Published on Feb 26, 2024 Updated 3 Days ago

भारत ने साल 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का जो लक्ष्य तय किया है, वो हमारे लिए एक बड़ी चुनौती होने के साथ-साथ बड़ा मौका भी है. इस काम में हमें कितनी सफलता मिलेगी, ये इस पर निर्भर करता है कि हमारा वित्तीय क्षेत्र कितने असरदार तरीके से काम करता है.

साल 2070 तक कैसे हासिल होगा शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य?

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


जलवायु परिवर्तन पर हुई बैठक (COP26) में भारत ने साल 2070 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प लिया है. अगर भारत को ये लक्ष्य हासिल करना है कि ऊर्जा, उद्योग और परिवहन जैसे अहम क्षेत्रों में अभी इस्तेमाल हो रही तकनीक़ी को छोड़कर कम कार्बन उत्सर्जन वाली तकनीक़ों को चुनना होगा जिससे तेज़ी से आर्थिक विकास भी हो साथ ही कारोबार और आम जीवन में इसका कम से कम नकारात्मक असर भी दिखे.

एक अनुमान के मुताबिक 2070 तक ये लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को सौर और वायु ऊर्जा के उत्पादन में 70 गुना की वृद्धि कर इसे 7,700 गीगावाट तक ले जाना होगा. इसके साथ ही हमें बुनियादी ढांचे को इतना विकसित करना होगा कि वो सालाना 114 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता को संभाल सके. 

वैसे अगर हकीकत में देखें तो शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने का संकल्प अगले 50 साल में भारत के लिए आधारभूत ढांचे के विकास और रोजगार पैदा करने का बड़ा अवसर बन सकता है. एक अनुमान के मुताबिक 2070 तक ये लक्ष्य हासिल करने के लिए भारत को सौर और वायु ऊर्जा के उत्पादन में 70 गुना की वृद्धि कर इसे 7,700 गीगावाट तक ले जाना होगा. इसके साथ ही हमें बुनियादी ढांचे को इतना विकसित करना होगा कि वो सालाना 114 मिलियन मीट्रिक टन ग्रीन हाइड्रोजन उत्पादन की क्षमता को संभाल सके. एक अनुमान के मुताबिक इन सब चीजों के विकास और उर्जा, उद्योग और परिवहन के क्षेत्र में इसके इस्तेमाल में 10.1 ट्रिलियन डॉलर का खर्च आने का अनुमान है. अगर मौजूदा स्थिति को देखें तो 6.6 ट्रिलियन डॉलर जुटाने के संसाधन तो हमारे पास हैं लेकिन 3.5 ट्रिलियन डॉलर की फिर भी कमी होगी.

ऐसे में आने वाले दशकों में भारत का विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इतने बड़े पैमाने पर पूंजी कैसे जुटाते हैं और कितनी सफलता से मानवीय संसाधन को इस बदलाव के लिए तैयार कर पाते हैं. पैसे का इंतजाम करना सबसे बड़ी चुनौती होगी क्योंकि अगले 50 साल तक हमें हर साल करीब 200 अरब डॉलर इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए जुटाने होंगे. यहां हम 6 ऐसे कदमों की चर्चा करेंगे जो इस पूंजी को जुटाने में मदद कर सकते हैं. इस रकम का इंतजाम 3 चीजों पर निर्भर करेगा और ये 3 चीजें हैं पूंजी जुटाना, ऋण लेना, लोन के मूलधन और ब्याज की वसूली. इसे देकर यहां दिए जा रहे हर एक सुझाव वित्तीय संसाधन जुटाने की समस्या हल करने में मददगार होंगे.

पहला कदम: सबसे पहले हर क्षेत्र के लक्ष्य तय कर लेने चाहिए. अगर संभव हो तो 2070 तक के लिए लक्ष्य निर्धारित कर उनका वर्गीकरण करना चाहिए. इसका फायदा ये होगा कि वित्तीय मदद देने वालों को उस क्षेत्र की आर्थिक क्षमता और संभावित जोख़िमों की जानकारी मिलेगी. इससे होगा ये कि लोन देने वालों को ये हिसाब लगाने में आसानी होगी कि हरित ऊर्जा के लिए ज़्यादा वित्तीय मदद दी जाए या फिर बुनियादी ढांचे के विकास में काम आने वाले बॉन्ड में.

