संसद में अपने बजट भाषण के दौरान भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने 1 फरवरी 2024 को वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए बजट पेश किया. मौजूदा साल की पहली छमाही में राष्ट्रीय चुनावों की उम्मीद को देखते हुए बजट का दायरा अंतरिम तक सीमित हो गया जिसे ‘लेखा अनुदान’ (वोट ऑन अकाउंट) भी कहा जाता है. इस तरह का बजट ज़रूरी काम-काज के लिए फंड को पूरा करने के प्रमुख उद्देश्य को पूरा करता है. बजट के अधिक व्यापक रूप के लिए चुनाव तक इंतज़ार करना होगा और उसके बाद नई सरकार का गठन होगा जो पूर्ण बजट पेश करेगी. उसमें बिना किसी रोक-टोक के बड़े वित्तीय और नीतिगत फैसले लिए जा सकेंगे. इस पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री के लिए ये स्वभाविक था कि वो मौजूदा सरकार के सत्ता में आने के बाद से अब तक की उपलब्धियों को बताने में महत्वपूर्ण समय खर्च करें. उन्होंने इस सरकार के फिर से सत्ता में लौटने के बाद किए जाने वाले काम की एक झलक भी पेश की.
ये लेख शहरों के संबंध में बजट में किए गए वादों और भविष्य में उनके लिए खींचे गए खाकों का ब्योरा और विश्लेषण पेश करता है. वित्त मंत्री ने दावा किया कि राष्ट्रीय स्तर पर पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘गंभीर सकारात्मक बदलाव’ हुए हैं.
ये लेख शहरों के संबंध में बजट में किए गए वादों और भविष्य में उनके लिए खींचे गए खाकों का ब्योरा और विश्लेषण पेश करता है. वित्त मंत्री ने दावा किया कि राष्ट्रीय स्तर पर पिछले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘गंभीर सकारात्मक बदलाव’ हुए हैं. ये बुनियादी बदलाव अन्य कारकों (फैक्टर) के अलावा संरचनात्मक सुधार, जन समर्थक कार्यक्रमों और रोज़गार एवं उद्यमशीलता (एंटरप्रेन्योरशिप) के लिए व्यापक अवसरों के निर्माण का नतीजा है. इसके अलावा हर किसी के लिए घर, हर घर में पानी, सबके लिए खाना बनाने की गैस, हर किसी के लिए बैंक खाता एवं वित्तीय सेवा और 80 करोड़ भारतीयों के लिए मुफ्त राशन जैसे कार्यक्रमों के साथ ये सामाजिक समावेशिता का भी समय था. इन पहलों के परिणामस्वरूप 25 करोड़ लोग बहुआयामी ग़रीबी (मल्टी-डाइमेंशनल पॉवर्टी) से बाहर निकले.
वित्त मंत्री ने 78 लाख स्ट्रीट वेंडर्स (रेहड़ी-पटरी वालों) को वित्तीय मदद के विशिष्ट आंकड़े दिए जिनमें से 2.3 लाख ने तीसरी बार वित्तीय सहायता हासिल की. स्किल इंडिया मिशन के तहत 1.4 करोड़ युवाओं ने ट्रेनिंग प्राप्त की, 54 लाख नौजवानों ने अपना हुनर बढ़ाया और 3,000 ITI (इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट) की स्थापना की गई. बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा के संस्थान खोले गए जिनमें 7 IIT (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी), 16 IIIT (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी), 15 AIIMS (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़) और 390 विश्वविद्यालय शामिल हैं.
दो करोड़ नये घर
भविष्य के लिए वित्त मंत्री ने पीएम आवास योजना के तहत दो करोड़ घरों का एलान किया. हालांकि, ये स्पष्ट नहीं किया गया कि इस कार्यक्रम के तहत शहरों में कितने घर बनाए जाएंगे. बजट भाषण में रूफटॉप सोलराइज़ेशन (छतों पर सौर ऊर्जा पैनल) के लिए 1 करोड़ घरों का लक्ष्य भी तय किया गया. इसमें वास्तव में शहरों का एक बड़ा हिस्सा होगा और शहरों में रहने वाले लोग हर महीने 300 यूनिट मुफ्त बिजली का लाभ लेने में सक्षम होंगे. बजट की नई विशेषताओं में से एक शहरों में किराए के घरों, झुग्गियों, चाल या अनधिकृत कॉलोनियों में रहने वाले मिडिल क्लास के लोगों के लिए घर का ज़िक्र था. इस उद्देश्य के लिए एक नई योजना शुरू की जाएगी जिसके तहत लोगों को घर ख़रीदने या ख़ुद बनाने का विकल्प मुहैया कराया जाएगा. सबसे ज़्यादा नज़रअंदाज़ किए गए लोगों के समूह के लिए किफायती घर की तरफ एक कदम की घोषणा सबसे ज़्यादा स्वागत योग्य है.
