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Published on Nov 14, 2025 Updated 0 Hours ago

म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर केके पार्क में चल रहे बड़े साइबर धोखाधड़ी नेटवर्क का पर्दाफाश हुआ, जिसमें तमाम विदेशी नागरिकों समेत भारतीय भी फंस गए थे. जुंटा ने इसे बड़ी जीत बताया लेकिन इसके पीछे मानव तस्करी, डिजिटल अपराध और सीमा क्षेत्रों की जटिल राजनीति की छिपी हुई कहानी खुलना अब भी बाकी है.

केके पार्क ऑपरेशन: म्यांमार की कार्रवाई और भारत का सबक

21 अक्टूबर 2025 को, म्यांमार की सैनिक सरकार ने अपने ही देश में एक “बड़े ऑपरेशन” को अंजाम दिया. खास बात ये है कि सेना का ऑपरेशन किसी विद्रोही गुट के ख़िलाफ़ नहीं बल्कि साइबर ठगों के विरूद्ध था. सेना ने म्यांमार के म्यावड्डी इलाके में स्थित केके पार्क में एक्शन लिया. म्यांमार-थाईलैंड सीमा पर स्थित कायिन (करेन) राज्य में केके परिसर से ही साइबर ठगी का ऐसा नेटवर्क चलाया जा रहा था जिससे म्यांमार, चीन और भारत ही नहीं दक्षिण एशिया के कई देश परेशान थे. सेना की तरफ से कहा गया कि इस कार्रवाई के ज़रिए उन्हें घोटाले के लिए कुख्यात इस परिसर को साफ किया. आधिकारिक रिपोर्ट्स के अनुसार, इस ऑपरेशन के दौरान 2,000 से ज़्यादा ठगों की पहचान की गई और लगभग 1,500 लोग थाईलैंड की सीमा पार भाग गए. इस कार्रवाई के दौरान स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट उपकरणों को ज़ब्त किया गया. स्पेसएक्स द्वारा इन उपकरणों के सिग्नल को निष्क्रिय कर दिया गया जिससे धोखाधड़ी के बुनियादी ढांचे के एक प्रमुख घटक को ख़त्म कर दिया गया. 

  • केके नेटवर्क ग्रे-ज़ोन में चलता है — विद्रोही गुट, बीजीएफ, व्यापारिक अभिजात व जंटा-समर्थित तत्व मिलकर लाभ उठाते हैं.
  • 21 अक्तूबर 2025 को म्यावड्डी स्थित केके पार्क के ख़िलाफ़ जुंटा ने साइबर ठगों के विरुद्ध बड़े ऑपरेशन किए.
  • ऑपरेशन ने भारत का ध्यान विदेशी नौकरी के झांसे से भारतीयों की तस्करी पर केंद्रीकृत किया; यह प्रवृत्ति बढ़ी है.

जुंटा समर्थित मीडिया ने इस ऑपरेशन को एक बड़ी जीत बताते हुए इसकी सराहना की. 10 नवंबर तक, अधिकारियों ने 150 इमारतें मिलने की रिपोर्ट दी, इसमें एक छात्रावास, एक चार-मंजिला अस्पताल और एक कराओके कॉम्प्लेक्स शामिल हैं. इस दौरान 101 ऐसी संरचनाओं को ध्वस्त किया गया, जिनका इस्तेमाल धोखाधड़ी करने के लिए होता था. बाकी बचे ढांचे को भी जल्द नष्ट करने का वादा किया गया है. 30 जनवरी और 19 अक्टूबर के बीच, म्यांमार की सैनिक जुंटा सरकार ने कहा कि उसने साइबर ठगी करने वाले इस परिसर से 9,551 विदेशी नागरिकों को गिरफ्तार किया जिनमें से ज़्यादातर को उनके देश वापस भेज दिया गया. 

“केके नेटवर्क ग्रे-ज़ोन में चलता है — विद्रोही गुट, बीजीएफ, व्यापारिक अभिजात व जंटा-समर्थित तत्व मिलकर लाभ उठाते हैं.”

