Published on Aug 29, 2022 Updated 0 Hours ago

देश भर में बहुत से युवा लोगों ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया हो सकता है, लेकिन मौजूदा सुरक्षा हालात समस्या खड़ी कर सकते हैं.

नाइजीरिया के बिगड़ते सुरक्षा हालात, 2023 के चुनाव को ख़तरे में डाल सकते हैं!

नाइजीरिया की राजनीतिक राजधानी, अबुजा, देश के विभिन्न हिस्सों के अनगिनत सुरक्षा चुनौतियों से ग्रस्त होने के बावजूद कई वर्षों से शांत रही है. हालांकि, बीते कुछ महीनों में, इस शहर में कई हथियारबंद गिरोह घुसपैठ कर चुके हैं और इसके आसपास के इलाक़ों में लगातार हिंसा व आतंक फैला रहे हैं. जैसे-जैसे तनाव बढ़ रहा है, शहर पर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं. जुलाई में, अबुजा-काडुना हाइवे से लगी माडाल्ला-ज़ुबा एक्सिस पर गिरोहबंद अपराधियों (बैंडिट्स) का एक दल पहुंचा, जहां उन्होंने हमला किया और गोलीबारी में सैनिकों को मार डाला. उन्होंने फेडरल गवर्नमेंट कॉलेज के पास क्वाली में एक समुदाय पर हमला किया, जिसके चलते अभिभावकों को अपने बच्चों को वहां से हटाना पड़ा. कुजे में फेडरल करेक्शन सेंटर (जेल) में बंद लगभग 600 संदिग्ध आतंकवादी भाग निकले. एक आतंकवादी गुट ‘इस्लामिक स्टेट फॉर वेस्ट अफ्रीका प्रोविंस’ (इस्वाप) ने बाद में इस हमले की ज़िम्मेदारी ली. इन ख़ुफ़िया सूचनाओं के बीच स्कूलों को अस्थायी तौर पर बंद कर दिया गया कि हथियारबंद गुट जहां-तहां हमलों की योजना बना रहे हैं, जिससे बड़े पैमाने पर चल रही उन अटकलों की पुष्टि हुई कि शहर हमले की गिरफ़्त में आ सकता है.

एक के बाद एक आ रही डरावनी ख़बरों ने देश भर में नागरिकों को डरा दिया है. सड़क और रेल से यात्रा कर रहे लोगों को आये दिन अगवा कर लिया जाता है और बंदूक की नोक पर उन्हें लाखों नाइरा की फिरौती देकर अपनी आज़ादी ख़रीदने या फिर जान गंवाने के लिए बाध्य किया जाता है.

आगामी चुनाव के वास्ते पंजीकरण और नागरिकों की व्यस्तता के बीच बरकरार चिंता

एक के बाद एक आ रही डरावनी ख़बरों ने देश भर में नागरिकों को डरा दिया है. सड़क और रेल से यात्रा कर रहे लोगों को आये दिन अगवा कर लिया जाता है और बंदूक की नोक पर उन्हें लाखों नाइरा की फिरौती देकर अपनी आज़ादी ख़रीदने या फिर जान गंवाने के लिए बाध्य किया जाता है. नागरिकों को सरकार की नीयत पर भरोसा नहीं है और उन्हें संदेह है कि राजनेता अपने पक्षधरीय उद्देश्य साधने के लिए हिंसा के प्रायोजक हो सकते हैं. गिरोहबंद अपराधी इतने दुस्साहसी हो गये हैं कि उन्होंने सैन्य नाके पर हमला किया और देश के राष्ट्रपति मुहम्मदु बुहारी और एक राज्य के गवर्नर नासिर अल-रुफाई तक के अपहरण की धमकी दी. उनकी बार-बार की कामयाबी देश-विदेश में रहने वाले नाइजीरियाई नागरिकों के लिए चिंता का स्रोत बनी हुई है. हालिया रिपोर्ट्स इशारा करती हैं कि 2022 की पहली तिमाही में सौ से ज़्यादा सुरक्षा कर्मी मारे जा चुके हैं.

