Author : Arpan Tulsyan

Expert Speak Raisina Debates
Published on Jun 21, 2025 Updated 0 Hours ago

भारतीय छात्रों को जिस तरह से लगातार अमेरिकी वीज़ा पाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा रह है, उससे उनके सपने टूट रहे हैं. ऐसे में ये समय ऐसा है जिसमें भारत शिक्षा के लिये बाहरी देशों पर अपनी निर्भरता को कम करके, देश में ही घरेलू शिक्षा को बेहतर और मज़बूत कर सकता है.

अमेरिकी वीज़ा से जुड़ी दिक्कतों के बीच, भारतीय छात्रों की आकांक्षाओं के लिये नये रास्ते…

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विश्वस्तरीय शिक्षा, शोध के मौकों और वैश्विक करियर के बेहतर विकल्प की तलाश कर रहे भारतीय छात्रों के लिए संयुक्त राष्ट्र अमेरिका (यूएस) हमेशा से ही एक पसंदीदा देश रहा है. साल 2024 में, अमेरिका ने अब तक की सबसे ज्य़ादा संख्या, जो 1.1 मिलियन रहा, उतने अंतरराष्ट्रीय छात्रों की मेजबानी की है. इसमें भारतीय छात्र 331,602 नामांकन के साथ, सबसे ज्य़ादा संख्या में वहां उपस्थित थे, जो पिछले साल के बनिस्पत 23.3% अधिक थी. NAFSA यानी – एसोसिएशन ऑफ इंटरनेशनल एड्यूकेटर के द्वारा किये गये एक विश्लेषण से ये पता चलता है कि अमेरिका को इन अंतरराष्ट्रीय छात्रों के ज़रिये 43.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का फायदा हुआ, और साथ ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था को वर्ष 2023-24 के दौरान 3,78,175 नौकरियों की मदद मिली.     

हाल के दिनों में, ट्रंप प्रशासन द्वारा स्टूडेंट वीज़ा पर की गई कार्यवाही, तेज़ की गई नियमावलियों की जांच व अप्रवासन विरोधी बयानबाज़ियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बीच अनिश्चितता और डर का माहौल सा बन गया है

हालांकि, हाल के दिनों में, ट्रंप प्रशासन द्वारा स्टूडेंट वीज़ा पर की गई कार्यवाही, तेज़ की गई नियमावलियों की जांच व अप्रवासन विरोधी बयानबाज़ियों की वजह से अंतरराष्ट्रीय छात्रों के बीच अनिश्चितता और डर का माहौल सा बन गया है, जिस तरह से ये ‘अमेरिकी सपना’, भारतीय युवाओं के लिए और भी दुर्लभ होता जा रहा है, वैसे में, भारत को इस अवसर का भरपूर लाभ उठाते हुए, अपने यहां के घरेलू उच्च शिक्षा के इको-सिस्टम को और मज़बूत करने की दिशा में काम करना चाहिये – ताकि वो अपनी घरेलू ज़रूरतों को पूरा कर सके और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साउथ-साउथ कूटनीति को और आगे बढ़ाते हुए इस इलाके को क्षेत्रीय नेतृत्व दे सके.   

अमेरिका में नीतिगत बदलाव

जनवरी 2025 के बाद से, अंतरराष्ट्रीय छात्रों को केंद्र में रखते हुए, ट्रंप प्रशासन ने श्रृंखलाबद्ध तरीके से कई तरह के प्रतिबंध लागू किये हैं, जिस वजह से वीज़ा अस्वीकृति दर में काफी बढ़त देखी गई है, गहन जांच प्रक्रिया जिसमें (ऑनलाइन व्यवहार की जांच) भी शामिल है और कई संस्थाओं पर निशाना भी साधा गया है. जहां इन उपायों ने अंतरराष्ट्रीय छात्रों के सामने महत्वपूर्ण बाधाएं पैदा करने का काम किया है, वहीं इसने उच्च शिक्षा के क्षेत्र के तौर पर अमेरिका की उच्च शिक्षा के विकल्प के रूप में एक नकारात्मक छवि भी गढ़ी है, जिसकी वजह इस देश का कम सहयोगी रवैया या प्रतिकूल माहौल है. अमेरिकी विदेश विभाग के हवाले से मिली जानकारी के अनुसार, भारतीय छात्रों को जारी किये जाने वाले वीज़ा में 50 प्रतिशत से भी ज्यादा की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि जांच प्रक्रिया में लायी गई सख़्ती व प्रशासनिक बाधाओं को दिखाती है.     