हालांकि, इसे बड़ी जीत बताते हुए जुंटा की पीठ थपथपाई जा रही है लेकिन जीत के जश्न के पीछे एक कड़वा सच भी छिपा है. एक वास्तविकता ये भी है कि इस तरह की व्यवस्थित धोखाधड़ी भू-राजनीति, संगठित अपराध और म्यांमार की सीमा क्षेत्रों की सैन्यीकृत राजनीतिक अर्थव्यवस्था के गठजोड़ का नतीजा है.

 

आखिर है क्या केके पार्क?

केके पार्क म्यांमार की थाईलैंड और दूसरे पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं के पास फैले किले जैसे परिसरों के व्यापक समूह का हिस्सा है. कुछ जगहों पर इसे 'विशेष आर्थिक क्षेत्र' के रूप में प्रचारित किया जाता है लेकिन हकीक़त में ये मानव तस्करी करके लाए गए मजदूरों को रखने के केंद्र हैं. इन्हें यहां ऑनलाइन धोखाधड़ी ऑपरेशन चलाने के लिए मज़बूर किया जाता है. कोविड-19 महामारी और 2021 के तख्तापलट के बाद इनका विस्तार तेज़ हुआ. तख्तापलट के बाद सत्ता का नियंत्रण कम होने और आर्थिक अस्थिरता ने आपराधिक गिरोहों के उभरने के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार कर दी.

 

ये नेटवर्क एक ग्रे ज़ोन में काम करते हैं और इसमें सभी की मिलीभगत होती है. स्थानीय विद्रोही गुट, बॉर्डर गार्ड फोर्सेज़ (बीजीएफ) और व्यापारिक अभिजात वर्ग ज़मीन के पट्टों, सुरक्षा भुगतान और अवैध व्यापार से लाभ उठाते हैं. अवैध कमाई के लिए कभी-कभी सत्तारूढ़ जंटा से जुड़े तत्व भी इसमें शामिल हो जाते हैं. हालिया रिपोर्टों में म्यावड्डी के आसपास करेन बीजीएफ की गतिविधियों में बॉर्डर गार्ड फोर्सेज़ के नेता कर्नल साव चित थू (सन म्यिंट) और उनके परिवार की केंद्रीय भूमिका बताई गई है. उन्होंने अपने समूह का नाम करेन नेशनल आर्मी (केएनए) रखा, जिससे वो सार्वजनिक रूप से जुंटा के प्रभाव से खुद को अलग कर सकें. इसका एक मक़सद अन्य जातीय सशस्त्र समूहों के साथ स्वायत्तता हासिल करना भी है. हालांकि, अप्रैल 2024 में, बीजीएफ/केएनए ने करेन नेशनल लिबरेशन आर्मी और संबद्ध सेनाओं जैसे प्रतिरोध समूहों का विरोध किया. जब इन प्रतिरोध समूहों ने अस्थायी मुक्ति के बाद म्यावड्डी को दोबारा कब्ज़ा करने की कोशिश की तो कर्नल साव चित थू ने सत्तारूढ़ सैन्य बलों की सहायता की. म्यांमार की सेना के एलीट लोगों के साथ कर्नल चित थू का पुराना रिश्ता है, यही वजह है कि 2022 के अंत में उन्हें नागरिक सम्मान प्रदान किया गया. ये दिखाता है कि म्यांमार की सीमावर्ती राजनीति में संरक्षण और लाभ कैसे मिलकर चलते हैं, सब एक-दूसरे को फायदा पहुंचाने की कोशिश करते हैं. इसी का नतीजा होता है कि सीमा के इलाकों में एक मिश्रित अवैध अर्थव्यवस्था पैदा होती है. इसमें ऑनलाइन धोखाधड़ी, मानव तस्करी, जुआ और हथियारों का व्यापार शामिल है. ये सब मिलकर प्रभावशाली लोगों के लिए बड़ी मात्रा में अवैध कमाई का ज़रिया बनती है. 

“पीड़ितों को विदेशी नौकरी का झांसा देकर बैंकॉक आदि भेजा जाता है, फिर म्यांमार/कंबोडिया के परिसरों में तस्करी कर धोखाधड़ी कराया जाता है.”

