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Published on Feb 28, 2025 Updated 0 Hours ago

G20 की अध्यक्षता लेने की तैयारी कर रहे दक्षिण अफ्रीका के सामने अफ्रीका की बढ़ती घरेलू उठा-पटक के साथ-साथ ट्रंप की US-अफ्रीका नीति में आने वाले बदलाव से निपटने की चुनौती खड़ी है.

G20 में दक्षिण अफ्रीका की चुनौती: ट्रंप के प्रभाव से कैसे निपटें?

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नवंबर 2025 में दक्षिण अफ्रीका अपने देश की आर्थिक राजधानी जोहानसबर्ग में G20 शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करने वाला पहला अफ्रीकी देश बन जाएगा. ऐसे में इस बात को लेकर काफ़ी उम्मीदें है कि दक्षिण अफ्रीका इस शिखर सम्मेलन के दौरान अफ्रीकी प्राथमिकताओं को प्रमुखता के साथ उठाएगा. इन प्राथमिकताओं की लंबी सूची में जहां गरीबी, खाद्यान्न सुरक्षा, बढ़ता कर्ज़ और COVID-19 के पश्चात होने वाली रिकवरी शामिल है तो उसे जलवायु परिवर्तन, कमज़ोर आर्थिक विकास एवं  विभाजनकारी भूराजनीति से जुड़े वैश्विक मुद्दों पर भी ध्यान देना होगा.

शिखर सम्मेलन के दौरान दक्षिण अफ्रीका को अफ्रीकन यूनियन (AU) का भी समर्थन हासिल होगा. इस समर्थन के दम पर वह विभिन्न हितधारकों के हितों का ध्यान रखते हुए 54 सदस्य देशों के बीच आम सहमति बनाने की कोशिश करेगा. रवांडा एवं डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (DRC) जैसे सदस्य देशों के बीच M23 विद्रोहियों को लेकर मतभेद, मिस्र एवं इथियोपिया के बीच रेनासेंस डैम को लेकर विवाद, इथियोपिया तथा सोमालिया के बीच सोमालीलैंड की संप्रभुता को लेकर चल रहा मामला और मोरक्को तथा अल्जीरिया के बीच वेस्टर्न सहारा को लेकर चल रही खींचतान कुछ उदाहरण कहे जा सकते हैं. इसी बीच माली, बुर्किनो फासो एवं नाइजर ने वेस्ट अफ्रीकन रिजनल ब्लॉक इकोनॉमिक कम्युनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्‌स (ECOWAS) से बाहर होने का फ़ैसला लेकर अपना ही अलायंस ऑफ साहेल स्टेट्‌स गठित करने का निर्णय लिया है. भविष्य में कुछ और देशों के भी ऐसा ही कुछ करने की आशंका है. ऐसे में अफ्रीका के सबसे मजबूत क्षेत्रीय गठजोड़ के तार-तार होने की संभावना है. विवादों में उलझे इन देशों को एकजुट करने की दक्षिण अफ्रीका के सामने कड़ी चुनौती खड़ी है.

दक्षिण अफ्रीका की राजनीति इस वक़्त अपने सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है. वहां पहली मर्तबा ही अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) और मुख़्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक अलायंस (DA) मिलकर गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. 


इसके अलावा दक्षिण अफ्रीका के सामने अनेक घरेलू चुनौतियां मौजूद हैं जो इस शिखर सम्मेलन की मेज़बानी को प्रभावित कर सकती हैं. दक्षिण अफ्रीका की राजनीति इस वक़्त अपने सबसे चुनौतीपूर्ण दौर से गुजर रही है. वहां पहली मर्तबा ही अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) और मुख़्य विपक्षी दल डेमोक्रेटिक अलायंस (DA) मिलकर गठबंधन की सरकार चला रहे हैं. जब बात घरेलू एवं विदेश नीति की आती है तो ANC और DA दोनों ही एक सिरे के विपरीत बिंदुओं पर पाए जाते हैं.
1994 में गाजे-बाजे के साथ हुए सर्व-नस्लीय मतदान के साथ ही रंगभेद ख़त्म हुआ और ANC ने नेल्सन मंडेला की अगुवाई में सत्ता संभाली. उस वक़्त से लगातार ANC ने ही दक्षिण अफ्रीका पर राज किया है. लेकिन व्यापक भ्रष्टाचार, बढ़ती बेरोज़गारी, लगातार बनी हुई आर्थिक असमानताएं और बढ़ते अपराधों की वजह से लिबरेशन पार्टी धीरे-धीरे कमज़ोर पड़ती जा रही है.

