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Published on Mar 04, 2023 Updated 0 Hours ago

इसमें कोई संदेह नहीं है कि NFT कला के वर्तमान और भविष्य के लिए एक अवसर है लेकिन इसके गंभीर परिणाम भी हैं. 

NFT लिपस्टिक इफेक्ट: मेटावर्स में कला का भविष्य!

यह लेख रायसीना एडिट 2023 सीरीज़ का हिस्सा है.


हमारे दिमाग़ के महत्वपूर्ण हिस्से से डोपामाइन और नोराड्रेनालाइन से भरपूर फाइबर अलग होकर शारीरिक संतुलन को नियंत्रण करने वाले मस्तिष्क के केंद्र में जाते हैं. इन स्थानों पर शरीर के भावनात्मक व्यवहार से जुड़ी आवश्यकताओं का विश्लेषण किया जाता है. मस्तिष्क की इनाम देने वाली प्रणाली आवश्यकताओं की संतुष्टि को हासिल करने के उद्देश्य से हमारी हरकतों को निर्धारित करती है जो प्रसन्नता से बढ़ती है. इसलिए जो बर्ताव हमारी मांगों को पूरा करने में उपयोगी माने जाते हैं, उन्हें दोहराया जाता है. ये बेहद सरल है कि जब-जब हम अच्छे समय का अनुभव करते हैं, हमारा मस्तिष्क उस प्रेरणा का समर्थन करता है, हमें उसे दोहराने के लिए प्रेरित करता है. 

9/11 हमले के बाद कॉस्मेटिक्स ब्रांड एस्टी लाउडर के पूर्व अध्यक्ष लियोनार्ड लाउडर ने एलान किया कि इस घटना की वजह से उनकी कंपनी के कॉस्मेटिक्स, विशेष रूप से लिपस्टिक की बिक्री बढ़ गई है.

ये जटिल प्रणाली है जिसमें न केवल बुरी आदतें बल्कि सबसे सामान्य बर्ताव भी छिपे हुए हैं जैसे कि धूप में टहलने के बाद हम अपनी प्यास बुझाते हैं; काफ़ी मेहनत से काम करने के बाद हम अपने लिए कोई सामान ख़रीदते हैं. किसी चीज़ से जूझने के बाद (यहां तक कि गर्मी से जूझने के बाद भी) या डर का सामना करने के बाद (यहां तक कि थकान के अप्रिय अनुभव की वजह से भी) कोई भी चीज़ इनाम बन सकती है. इसलिए मंदी के दौरान कुछ ख़ास उत्पादों की सेल बढ़ जाती है यानी घटिया सामान लेकिन मनोबल बढ़ाने के लिए उपयोगी. 

9/11 हमले के बाद कॉस्मेटिक्स ब्रांड एस्टी लाउडर के पूर्व अध्यक्ष लियोनार्ड लाउडर ने एलान किया कि इस घटना की वजह से उनकी कंपनी के कॉस्मेटिक्स, विशेष रूप से लिपस्टिक की बिक्री बढ़ गई है. उस समय गढ़ी गई अभिव्यक्ति का इस्तेमाल करते हुए विश्लेषकों ने लिपस्टिक इफेक्ट को गहरे आर्थिक संकट और खर्च करने की कम होती शक्ति के समय में किफ़ायती विलासिता के सामान- उदाहरण के लिए लिपस्टिक- ख़रीदने की प्रवृत्ति के रूप में परिभाषित किया. इसका कारण शुद्ध रूप से मस्तिष्क की इनाम देने वाली प्रणाली है. ख़राब समय के दौरान या उसके बाद कई त्याग करने के बीच व्यक्ति ख़ुद को इनाम देता है. इसलिए लिपस्टिक सूचकांक आर्थिक गिरावट के एक संकेत के रूप में काम करता है और उसको लेकर हमारी प्रतिक्रिया को माप सकता है. 

जब कोई समाज, जो हर प्रकार के ऐतिहासिक सदमे को रोज़ाना की ज़िंदगी के हाशिये पर धकेल देता है, ख़ुद को अस्तित्व पर असर करने वाले हिंसक प्रतिघात के केंद्र में पाता है तो वो इस दर्द के बदले इनाम देकर प्रतिक्रिया देने की प्रवृत्ति रखता है. ये 1929 के काला मंगलवार के बाद; 2000 में; मुश्किल 2008 के शुरू होने; और 2020 के बाद हुआ था. हालांकि मानवता में लगातार परिवर्तन हो रहा है, यहां तक कि तकलीफ़ों की भरपाई और आनंद लाने वाले सामानों की पसंद में भी बदलाव आ रहा है. आज ख़पत की एक नई जगह- मेटावर्स- में विलासिता की छोटी सी चीज़ लिपस्टिक को एक नन-फंजिबल टोकन (NFT) के साथ जुड़े एक वर्चुअल सामान से बदला जा रहा है. 

उपभोक्ताओं के लिए, वर्चुअल सामान अक्सर किसी ऐसी चीज़ का मालिक बनने के अवसर का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन तक वास्तविकता में पहुंचना मुश्किल है. ये ऐसा बदलाव है जो मस्तिष्क की इनाम प्रणाली को और भी प्रोत्साहित करता है. 