ये मानव तस्कर भारत, चीन, वियतनाम, फिलीपींस, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका समेत अन्य देशों के पीड़ितों को लुभाते हैं. उन्हें अच्छी नौकरी के साथ आईटी या मार्केटिंग सेक्टर में बढ़िया रोज़गार देने का वादा करते हैं. फिर इन रंगरूटों को बैंकॉक जैसे केंद्रों में ले जाया जाता है, जहां ट्रेनिंग के दौरान उन्हें भरोसा दिलाया जाता है कि अच्छी नौकरी मिलेगी. इसके बाद म्यांमार या कंबोडिया के संरक्षित परिसरों में इनकी तस्करी की जाती है. यहां उनके पासपोर्ट ज़ब्त कर लिए जाते हैं, और उन्हें हिंसा की धमकी देकर ऑनलाइन धोखाधड़ी करने के लिए मज़बूर किया जाता है. धोखाधड़ी के सबसे आम तरीकों में से एक है “पिग-बुचरिंग”. आसान शब्दों में समझें तो पिग-बुचरिंग का अर्थ रोमांस और निवेश की धोखाधड़ी को मिलाकर पीड़ितों को नकली क्रिप्टोकरेंसी योजनाओं में फंसाना है. इसमें काफ़ी समय लगता है, इसमें पीड़ित को रोमांस या दूसरे भावानात्मक तरीकों से फंसाया जाता है और फिर आर्थिक ठगी का शिकार बनाया जाता है. ठगी के दूसरे तरीकों में झूठे नाम का इस्तेमाल करना, ब्लैकमेल और जबरन वसूली शामिल हैं. इसकी शुरूआत मुख्य रूप से चीन के नागरिकों को ठगने के लिए की गई थी, लेकिन बाद में धोखाधड़ी का ये अभियान 100 से ज़्यादा देशों में फैल गया. यूनाइटेड नेशंस ऑफिस ऑन ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के अनुमान के अनुसार, ये साइबर ठग सालाना अरबों डॉलर की कमाई करते हैं.

 

साइबर ठगों के ख़िलाफ़ नपी-तुली कार्रवाई

सैन्य शासन की इस कार्रवाई को को घरेलू और क्षेत्रीय दोनों पहलुओं को ध्यान में रखते हुए समझा जाना चाहिए. घरेलू स्तर पर, छापेमारी की ये कार्रवाई दिखाती है कि जुंटा अब भी नायप्यीडॉ शहर जैसे विवादित सीमा क्षेत्र पर नियंत्रण में सक्षम है. म्यावड्डी कस्बा थाईलैंड के माए सॉट के सामने स्थित है. म्यावड्डी एक रणनीतिक व्यापार केंद्र और करेन सशस्त्र समूहों के साथ संघर्ष का केंद्र बिंदु है. केके पार्क को निशाना बनाने से सैन्य सरकार को दोहरा फायदा हुआ. पहला, उसने इस लाभकारी क्षेत्र पर प्रतीकात्मक प्रभुत्व वापस पाकर अपनी खोई साख हासिल की. दूसरा, विरोधी जातीय संगठनों को आपराधिक गतिविधियों से जोड़कर उनकी छवि धूमिल करने में सफलता मिला. विश्लेषक मानते हैं कि केके पार्क पर छापेमारी की आड़ में सीमा के अन्य हिस्सों में धोखाधड़ी गतिविधियाँ बिना रुकावट जारी रहती.

“जुंटा की कार्रवाई घरेलू-क्षेत्रीय संकेत देती है: यह दिखाती है कि वह नायप्यीडॉ जैसे सीमांत क्षेत्रों पर अभी भी कुछ नियंत्रण कायम रखता है.”