लगातार उन्नत होती आपराधिक गतिविधियों को ख़राब क़ानून प्रवर्तन और शासन से बढ़ावा 

नाइजीरिया में आपराधिक गिरोहबंदी की शुरुआत उतनी ही विवादास्पद है जितनी कि उनकी गतिविधियों का तेजी से फैलाव. हालांकि, कई ऐसे विवरण हैं जो हथियारबंद आपराधिक गिरोहबंदी की शुरुआत को काडुना राज्य के बिरनिन ग्वारी में और त्साफे के ज़म्फारा में चरवाहों और स्वयंभू रक्षक (विजिलांते) समूहों के बीच संघर्षों से जोड़ते हैं. विजिलांते समूह आपराधिक गतिविधियों के ख़िलाफ़ क़ानून प्रवर्तन में मदद देने के लिए बनाये गये थे. उत्तरी नाइजीरिया के बहुत से समुदायों में, होसा (Hausas) और फुलानी (Fulani) समुदाय अपनी कई सांस्कृतिक और बाद में धार्मिक समानताओं के साथ युगों से संग-संग रहे हैं. हालांकि, अब चीज़ें बदल गयी हैं. संयोगवश, विजिलांते समूहों के ज़्यादातर सदस्य होसा थे, जबकि अपराधी घुमंतू फुलानी एथनिक समूह से. जैसे-जैसे विजिलांते समूहों ने इन अपराधियों के ख़िलाफ़ लड़ना जारी रखा, तो जो लड़ाई शुरू में आपराधिक गतिविधियों और मवेशियों की चोरी के ख़िलाफ़ थी, वह धीरे-धीरे एक एथनिक समूह द्वारा दूसरे एथनिक समूह को निशाना बनाने का मामला नज़र आने लगी. आगे चलकर यह किसानों और चरवाहों के संघर्ष में बदल गया, क्योंकि विजिलांते समूहों में मुख्य रूप से किसान थे, और ज़्यादातर अपराधी चरवाहे थे. ज़म्फारा सरकार ने शुरू में इन विजिलांते समूहों की गतिविधियों में मदद के लिए मोटरसाइकिलें और अन्य साधन मुहैया करा कर उनका समर्थन किया. अभी तक, उन कोशिशों को कुछ हल्क़ों में गलत ढंग से व्याख्यायित किया जाता है और कभी-कभी इसका इस्तेमाल राज्य सुविधाओं पर गिरोहबंद अपराधियों के हमले को जायज़ ठहराने की बुनियाद के बतौर किया जाता है.

इन गिरोहबंद अपराधियों में से कुछ ने 1999 के उत्तरार्ध में शरिया क़ानून लाये जाने के बाद अस्थायी तौर पर अपनी गतिविधियां बंद कर दीं. शरिया क़ानून ने गाय चुराने की सज़ा हाथ काटकर दी.

शरिया क़ानून की शुरुआत: इन गिरोहबंद अपराधियों में से कुछ ने 1999 के उत्तरार्ध में शरिया क़ानून लाये जाने के बाद अस्थायी तौर पर अपनी गतिविधियां बंद कर दीं. शरिया क़ानून ने गाय चुराने की सज़ा हाथ काटकर दी. हालांकि, एक प्रमुख इस्लामी विद्वान शेख अबुबकर गुमी के मुताबिक़, शरिया को लागू करना विफल रहा. कानो के अमीर रह चुके मोहम्मद सानुसी द्वितीय जैसे अन्य विशिष्ट इस्लामी विद्वानों ने शरिया लागू किये जाने को महज़ एक राजनीतिक विमर्श बताया जिसे राजनेताओं ने सत्ता में आने के लिए इस्तेमाल किया. 2011 के आसपास, हथियारबंद गिरोहबंदी दोबारा सामने आयी. शुरुआती गुटों में से एक का नेतृत्व बुहारी त्सोहो ने किया, जो बुहारी दाजी (झाड़ियों का बुहारी) नाम से ज़्यादा चर्चित था. वह एक फुलानी व्यक्ति था, जिसने गतिविधियों का वित्तपोषण मवेशियों की चोरी के ज़रिये किया. उनके साथ जुड़ने वालों में से कुछ ने इन हथियारबंद गुटों को एक सांस्कृतिक संघ माना, जिनका लक्ष्य फुलानियों को सुरक्षा एजेंसियों से जुड़े लोगों, पारंपरिक शासकों और राजनेताओं की मनमानी से मुक्ति दिलाना था. शुरू में इनकी सदस्यता केवल फुलानियों के लिए थी. गृहयुद्ध के बाद कम पढ़े-लिखे ख़ानाबदोश फुलानियों ने चाड और गिनी जैसे देशों से बहुत दूर की यात्रा की, जिसने उनकी गतिविधियों की पारराष्ट्रीय प्रकृति की पुष्टि की.

