Published on Feb 26, 2024 Updated 3 Days ago

नैटो और भारत स्वतंत्रता और लोकतंत्र के साझा मूल्यों पर एकमत हैं और एक स्थिर और सुरक्षित हिंद प्रशांत में दोनों की दिलचस्पी है.

नैटो (NATO) और भारत: एक शांतिपूर्ण, आज़ाद और लोकतांत्रिक दुनिया के साझीदार

ये लेख हमारी- रायसीना एडिट 2024 सीरीज़ का एक भाग है


रायसीना डायलॉग 2021 में नैटो के महासचिव जेन्स स्टोल्टेनबर्ग इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा था कि केवल हिंद प्रशांत क्षेत्र में बल्कि पूरी दुनिया में नैटो की वैश्विक साझेदारियों को मज़बूत करने की अहमियत बढ़ी है, क्योंकि आज हम अधिक पेचीदा और आपस में जुड़ी दुनिया में जी रहे हैं. उसके बाद से नैटो का सुरक्षा का वातावरण पहले से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक, अनिश्चित और होड़ वाला हो गया है.

 

यूरोप में पूर्ण युद्ध की वापसी और हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ते तनाव ये दिखाते हैं कि हमारी सुरक्षा क्षेत्रीयताओं तक नहीं सीमित, बल्कि ये वैश्विक है. एक संप्रभु राष्ट्र यूक्रेन पर रूस का अवैध आक्रमण, हम जैसे उन सभी लोगों को प्रभावित करता है, जो स्वतंत्रता और लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं. अपने देश में चीन का बढ़ता ज़ुल्मी बर्ताव और दूसरे देशों पर दादागीरी जताने वाला उसका रवैया हमारी सुरक्षा, मूल्यों और हितों के लिए ख़तरे पैदा करता है.

 नैटो के महासचिव ने रायसीना डायलॉग में कहा था कि अब वो सही समय आ गया है कि भारत के साथ अपने संवाद को NATO एक नए स्तर पर ले जाए, ताकि हम दोनों मिलकर अपने साझा मूल्यों और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की हिफ़ाज़त कर सकें.

भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है. ये एक बढ़ती अर्थव्यवस्था और एक महत्वपूर्ण वैश्विक शक्ति है. जैसा कि नैटो के महासचिव ने रायसीना डायलॉग में कहा था कि अब वो सही समय गया है कि भारत के साथ अपने संवाद को NATO एक नए स्तर पर ले जाए, ताकि हम दोनों मिलकर अपने साझा मूल्यों और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की हिफ़ाज़त कर सकें.

 

इतिहास का एक निर्णायक मोड़

 

पिछले लगभग 75 वर्षों से नैटो ने यूरोप और उत्तरी अमेरिका को एकजुट किया है, ताकि अटलांटिक महासागर के दोनों छोरों के अपने सहयोगियों की सामूहिक रक्षा और सुरक्षा को सुनिश्चित कर सके और अपनी सीमाओं से परे भी शांति और स्थिरता को बढ़ावा दे सके. इस गठबंधन की स्थापना 1949 में 12 सदस्य देशों के साथ हुई थी, जिनकी संख्या अब बढ़कर 31 हो गई है और बहुत जल्दी ही इसमें 32वां देश भी शामिल हो जाएगा. इस तरह, नैटो के सुरक्षा ढांचे के दायरे में एक अरब आबादी आती है.

 

दूसरे विश्व युद्ध के ख़ात्मे के बाद से आज हम सुरक्षा के सबसे ख़तरनाक माहौल का मुक़ाबला कर रहे हैं. यूक्रेन पर रूस के हमले ने यूरोप में कई दशकों की शांति को भंग कर दिया है. इस युद्ध के कई प्रभाव पूरी दुनिया पर भी देखने को मिल रहे हैं, जैसे कि वैश्विक खाद्य और ऊर्जा का संकट. जिससे पर्यावरण और अर्थव्यवस्था को बड़े पैमाने पर नुक़सान पहुंचा है, और विश्व में अस्थिरता आई है.

 

यूक्रेन पर रूस की बमबारी और आम नागरिकों और ग़ैर फ़ौजी संसाधनों पर उसके लगातार हमलों ने दिखाया है कि रूस को इंसानी ज़िंदगी की कोई परवाह नहीं है. रूस द्वारा अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के खुले उल्लंघन ने पूरी दुनिया के लिए ख़तरा पैदा कर दिया है. ये आक्रमण, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और आत्म निर्णय की उस बुनियाद पर सीधा हमला है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की धुरी है और जिससे अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा सुनिश्चित होती है.