एक मुश्किल ये भी थी कि म्यांमार की सरकार पर इन साइबर ठगों पर कार्रवाई को लेकर काफ़ी कूटनीतिक दबाव भी था और इसी ने छापेमारी में निर्णायक भूमिका निभाई. ये कार्रवाई 26 से 28 अक्टूबर तक होने वाले 47वें दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के शिखर सम्मेलन से ठीक कुछ दिन पहले हुई. कार्रवाई के लिए इस समय को चुनकर जुंटा सरकार ने दिखाया कि देश पर अब भी उसका ठोस नियंत्रण है. क्षेत्रीय नेताओं की बैठक से पहले कार्रवाई करके संयुक्त सैन्य शासन ने उस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाने का प्रयास किया जो कई पड़ोसियों के लिए चिंता का कारण रहा है. साइबर ठगों के गिरोहों ने म्यांमार के लिए वैश्विक स्तर पर शर्मिंदगी पैदा की है. उसके लिए ये सब काफ़ी चुनौतीपूर्ण रहा है, और इसने अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित भी किया है.

 

फिर भी, आसियान सम्मेलन में म्यांमार की भागीदारी सीमित रही. आसियान ने इस साल ईस्ट टिमोर का अपने 11वें सदस्य के रूप में स्वागत किया. म्यांमार के एक प्रतिनिधिमंडल ने आसियान सम्मेलन में हिस्सा ज़रूर लिया, लेकिन कई चर्चाओं से जुंटा के वरिष्ठ अधिकारियों को अलग रखा गया, विशेष रूप से वो मुद्दे, जिनमें म्यांमार के आंतरिक संघर्ष और मानवीय संकट पर चर्चा की गई. सम्मेलन में सीमित भागीदारी ने जुंटा के प्रति आसियान की असहजता को उजागर किया. ये इस बात का भी संकेत है कि केके पार्क पर किया गया सैन्य ऑपरेशन कानून का शासन स्थापित करने के साथ-साथ कूटनीतिक संदेश देने के लिए भी था. अगर म्यांमार ने केके पार्क के ख़िलाफ़ एक्शन नहीं लिया होता तो शायद उसे आसियान सम्मेलन में इतनी भागीदारी भी नहीं मिलती. 

 

ऑपरेशन में भारत की भागीदारी

केके पार्क पर छापेमारी की कार्रवाई ने भारत सरकार का ध्यान एक महत्वपूर्ण क्षेत्र पर दिलाया. इससे ये स्पष्ट हुआ कि विदेशों में नौकरी के नकली प्रस्तावों के माध्यम से भारतीय नागरिकों की तस्करी की जाती है. ये प्रवृत्ति पिछले दो साल में चिंताजनक रूप से बढ़ी है. भारत उन देशों में शामिल है, जो इस घोटाले से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है. 2022 से मई 2025 तक, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस में धोखाधड़ी करने वाले परिसरों से लगभग 2,471 भारतीय नागरिकों को देश वापस लाया गया है.

 

हाल ही की छापेमारी के तुरंत बाद भारत ने थाईलैंड से अपने नागरिकों को वापस लाने के लिए तेज़ी से कदम उठाए हैं. 6 नवंबर को, 270 भारतीय नागरिकों को थाईलैंड के मे सौट शहर से भारतीय वायुसेना (आईएएफ) के दो हरक्यूलिस विमानों द्वारा भारत लाया गया. 10 नवंबर को 197 और भारतीयों को सुरक्षित निकाला गया. इस तरह कुल बचाए गए लोगों की संख्या 467 हो गई.

 

बैंकॉक में भारतीय दूतावास और चियांग माई में कांसुलेट ने भारतीयों को वापस भेजने की व्यवस्था का समन्वय किया. केके पार्क से बचाए गए लोगों को पहले अंडमान द्वीप समूह जैसे ट्रांजिट प्वाइंट्स पर लाया गया, फिर उनके घरों को भेजा गया. हालांकि, इन्हें वापस लाने का अभियान ये भी दिखाता है कि प्रत्यावर्तन सिर्फ एक कांसुलर या राजनयिक काम नहीं, बल्कि आपराधिक जांच, प्रवासन प्रबंधन और पीड़ितों के संरक्षण का संगम भी है. हालांकि, इन कोशिशों के बावजूद, कई लोग अभी भी घोटाला करने वाले विभिन्न परिसरों में फंसे हुए हैं, वो अब भी बचाव और घरवापसी का इंतज़ार कर रहे हैं.

