तैयार करने के लिए भी बड़ा ख़र्च करना होगा, ताकि परमाणु सीमा के भीतर भारत की आक्रामक जवाबी कार्रवाइयों को वह रोक सके. ऐसे समय में, जब उसकी अर्थव्यवस्था बीमार व विफल हो चुकी है, और अमेरिका, यूरोप, और यहां तक कि चीन व अरब देशों से मिलने वाली मदद भी बंद होने को है, तब आतंकवाद की अपनी दुस्साहसिक नीति के कारण बड़ा आर्थिक बोझ पाकिस्तान को उठाना पड़ सकता है. कुल मिलाकर, ‘मोदी नीति’ ने पाकिस्तान की किसी भी आतंकी कार्रवाई के ख़िलाफ़ भारत के जवाब की एक नई लक्ष्मण रेखा खींच दी है. अब आने वाली हर सरकार को, यदि इससे बेहतर न कर सकी, तो कम से कम ऑपरेशन सिंदूर जैसा अभियान करना ही होगा.

पाकिस्तान को ज़बर्दस्त तरीके से हराने के बावजूद, भारत को यह समझना होगा कि आतंकवाद की समस्या रातों-रात ख़त्म नहीं होने वाली.

हालांकि, पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों के ख़िलाफ़ भारत को हमेशा सावधान रहना होगा. पाकिस्तान को ज़बर्दस्त तरीके से हराने के बावजूद, भारत को यह समझना होगा कि आतंकवाद की समस्या रातों-रात ख़त्म नहीं होने वाली. यह समझना होगा कि इजरायल के प्रभुत्व और हर आतंकी हमले के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई करने की नीति के बावजूद इजरायल के ख़िलाफ़ आतंकवाद ख़त्म नहीं हुआ है. गजा में लक्ष्य बनाकर की जाने वाली उसकी कार्रवाइयों या स्टीमरोलर ऑपरेशन (पूरी ताक़त लगाते हुए दुश्मन को हराना) से भी आतंकवाद ख़त्म नहीं होने वाला, क्योंकि जिहाद की यही प्रकृति होती है. ऐसे में, भारत को जिहादी आतंकवाद के ख़िलाफ़ अपनी सैन्य और आर्थिक ताक़त को लगातार मज़बूत बनाए रखना होगा और इसके ख़िलाफ़ रणनीतिक व वैचारिक नीति बनानी होगी.


(सुशांत सरीन ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो हैं)

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