संघर्ष में राजनीतिक कर्ताओं की भूमिका

काडुना जैसे कुछ राज्यों में संदर्भ थोड़ा अलग लगता है, क्योंकि वहां कई विजिलांते समूह सदस्य ईसाई थे. विजिलांते और अपराधी गिरोहों के बीच टकराव ईसाइयों और मुसलमानों के बीच संघर्ष में बदल गया. विजिलांते समूहों का समर्थन करने के बजाय, राज्य सरकार ने दक्षिणी काडुना में हत्याएं रोकने के लिए फुलानियों को कथित तौर पर पैसे दिये. काडुना राज्य सरकार ने मुआवजा मुहैया कराने के लिए फुलानियों को नाइजर, कैमरून और यहां तक कि सेनेगल तक खोजा. हालांकि इसे अक्सर कम करके आंका जाता है, लेकिन ज़म्फारा और काडुना में ख़ास तौर पर, और उत्तरी नाइजीरिया में सामान्य तौर पर राजनीतिक कर्ताओं की भूमिका ने इसे सीधे प्रभावित किया कि संघर्ष को कैसे देखा जाता है और आज वह क्या हो गया है.

अगले साल नाइजीरिया में चुनाव को देखते हुए, इस बात की काफ़ी आशंका है कि असुरक्षा की मौजूदा स्थिति चुनाव के नतीजों को ख़तरे में डाल सकती है.

फुलानी समर्थकों से भरा है नाइजीरिया

विजिलांते समूहों की गतिविधियों के फुलानियों के ख़िलाफ़ अन्याय के रूप में व्यापक चित्रण ने संघर्ष को हवा देकर एक पूर्ण-विकसित संकट में बदल दिया, ख़ासकर ज़म्फारा और कटसीना एक्सिस के इर्द-गिर्द. पीड़ित होने के इस नैरेटिव ने फुलानियों से हमदर्दों व स्वयंसेवकों तथा दूसरे देशों जैसे माली, सेनेगल, गिनी, और साहेल से गिरोहबंद अपराधी नेटवर्कों को आकर्षित करने के लिए भावनाओं को गोलबंद करने में मदद की. इसने चरमपंथियों, एथनिक कट्टरपंथियों तथा अपराधियों के लिए एकजुट होने और काम करने के लिए कुछ वैधता हासिल करने का अवसर पैदा किया. पूर्वोत्तर में आतंकवाद के फैलाव के साथ, बोको हराम और इस्वाप से अलग होने वाले लोग अपनी आपराधिक गतिविधियां जारी रखने के लिए पश्चिमोत्तर की ओर लौट गये. इस साल की शुरुआत में, ज़म्फारा राज्य में एक हमले में 200 से ज़्यादा लोग मारे गये. पश्चिमोत्तर में तमाम समुदाय बेहद कष्ट में हैं, और उन्हें नहीं पता कि आगे क्या होगा.  

2023 के चुनाव को ख़तरे में डाल सकती है असुरक्षा

कुछ विश्लेषक मानते हैं कि ये गिरोहबंद अपराधी और आतंकवादी उन्नत हथियारों का इस्तेमाल करने वाले हिंसक मुज़रिम हैं जो अलग-अगल काम करते हैं, वहीं अन्य ज़ोर देते हैं कि एक का छिपा हुआ रूप दूसरा हैअगले साल नाइजीरिया में चुनाव को देखते हुए, इस बात की काफ़ी आशंका है कि असुरक्षा की मौजूदा स्थिति चुनाव के नतीजों को ख़तरे में डाल सकती है. देश भर में बहुत से युवा लोगों ने मतदान के लिए पंजीकरण कराया हो सकता है और वे अपनी आवाज़ को सुना जाना सुनिश्चित करने के लिए भागीदारी की अपनी क्षमता को लेकर उत्साहित हैं. हालांकि, आतंकवादियों ने नागरिकों को भागीदारी से रोकने के लिए एक क़ानून कथित तौर पर बनाया है. इसका मतलब यह हो सकता है कि इन संभावित मतदाताओं की उम्मीदों को गहरा धक्का लग सकता है, क्योंकि असुरक्षा लोगों को मतदान केंद्रों तक आने से रोकेगी, जिससे नतीजों में बेईमानी और हेरफेर का अवसर पैदा होगा.  