पहले से ही अमेरिका में पढ़ाई कर रहे हजारों छात्रों का वीज़ा बेहद मामूली कारणों  की वजह से रद्द कर दिया गया, और उन्हें बलपूर्वक अमेरिका से निर्वासित कर उनको उनके देश भेज दिया गया. यह प्रवृत्ति हाल ही में चरम पर तब पहुंच गयी जब डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी (DHS) ने हावर्ड विश्वविद्यालय के स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विज़िटर प्रोग्राम (SEVP)  सर्टिफिकेशन की प्रक्रिया को रद्द कर दिया, जो उसे विदेशी छात्रों का एडमिशन करने से रोकती है. इन नये हालातों ने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ रहे कुल 10,158 अंतरराष्ट्रीय छात्रों एवं सीधे तौर पर, वहां पढ़ाई कर रहे 788 भारतीय छात्रों को प्रभावित किया है.

हालांकि, इस पूरे मामले के तूल पकड़ने के बाद एक संघीय जज ने अस्थाई तौर पर इस फैसले पर रोक लगा दी है, और तकरीबन 12,000 पूर्व छात्रों एवं 24 विश्वविद्यालयों ने हावर्ड यूनिवर्सिटी के समर्थन में रैली निकाली है; इसके बावजूद ये स्थिति अब भी दुविधापूर्ण बनी हुई है क्योंकि वीज़ा प्रोसेसिंग से जुड़ी चुनौतियां जस के तस बनी हुई है और कानूनी लड़ाई अब तक जारी है, जिस कारण वहां के  अंतरराष्ट्रीय छात्रों के भविष्य को लेकर चिंताएं अब भी बनी हुई हैं. संसदीय प्रस्तावों और एक्ज़्यूकिटिव बयानबाज़ियों के ज़रिये ऑप्शनल प्रैक्टिकल ट्रेनिंग यानी (OPT) प्रोग्राम पर निशाना साधा जा रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय छात्रों को  STEM के क्षेत्र में, डिग्री पाने के बाद तीन सालों तक काम करने की अनुमति प्रदान करता है, अमेरिकी नौकरियों को प्रभावित करने वाली OPT की रेगुलेटरी रोलबैक की घोषणा कर दी गई है. ऐसे में पढ़ाई के बाद बेहतर रोज़गार के अवसर के अभाव में, उन भारतीय छात्रों की आकांक्षाओं को काफी प्रतिकूल तरह से प्रभावित करती है, जो ‘अमेरिकी सपना’ संजोये बैठे हैं.   

भारत के लिये इसका मतलब

भारतीय छात्रों के लिए, इन नीतियों के तत्काल लागू किये जाने की वजह से – कई तरह की दिक्कतें एक साथ सामने आ खड़ी हुई हैं. जिनमें अनिश्चितता एवं तनाव, से लेकर वित्तीय जोख़िम शामिल हैं. वो घोषणाएं जिनकी की उम्मीद नहीं थी, और नीतियों को लागू करने की समय सीमा का निश्चित पता न होने से बड़े पैमाने पर छात्रों एवं उनके परिवारों के बीच दुविधा एवं भावनात्मक संकट पैदा हो गये हैं. किसी भी भारतीय मध्यम वर्गीय परिवार के लिए, अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिये यूएस/अमेरिका भेजने की प्रक्रिया में वर्षों की बचत शामिल होती है — जहां एक अनुमान के तौर पर पढ़ाई की लागत पर प्रति वर्ष 3.5 से 5 मिलियन तक का खर्च आता है. वीज़ा जारी करने या उसके वर्क ऑथोराइज़ेशन प्रक्रिया के लिए किसी भी तरह की अनिश्चितता, अमेरिकी शिक्षा को उच्च जोखिम वाले निवेश में बदल देती है, जिससे परिवार के लागत-फायदे के आंकड़ों में महत्वपूर्ण बदलाव आ जाता है, जो उसे और भी जटिल एवं संवेदनशील जोख़िम में परिवर्तित कर देता है. इन सब तमाम वजहों से छात्र या तो ड्रॉपआउट कर रहे हैं या अपने फैसले को स्थगित कर रहे हैं. कई भारतीय छात्रों द्वारा नामांकन के लिए किये गए आवेदनों को या तो पूरी तरह से वापिस ले लिया जा रहा है, या फिर वे अनिश्चित समय तक के लिए वहां जाना स्थगित कर रहे हैं और तब तक इंतजार करने का विकल्प चुन रहे हैं जब तक कि बेहतर और अनुकूल नीतिगत माहौल न तैयार हो जाए. इसके अलावा, मौजूदा हालातों के देखते हुए, कई छात्रों कि प्राथमिकताएं भी उस अनुसार बदल रही है, जहां वे फ़्रांस, रूस, न्यूज़ीलैंड, उज्ब़ेकिस्तान, अथवा बांग्लादेश जैसे देशों को भी उच्च शिक्षा के लिए बेहतर विकल्प के तौर पर चुन रहे हैं.  

