Author : Aditi Madan

Published on Jul 30, 2023 Updated 0 Hours ago

क्या हमने ओमिक्रॉन का सामना करने वाले दुनिया के तमाम देशों के तजुर्बे से अपने लिए सबक़ सीखे हैं? क्या भारत की तैयारी पहले से बेहतर है?

#Omicron in India: कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट भारत के लिये कितना घातक?
#Omicron in India: कोरोना वायरस का ओमिक्रॉन वेरिएंट भारत के लिये कितना घातक?

नवंबर 2021 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ओमिक्रॉन को चिंताजनक वेरिएंट घोषित किया था लेकिन इस घोषणा से पहले ही  कोरोना वायरस का ये नया वेरिएंट ओमिक्रॉन दुनिया के कई देशों में फैल चुका था. . इसकी संक्रामक क्षमता ज़्यादा है. लेकिन संक्रमण से होने वाली बीमारी कम घातक है. दुनिया भर में ओमिक्रॉन के प्रकोप का सफर दो बातों पर निर्भर है. संक्रमित करने की क्षमता और इंसानों की रोग प्रतिरोधक शक्ति को गच्चा देने की ताक़त. वैसे तो ओमिक्रॉन बीमार करने के लिहाज़ से 90 से 95 फ़ीसद तक कम घातक है. लेकिन, अभी भी लोगों का एक तबक़ा और ख़ास तौर से बुज़ुर्गों के लिए ये अधिक खतरनाक है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के संक्रामक रोग विशेषज्ञ मार्क लिपसिच के मुताबिक़, अगर हम ये समझ लें कि संक्रमित करने की क्षमता और इम्यून सिस्टम से बचने की ख़ूबी किसी वायरस का प्रकोप फैलने में कितनी बड़ी भूमिका निभाती है, तो हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि कितने लोग संक्रमित होंगे और किस रफ़्तार से होंगे.

दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस की पिछली लहर की तुलना में ओमिक्रॉन से पीड़ित कम लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और इससे मरने वाले लोगों की भी काफ़ी कम रही. ये आंकड़े  बताते हैं कि ओमिक्रॉन वेरिएंट कम घातक है. 

दक्षिण अफ्रीका का गौटेंग सूबा (South Africa’s Gauteng province), जहां सबसे पहले ओमिक्रॉन के 50 या इससे ज़्यादा म्यूटेशन की पहचान की गई थी, वहां के आंकड़ों ने दिखाया है कि ओमिक्रॉन न सिर्फ़ लोगों को दोबारा संक्रमित कर सकता है, बल्कि वो टीका लगवा चुके लोगों को भी अपना शिकार बना सकता है. हालांकि इस बात के भी संकेत मिले हैं कि इंसान का शरीर इस वेरिएंट से ख़ुद को बेहतर ढंग से सुरक्षित बना सकता है. इसकी वजह T-Cell से पैदा हुई इम्यूनिटी है, जो शरीर को भयंकर बीमारी से ख़ुद को बचाने में मदद करती है. गौटेंग प्रांत में ओमिक्रॉन वेरिएंट के चलते कोविड-19 के संक्रमण के पहले 30 दिनों के आंकड़े ये संकेत देते हैं कि इस वेरिएंट के शिकार लोगों से दूसरों के संक्रमित होने का ख़तरा तो ज़्यादा था. लेकिन, संक्रमित लोगों के गंभीर रूप से बीमार होने की आशंका कम थी. शुरुआती नतीजे इस बात की ओर इशारा करते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में कोरोना वायरस की पिछली लहर की तुलना में ओमिक्रॉन से पीड़ित कम लोगों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और इससे मरने वाले लोगों की भी काफ़ी कम रही. ये आंकड़े  बताते हैं कि ओमिक्रॉन वेरिएंट कम घातक है. लेकिन, इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती है कि बाक़ी दुनिया की तुलना में दक्षिण अफ्रीका की आबादी तुलनात्मक रूप से युवा है. यानी ये भी हो सकता है कि ओमिक्रॉन का क़हर दक्षिण अफ्रीका पर कम रहा, क्योंकि वहां की आबादी में बुज़ुर्गों और बीमारी के ज़्यादा जोखिम वाले लोगों की संख्या कम थी, और इससे इस वेरिएंट की क्षमता का सटीक आकलन नहीं किया जा सकता है.

