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ऑपरेशन सिंदूर के बाद AQIS की तरफ से जिहाद की अपील रणनीतिक तनाव में बढ़ोतरी के बारे में बताती है. AQIS ने अपने वैचारिक और क्षेत्रीय अभियान में भारत को एक प्रमुख निशाने के तौर पर चिन्हित किया है.
Image Source: Getty
6 मई 2025 को पाकिस्तान के भीतर आतंक के नौ अड्डों के ख़िलाफ़ भारत के द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद भारतीय उपमहाद्वीप में अल-क़ायदा (AQIS) ने भारत के विरुद्ध जिहाद का एलान किया है. इस संगठन ने भारत और पाकिस्तान के बीच मौजूदा हालात के तहत जिहाद को धार्मिक कर्तव्य बताया. जिहाद की ये घोषणा इस आतंकी समूह की बयानबाज़ी और रणनीतिक रवैये में तनाव की गंभीर बढ़ोतरी के बारे में बताती है.
माना जाता है कि AQIS का मुख्य नेतृत्व पाकिस्तान से काम करता है और ओसामा महमूद इसका अमीर (प्रमुख) है. पाकिस्तान के कबायली इलाकों और शहर के सुरक्षित स्थानों में इसको पनाह मिली हुई है. आमतौर पर AQIS के आतंकवादियों को पाकिस्तान के सुरक्षा तंत्र का साथ मिलता है या उनकी लापरवाही का वो फायदा उठाते हैं. इस संगठन ने लंबे समय से देवबंदी संस्थानों के पाकिस्तानी गुट जैसे कि दारुल उलूम हक़्क़ानिया और बहावलपुर मदरसा एवं विशेष रूप से पाकिस्तान में सलाफी धार्मिक नेटवर्क और मदरसा से भर्ती करने की कोशिश की है.
इस संगठन ने हाल में अपने आधिकारिक बयान में भारत के हमले की निंदा की और ‘निर्दोष’ मुसलमानों की हत्या एवं पाकिस्तान की संप्रभुता का उल्लंघन करने के लिए भारत पर आरोप लगाए. इससे भी बड़ी बात ये है कि AQIS ने भारत के हमलों को इस्लाम के ख़िलाफ़ कथित हिंदू राष्ट्रवादी अभियान के प्रदर्शन के रूप में पेश किया और इसके जवाब में हिंसक गतिविधियों को एकमात्र उपाय बताया. समूह ने ख़ुद को वैश्विक मुस्लिम उम्माह (समुदाय) और पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता के संरक्षक के रूप में प्रस्तुत करते हुए अपनी अपील के जवाब में भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के मुसलमानों से AQIS में शामिल होने की अपील की.
AQIS ने भारत के हवाई हमलों को बयानबाज़ी और भर्ती के अवसर के रूप में देखा है. आगे इसका उद्देश्य भारत को एक प्राथमिक क्षेत्रीय हमलावर के रूप में दिखाना और धार्मिक भावनाओं को भड़काना है.
वैसे तो ये घटनाक्रम पूरी तरह से असाधारण नहीं है लेकिन कई बार की नाकाम कोशिशों और अपने पूर्व प्रमुख अयमान अल-ज़वाहिरी की मौत के बाद AQIS के द्वारा अपनी स्थिति को फिर से मज़बूत बनाने के बार-बार के प्रयास को बल देता है. ये एक वैचारिक अभियान को दर्शाता है और बदलती क्षेत्रीय गतिशीलता के बीच रणनीतिक बयानबाज़ी एवं भर्ती के अवसर के रूप में काम करता है. AQIS ने भारत के हवाई हमलों को बयानबाज़ी और भर्ती के अवसर के रूप में देखा है. आगे इसका उद्देश्य भारत को एक प्राथमिक क्षेत्रीय हमलावर के रूप में दिखाना और धार्मिक भावनाओं को भड़काना है. ये एक ऐसी रणनीति है जिसे इसने अपने प्रकाशनों, पर्चों और दुष्प्रचार के वीडियो के ज़रिए लगातार आजमाया है. छिटपुट दुष्प्रचार के अभियानों और नाकाम हमले की कोशिशों- ज़्यादातर पाकिस्तान और बांग्लादेश में- के बावजूद AQIS को इस क्षेत्र के जिहादी परिदृश्य में एक प्रमुख किरदार बनने के लिए संघर्ष करना पड़ा है.