(देखें तालिका-1)    

 

तालिका 1: 2022–2025 में भारतीय छात्रों के % में बढ़ोतरी

देश 

2022

2023

2025

% बढ़त / वृद्धि  (2022–2025)

फ्रांस 

6,406

7,484

8,536

+33.3%

न्यूजीलैंड 

1,605

6,471

7,297

+354.7%

जर्मनी 

20,684

23,296

34,702

+67.8%

बांग्लादेश 

17,006

20,368

29,232

+71.9%

रूस 

19,784

23,503

31,444

+59.1%

आयरलैंड 

6,211

8,011

10,438

+68.1%

उज़्बेकिस्तान 

3,430

6,601

9,915

+189.2%

स्रोत: लोकसभा गैर-अंकित प्रश्न संख्या1730, जवाब दिया गया 10.03.2025

लंबे समय की दौड़ में, अगर अमेरिका में भारतीय छात्रों के नामांकन में इसी तरह की गिरावट  जारी रही, तो अमेरिकी समाज और व्यवसाय में भारतीय अप्रवासियों का असर और कमज़ोर हो सकता है. इससे अमेरिका में शोध एवं अनुसंधान की गति धीमी हो जाएगी और दोनों देशों के बीच शैक्षणिक आदान-प्रदान के पारस्परिक फायदों पर भी असर पड़ेगा. जो बीतते समय के साथ, वैश्विक स्तर पर प्रतिभा के प्रवाह में रणनीतिक संतुलन को बिगाड़ देगा और शिक्षा, टेक्नोलॉजी एवं नवाचार के क्षेत्र में, इंडो-यूएस सहयोग की गहराई को खत्म कर देगा.    

भारत के लिए अवसर

संकुचित होते अमेरिकी रास्तों के बीच, भारत के लिये ये ज़रूरी है कि वो अपने यहां के उच्च  शैक्षणिक संस्थानों की ग्लोबल स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता में इज़ाफा करे, और अन्य देशों के साथ शिक्षा और अनुसंधान क्षेत्र में बेहतर सहयोग और विविधता लाए. इन उद्देश्यों को पाने के लिये, राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 ने एक ब्लूप्रिन्ट का प्रस्ताव रखा है, जो पाठ्यक्रम का अंतराष्ट्रीयकरण, वैश्विक अनुसंधान सहयोग को प्रोत्साहन, और उद्योगों के गठबंधन में सुधार लाकर, इनोवेशन एवं उद्यमिता के लिए एक मज़बूत इको-सिस्टम का निर्माण करे और भारतीय उच्च शिक्षा आयोग (HECI) की मदद से रेगुलेटरी सुधार लागू करे.       

सबसे पहले भारत को नामी-गिरामी वैश्विक विश्वविद्यालयों को भारत में अपना स्वयं का कैंपस स्थापित करने के प्रयासों को जारी रखना चाहिए. उन्हें STEM एवं व्यावसायिक पाठ्यक्रमों जैसे कि गेम डिज़ाइन यहां के छात्रों के लिये उपलब्ध कराने पर काम करने देना चाहिये, और इसके ज़रिये उन्हें वैश्विक आदान प्रदान के साथ शोध पर आधारित शिक्षा को प्रोत्साहित करना चाहिये.  

नीति आयोग द्वारा सिंगापुर स्थित ग्लोबल स्कूल हाउस या फिर दुबई इंटरनेशनल एकेडेमिक सिटी मॉडल के आधार पर बड़े स्तर पर एडयू-सीटीज़ का विकास किये जाने की जो सिफारिश की गई है – वो ग्लोबल स्तर के एकीकृत, बहु-संस्थागत परिसरों के लिए एक आदर्श लॉन्चपैड साबित होगा जो नये उभरते क्षेत्रों में मल्टी-डिसिप्लीनरी शिक्षा एवं रोज़गार के अवसर उपलब्ध कर सकता है.  

दूसरा, नीति आयोग द्वारा सिंगापुर स्थित ग्लोबल स्कूल हाउस या फिर दुबई इंटरनेशनल एकेडेमिक सिटी मॉडल के आधार पर बड़े स्तर पर एडयू-सीटीज़ का विकास किये जाने की जो सिफारिश की गई है – वो ग्लोबल स्तर के एकीकृत, बहु-संस्थागत परिसरों के लिए एक आदर्श लॉन्चपैड साबित होगा जो नये उभरते क्षेत्रों में मल्टी-डिसिप्लीनरी शिक्षा एवं रोज़गार के अवसर उपलब्ध कर सकता है.    

