पिछले कुछ वर्षों में किए गए अध्ययन के अनुसार, नेपाल के पास 42000 मेगावॉट हाइड्रोपावर (पनबिजली) के उत्पादन की संयुक्त क्षमता है. हालांकि, इसके बावजूद भी, हाल के कुछ ही समय पहले तक, देश को प्रतिदिन 18 घंटों की लोड शेडिंग संकट झेलनी पड़ रही थी. पर अब परिस्थिति बदल चुकी है. अब ये देश बिजली उत्पादन के क्षेत्र में, किसी हद तक, न सिर्फ़ आत्म-निर्भर हो चुका है बल्कि अब वो बिजली खरीदने वाले/आयातित करने वाले देश से बदल कर बिजली बेचने/निर्यातीत करने वाले देश में परिवर्तित हो चुका है. इसके बावजूद, हाइड्रोपावर उत्पादन के क्षेत्र में हमारे इस पड़ोसी देश को अभी मीलों सफल तय करना है; चूंकि इस देश ने अभी तक जलविद्युत उत्पादन की अपनी क्षमता का मात्र 7 प्रतिशत ही इस्तेमाल किया है.
वर्तमान समय में नेपाल, भारत को कुल 452.6 मेगावॉट बिजली आपूर्ति करता है और उसे 180 मेगावॉट तक की अतिरिक्त बिजली आपूर्ति की अनुमति दी गई है.
2012 के दशक तक, नेपाल 1,050 मेगावॉट बिजली उत्पन्न किया करता था, जो कि 2023 आते-आते बढ़कर 2,800 मेगावॉट हो गया है. वर्तमान समय में नेपाल, भारत को कुल 452.6 मेगावॉट बिजली आपूर्ति करता है और उसे 180 मेगावॉट तक की अतिरिक्त बिजली आपूर्ति की अनुमति दी गई है. 2022 में, इसने भारत को, कुल 687.5 बिलियन भारतीय रुपए से अधिक की बिजली आपूर्ति की. वर्तमान वित्त वर्ष 2023-24 के प्रथम दो महीनों में ही, नेपाल ने भारत को 3.30 बिलियन भारतीय रुपए के समतुल्य की बिजली का निर्यात किया है.
नेपाल के पनबिजली/हाइड्रोपावर सेक्टर में, उत्साहजनक रूप से भारतीय निवेश काफी भारी मात्रा में उपलब्ध हो रहा है. 1.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर की लागत वाली 900 मेगावॉट की अरुण – 3 जलविद्युत परियोजना शुरू करने वाली, भारत की अग्रणी एवं सबसे बड़ी बिजली कंपनी में से एक SJVN लिमिटेड, अब 490 मेगावॉट की अरुण – 4 परियोजना के साथ 669 मेगावॉट की लोअर अरुण जलविद्युत परियोजना तुल्य नई परियोजना शुरू करने जा रही है. भारत की एनएचपीसी लिमिटेड भी 750 मेगावॉट वाली सेती और 450 मेगावॉट सेती रिवर-6 प्रोजेक्ट में निवेश करने वाली है. इसके अलावा, एनएचपीसी लिमिटेड और भारतीय विद्युत उत्पादन कंपनी लिमिटेड भी 480 मेगावॉट वाली फुकोट कमली परियोजना का विकास करने वाली है. इसके अलावा, नेपाल और भारत दोनों ही सम्मिलित रूप से 3,000 मेगावॉट वाली बहु-उद्देशिय सप्त कोशी हाई डैम परियोजना को आगे बढ़ाने को सहमत हो गए हैं.
