Expert Speak Raisina Debates
Published on Apr 08, 2024 Updated 0 Hours ago

कलादान परियोजना मार्ग के समीप के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में अराकान सेना की पकड़ की वजह से भारत को अपनी रणनीतिक हितों की रक्षा के लिए जुन्ता एवं अन्य घटकों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की ज़रूरत पड़ेगी.

म्यांमार में भारत की रणनीतिक दुविधा; अनिश्चित्ताओं का भंवरजाल

म्यांमार की चुनी हुई सरकार को सैन्य तख्त़ापलट द्वारा तीन वर्ष पहले ही बाधित कर दिया गया था, अब थ्री-ब्रदरहुड गठबंधन के अंतर्गत बनी जातीय विरोधी गुटों के साथ लगातार हो रहे संघर्षों में दर्ज होती लगातार बढ़त की वजह से जुन्ता की पकड़ अंततः कमजोर पड़ने लगी है. विशेष करके, राखिने और चिन राज्यों के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर अपने नियंत्रण के लिए हो रही ये मुठभेड़ें, 484 मिलियन डॉलर वाली महत्वपूर्ण कलादन मल्टी मॉडेल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना (केएमटीटीपी) भारत के रणनीतिक हितों के लिए एक खतरा है. इस परियोजना का उद्देश्य भारत के पूर्वी तटीय क्षेत्र को म्यांमार के रास्ते, उनके दक्षिणपूर्वी राज्यों से सीधे-सीधे जोड़ने के लिए काफी महत्वपूर्ण है, जिसके  द्वारा रसद संबंधी सभी प्रकार की लॉजिस्टिक चुनौतियों को कम करने एवं क्षेत्रीय एकीकरण के प्रयासों को प्रोत्साहित करने की कोशिश है.       

म्यांमार की चुनी हुई सरकार को सैन्य तख्त़ापलट द्वारा तीन वर्ष पहले ही बाधित कर दिया गया था, अब थ्री-ब्रदरहुड गठबंधन के अंतर्गत बनी जातीय विरोधी गुटों के साथ लगातार हो रहे संघर्षों में दर्ज होती लगातार बढ़त की वजह से जुन्ता की पकड़ अंततः कमजोर पड़ने लगी है.

केएमटीटीपी, जो भारत की एक्ट-ईस्ट नीति की एक महत्वपूर्ण आधारशिला है, दक्षिणपूर्वी एशिया में अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को प्रगाढ़ बनाना चाहती है, ऐसा वो सिलीगुड़ी गलियारे के द्वारा एक विकल्प की पेशकश करने के साथ करना चाहती है. ये क्षेत्रीय सहयोग और कनेक्टिविटी को प्रोत्साहित करने के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है. हालांकि, म्यांमार में बढ़ता संघर्ष, इन क्षेत्रों में चल रही परियोजनाओं के पूरा होने और भविष्य में उसके संचालन को लेकर संशय की स्थिति उत्पन्न करता है, और इन क्षेत्रों में अपने हितों की रक्षा और उसकी सफलता सुनिश्चित करने की दिशा में भारत से अपने दृष्टिकोण के पुनर्मूल्यांकन करने की दिशा में आह्यवान करता है.  

 

कलादान परियोजना की वर्तमान स्थिति 

2014 और 2020 में, भूमि क्षतिपूर्ति, विवादों,और समन्वयन संबंधी विफलता,और चुनौतीपूर्ण इलाकों की वजह से,  इस परियोजना को पूरा किये जाने की तय मियाद सीमा में असफल होने के बावजूद, कलादान प्रोजेक्ट, पूर्ण स्फूर्ति के साथ इसे पूरा करने को प्रतिबद्ध है. मई 2023 तक भारतीय अधिकारियों के हवाले से पता चला कि कलादान परियोजना के सड़क के हिस्सों की लगभग 98 प्रतिशत सड़क बन कर तैयार हो चुकी है. जून 2023 में म्यांमार के वाणिज्य मंत्री यू ऑन्ग नैंग ऊ, ने घोषणा की कि पालेत्वा से जोरीनपुइ को जोड़ने वाले सड़क का निर्माण कार्य तीव्रता से आगे बढ़ रहा है  