तीसरा, सरकार एक ऐसे डिजिटल प्रोग्राम अथवा कार्यक्रम की शुरुआत कर सकती है जो भारतीय छात्रों को अंतरराष्ट्रीय विश्वविद्यालयों द्वारा पढ़ाए जाने वाले विभिन्न स्नातक कार्यक्रमों को ऑनलाइन उपलब्ध कराए और उन्हें भारत या किसी भी बाहरी देश से पूरा करने की सुविधा प्रदान करे, ठीक वैसे जैसे जर्मनी का ‘स्टार्ट इन जर्मनी, फिनिश एनिवेयर’ मॉडल करता है. ये मॉडल लागू करने पर एक किस्म का लचीलापन, खर्चे में कमी, वीज़ा और यात्रा संबंधी दिक्कतों से छुटकारा मिलेगा, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैश्विक गतिशीलता को बढ़ावा देगी और ये सब करते हुए छात्रों को लंबे समय के प्रवासन संबंधी चिंताओं से भी मुक्ति मिल सकेगी. 

चौथी बात, ‘डेस्टिनेशन ऑस्ट्रेलिया’ के तर्ज पर, भारत को भी उच्च शिक्षण केंद्रों, फास्ट ट्रैक बुनियादी ढांचों के विकास, क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों में मान्यता व फेकल्टी डेवेलपमेंट की प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण कर देना जाना चाहिये, और रीजनल शिक्षा केंद्र में छात्रों के लिये स्कॉलरशिप फंड की स्थापना करनी चाहिये. इससे न सिर्फ़ क्षेत्रीय विश्वविद्यालयों को मदद होगी बल्कि शिक्षा संबंधी फायदा पूरे देश में समान रूप से वितरित हो पायेगा. 

पांचवी बात, भारत को इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (आईआईटी) सरीख़े भारतीय विश्वविद्यालाओं का विस्तार, दूसरे देशों में भी करना चाहिए, खासकर साउथ-साउथ देशों के बीच, जिससे ग्लोबल सहयोग और वैश्विक जुड़ाव को और भी मज़बूत किया जा सके. भारतीय प्राइवेट एडटेक यूनिवर्सिटी जैसे अशोका, पलाक्शा या फिर एमिटी अपनी पहुंच, गुणवत्ता एवं वैश्विक साझेदारी को अन्य देशों तक बढ़ा कर फायदा उठा सकते हैं.   

एक तरफ वर्तमान समय में जहां अमेरिकी सपने काफी जटिल एवं कानूनी प्रक्रियाओं से उपजे बाधाओं में उलझे प्रतीत हो रहे हैं, वहीं - भारत को अपने छात्रों के, शैक्षणिक और व्यावसायिक आकांक्षाओं की सुरक्षा पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है.

सामूहिक तौर पर, इन सभी प्रयासों से विदेशी शिक्षा पर भारतीय छात्रों की निर्भरता को कम किया जा सकेगा और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में भारत की सहभागिता को बेहतर करेगा. इसके अलावा ये भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के केंद्र के रूप में एक उभरती हुई ताकत के रूप में स्थापित करने का काम करेगा. ऐसा होने पर होगा ये कि ये मौजूदा चुनौतियों को अवसर में बदल देगा, और ये भी सुनिश्चित करेगा कि हमारे युवाओं को विश्व-स्तरीय शिक्षा हासिल हो सके और वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के योग्य बने रहे, इस बात से प्रभावित हुए बगैर कि अंतरराष्ट्रीय नीति परिदृश्य में किस तरह के बदलाव लगातार हो रहे हैं.  

सारांश 

एक तरफ वर्तमान समय में जहां अमेरिकी सपने काफी जटिल एवं कानूनी प्रक्रियाओं से उपजे बाधाओं में उलझे प्रतीत हो रहे हैं, वहीं - भारत को अपने छात्रों के, शैक्षणिक और व्यावसायिक आकांक्षाओं की सुरक्षा पर पूरा ध्यान केंद्रित करने की ज़रूरत है. उन्हें इस तरह से वर्तमान नीतियों में बदलाव लाना चाहिये जिससे छात्रों को मिलने वाले मौकों में कोई कमी न आये, भले ही शिक्षा हासिल करने वाले स्थान में बदलाव आ जाए. ऐसा करते हुए भारत को एक किफ़ायती, ऊंची  गुणवत्ता वाले वैश्विक शैक्षणिक केंद्र के रूप में अपनी पहचान बनाने के लिये प्रयासरत रहना चाहिये, जो भारतीय शिक्षा के अंतराष्ट्रीयकरण के अभियान को और गति दे सके.    

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