भारत सरकार का इरादा अस्पतालों के मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करके और अधिक मेडिकल कॉलेज खोलने का है. ये भी एक स्वागत योग्य पहल है. उम्मीद है कि ये पहल शहरों में रहने वाले अधिक लोगों तक स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाएगी और स्वास्थ्य सेक्टर पर सरकारी खर्च में कमी को आंशिक रूप से पूरा करेगी. 9 से 14 साल की उम्र की लड़कियों में सर्वाइकल कैंसर की रोक-थाम के लिए वैक्सीनेशन को बढ़ावा देने की पूरी तरह से महिला केंद्रित पहल बेहद सराहना योग्य है. ये सर्वाइकल कैंसर की वजह से हर साल होने वाली हज़ारों महिलाओं की मौत को रोकेगी.
वित्त मंत्री के द्वारा किए गए स्पष्ट दावों में से एक पहले से ही प्राथमिकता प्राप्त इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को लेकर है जिस पर सरकार बहुत ज़्यादा ज़ोर देने का इरादा रखती है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च 11.1 प्रतिशत बढ़कर 11,11,111 करोड़ रुपये होने वाला है जो GDP का 3.4 प्रतिशत है.
वित्त मंत्री के द्वारा किए गए स्पष्ट दावों में से एक पहले से ही प्राथमिकता प्राप्त इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को लेकर है जिस पर सरकार बहुत ज़्यादा ज़ोर देने का इरादा रखती है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च 11.1 प्रतिशत बढ़कर 11,11,111 करोड़ रुपये होने वाला है जो GDP का 3.4 प्रतिशत है. वैसे तो ये खर्च सामान्य इंफ्रास्ट्रक्चर के लिए है लेकिन शहरी बस्तियों तक भी ये पहुंचेगा जिन्हें इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास का बहुत ज़्यादा फायदा मिलेगा. उड्डयन (एविएशन) सेक्टर, जो लगभग पूरी तरह शहरों में है, ने बहुत ज़्यादा विस्तार देखा है. वित्त मंत्री के मुताबिक देश में हवाई अड्डों की संख्या दोगुनी होकर 149 हो गई है. यहां तक कि छोटे शहरों में भी नए हवाई अड्डे खुल रहे हैं. रूट के विस्तार के साथ भारतीय एयरलाइंस कंपनियों ने अपने मौजूदा बेड़े में 1,000 और हवाई जहाज़ जोड़ने की योजना बनाई है. शहरों के बुनियादी ढांचे में मेट्रो रेल सिस्टम का भी विस्तार होगा क्योंकि बजट में देश के बड़े शहरों में मेट्रो के समर्थन का भरोसा दिया गया है. सरकार ई-व्हीकल के उत्पादन और चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर का समर्थन करके ई-व्हीकल इकोसिस्टम के विस्तार और मज़बूती के लिए प्रतिबद्ध है. इससे शहरों की स्थिति अच्छी होगी क्योंकि इनमें से ज़्यादातर बुनियादी ढांचे शहरों में शुरू होंगे. इसके अलावा सार्वजनिक परिवहन के लिए ई-बस के नेटवर्क को बढ़ावा दिया जाएगा.
भारत सरकार की समावेशी पहल, कौशल निर्माण की सेवाओं और शैक्षणिक इंफ्रास्ट्रक्चर समेत ऊपर बताए गए कार्यक्रमों ने निर्णायक रूप से अर्थव्यवस्था, रोज़गार और सामाजिक न्याय को प्रोत्साहन दिया है. इन परियोजनाओं का एक बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों के लिए है. फिर भी इनमें से कई काफी हद तक शहरी केंद्रित हैं. ये सीधे तौर पर ख़ास शहरी सेवाओं में सुधार को आगे बढ़ाएंगे. कुछ और भी हैं जहां खर्च उन क्षेत्रों में हैं जो पूरी तरह से शहरों में नहीं हैं. हालांकि आकस्मिक लाभों (इन्सिडेंटल बेनिफिट) से शहरी अर्थव्यवस्था, सेवाओं और जीवन की गुणवत्ता पर सकारात्मक असर पड़ने की उम्मीद है.