इरकॉन इंटरनेशनल जिसपर म्यांमार में सड़क निर्माण की ज़िम्मेदारी है, उसने शुरुआत में संबंधों में घनिष्टता लाने के लिए और परियोजना पर विद्रोही समूहों के संभावित हमलों के खतरे को कम करने के उद्देश्य से, स्थानीय ठेकेदारों को इस काम में शामिल किये जाने की योजना बनाई थी. यहां ये देखा गया कि, भारत और म्यांमार की सेना द्वारा जब AA की सेना को पीछे धकेलने के मक़सद जब एक संयुक्त अभियान चलाया गया तब उसके विरोध में साल 2019 में AA ने कलादान परियोजना का विरोध किया गया था. आगे जाकर परियोजना स्थल पर काम कर रहे पांच भारतीयों का AA द्वारा अपहरण किये जाने तक पहुंच गया था. वर्ष 2020 के मध्य में, परियोजना स्थल के निकट AA एवं जुन्ता के बीच एक और टकराव होने की खबर है.

2021 के तख्त़ा-पलट से पहले AA और वहां के सैनिक प्रशासन दोनों ही अपने-अपने जातीय गुटों को संभालने की प्रक्रिया में, जग-प्रसिद्ध फूट डालो और राज करो प्रक्रिया कि मदद से एक दूसरे के साथ शांति समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार किया.  

ऐसे सभी खतरों को टालने की मंशा से, इरकॉन ने, हाईवे के विभिन्न अधूरे पड़े हिस्सों को पूरा करने के लिये, म्यांमार न्यू पॉवर कंस्ट्रक्शन लिमिटेड एवं सु ह्तू सेन नामक म्यांमार के दो कंपनियों के साथ दो समझौते किये. हालांकि, पर्यावरण संबंधी, राजनीतिक, और सुरक्षा चुनौतियों संबंधी संभावित वजहों के कारण होने वाली देरी को मद्देनज़र रखते हुए, इन अनुबंधों के अंतर्गत सड़क परियोजना के पूरा होने की मियाद 40 महीनों तक का रखा गया था. सशस्त्र गुटों द्वारा रह-रह कर जारी हिंसा, सैन्य कार्यवाही और हमलों को ध्यान रखते हुए, वर्तमान अस्थिर परिस्थिति में इन परियोजनाओं कब पूरा हो पायेंगे इसका पूर्वानुमान कर पाना खासा मुश्किल था.           

अराकान सेना (AA) का महत्व

म्यांमार-चीन की सीमा पर स्थित काचीन राज्य की स्थापना अप्रैल 2009 में की गई थी. AA को काचीन स्वतंत्रता सेना (केआईए) का समर्थन प्राप्त हुआ था. इस समूह का उद्देश्य एक “अराकान राष्ट्र, की स्थापना करना है, जो राष्ट्रीय मुक्ति को समर्पित हो और अराकान के लोगों की संप्रभुता को पुनः बहाल करे.  

विश्लेषकों ने वर्ष 2015 से 2020 तक एए की सेना के साथ के संघर्ष को देश में एक दशक में हुए सबसे तीव्र संघर्ष करार दिया है. AA की पहचान एक बेहद शक्तिशाली सशस्त्र सेना के तौर पर उभर कर सामने आती है, जो किसी राज्य स्वरूप संरचना के स्तर पर इन क्षेत्रों में अपने लोगों को समूची व्यवस्था, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मुहैय्या कराती है.   2021 के तख्त़ा-पलट से पहले AA और वहां के सैनिक प्रशासन दोनों ही अपने-अपने जातीय गुटों को संभालने की प्रक्रिया में, जग-प्रसिद्ध फूट डालो और राज करो प्रक्रिया कि मदद से एक दूसरे के साथ शांति समझौते के प्रस्ताव को स्वीकार किया.  

2021 में हुए तख्त़ापलट के बाद, शुरुआत में AA राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध में अपनी भूमिका को लेकर अस्पष्ट एवं संशय की स्थिति में थी. हालांकि, एक रणनीति के तहत, जुन्ता के खिलाफ एकत्रित अन्य जातिगत ताकतों के साथ सहयोग पूर्ण रहते हुए, और नेशनल यूनिटी गवर्नमेंट (एनयूजी) के साथ संबंध स्थापित करके, राखिने क्षेत्र में जुन्ता के खिलाफ़ सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा करने को तत्पर है. वर्ष 2022 में AA के इलाकों में सेना द्वारा किए गए हमले ने पहले युद्धविराम का अंत किया. निप्पॉन फाउंडेशन के एक जापानी राजदूत द्वारा प्रस्तुत किये जाने के उपरांत, नवंबर 2022 में सेना और एए दोनो युद्ध विराम के लिए सहमति बनाने को राजी हुए. इन सब के बावजूद, अपनी यथावत स्थिति को बरकरार रखते हुए AA ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि ये युद्धविराम अस्थायी है और जुन्ता द्वारा किसी प्रकार की जरा सी भी कार्यवाही, शत्रुता को पुनः बढ़ावा देते हुए स्थिति को बिगाड़ सकती है.  