लगता है कि हाल के भारतीय हवाई हमलों ने ख़ुद को फिर से ज़िंदा करने के लिए AQIS को एक मौका मुहैया कराया है. ख़बरों के मुताबिक, हवाई हमलों ने जैश-ए-मोहम्मद (JeM) और लश्कर-ए-तैयबा (LeT) जैसे संगठनों के द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले लॉन्च पैड और साजो-सामान को ध्वस्त कर दिया है. इन संगठनों को भारत के ख़िलाफ़ पाकिस्तान का रणनीतिक प्रतिनिधि (प्रॉक्सी) माना जाता है. वैसे तो पाकिस्तान ने भारतीय हमलों से भारी तबाही और उद्देश्य पूरा होने का खंडन किया है लेकिन जिहादी समूहों की प्रतिक्रिया तीखी रही है.
चूंकि AQIS अलग-अलग देशों में धार्मिक भावनाओं को भड़काने का प्रयास कर रहा है, ऐसे में उसकी ये बयानबाज़ी भारत को मुख्य विरोधी के रूप में पेश करती है. ये जिहादी रवैये का एक सटीक उदाहरण है जहां भू-राजनीतिक घटनाओं का फायदा मुस्लिम उत्पीड़न का पक्षपाती नैरेटिव तैयार करने और आतंकी जवाब को सही ठहराने के लिए किया जाता है. हाल की घोषणाएं और दुष्प्रचार कश्मीर से लेकर फिलिस्तीन और म्यांमार तक के मुद्दों को जोड़ते हुए AQIS के वैचारिक और रणनीतिक आकलन में भारत के प्रमुख लक्ष्य के रूप में उभरने की पुष्टि करता है. इस बार का एलान AQIS की पहले की घोषणाओं से समय और रणनीतिक इरादे के मामले में अलग है. इसके अलावा, AQIS की नई बयानबाज़ी व्यापक जिहादी परिदृश्य के भीतर एक चुनौती के रूप में काम करती है. AQIS को इस्लामिक स्टेट खोरासन प्रॉविंस (ISKP) से प्रतिद्वंद्विता का सामना करना पड़ रहा है जिसने इस क्षेत्र में बड़े हमलों को अंजाम देने और कट्टरपंथी युवाओं की बड़ी संख्या में भर्ती करने के मामले में AQIS को पीछे छोड़ दिया है. जिहादी संगठनों के बीच मुकाबला उग्रवादी राजनीति की गतिशील और प्रतिस्पर्धी प्रकृति पर ज़ोर देता है.
AQIS ने विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों को कथित ‘हिंदुत्ववादी आतंकवाद’ के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होने को कहा. AQIS ने अपने बयान में खुलेआम उन लोगों की तारीफ की है जिन्होंने पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और इस्लाम के सम्मान की रक्षा के लिए हथियार उठाए हैं.
जिहाद की अपील केवल भारत के मुसलमानों तक सीमित नहीं थी. AQIS ने विशेष रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमानों को कथित ‘हिंदुत्ववादी आतंकवाद’ के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होने को कहा. AQIS ने अपने बयान में खुलेआम उन लोगों की तारीफ की है जिन्होंने पाकिस्तान की क्षेत्रीय अखंडता और इस्लाम के सम्मान की रक्षा के लिए हथियार उठाए हैं. ऐसा करके AQIS ने अलग-अलग मोर्चों पर समर्थन जुटाने का प्रयास किया है. इसके आगे AQIS ने मुस्लिम नौजवानों से राष्ट्रवादी पहचान को ख़ारिज करके उसकी जगह जिहादी नेतृत्व के तहत वैश्विक उम्माह के झंडे को अपनाने का अनुरोध किया है. ये एक महत्वपूर्ण वैचारिक मोड़ है क्योंकि ये किसी संप्रभु देश के द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर की जाने वाली कार्रवाई को आस्था के ख़िलाफ़ एक काल्पनिक युद्ध के साथ मिलाने का प्रयास करता है. जिहादी साज़िश में ये एक पुराना तरीका है जिसकी गूंज अक्सर बिखरे हुए समाज में सुनाई देती है.