दूसरा कदम: इस क्षेत्र के विकास के लिए सरकारी पूंजी भी उधार दी जाए. इससे लोन लेने में आने वाले ज़ोखिम तो कम होंगे ही साथ ही ब्याज दरें भी बेकाबू नहीं होंगी, खासकर उभरते बिजनेस मॉडल और नई तकनीकी पर काम कर रही कंपनियों को इससे मदद मिलेगी. उन कंपनियों को इससे ज़्यादा फायदा मिलेगा जो पेट्रोल-डीजल और कोयले वाले ईंधन से कम कार्बन उत्सर्जन ईंधन वाली तकनीकी पर जाने की सोच रही हैं. उदाहरण के लिए इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EVs) की कीमत आम गाड़ियों से ज़्यादा होती है, ऐसे में बैंक इनके लिए लोन देने में आनाकानी कर सकते हैं. सरकार से मदद मिलेगी तो इसमें सफलता मिल सकती है.

तीसरा कदम: चीन की तरह भारत को भी बुनियादी ढांचे के विकास की परियोजनाओं का फंड जुटाने के लिए बड़े बैंकों की स्थापना करनी चाहिए. दुनिया के 5 सबसे बड़े बैंकों में से 4 बैंक चीन के हैं. अगर भारत में भी ऐसे बैंकों की स्थापना की जाती है तो रिन्यूएबल एनर्जी, ग्रीन हाइड्रोजन परियोजना के लिए पैसों का इंतजाम होगा और इनका बेहद तेज़ गति से विकास होगा.

चौथा कदम: इन परियोजनाओं में विदेशी बैंकों को भी शामिल करने पर विचार किया जाना चाहिए. इससे विदेशी पूंजी तो मिलेगी ही साथ ही देश में तेज़ विकास भी होगा लेकिन इसके लिए नीति-निर्मातओं और नियामक संस्थाओं के बीच बेहतर तालमेल होना चाहिए जो भारत में बहुत कम दिखता है. इसी तालमेल की कमी की वजह से कई विदेशी बैंकों को भारत में अपना काम समेटना पड़ा और जो विदेशी बैंक बचे भी हैं, लोन देने के क्षेत्र में उनका असर बहुत कम है.

पांचवां कदम: प्रतिभूति बाज़ार (बॉन्ड मार्केट) और वित्त जुटाने के दूसरे उपकरणों को मजबूत करने से हरित विकास परियोजनाओं के लिए पैसे जुटाना आसान होगा. बैकों की लोन देने की शर्तों को भी आसान बनाना चाहिए.

छठा कदम: सार्वजनिक पूंजी का इस्तेमाल करके विदेशी निवेशकों को भारतीय परियोजना में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. फिलहाल ज़्यादातर निवेशक ऐसा करने से बचते हैं क्योंकि इस तरह की परियोजनाओं में निवेश की लागत बहुत महंगी पड़ती है.

भारत को अपनी बढ़ती वैश्विक ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम पर भी करना चाहिए. फिलहाल ये देखा जा रहा है कि ये अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भारत को आर्थिक मदद मिलने की राह में रुकावटें पैदा कर रही हैं और विकसित देशों में चल रही परियोजनाओं की ही मदद कर रही हैं.

यहां ये भी याद रखना ज़रूरी है शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए जो भी परियोजनाएं चल रही है कि उनके लिए रकम जुटाने का काम सिर्फ़ घरेलू संसाधन और अभी उपलब्ध विदेशी संसाधनों से पूरा नहीं हो सकता. भारत को अपनी बढ़ती वैश्विक ताकत और प्रभाव का इस्तेमाल अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सिस्टम पर भी करना चाहिए. फिलहाल ये देखा जा रहा है कि ये अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं भारत को आर्थिक मदद मिलने की राह में रुकावटें पैदा कर रही हैं और विकसित देशों में चल रही परियोजनाओं की ही मदद कर रही हैं. जी-20 सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए भारत ने इस बात पर ज़ोर दिया था कि मल्टीलेटेरल डेवलपमेंट बैंक (MDBs) को ग्लोबल साउथ के देशों में चल रही उन परियोजनाओं की मदद करनी चाहिए जिनका मकसद जलवायु परिवर्तन में सुधारा लाना है. इन परियोजनाओं के लिए पैसा जुटाने में भारत को ब्रिक्स (BRICS) की भी मदद लेनी चाहिए. हरित ऊर्जा के विकास के लिए चलाई जा रही परियोजनाओं को कोई वित्तीय समस्या ना हो इसलिए भारत को एक पूंजी का एक ऐसा समर्पित कोष बनाना चाहिए जिसका इस्तेमाल सिर्फ ग्रीन प्रोजेक्ट्स के लिए ही हो क्योंकि अभी भी कई ऐसे देश और वित्तीय संस्थाएं हैं जो उभरते बाज़ार और विकासशील अर्थव्यवस्था वाले देशों (EMDEs) की आर्थिक मदद करने में पक्षपात करते हैं. 

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