 

नैटो इस आक्रमण का मुक़ाबला पूरी एकजुटता और ताक़त से कर रहा है. वैसे तो नैटो इस युद्ध में सीधे तौर पर शामिल नहीं है. लेकिन, उसने अपनी रक्षा पंक्ति और दुश्मन को भयभीत करने की क्षमता में काफ़ी इज़ाफ़ा किया है, जिससे वो ये सुनिश्चित कर सके कि ये युद्ध यूक्रेन की सीमा से आगे बढ़ पाए. पिछले साल जुलाई में लिथुआनिया की राजधानी विलनियस के शिखर सम्मेलन में NATO के सदस्य देश हमारी रक्षा पंक्ति और दुश्मन से मुक़ाबले की शक्ति में एक बुनियादी बदलाव लाने पर सहमत हुए, जिसकी शुरुआत 2014 में रूस द्वारा अवैध तरीक़े से क्रीमिया पर क़ब्ज़ा करने और यूक्रेन के पूर्वी क्षेत्र डोनबास में घुसपैठ के बाद से हुई थी. ठोस तौर पर इसका मतलब है कि नैटो की अधिक सेनाएं ज़्यादा तैयारी से रहेंगी और ये शीत युद्ध के बाद से रक्षा की सबसे व्यापक और मज़बूत योजना है. इसके अलावा, नैटो देशों ने रक्षा में और निवेश करने और रक्षा उद्योग से सहयोग बढ़ाने पर भी बल दिया, ताकि यूक्रेन की आत्मरक्षा और ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त के लिए हथियारों का उत्पादन बढ़ाया जा सके.

 नैटो देशों ने रक्षा में और निवेश करने और रक्षा उद्योग से सहयोग बढ़ाने पर भी बल दिया, ताकि यूक्रेन की आत्मरक्षा और ख़ुद अपनी हिफ़ाज़त के लिए हथियारों का उत्पादन बढ़ाया जा सके.

इसके साथ ही साथ, नैटो के साथी देश संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के मुताबिक़ यूक्रेन को अपनी ओर से मदद बी बढ़ा रहे हैं और उसको अभूतपूर्व सैन्य, वित्तीय और मानवीय सहायता दे रहे हैं. नैटो के ज़रिए इसके साथी देश उसे ज़रूरी गैर घातक मदद दे रहे हैं, ताकि वो फौरी तौर पर अपनी आज़ादी की लड़ाई लड़ सके और इसके साथ साथ, दूरगामी तौर पर अपनी सुरक्षा और रक्षा के क्षेत्र को मज़बूत कर सके. नैटो के साथी देशों ने नई NATO यूक्रेन परिषद के ज़रिए अपने कूटनीतिक संबंधों को भी आगे बढ़ाया है, जहां वो समकक्षों की तरह मिलते हैं, ताकि संकटों के दौरान सलाह मशविरा कर सकें और मिलकर फ़ैसले ले सकें. विलनियस शिखर सम्मेलन के दौरान साथी देश, भविष्य में यूक्रेन को नैटो का सदस्य बनाने के स्पष्ट नज़रिए पर भी सहमत हुए थे. उन्होंने, रूस के दुश्मनी भरे बर्ताव और अपने अंदरूनी मामलों में दख़लंदाज़ी और दादागीरी के शिकार हो रहे अन्य साझीदार देशों जैसे कि बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, जॉर्जिया और मोल्दोवा को भी मदद बढ़ाने पर सहमति जताई थी.

 

सुरक्षा क्षेत्रीय नहीं, वैश्विक है

 

हम रूस द्वारा किए गए इस हमले और अंतरराष्ट्रीय क़ानूनों के बेशर्म उल्लंघन से कैसे निपटते हैं, यही बात आने वाली पीढ़ियों में वैश्विक सुरक्षा को परिभाषित करने वाली है. अगर यूक्रेन में रूस के राष्ट्रपति पुतिन जीत जाते हैं, तो इससे चीन जैसे दूसरे तानाशाही देशों का हौसला बढ़ जाएगा और वो ये मान बैठेंगे कि वो ताक़त के दम पर कुछ भी हासिल कर सकते हैं. इससे दुनिया आज से भी कहीं ज़्यादा ख़तरनाक हो जाएगी.

 

वैसे तो नैटो, चीन को अपना दुश्मन नहीं मानता है. लेकिन, हिंद प्रशांत समेत पूरी दुनिया में चीन की घोषित महत्वाकांक्षाएं और दबाव डालने वाली नीतियां हमारे हितों, सुरक्षा और मूल्यों को चुनौती देती हैं. चीन, नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था को तोड़ना-मरोड़ना चाहता है. उसके निशाने पर अंतरिक्ष, साइबर और समुद्री क्षेत्र भी हैं. अपने साझीदार देशों समेत अन्य इलाक़ों में चीन द्वारा देशों को अपने ऊपर निर्भर बनाने और अहम मूलभूत ढांचों और सामरिक संसाधनों पर नियंत्रण करने के प्रयासों से NATO की चिंताएं बढ़ गई हैं. रूस और चीन के बीच बढ़ती दोस्ती और उनकी ओर से विश्व व्यवस्था को कमज़ोर करने के प्रयास सबके लिए चिंताजनक हैं. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के तौर पर चीन को चाहिए कि वो रूस पर अपने काफ़ी प्रभाव का इस्तेमाल करे और यूक्रेन में उसका युद्ध रुकवाने का प्रयास करें और उसको हथियारों और दूसरे संसाधनों से मदद करने से बाज़ आए. जैसा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि ये युद्ध का युग नहीं है.