 

13 नवंबर 2023 को 1027 ऑपरेशन के हिस्से के तौर पर AA ने राज्य के संघर्ष विराम की घोषणा की अवज्ञा करते हुए, बॉर्डर गार्ड पुलिस स्टेशन पर हमला कर दिया. फ़रवरी 2024 तक, कलादान नदी के किनारे बसे पाउकताव, मराउक-उ, मिनब्या, और म्येबॉन जैसे महत्वपूर्ण शहरों को अपने नियंत्रिण में ले लिया और माऊंगडाव और बुथीडौंग में पदों को हथिया लिया है. इस समूह ने सीट्वे के समीप, कलादान नदी के मुहाने पर स्थित पॉन्नाग्यून के केन्द्रीय पुलिस स्टेशन पर भी कब्ज़ा कर लिया. कलादन नदी के किनारे ज़रूरी तमाम विकास के प्रयासों पर अपनी नज़र केंद्रित रखने के बजाय, शासन को अब राखिन राज्य की राजधानी की रक्षा के क्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है.  

सीट्वे में उत्पन्न स्थिति, दोनों ही तरफ के सेनाओं से घिरे होने की वजह से युद्धक्षेत्र के समान बनी हुई है, जिस वजह से संघर्ष के निरंतर बढ़ने का जोख़िम अब भी काफी हद तक है. इस साल के जनवरी महीने से, निरंतर इंटरनेट शट-डाउन, लगातार जारी युद्ध, खाद्य सामग्री की कमी, और बढ़ती कीमतों की वजह से पैदा हुई मुद्रास्फीति के हालात, स्थानीय लोगों को पलायन करने को मजबूर कर रही है, और बची खुची आबादी वहां होने वाले लगातार हवाई हमलों और सड़क संघर्षों को झेलने के लिए तैयार है. सीट्वे पर अपना नियंत्रण कायम रखने के लिए, जुन्ता ने तीन पुलों को ध्वस्त कर दिया. युद्ध जैसी स्थिति बनी होने की वजह से, जातीय सशस्त्र गुटों द्वारा सीट्वे पर कब्ज़ा जमाना पूरी तरह से स्वाभाविक है.  

AA प्रवक्ता ने एक अग्रणी भारतीय समाचार आउटलेट को आश्वस्त करते हुए कहा कि वे कलादान परियोजना को किसी प्रकार की हानि नहीं पहुंचाएंगे. ये सुझाव देते हुए कि संभवतः भारतीय प्रशासन को इन सशस्त्र समूहों के साथ जुड़ने की आवश्यकता पड़ सकती है, खासकर के जब कि म्यांमार नेशनल डेमोक्रैटिक अलाएंस आर्मी (MNDAA), और टा’न्ग नेशनल लिबरेशन आर्मी (TNLA) के साथ AA का ध्यान पूरी तरह से म्यांमार में मिलिट्री/सैन्य शासन को खत्म करने पर है.    

भारत सरकार की दुविधा

1990 के बाद से, म्यांमार के साथ भारत की नीति ने हमेशा ही सत्तारूद शक्तियों के साथ अपने जुड़ाव को ज्य़ादा वरीयता दी है जो पड़ोसी राष्ट्रों में लोकतान्त्रिक सिद्धांतों को प्रोत्साहित करने से इतर सुरक्षा एवं राजनीतिक हितों को  प्राथमिकता देते हैं. इस नीति को इस बेहतरीन उदाहरण द्वारा बेहतर समझा जा सकता है, जैसे कि हाल ही में, द्विपक्षीय संबंधों के सुदृढीकरण, सैन्य सहयोग, और सीमा क्षेत्रों में अमन और शांति के लिए किए जाने वाले संयुक्त प्रयास के प्रोत्साहन के लिए, लेफ्टिनेंट जनरल हरजीत सिंह साही की अगुवाई में भारतीय सेना के प्रतिनिधिमंडल द्वारा म्यांमार की यात्रा.    