बुरे सुरक्षा हालातों के साथ छोड़कर जायेंगे राष्ट्रपति बुहारी 

आधिकारिक दावों के विपरीत, आपराधिक गिरोहबंदी के ख़िलाफ़ लड़ाई अभी जीत से बहुत दूर है. सरकार अपने सभी विकल्प आज़मा चुकी लगती है. 2023 में अपने कार्यकाल का अंत होने पर, राष्ट्रपति बुहारी (जो ख़ुद एक फुलानी हैं) के रिटायर होकर अपने गृह राज्य कटसीना के एक फार्म में रहने की उम्मीद है, जो अभी असुरक्षा का केंद्र है. अगर फ़ौरन कुछ नहीं किया गया, तो ऐसी अटकलें हैं कि राष्ट्रपति की सेवानिवृत्ति अशांति से ग्रस्त हो सकती है. हाल में, उनकी पार्टी के सांसदों ने असुरक्षा से निपटने में उनकी विफलता के चलते उनके ख़िलाफ़ महाभियोग के लिए पूरा ज़ोर लगाया. लीक हुए एक हालिया मेमो में, काडुना राज्य के गवर्नर, नासिर अल-रुफ़ाई ने बताया कि कैसे आतंकवादियों ने उनके राज्य के कुछ हिस्सों के समुदायों में घुसपैठ की है और वे पश्चिमोत्तर क्षेत्र में अपनी गतिविधियों के लिए एक स्थायी ठिकाना बनाने की फ़िराक़ में हैं. राज्य के कई हिस्सों में दुस्साहसी गिरोहबंद अपराधियों ने सटीक ढंग से कामयाब हमले किये हैं. हाल में, हिंसक अपराधियों ने एक सरकारी जन परिवहन बस पर हमला करके कुछ यात्रियों की हत्या कर दी और अन्य का अपहरण कर लिया. जुलाई में, राष्ट्रपति के अपने गृह नगर डुआरा जाते समय, उनके अग्रिम क़ाफ़िले पर गिरोहबंद अपराधियों ने घात लगाकर हमला किया. राष्ट्रपति और सुरक्षा एजेंसियों दोनों के ख़स्ता हाल रहने का मतलब यह हो सकता है कि अफ्रीका की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में सुरक्षा चुनौतियां अभी थोड़ी लंबी चल सकती हैं.

भारत, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद और नयी दिल्ली जैसे अपने प्रमुख शहरों में जिहादी आतंकवाद की बड़ी चुनौती का सामना करता रहा है. इसलिए, नाइजीरिया को अपनी आतंकवाद-निरोधक रणनीतियों को सशक्त बनाने में भारत के साथ साझेदारी से काफ़ी फ़ायदा हो सकता है.

क्या भारत के साथ साझेदारी से कोई फ़र्क़ पड़ सकता है?

हाल के वर्षों में भारत, मुंबई, बेंगलुरु, हैदराबाद और नयी दिल्ली जैसे अपने प्रमुख शहरों में जिहादी आतंकवाद की बड़ी चुनौती का सामना करता रहा है. इसलिए, नाइजीरिया को अपनी आतंकवाद-निरोधक रणनीतियों को सशक्त बनाने में भारत के साथ साझेदारी से काफ़ी फ़ायदा हो सकता है. हिंसक चरमपंथ को पहचानने और रोकने के वास्ते पूर्वानुमान आधारित आतंकवाद-निरोध के लिए एल्गोरिदम तैयार करने की ख़ातिर कृत्रिम बुद्धि (एआई) और ख़ुफ़िया सूचनाओं के तकनीक-आधारित संग्रह जैसे नये औज़ारों व तकनीकों के इस्तेमाल से यह हो सकता है. इसके अलावा, भारतीय सेना उन वैश्विक सशस्त्र बलों में से एक है जो कृत्रिम बुद्धि आधारित उपकरणों का इस्तेमाल करती है. कुछ रिपोर्ट्स भारत और नाइजीरिया के बीच रक्षा प्रशिक्षण, क्षमता निर्माण तथा आतंकवाद-निरोध और उग्रवाद-निरोध के प्रयासों को सशक्त बनाने वाली अनुसंधान एवं विकास (आरएंडडी) विशेषज्ञता जैसे क्षेत्रों में सहयोग को लेकर बातचीत जारी होने का इशारा करती हैं.

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