 

इस बढ़ते सामरिक मुक़ाबले के साथ साथ हमारा व्यापक सामरिक माहौल भी लगातार बनी हुई कमज़ोरियों और बार बार लग रहे झटकों का शिकार है. हमारी सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय शांति और समृद्धि के लिए सबसे असमान और सीधी चुनौती तो आतंकवाद है. ख़ास तौर से नैटो के दक्षिणी पड़ोसी क्षेत्र में हम अस्थिरताओं और ऐसे संकटों का सामना कर रहे हैं, जिसकी जड़ें बहुत गहरी हैं और जहां कई समुदायों, अर्थव्यवस्थाओं और राजनीतिक किरदार सक्रिय हैं. इनके साथ साथ हमारे अस्तित्व के लिए संकट बन चुकी जलवायु परिवर्तन की चुनौती, नाज़ुक संस्थान, स्वास्थ्य के आपातकाल और खाद्य असुरक्षा जैसी चुनौतियां भी हैं. हमारी सुरक्षा के लिए अन्य ख़तरे और चुनौतियां भी लगातार बढ़ रही हैं. जैसे कि साइबर और हाइब्रिड हमले, परमाणु तकनीक का प्रसार, ख़लल डालने वाली तकनीकें और वैश्विक महामारियां.

 नैटो के साथ आदान-प्रदान बढ़ाकर भारत, उन द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को और मज़बूत बना सकता है, जो उसने नैटो के कई साझीदारों और यूरोपीय संघ (EU) के साथ विकसित की हैं.

कोई एक देश इन चुनौतियों का अपने दम पर मुक़ाबला नहीं कर सकता है. वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए पूरी दुनिया को एकजुट होना पड़ेगा. और, यही वजह है कि नैटो अपने नज़दीकी और दूर के साझादीरों के साथ मिलकर काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है, जिसमें हिंद प्रशांत क्षेत्र के पार्टनर भी शामिल हैं.

 

यूरोप-अटलांटिक और हिंद प्रशांत की सुरक्षा एक दूसरे से नज़दीकी से जुड़ी है

 

जैसा कि हम हमेशा करते आए हैं, तो नैटो, सुरक्षा की इस नई हक़ीक़त के मुताबिक़ भी ख़ुद को ढाल रहा है. 2022 में नैटो के नेताओं ने एक नईसामरिक परिकल्पनाको अपनाया था. ये बढ़ती सामरिक होड़ और अस्थिरता वाली दुनिया से निपटने की योजना है. ये परिकल्पना, नैटो के मुख्य मक़सद यानी हमारी सामूहिक हिफ़ाज़त सुनिश्चित करने को दोहराने वाली है. इस परिकल्पना में नैटो की तीन मुख्य ज़िम्मेदारियों को दोहराया गया है: सभी तरह के ख़तरों से निपटना और दुश्मन को भयभीत करना, संकटों से निपटने और उनको रोकने की हमारी क्षमता को मज़बूत बनाना और अपने साझीदारों के साथ सुरक्षा में सहयोग में निवेश करना, जिसमें हिंद प्रशांत क्षेत्र भी शामिल है

 

हिंद प्रशांत क्षेत्र में दुनिया की लगभग 65 फ़ीसद आबादी रहती है और यहां दुनिया की कुछ सबसे अधिक तेज़ी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्थाओं वाले देश हैं. दुनिया के कुल व्यापार में यूरोप और हिंद प्रशांत मिलकर 70 प्रतिशत के हिस्सेदार हैं, जबकि विश्व के कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में दोनों की हिस्सेदारी 60 फ़ीसद है. नैटो के बहुत से दोस्त और यूरोपीय संघ (EU) के इस क्षेत्र के देशों के गहरे संबंध और मौजूदगी है. दोनों क्षेत्रों की अर्थव्यवस्थाएं बड़ी गहराई से एक दूसरे से जुड़ी हैं और यही बात सुरक्षा के मामले में भी कही जा सकती है. दुनिया की समृद्धि और सुरक्षा के लिए हिंद प्रशांत क्षेत्र का स्वतंत्र और खुला होना आवश्यक है.