संरचनात्मक सुधार
वैसे तो बजट से हमें कई पहलों की मौजूदा स्थिति का पता चला लेकिन भारत सरकार के द्वारा पहले के वर्षों में शुरू किए गए ज़्यादातर शहरी कार्यक्रमों का कोई ज़िक्र नहीं किया गया. उदाहरण के लिए, 2021-22 के राष्ट्रीय बजट में भौतिक और सामाजिक क्षेत्र में शहरी बुनियादी ढांचे के लिए बहुत से कार्यक्रमों की शुरुआत की गई थी. इनमें हर किसी तक पानी की सप्लाई, शहरों की स्वच्छता, संपूर्ण मल कीचड़ प्रबंधन (कंप्लीट फीकल स्लज मैनेजमेंट) एवं वेस्ट वॉटर ट्रीटमेंट, शुरुआती स्तर पर कूड़े को अलग करना और कंस्ट्रक्शन एवं तोड़-फोड़ की गतिविधियों से उत्पन्न वेस्ट के प्रभावी ढंग से प्रबंधन के ज़रिए सिंगल-यूज़ प्लास्टिक एवं वायु प्रदूषण में कमी के कार्यक्रम शामिल हैं.
राष्ट्रीय बजट 2022-23 में वित्त मंत्री ने अपना ध्यान शहरी योजना और शहरों के पूरी तरह कायापलट की तरफ दिया. उन्होंने शहरों में सुविधा के निर्माण के लिए राज्यों को समर्थन प्रदान करने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने बिल्डिंग बाइलॉज (भवन उपनियमों) के आधुनिकीकरण, शहरी नियोजन योजनाओं (TPS) और ट्रांज़िट-केंद्रित विकास (TOD) पर अमल का विचार दिया.
राष्ट्रीय बजट 2022-23 में वित्त मंत्री ने अपना ध्यान शहरी योजना और शहरों के पूरी तरह कायापलट की तरफ दिया. उन्होंने शहरों में सुविधा के निर्माण के लिए राज्यों को समर्थन प्रदान करने का प्रस्ताव रखा. उन्होंने बिल्डिंग बाइलॉज (भवन उपनियमों) के आधुनिकीकरण, शहरी नियोजन योजनाओं (TPS) और ट्रांज़िट-केंद्रित विकास (TOD) पर अमल का विचार दिया. इसके अतिरिक्त अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) को दूसरे संस्थानों में शहरी नियोजन के कोर्स का सिलेबस, उनकी क्वालिटी और उपलब्धता बेहतर बनाने का ज़िम्मा सौंपा गया.
अपने 2023-24 के बजट में वित्त मंत्री ने नगरपालिकाओं में सुधारों को जारी रखा और राज्यों एवं शहरी स्थानीय निकायों (ULB) के लिए एक प्रोत्साहन पैकेज के ज़रिए उनको लागू करने की कोशिश की. बजट में राज्यों को 50 साल के कर्ज़ का प्रस्ताव दिया गया बशर्ते पूरी रक़म 2023-24 के भीतर पूंजीगत व्यय (कैपिटल एक्सपेंडिचर) पर खर्च किया जाए. राज्य पूंजीगत व्यय का क्षेत्र चुन सकते हैं लेकिन रक़म का एक हिस्सा शहरी नियोजन से जुड़े सुधारों और ULB में वित्तीय सुधारों पर खर्च करना है ताकि म्युनिसिपल बॉन्ड को कर्ज़ के लिए विश्वसनीय बनाया जा सके. शहरी परियोजनाओं की सघनता को देखते हुए अंतरिम बजट विस्तार से इन मुद्दों का समाधान नहीं कर सका. ये स्वागत योग्य होगा अगर आवासन (हाउसिंग) एवं शहरी मामलों का मंत्रालय एक उचित समय पर इन कार्यक्रमों के असर को लेकर एक संगठित रिपोर्ट लाता है.
वैसे तो वित्त मंत्री के भाषण में जिन संरचनात्मक सुधारों का ज़िक्र किया गया था वो मुख्य रूप से आर्थिक थे लेकिन पिछले कुछ वर्षों में नगरपालिका प्रशासन (म्युनिसिपल गवर्नेंस), वित्त या शहरी नियोजन में कोई ठोस सुधार नहीं हो पाया है. भारत सरकार राज्यों के द्वारा शहरी सुधार को शुरू करने में झिझक की वजह से परेशान थी और जो सिफारिशें उसके द्वारा की गई थीं, उनमें से ज़्यादातर पर कोई अमल नहीं किया गया. ऐसा लगता है कि हमें देश में चुनावों के बाद पूर्ण बजट का इंतज़ार करना चाहिए. शहरों के असाधारण महत्व के संदर्भ में भारत सरकार को लंबे समय से लंबित शहरी सुधारों को आगे बढ़ाने के लिए एक रास्ता तलाशना होगा.
रामनाथ झा ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में डिस्टिंगविश्ड फेलो हैं.
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