ओमिक्रॉन वेरिएंट ने तुलनात्मक रूप से ज़्यादा बच्चों और किशोर उम्र लोगों को अपना शिकार बनाया. ये आबादी का वो तबक़ा है, जिनको वैक्सीन नहीं लगी थी. अगर पिछली लहर से तुलना करें, तो ओमिक्रॉन से कुल संक्रमित लोगों में से बच्चों और किशोरों की तादाद 17.7 प्रतिशत (6510 में से 1151) थी. जबकि दूसरी लहर में ये तादाद 3.9 फ़ीसद (7774 में से 306) और पहली लहर में ये संख्या 3.5 प्रतिशत (4574 में से 161) थी. 12 साल से ज़्यादा उम्र और युवा वयस्कों के बीच टीकाकरण कम होने से अस्पताल में भर्ती लोगों में किशोर उम्र मरीज़ों की संख्या काफ़ी ज़्यादा थी.

ओमिक्रॉन वेरिएंट से जूझने वाले क्षेत्रों यानी दक्षिण अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका से मिले सभी आंकड़े ये इशारा करते हैं कि ओमिक्रॉन के संक्रमण से अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत कम ही पड़ी है

कम घातक


तमाम देशों से सामने आ रहे आंकड़े बताते हैं कि दक्षिण अफ्रीका में ओमिक्रॉन के असर के आंकड़े अपवाद नहीं हैं. पहले के वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन के चलते आई लहर के दौरान, ज़्यादातर यूरोपीय देशों के आंकड़ों में संक्रामक क्षमता अधिक थी लेकिन  बीमारी की गंभीरता और अस्पताल में भर्ती होने वालों की संख्या कम पायी गई है. ब्रिटेन की स्वास्थ्य सुरक्षा एजेंसी द्वारा किए गए विश्लेषण से पता चलता है कि अगर हम डेल्टा वेरिएंट से तुलना करें, तो ओमिक्रॉन से संक्रमित व्यक्ति की अस्पताल में भर्ती होने की आशंका कम होती है, और अगर अस्पताल जाना ही पड़ता है, तो पिछली लहरों की तुलना में इस बार ऐसे मरीज़ों की संख्या कम रहेगी.

हमने ओमिक्रॉन को लेकर जो कुछ दक्षिण अफ्रीका में होते देखा, ज़रूरी नहीं कि वही बात दूसरे देशों पर भी लागू हो. क्योंकि हर देश में वायरस के संक्रमण का इतिहास और टीकाकरण की दर अलग अलग रही है. मिसाल के तौर पर अमेरिका ने अल्फ़ा के बाद सीधे डेल्टा वेरिएंट का क़हर देखा था. वहां बीटा वेरिएंट से लहर आने का तजुर्बा नहीं देखा गया, जबकि दक्षिण अफ्रीका में बीटा वेरिएंट की भी लहर आई थी. हो सकता है कि अलग-अलग वेरिएंट का सामना करने से अमेरिका की आबादी की रोग प्रतिरोधक प्रतिक्रिया पर असर पड़ा हो. लेकिन, ओमिक्रॉन वेरिएंट से जूझने वाले क्षेत्रों यानी दक्षिण अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका से मिले सभी आंकड़े ये इशारा करते हैं कि ओमिक्रॉन के संक्रमण से अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत कम ही पड़ी है. हालांकि, ये वेरिएंट अभी भी ख़तरे की वजह बना हुआ है, क्योंकि ओमिक्रॉन की संक्रामक क्षमता बहुत अधिक है और इससे लोगों के प्रभावित होने का डर है. फिर चाहे भले ही संक्रमित लोगों में से भयंकर रूप से बीमार होने वाले लोगों की तादाद पिछली लहर की तुलना में काफ़ी कम रहे.