इसी बीच अनेक नई और उग्र या क्रांतिकारी राजनीतिक दलोंका उदय हुआ है. इसमें पूर्व राष्ट्रपति जैकब ज़ूमा की अगुवाई वाली उमखोंतो वे सिजवे (MK) तथा जूलियस मलेमा के नेतृत्व वाली इकोनॉमिक फ्रीडम फाइटर्स (EFF) सबसे ज़्यादा प्रभाव रखने वाले दल हैं. अपने ताजा बयान में मलेमा ने रंगभेद के दौर के गीत“Dubul ibhunu”("डुबुल इबुन्यू") जिसका अर्थ होता है, "शूट द बोअर, शूट द फार्मर (किसान)", के आधार पर श्वेत किसानों की लगभग हत्या करने का आह्वाहन कर दिया था. यह कोई नहीं जानता कि ये रैडिकल यानी परिवर्तनवादी नेता G20 के दौरान क्या करेंगे. इतना तो तय है कि इन नेताओं की यह कोशिश रहेगी कि वे इस अवसर का लाभ उठाकर ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को अपनी ओर आकर्षित करें. हालांकि दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने इस शिखर सम्मेलन के आयोजन को लेकर अपनी देश की क्षमताओं पर भरोसा जताया है, लेकिन वे भी उनके सामने मौजूद चुनौतियों को समझते हैं.

ट्रंप ‘फैक्टर’

दक्षिण अफ्रीका के सामने मौजूद घरेलू एवं महाद्वीपीय चुनौतियां ही कम नहीं थी कि अब उन्हें हाल ही में निर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप से भी निपटना होगा. ट्रंप ने दूसरी मर्तबा राष्ट्रपति पद की कमान संभाली है. ऐसे में इस बात की संभावना ज़्यादा है कि उनकी अगुवाई में अब US-अफ्रीकन नीति में कुछ और विकास देखा जाएगा. अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने अफ्रीका को लेकर उपेक्षा वाला रवैया अपनाया था. ऐसे में अनेक विश्लेषकों का मानना है कि US की नीति में उनके दूसरे कार्यकाल के दौरान भी कोई सुधार देखने को नहीं मिलेगा. दक्षिण अफ्रीका के नेतृत्व के बाद US को ही वर्ष 2026 में G20 की अगुवाई करनी है. ऐसे में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित शिखर सम्मेलन के दौरान उनकी मौजूदगी अथवा गैर-मौजूदगी दोनों ही अफ्रीका को लेकर US की आने वाली नीति का संकेत समझा जाएगा.

अफ्रीका को G20 के अलावा भी ट्रंप के समर्थन की आवश्यकता है. वह 2000 में पेश किए गए अफ्रीका ग्रोथ एंड ऑर्पोच्युनिटी एक्ट (AGOA) का हिस्सा भी बने रहना चाहता है. AGOA के तहत सब-अफ्रीकन देशों को US के बाज़ार के लिए 1,800 श्रेणियों में आने वाले सामान को ड्यूटी-फ्री पहुंच उपलब्ध करवाई गई है. हां, इसके लिए इन देशों को कुछ शर्तों का पालन अवश्य करना होता है. इन शर्तों में यह शर्त शामिल है कि इन देशों को "US ट्रेड (व्यापार) एंड इंवेस्टमेंट (निवेश) की राह में आने वाली बाधाओं को दूर करना होगा, गरीबी को कम करने की नीति अपनानी होगी, भ्रष्टाचार का मुकाबला करना होगा तथा मानवाधिकारों की रक्षा करनी होगी."

अफ्रीका को G20 के अलावा भी ट्रंप के समर्थन की आवश्यकता है. वह 2000 में पेश किए गए अफ्रीका ग्रोथ एंड ऑर्पोच्युनिटी एक्ट (AGOA) का हिस्सा भी बने रहना चाहता है. AGOA के तहत सब-अफ्रीकन देशों को US के बाज़ार के लिए 1,800 श्रेणियों में आने वाले सामान को ड्यूटी-फ्री पहुंच उपलब्ध करवाई गई है.


नाइजर, यूगांडा, गैबॉन और सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक अब AGOA का हिस्सा नहीं हैं. इन देशों का उदाहरण देकर सीनेटर्स का एक समूह AGOA से दक्षिण अफ्रीका को भी बाहर करने की मांग करने लगा है. यह समूह दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ अनेक आरोप लगाता है. समूह का तर्क है कि दक्षिण अफ्रीका ने कथित रूप से रूस को यूक्रेन के ख़िलाफ़ युद्ध में हथियार दिए हैं. इसी तरह समूह का मानना है कि दक्षिण अफ्रीका ने रूस की कार्रवाई का सार्वजनिक विरोध न करते हुए अपरोक्ष रूप से उसका समर्थन किया है. इसके साथ ही रूस के प्रतिबंधित जहाज को केप टाउन में 2022 में खड़ा होने की अनुमति दी गई थी. इतना ही नहीं दक्षिण अफ्रीका ने चीन और रूस के साथ सैन्य अभ्यास भी किया है. इसके अलावा सीनेटर्स का यह समूह हाल ही में दक्षिण अफ्रीका की ओर से ताइवान को प्रिटोरिया से अपना संपर्क कार्यालय हटाने का आदेश देने की वजह से भी नाराज़ और चिढ़ा हुआ है.