भारत के लिए इस घटनाक्रम को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. वैसे तो भारत की धरती पर हमलों को अंजाम देने में AQIS को सीमित सफलता ही मिली है लेकिन उसने वैचारिक पैठ बनाने का लगातार प्रयास किया है, विशेष रूप से डिजिटल दुष्प्रचार, सोशल मीडिया नेटवर्क और कट्टर बन चुके लोगों के साथ गुप्त संपर्क के माध्यम से. मौजूदा एलान को लोन-वूल्फ अटैक (अकेले हमला करने) या छोटे-छोटे समूहों को सक्रिय बनाने (स्मॉल-सेल एक्टिवेशन) के उद्देश्य से प्रेरित करने के लिए दुष्प्रचार की सामग्री के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है, विशेष रूप से कश्मीर, उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों, पश्चिम बंगाल, केरल और भारत-बांग्लादेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में.
इसलिए भारत के सुरक्षा संगठनों को अल्पकालिक और दीर्घकालिक- दोनों तरह के परिणामों की समीक्षा करनी चाहिए. अल्पकाल में कट्टरपंथ, हिंसा के लिए उकसावे और ऑनलाइन जिहादी दुष्प्रचार के ख़तरे को मज़बूत डिजिटल निगरानी, समन्वित खुफिया जानकारी इकट्ठा करके और रणनीतिक सामुदायिक भागीदारी के ज़रिए दूर किया जाना चाहिए. दीर्घकालिक प्रयासों में वैचारिक रूप से कट्टरपंथ का विरोध, कट्टरता को दूर करने वाले कार्यक्रमों में निवेश और अलग-अलग एजेंसियों को मज़बूत बनाकर ख़तरों के फैलने से पहले ही उनकी पहचान करना और उन्हें रोकना है.
वैसे तो पाकिस्तान ने बार-बार ये दावा किया है कि वो अंतरराष्ट्रीय जिहादी संगठनों का समर्थन नहीं करता है लेकिन पाकिस्तान में AQIS की मौजूदगी और नेतृत्व का आधार एक ऐसी बात है जिसके बारे में सबको पता है.
भू-राजनीतिक दृष्टिकोण से AQIS का बयान पाकिस्तान के आतंकवाद विरोधी नैरेटिव में संघर्षों को भी उजागर करता है. वैसे तो पाकिस्तान ने बार-बार ये दावा किया है कि वो अंतरराष्ट्रीय जिहादी संगठनों का समर्थन नहीं करता है लेकिन पाकिस्तान में AQIS की मौजूदगी और नेतृत्व का आधार एक ऐसी बात है जिसके बारे में सबको पता है. पाकिस्तान की धरती से इस तरह का खुला एलान जारी करने को लेकर AQIS के द्वारा भरोसा महसूस करने का तथ्य पाकिस्तान के आंतरिक सुरक्षा तंत्र के असर और सच्चाई के बारे में सवाल खड़ा करता है. ये भारत की इस पुरानी दलील को भी मज़बूत करता है कि पाकिस्तान अभी भी ऐसे समूहों को बढ़ावा देता है और उनकी रक्षा करता है जो क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता के लिए ख़तरा पैदा करते हैं.