लहर से निपटने के ये तरीके कारगर


दक्षिण अफ्रीका में महामारी की चौथी लहर उतनी घातक नहीं थी, जितनी पहले की वेव थीं. दक्षिण अफ्रीका ने इस महामारी से निपटने के लिए बहुत सोच-समझकर सावधानी भरा रुख़ अपनाया है. हालिया लहर के दौरान लॉकडॉउन के एक भी नए क़दम का एलान नहीं किया गया. इसके बजाय, दक्षिण अफ्रीका ने बिल्कुल उल्टा तरीक़ा अपनाते हुए रात का कर्फ्यू हटा लिया और कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग करना भी बंद कर दिया. अस्पतालों में भर्ती मरीज़ों और उनमें होने वाली मौत की संख्या पर बारीक़ी से नज़र रखकर दक्षिण अफ्रीका के अधिकारियों को ये पता लगा कि इस बार वायरस का बर्ताव बिल्कुल अलग था और लोग धड़ाधड़ अस्पताल नहीं आ रहे थे. डेल्टा वेरिएंट की तुलना में उन पर ओमिक्रॉन का हल्का-फुल्का असर ही हो रहा था. दक्षिण अफ्रीका में चौथी लहर से निपटने के लिए किए गए उपायों में सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनने, आपस में दूरी बनाकर रखने, हवा की आवाजाही की व्यवस्था बेहतर करने और टीके लगाने की रफ़्तार को तेज़ करना शामिल था. इन क़दमों ने दक्षिण अफ्रीका को ओमिक्रॉन की लहर पर क़ाबू पाने में काफ़ी मदद की और इससे ये भी सुनिश्चित हुआ कि लोग देश में उभरे नए वेरिएंट से संक्रमित नहीं हुए. इसके अलावा, ये भी हो सकता है कि डेल्टा वेरिएंट से संक्रमण की पहले की ज़्यादा संख्या. वैक्सीन लगवाने के चलते पैदा हुई इम्यूनिटी और कम घातक वेरिएंट भी, दक्षिण अफ्रीका पर ओमिक्रॉन के कम बुरे असर के कारण रहे हों. चूंकि दक्षिण अफ्रीका की स्वास्थ्य व्यवस्था बेहद कमज़ोर है. ऐसे में महामारी से निपटने की ज़रूरत ने देश के अधिकारियों को कई नए क़दम उठाने, जैसे कि घाना में टेस्टिंग के लिए सैंपल को ज़िपलाइन ड्रोन से भेजने के लिए प्रेरित किया; रवांडा में उड़ान के दौरान जागरूकता के ऐलान किया जाना; कीनिया में मास्क का उत्पादन बढ़ाने के लिए कारखानों का इस्तेमाल करना, वग़ैरह.

महामारी से निपटने की ज़रूरत ने देश के अधिकारियों को कई नए क़दम उठाने, जैसे कि घाना में टेस्टिंग के लिए सैंपल को ज़िपलाइन ड्रोन से भेजने के लिए प्रेरित किया; रवांडा में उड़ान के दौरान जागरूकता के ऐलान किया जाना

जहां तक भारत की बात है तो यहां के बहुत से विशेषज्ञ ये कह रहे हैं कि भारत की आबादी के बीच मिली जुली इम्यूनिटी विकसित हो चुकी है, इसलिए ओमिक्रॉन वेरिएंट कम घातक साबित हुआ. भारत में ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों के बीच ये देखा गया कि ज़्यादातर मरीज़ों में संक्रमण के लक्षण नहीं थे या फिर हल्की-फुल्की बीमारी का ही असर रहा. इसके अलावा, डेल्टा और दूसरे वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन के संक्रमण के चलते अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीज़ों की संख्या भी नहीं बढ़ी. किसी मरीज़ के अस्पताल में भर्ती रहने का औसत समय भी इस लहर में कम देखा गया.

चूंकि ओमिक्रॉन वेरिएंट घातक कम है मगर लोगों को संक्रमित ज़्यादा करता है, तो ज़रूरी ये है कि हम जन स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज़रूरी क़दम उठाएं और सभी लोग सार्वजनिक स्थानों पर कोविड अनुरूप बर्ताव करें. हो सकता है कि इम्यून सिस्टम को गच्चा देने के मामले में ओमिक्रॉन, सार्स कोरोना वायरस 2 (SARS-CoV2) का सबसे शातिर वेरिएंट हो. लेकिन, शुरुआती रिसर्च ये बताते हैं कि बूस्टर डोज़ या टीके की तीसरी ख़ुराक से इस वेरिएंट से लड़ने की पर्याप्त क्षमता विकसित की जा सकती है. भारत में ओमिक्रॉन का असर कम से कम करने के लिए लोगों में वैक्सीन लगवाने के प्रति हिचक को कम करने और आबादी के ज़्यादा से ज़्यादा हिस्से को टीका लगाना ज़रूरी हो जाता है. भारत जैसे विशाल देश को ओमिक्रॉन से निपटने के अन्य देशों के तजुर्बे से फ़ौरन सबक़ लेते हुए स्वास्थ्य संबंधी प्रोटोकॉल का पालन करते, तकनीकी प्रगति का फ़ायदा उठाते हुए और इनोवेशन की मदद से अपनी तैयारी और निपटने की व्यवस्था को और कुशल व असरदार बनाना चाहिए.

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