दक्षिण अफ्रीका AGOA का सबसे बड़ा लाभार्थी और महाद्वीप का सबसे अहम निर्यातक है. वह 55.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निर्यात करता है. दक्षिण अफ्रीका की ओर से होने वाला निर्यात नाइजीरिया (11.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर), केन्या (7.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर), लेसोथो (6.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर) तथा मेडागास्कर (3.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) जैसे देशों के कुल निर्यात से ज़्यादा है. वर्तमान में दक्षिण अफ्रीका तथा US के बीच औसत द्विपक्षीय व्यापार 67.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से ज़्यादा है. इसके परिणामस्वरूप दक्षिण अफ्रीका और US के बीच ट्रंप 2.0 में संबंधों का स्वाभाविकरण रामाफोसा के लिए बेहद महत्वपूर्ण कूटनीतिक लक्ष्य होगा. क्योंकि चीन और रूस दोनों ही इस कार्य को असफ़लता पर अपनी निगाहें जमा कर बैठे हैं.

खैर, वैसे भी US कांग्रेस को 2025 में AGOA कार्यक्रम को किसी भी स्थिति में दोबारा मंजूरी देनी होगी. US कांग्रेस में एक बिल पर चर्चा हो रही है कि AGOA की अवधि को 2045 तक बीस और वर्षों के लिए चलाया जाए. AGOA की वजह से US को अफ्रीका में अपने आर्थिक संबंधों का विस्तार करने का ठोस अवसर मिलता है. इसके माध्यम से वह अपने प्रभाव को दोबारा जमाते हुए अफ्रीका में प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रहे चीन को रोकने का काम कर सकता है.

US के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कह दिया है कि वे G20 में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने यह फ़ैसला दक्षिण अफ्रीका के विवादास्पद भूमि स्वामित्वहरण यानी ज़ब्ती कानून को लेकर अपनी नाराज़गी जताते हुए लिया है.


इसी बीच ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका को अनुदान बंद करने वाले कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर कर दिए हैं. US के विदेश मंत्री मार्को रूबियो ने कह दिया है कि वे G20 में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने यह फ़ैसला दक्षिण अफ्रीका के विवादास्पद भूमि स्वामित्वहरण यानी ज़ब्ती कानून को लेकर अपनी नाराज़गी जताते हुए लिया है. यदि ट्रंप ने दक्षिण अफ्रीका से संबंध ख़त्म करने का फ़ैसला लिया तो यह अमेरिका का अफ्रीकन झुकाव समाप्त करने वाला होगा, क्योंकि ढेर सारा पैसा लेकर चीन तथा सुरक्षा कारणों की वजह से रूस इस क्षेत्र पर नज़र जमा कर बैठे हुए हैं.

 

सार

दक्षिण अफ्रीका इस शिखर सम्मेलन को "एकजुटता और समानता तथा सतत विकास बढ़ाने" की थीम के तहत आयोजित कर रहा है. दक्षिण अफ्रीका के कंधों पर 1.5 बिलियन अफीक्री लोगों की उम्मीदें टिकी हुई हैं. ऐसे में G20 न केवल दक्षिण अफ्रीका के लिए बल्कि संपूर्ण अफ्रीकी महाद्वीप के लिए एक बेहद महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होने वाला है. अपने सामने मौजूद अनेक चुनौतियों के बावजूद दक्षिण अफ्रीका द्वारा अपनी कूटनीतिक चपलता साबित करने की उम्मीद है. वह शिखर सम्मेलन के दौरान वैश्विक दक्षिण के लोगों की आकांक्षाओं और चुनौतियों को सामने रखते हुए इसका हल निकालने की कोशिश करेगा. ऐसा हुआ तो ANC अपनी साख को दोबारा हासिल करने की दिशा में आगे बढ़ जाएगा. फिलहाल तो यही दिखता है कि G20 की सफ़लता इस बात पर तय होगी कि ANC ट्रंप के कार्यकाल से कैसे निपटता है. 


(समीर भट्टाचार्य ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.)

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