उपभोक्ताओं के लिए, वर्चुअल सामान अक्सर किसी ऐसी चीज़ का मालिक बनने के अवसर का प्रतिनिधित्व करते हैं जिन तक वास्तविकता में पहुंचना मुश्किल है. ये ऐसा बदलाव है जो मस्तिष्क की इनाम प्रणाली को और भी प्रोत्साहित करता है. ये ज़मीन का टुकड़ा, कार और यहां तक कि ऑस्ट्रिया के चित्रकार क्लिम्ट गुस्ताव की चित्रकला द किस भी हो सकती है. इस आधार पर मेटावर्स में कला को लेकर अक्सर पूछे जाने वाले सवालों के जवाब सोचने योग्य हैं: चित्रकार ईगॉन शीला की चित्रकला को टोकेनाइज़ क्यों किया जाए? किसी कला के भौतिक रूप के बदले NFT को प्राथमिकता क्यों दी जाए? क्रिप्टो कला का संग्रह क्यों? 

कुछ अपवादों को छोड़कर लिपस्टिक इफेक्ट इसका जवाब है. ये आसानी से मिलने वाले विलासिता के समान हैं, जो केवल रचनात्मकता से बने हैं जिसकी वजह से हम इन्हें ख़रीदते हैं, जिनके माध्यम से हम संकट के दौरान या बाद में ख़ुद को इनाम देते हैं. 

सहारा से लेकर सांत्वना तक कला 

पिछली सदी में महामारी की वजह से सबसे बड़ी वैश्विक आर्थिक मंदी आई. इसे देखते हुए मेटावर्स में कला की दुनिया के लिए आंकड़े विशेष रूप से मज़ेदार हैं. जनवरी 2019 से जुलाई 2020 के बीच कुल NFT लेन-देन का लगभग 18 प्रतिशत कला क्षेत्र से था. जुलाई 2020 के मध्य में ये आंकड़ा 71 प्रतिशत तक पहुंच गया. मार्च 2021 तक कला NFT बाज़ार में सबसे ऊपर पहुंच गया. जनवरी 2020 में ये अमेरिका के ऑनलाइन NFT बाज़ार ओपनसी पर 4.8 अरब अमेरिकी डॉलर की व्यापार राशि तक पहुंच गया. 

भले ही क्रिप्टोकरेंसी का रुझान कुछ भी हो या उसके ध्वस्त होने के बाद भी इस संदर्भ में दो प्रभावशाली तथ्य सामने आते हैं- कला NFT की बिक्री में बढ़ोतरी जारी रही; हालांकि यूक्रेन में युद्ध के कारण सबसे मशहूर संग्रह के मूल्य में गिरावट दर्ज की गई. एक निष्कर्ष सामने आता है: कला, जिसे ऐतिहासिक रूप से स्वाभाविक मूल्य के साथ एक श्रेणी समझा जाता है और जो किसी आर्थिक-वित्तीय संकट के परिणामों के अधीन नहीं है, ख़ुद को NFT के साथ जोड़कर ‘सुरक्षित आश्रय’ का अपना दर्जा खो देती है और ये ‘सांत्वना’ का सामान बन जाती है.

इनाम के रूप में सुलभ, अद्वितीयता और छोड़ देना

अगर कोई सामान ख़रीदने से ताक़त की सोच जुड़ती है, संकट का मुक़ाबला करने का संतोष मिलता है तो इस प्रकार लिपस्टिक इफेक्ट के पीछे इनाम की प्रणाली की प्रेरणा और मज़बूत होती है. 

हर वो चीज़ जो हमें पीड़ा देती है, वो हमें ख़ुद को परिभाषित करने का अवसर देती है. यहां तक कि एक ‘लिपस्टिक’ भी एल्गोरिदम की तरह हमें मंदी के बारे में बता सकती है.

‘लिपस्टिक’ से अलग, कला से संबंधित NFT को ख़रीदने का अर्थ है आसानी से सुलभ विलासिता के सामानों को अपना बनाने का अवसर होना जो कि- उनकी असाधारण दुर्लभता को बनाये रखकर- अद्वितीय एवं अपरिवर्तनीय है और अधिक संतुष्टि पैदा करते हैं. एक क्लिक से कोई भी व्यक्ति तुरंत कला संग्रह में अंतर्निहित आनंद के तौर-तरीक़े तक पहुंच सकता है यानी किसी अद्वितीय चीज़ का मालिक होना; इस बात पर विचार करना कि इसकी बिक्री से लाभ लेना चाहिए या नहीं; और ये तय करना कि इसे दूसरों से छिपाएं या नहीं. इस तरह दूसरों को छोड़ देने के माध्यम से आधिपत्य को जताना. इस प्रकार शक्ति का आनंददायक भ्रम होता है.  