नेपाल-भारत का समझौता
महत्वपूर्ण तौर पर, नेपाल और भारत दोनों ही देश ने सम्मिलित रूप से महाकाली संधि को लागू किए जाने के तौर तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया है. इस संधि के अंतर्गत आने वाली पञ्चेश्वर बहु-उद्देशीय परियोजना से 6,480 मेगावॉट हाइड्रोपावर का उत्पादन किए जाने की उम्मीद है. हालांकि, दोनों देशों के बीच ये संधि काफी पहले 1996 के वक्त ही हुई थी, और इसे नेपाली संसद में दो – तिहाई सदस्यों द्वारा पारित किया गया था, परंतु, नेपाली पक्ष में स्थित चंद कैंसर रूपी बाधाओं की वजह से इसे अमल में लाया नहीं जा सका. अब ऐसा लगता है कि इनमें से ज्य़ादातर चिंताओं को दूर कर लिया गया है और शीघ्र ही किसी भी वक्त, दोनों पक्षों द्वारा बहु-उद्देशीय पन्चेश्वर परियोजना से संबंधित विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है.
इस पहल से न केवल नेपाल में बिजली क्षेत्र में बड़े निवेश का माहौल बनेगा, बल्कि देश के आर्थिक विकास की दिशा में भी ये अतिरिक्त गति प्रदान करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी.
इसलिए, जोश से ओतप्रोत नेपाल अब 2035 तक,30,000 मेगावॉट बिजली विकसित करने की योजना बना रही है. इस वक्त तक, देश के भीतर घरेलू स्तर पर बिजली की मांग बढ़ कर 15,000 मेगवाट तक पहुँच जाने कि संभावना है. इस विशाल लक्ष्य की प्राप्ति के लिए, निर्माणाधीन विभिन्न हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट, अपने तय, निर्धारित समय तक 5,000 मेगावॉट बिजली का उत्पादन करने के लिए प्रयासरत है. इसके अलावे, नेपाल विद्युत प्राधिकरण (एनईए) देश में विभिन्न पनबिजली परियोजनाओं द्वारा उत्पाद किए जा रहे ऊर्जा की खरीद के लिए एक उचित आधार तैयार करने में लगे हुए है. इसके साथ ही, वहां मौजूद कई हाइड्रोपावर प्लांट में ऊर्जा उत्पादन में और तेज़ी लाने को लेकर भी अनुकूल योजना बनाई जा रही है.
नेपाल हालांकि, भारत के साथ के बिजली व्यापार के क्षेत्र को और ज्य़ादा विकसित करने के उद्देश्य से घरेलू और सीमा-पार के ट्रांसमिशन लाइन को विकसित करने की दिशा में संघर्षरत है.
नेपाल के साथ होने वाले संभावित बिजली व्यापार के लिए एक सहयोगी एवं सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाने की दिशा में, हाल ही में भारत सरकार ने इस देश के साथ किये गए दीर्घकालिक अंतर-सरकारी बिजली व्यापार समझौते के तहत, अगले दस वर्षों तक के लिए 10,000 मेगावॉट बिजली आयातित करने का निर्णय लिया है. इसके साथ ही, भारत ने नेपाल को अपने ट्रांसमिशन लाइन के द्वारा ही बांग्लादेश को भी ऊर्जा/बिजली आपूर्ति/निर्यात करने की आकांक्षा को अपनी हरी झंडी दे दी है. जहां तक ज्ञात है, नेपाल – बांग्लादेश को 50 मेगावॉट बिजली निर्यात करने की तैयारी कर रहा है. इस प्रगति पर अपनी बात रखते हुए, भारत में नेपाल के राजदूत शंकर शर्मा ने कहा की भारत सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय से नेपाल में पैदा हो रही बिजली के व्यापारिक विकास के लिए एक नए रोड मैप का सृजन होगा. आगे अपनी बात जारी रखते हुए उन्होंने