पलेट्वा एवं सीट्वे जैसे क्षेत्रों में बढ़ती विषम स्थिति के बीच और AA द्वारा हालिया जारी किए गए घोषणाओं के मद्देनज़र, भारत खुद को एक ऐसे गंभीर मोड़ पर पाता है, जहां उसे म्यांमार के प्रति के अपने रुख़ को लेकर दोबारा मूल्यांकन और संभावित फेरबदल की आवश्यकता पड़ सकती है. इस अनिवार्यता में न केवल भारतीय नागरिकों को देश छोड़ने संबंधी सूचनाएं जारी की जाती है, बल्कि इससे जुड़े सभी स्टेकहोल्डर्स को भी शामिल किया जाता है.     

म्यांमार में राजनैतिक स्थिरता, भारत खासकर इसके दक्षिणपूर्वी क्षेत्र और उसके तमाम संचार परियोजनाओं, जैसे कि KMTTP के लिए काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि ये परियोजना न केवल क्षेत्रीय कनेक्टिविटी का प्रयास है, बल्कि चीनी प्रभुत्व का मुक़ाबला करने की भारत की रणनैतिक मंशा और दक्षिणपूर्वी (पूर्वोत्तर) क्षेत्रों में स्थिरता प्रोत्साहित करने के एक ज़रूरी वजह है.    

कलादान परियोजना मार्ग और उससे सटे संवेदनशील क्षेत्रों में AA के प्रभाव और परियोजना को किसी प्रकार से भी बाधित नहीं करने का उनका आश्वासन, इन संघर्ष के क्षेत्र में गैर-राज्यीय कलाकारों के साथ जुड़ने की जटिलता को उजागर करता है. म्यांमार की संप्रभुता के सम्मान एवं अपने रणनैतिक हितों की रक्षा के लिए ज़रूरी AA जैसे गुटों/ समूहों संग जुड़ने की व्यावहारिकता के बीच भारत को एक सतर्क एवं सजग संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पड़ सकती है.   

 45000 की संख्या के करीब म्यांमार नागरिक, भारतीय सीमा से सटे राज्यों में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखने और फ्री-मूवमेंट रेजीम (FMR) के पुनर्मूल्यांकन के प्रयास, म्यांमार की अस्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के मद्देनज़र उनकी प्रतिक्रिया को दर्शाती है.

इसके अलावा, AA के बदलते राजनैतिक रुख़, राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG), एवं अन्य जातिगत सशस्त्र समूहों संग लगातार हो रही उनकी वार्ता, म्यांमार के राजनीतिक परिदृश्य में हो रहे बदलावों की ओर इशारा करती है. इससे ये राय कायम होती है कि भारत को म्यांमार के प्रति एक लोचदार नीति रखनी चाहिए, जो कि देश के भीतर शक्ति की संरचना और गठबंधन की गतिशील प्रकृति का निर्माण कर रही है.  

इसके अलावा, म्यांमार जुन्ता द्वारा सेना में जबरन भर्ती कानून लाने के बाद, जहां कि युवाओं को जबरन सेना में सेवा देने को मजबूप किया जा रहा है, इससे नागरिक अशान्ति के सामने सेना की हताशा दिखाई पड़ती है, जिस वजह से बड़ी संख्या में लोग इस जबरन भर्ती से बचने की चेष्टा कर रहे हैं, और ये थाई दूतावास में वीज़ा आवेदनों में आयी बाढ़ से साफ पता चलता है.   

45000 की संख्या के करीब म्यांमार नागरिक, भारतीय सीमा से सटे राज्यों में शरण लेने का प्रयास कर रहे हैं, वहीं अपनी सीमाओं को सुरक्षित रखने और फ्री-मूवमेंट रेजीम (FMR) के पुनर्मूल्यांकन के प्रयास, म्यांमार की अस्थिरता, राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के मद्देनज़र उनकी प्रतिक्रिया को दर्शाती है. हालांकि, शरणार्थियों के निरंतर आवाजाही को प्रबंधित करने की चुनौती जस की तस बनी हुई है, इसलिए म्यांमार की इस आबादी को मानवीय सहायता प्रदान करना एक ठोस रणनीति साबित हो सकती है, जो लोकतान्त्रिक शासन की दिशा में देश के भविष्य के प्रमुख बिंदु है. गठबंधन एवं शक्ति की गतिशीलता की बदलती प्रकृति को देखते हुए, म्यांमार के प्रति भारत की नीति का अनुकूल होना ज़रूरी है.

The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.