 

साउथ चाइना सी, वैश्विक व्यापार का एक प्रमुख मार्ग है. ताइवान, सेमीकंडक्टर्स का सबसे अहम उत्पादक देश है, जिन पर आधुनिक तकनीकें निर्भर करती हैं. ताक़त के दम पर दक्षिणी चीन सागर में यथास्थिति बदलने के किसी भी प्रयास के अर्थव्यवस्था और सुरक्षा पर तबाही लाने वाले प्रभाव पड़ेंगे. नैटो, उत्तर कोरिया के उकसावे वाले बर्ताव, उसकी परमाणु गतिविधियों और बैलिस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को लेकर बहुत फ़िक्रमंद है. उत्तर कोरिया की ये हरकतें, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के कई प्रस्तावों का उल्लंघन करने वाले हैं और क्षेत्रीय ही नहीं, पूरी दुनिया की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा पैदा करते हैं.

 

भले ही दोनों इलाक़ों के बीच अथाह समुद्रों का फ़ासला हो, मगर नैटो और हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसके साझीदार एक जैसी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं और दोनों ही साझा मूल्यों और एक स्वतंत्र और खुली मूल्यों पर आधारित विश्व व्यवस्था का एक समान नज़रिया रखने वाले हैं. यही वजह है कि नैटो ने हिंद प्रशांत क्षेत्र में अपने समकक्षों और साझीदारों, ऑस्ट्रेलिया, जापान, न्यूज़ीलैंड और दक्षिणी कोरिया को मैड्रिड और विलनियस में हुए अपने पिछले दो शिखर सम्मेलनों में आमंत्रित किया था. हम अपने कूटनीतिक और व्यवहारिक सहयोग को भी बढ़ा रहे हैं, जिसमें साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा और नई तकनीकों में सहयोग शामिल है.

 

NATO और भारत के संवाद को आगे बढ़ाना

 

भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है, सबसे तेज़ी से बढ़ रही प्रमुख अर्थव्यवस्था और एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय शक्ति है. संयुक्त राष्ट्र की शांति सेनाओं में भारत पांचवां बड़ा योगदान देने वाला है और वो विश्व के मंच पर अपनी भूमिका को बहुत गंभीरता से लेता है. 2023 में G20 के शिखर सम्मेलन में ये बात साफ़ तौर पर दिखी थी. नैटो और भारत में कुल मिलाकर 2.4 अरब लोग यानी दुनिया की 30 प्रतिशत आबादी रहती है.

 

नैटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका का एक क्षेत्रीय गठबंधन है और इसका स्वरूप आगे भी यही रहेगा. लेकिन पूरी दुनिया में इसके पास साझीदारों का एक मज़बूत नेटवर्क है और भारत जैसे देशों के साथ उसका ठोस संवाद होता रहा है. नैटो के साथ कोई औपचारिक साझेदारी होने के बावजूद, पिछले कई वर्षों के दौरान भारत उसके साथ लगातार संवाद करता रहा है.

 

अपने साझा मूल्यों की रक्षा और अपने व्यवहारिक और ठोस सहयोग को बढ़ाने के लिए नैटो, विदेश नीति में भारत के रुख़ का पूरी तरह सम्मान करते हुए उसके साथ अपना संवाद बढ़ाने में दिलचस्पी रखता है. नैटो के लिए भारत से गहराई से संवाद करने से हिंद प्रशांत क्षेत्र में उसकी मौजूदा साझेदारियों को और समृद्धि प्राप्त होगी. नैटो के साथ आदान-प्रदान बढ़ाकर भारत, उन द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संबंधों को और मज़बूत बना सकता है, जो उसने नैटो के कई साझीदारों और यूरोपीय संघ (EU) के साथ विकसित की हैं.

 

नैटो और भारत- स्वतंत्रता, लोकतंत्र, संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता, मानव अधिकार, अंतरराष्ट्रीय क़ानून और विवादों के शांतिपूर्ण समाधान जैसे एक जैसे मूल्यों में यक़ीन रखते हैं. एक स्वतंत्र और खुले हिंद प्रशांत को लेकर भी हमारा नज़रिया एक समान है. साझा चुनौतियों से निपटने के मामले में हमारे बीच सहयोग की अपार संभावनाएं हैं. इसमें नियमों पर आधारित व्यवस्था को तानाशाही देशों से ख़तरे, आतंकवाद, नई तकनीकें, समुद्री सुरक्षा, साइबर सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन जैसे मसले शामिल हैं.

 

आपस में मिलकर काम करते हुए नैटो और भारत अच्छाई की एक शक्तिशाली ताक़त बन सकते हैं और वो एक शांतिपूर्ण, स्वतंत्र और लोकतांत्रिक विश्व में अहम योगदान दे सकते हैं.

 

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