कहा इस पहल से न केवल नेपाल में बिजली क्षेत्र में बड़े निवेश का माहौल बनेगा, बल्कि देश के आर्थिक विकास की दिशा में भी ये अतिरिक्त गति प्रदान करने में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगी. हालांकि, जिस तरह से नेपाल-भारत सहयोग के क्षेत्र में बेहतर प्रगति हो रही है, उसे देखते हुए चीन थोड़ा विचलित होता दिख रहा है. ‘वैश्विक व्यवस्था में चीन की उपस्थिति और नेपाल पर उसके प्रभाव’ विषय पर हो रही संगोष्ठी में बोलते हुए नेपाल में चीनी राजदूत छें सॉन्ग ने कहा,”दुर्भाग्यवश आपके पास भारत सरीखा एक पड़ोसी है…एक तरफ जहां भारत एक विशाल बाज़ार है, जहां आप इसकी विशाल क्षमता का दोहन कर सकते है, परंतु साथ ही नेपाल और अन्य पड़ोसियों राष्ट्रों के प्रति भारत की नीति ना ही मित्रवत है और नेपाल के लिए विशेषत: बिल्कुल भी फायदेमंद नहीं. हम इसे नीतिगत बाधा कहते हैं.” भारत की नेपाली नीति को उन्होंने इसे किसी आदर्श से काफी कम कहते हुए, इसकी भर्त्सना की. अपने कथन की पुष्टि करने के प्रयास में उन्होंने आगे कहा कि नेपाल ने साल 2022-23 में भारत को महज़ 6.25 बिलियन मूल्य के भारतीय रुपये का बिजली निर्यात किया है, परंतु उस देश से आयात किए गए भारतीय रुपए 11.8 बिलियन मूल्य की बिजली ने, नेपाल – भारत बिजली व्यापार के क्षेत्र में भारी असंतुलन पैदा किया है.
नेपाल अब काफी बेहतर तरीके से ये जानता है कि हाइड्रोपावर परियोजना के क्षेत्र में हो रहे भारतीय निवेश निस्संदेह एक काफी बड़ा गेम चेंजर होने की संभावना है,
चीनी राजदूत सॉन्ग द्वारा दिए गए वक्तव्य से असंतुष्ट होते हुए, नेपाली विशेषज्ञों ने इसे नेपाल के आंतरिक मामलों में अनावश्यक दखल का प्रयास बताते हुए, चीनी राजदूत को इस बाबत घेर लिया. लोकतांत्रिक समाजबादी पार्टी, राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी, आम जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वतंत्रता पार्टी, जनमत पार्टी, सीपीन-माओइस्ट सेंटर, सीपीन-यूएमएल, सीपीन (एकीकृत सोशलिस्ट) आदि पार्टी के सदस्यों ने पार्टी लाइन से अलग जाते हुए, चीनी राजदूत द्वारा दिए गए इस गैर-राजनयिक टिप्पणी के लिए खुलकर भर्त्सना की.
निष्कर्ष
नेपाल और भारत के बीच पनबिजली/जलविद्युत के क्षेत्र में बढ़ते सहयोग की वजह से, आने वाले वर्षों में नेपाली हाइड्रोपावर के क्षेत्र में भारतीय निवेश के चार गुणा बढ़ने की संभावना है. नेपाल अब काफी बेहतर तरीके से ये जानता है कि हाइड्रोपावर परियोजना के क्षेत्र में हो रहे भारतीय निवेश निस्संदेह एक काफी बड़ा गेम चेंजर होने की संभावना है, चूंकि, भारत के साथ किए जाने वाले विकास और उर्जा निर्यात, उसे जीवाश्म ईंधन पर अब तक रही निर्भरता को कम करेगी और उसके व्यापारिक घाटे को कम करते हुए, भारत के विदेशी मुद्रा भंडार को बढ़ाने में मदद करेगी. भारत को भी जलविद्युत और बिजली के सेक्टर में किये जा रहे व्यापार से काफी फायदा हो रहा है क्योंकि इसकी वजह से भारत को हरित उर्जा मिलने के अलावा बड़ा आर्थिक लाभ भी प्राप्त हो रहा है.
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