ये घटनाक्रम क्षेत्रीय सहयोग के लिए चेतावनी के रूप में भी काम करना चाहिए. AQIS का ख़तरा केवल भारत तक ही सीमित नहीं है. बांग्लादेश पहले से ही रह-रहकर जिहादी ख़तरों से निपट रहा है और तालिबान के कब्ज़े वाले अफ़ग़ानिस्तान को भी इसी तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है. इस्लामिक आतंकी समूहों के ख़िलाफ़ एक साझा मोर्चा सुनिश्चित करने के लिए एक क्षेत्रीय खुफिया साझा करने वाली और आतंकवाद विरोधी रूप-रेखा की आवश्यकता है. इसके अलावा, भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) समेत अंतरराष्ट्रीय मंचों का लाभ उठाना जारी रखना चाहिए ताकि AQIS जैसे संगठनों से जुड़े समूहों और लोगों को अलग-थलग किया जा सके और उन पर प्रतिबंध लगाया जा सके.
साथ ही, डिजिटल निगरानी की क्षमताओं का लगातार विस्तार किया जाना चाहिए जिसमें डार्क नेट जिहादी फोरम, टेलीग्राम पर अरबी एवं उर्दू चैनलों और अंग्रेज़ी एवं क्षेत्रीय भाषाओं में AQIS की नई पहुंच पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए.
जिहादी दुष्प्रचार कमज़ोर देश के नैरेटिव और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के द्वारा छोड़े गए खालीपन में फलता-फूलता है. भारत को हर हाल में ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी आंतरिक चर्चा इस ग़लत नैरेटिव को विश्वसनीयता नहीं मुहैया कराए कि यहां व्यवस्थित रूप से मुसलमानों की घेराबंदी की जा रही है.
अंत में, वैचारिक लड़ाई हर हाल में उसी महत्व के साथ लड़ा जाना चाहिए. जिहादी दुष्प्रचार कमज़ोर देश के नैरेटिव और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के द्वारा छोड़े गए खालीपन में फलता-फूलता है. भारत को हर हाल में ये सुनिश्चित करना चाहिए कि उसकी आंतरिक चर्चा इस ग़लत नैरेटिव को विश्वसनीयता नहीं मुहैया कराए कि यहां व्यवस्थित रूप से मुसलमानों की घेराबंदी की जा रही है. हिंसक चरमपंथ को गलत ठहराने और अनेकता एवं सह-अस्तित्व के संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए समुदाय के नेताओं, धार्मिक विद्वानों और सिविल सोसायटी के किरदारों के साथ बातचीत की जानी चाहिए.
निष्कर्ष के तौर पर कहें तो भारत के ख़िलाफ़ AQIS की तरफ से जिहाद का एलान दुष्प्रचार के तिकड़म के साथ-साथ इस क्षेत्र में अपने असर को मज़बूत करने का रणनीतिक प्रयास भी है. वैसे तो AQIS के द्वारा हमला करने की क्षमता सीमित बनी हुई है लेकिन उसका वैचारिक आकर्षण और हिंसा के लिए प्रेरित करने की उसकी ताकत को कम करने नहीं आंका जा सकता. ऐसे में भारत को एक बहुआयामी रणनीति के साथ जवाब देना चाहिए जो कठोर शक्ति को वैचारिक सामर्थ्य, खुफिया समन्वय को डिजिटल साक्षरता और क्षेत्रीय सहयोग को मज़बूत घरेलू एकजुटता के साथ जोड़े. आने वाले महीने बताएंगे कि AQIS की तरफ से जिहाद का एलान केवल बयानबाज़ी है या फिर ये ठोस ख़तरे में बदलता है लेकिन भारत की तरफ से जवाब हर हाल में सक्रिय और स्थायी होना चाहिए.
सौम्या अवस्थी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के सेंटर फॉर सिक्युरिटी, स्ट्रैटजी एंड टेक्नोलॉजी में फेलो हैं.
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Dr Soumya Awasthi is Fellow, Centre for Security, Strategy and Technology at the Observer Research Foundation. Her work focuses on the intersection of technology and national ...
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