सामानों में कला का ‘टोकेनाइज़ेशन’ 

इसमें कोई संदेह नहीं है कि NFT कला के वर्तमान और भविष्य के लिए एक अवसर है, न केवल कला बाज़ार की परंपरागत बाधाओं के पार रचनात्मक उत्पादन के लिए कलाकार के प्रभावकारी उपकरण के तौर पर बल्कि इस क्षेत्र तक पहुंच के लिए नई संभावना के रूप में भी. इसमें नये संग्रहकर्ता के लिए ऑक्शन हाउस जैसे मध्यस्थों की भी आवश्यकता नहीं है. लेकिन ये सुविधा बेहद गंभीर परिणाम के साथ मिलती है. कला अब प्रशंसा के योग्य एक सांस्कृतिक उत्पाद नहीं है बल्कि ये एक सामान है जिसे ख़रीदा जाता है. 

सर्वभक्षी और हितैषी उपभोक्ताओं की दुनिया में परिमाणात्मक आंकड़े सबसे महत्वपूर्ण बन जाते हैं जिनसे गुणात्मक आंकड़े को नुक़सान होता है. इस सांस्कृतिक उद्योग में अपने नये लेकिन निराशजनक रूप-रंग में कई कला NFT ठोस प्रेरणा और कलात्मक तौर पर गहरी धारणा से वंचित रहते हैं. इस तरह ये महज़ संग्रह करने लायक सामान बन गए हैं. कलात्मक काम, जिन्हें अधिक इनाम की शक्ति के साथ ‘लिपस्टिक’ में बदला जाता है, अब केवल एक आर्थिक संकट के नहीं बल्कि सौंदर्य संकट के लक्षण रह गए हैं. 

आगे जाने के लिए पीछे जाना: भविष्य में पुराने व्यवसाय

मशीनी उत्पादन की तकनीकों से तोड़ने-मरोड़ने के बाद NFT से संबंधित काम की कलात्मक क़ीमत अक्सर किसी आम सामान की तरह हो जाती है. इसलिए एक संभावित समाधान पर तुरंत काम करना चाहिए जो कला और मेटावर्स को जोड़ने के असाधारण लाभों को बनाए रखकर सांस्कृतिक उत्पादों के सार की रक्षा करता है. 

कला कृतियों की गुणवत्ता के स्तर की गारंटी देने की संभावना केवल इस क्षेत्र में अतीत में हटाए गए मध्यस्थों यानी क्यूरेटर को फिर से लाए जाने पर ही हो सकती है. ये वो लोग हैं जो परंपरागत दुनिया में अपनी विशेषज्ञता के साथ वर्चुअल दुनिया में कला की गुणवत्ता का प्रमाण दे सकते हैं. साथ ही ये लोग बाज़ार में ख़राब गुणवत्ता की कला कृतियों की अधिकता का समाधान कर सकते हैं. लेकिन क्यूरेटर को हर हाल में नया हुनर सीखना चाहिए और न केवल कलाकार की कृतियों एवं सांस्कृतिक संदर्भों को समझने में बल्कि नई आभासी दुनिया का अर्थ निकालने में भी विशेषज्ञता रखनी चाहिए. उन्हें ये अवश्य जानना चाहिए कि मेटावर्स में आगे कैसे बढ़ना है और इसकी तकनीकों से परिचित होना चाहिए. साथ ही इसके उचित आर्थिक आयाम में भी कौशल विकसित करना चाहिए. 

इस क्षेत्र में पहले से ही असंख्य ऐसी वास्तविकताएं हैं जिनका ज़िक्र करना ज़रूरी है. इनमें से एक है तर्क पर आधारित कला (रीज़न्ड आर्ट) जो क्यूरेटोरियल सामग्री और अवांत-गार्दे प्रदर्शनी के साथ डिजिटल कलाकारों की कला कृतियों को बेहतर करती है. यूरोपीय परियोजनाओं की तर्ज पर आर्टेक लैब भी कलाकारों, क्यूरेटर और कला प्रेमियों के लिए शैक्षणिक क्षेत्र को बढ़ावा देती है. इसके अलावा बोसोन प्रोटोकॉल भी है जो क्यूरेटर को टैम ग्रीन जैसी क्षमता से समर्थ करता है ताकि वो गुणवत्ता वाली कला प्रदर्शनी की रचना कर सकें जहां डिजिटल और वास्तविक कला का विलय होता है. 

एक बार फिर से लिपस्टिक इफेक्ट की तरफ़ आते हैं. हर वो चीज़ जो हमें पीड़ा देती है, वो हमें ख़ुद को परिभाषित करने का अवसर देती है. यहां तक कि एक ‘लिपस्टिक’ भी एल्गोरिदम की तरह हमें मंदी के बारे में बता सकती है. मेटावर्स की तरह दूसरी दुनिया में वास्तविकता के गति विज्ञान को फिर से उत्पन्न करना निश्चित तौर पर एक असाधारण अवसर है लेकिन ये एक बड़ी ज़िम्मेदारी भी है, ख़ास तौर पर तब जब हमारे संकट को मूर्त रूप देने वाली वस्तु कला बन जाती है. इसकी पवित्रता की रक्षा करते हुए इसके इनोवेशन को स्वीकार करना दोनों ही दुनिया में एक सजीव अनिवार्यता होनी चाहिए.   

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