“केके पार्क ने सीमा-वर्ती साइबर धोखाधड़ी व तस्करी के ख़तरे उजागर किए; पड़ोसी देशों के दबाव से कार्रवाई संभव है — यह भारत और सहयोगियों के लिए सबक है.”

भारत सरकार ने भारतीय साइबर अपराध समन्वय केंद्र (I4C) के माध्यम से साइबर-सक्षम वित्तीय अपराधों को रोकने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं. 2020 में स्थापित इस संस्था ने अपनी स्थापना के बाद से यानी 2020 और 2025 के बीच 1.9 मिलियन से ज़्यादा म्यूल खातों की पहचान की. 805 धोखाधड़ी वाले ऐप्स और 3,266 वेबसाइट लिंक को ब्लॉक किया, और लगभग 245 मिलियन डॉलर के संदिग्ध लेनदेन को रोकने में मदद की. संदिग्ध भर्ती करने वालों को भी गिरफ्तार किया गया.

 

इसके साथ ही, विदेश मंत्रालय (एमईए) ने 2022 से भारतीय नागरिकों, खासकर आईटी सेक्टर में काम करने के इच्छुक युवाओं के लिए दिशा-निर्देश भी जारी किए. इनमें कहा गया कि उन्हें थाईलैंड, लाओस, कंबोडिया और म्यांमार में झूठी विदेशी नौकरी के प्रस्तावों को लेकर ज़्यादा सतर्क रहना चाहिए. मानव तस्करी से जुड़े साइबर धोखाधड़ी अभियानों का शिकार होने से बचने के लिए उन्हें कहा गया है कि रोज़गार को लेकर जानकारी की अधिकृत एजेंटों से ही पुष्टि करवाएं.

 

क्या हों ज़रूरी बदलाव?

कई संरचनात्मक बाधाएं प्रभावी प्रत्यावर्तन और अभियोजन में बाधा डालती हैं. पीड़ित और अपराधी की पहचान में दुविधा भी प्रत्यावर्तन प्रक्रिया को जटिल बनाती है, क्योंकि बचाए गए या हिरासत में लिए गए सभी लोग तस्करी के सीधे शिकार नहीं हैं. ये सच है कि कुछ भारतीय नागरिकों के साथ शुरू में फर्जी नौकरी की पेशकश करके धोखा दिया गया था. बाद में धमकी और दुर्व्यवहार के तहत उन्हें ऑनलाइन धोखाधड़ी का काम करने के लिए मज़बूर किया गया. इसके साथ ही एक हकीक़त ये भी है कि कुछ समय बाद इन्हीं में से कुछ लोग ठगी के इस नेटवर्क के भीतर सूत्रधार या फिर नौकरी का झांसा देने वाले बन गए. हालांकि, उन्हें ये कहते संदेह का लाभ दिया जा सकता है कि ज़िंदा रहने या फिर अपनी सज़ा कम करवाने के लिए वो ऐसा करते होंगे, लेकिन इससे पीड़ित और अपराधी के बीच का अंतर धुंधला हो जाता है. इसका एक नुकसान ये होता है कि जिन अधिकारियों को दोष निर्धारित करना, उपयुक्त पुनर्वास प्रदान करना और पीड़ितों को आगे दोबारा परेशान ना करने का काम दिया जाता है, उनके लिए सही-गलत की पहचान करना मुश्किल हो जाता है. इसलिए, भारतीय जांच एजेंसियां उन लोगों से पूछताछ करना जारी रखेंगी, जो वापस आए हैं. इससे ये पता लगाया जाएगा कि उनकी इस अपराध में भागीदारी थी या उन्हें मज़बूर किया गया. 

 

भारत ने अभी तक सिर्फ म्यांमार के साथ मानव तस्करी पर एक द्विपक्षीय समझौता किया है. भारत और थाईलैंड के बीच मानव तस्करी को लेकर इस तरह का कोई समझौता नहीं है. दोनों देशों के बीच 2013 में प्रत्यर्पण संधि पर हस्ताक्षर हुए हैं, जो भगोड़े अपराधियों और संगठित अपराध को कवर करती है. हालांकि, मानव तस्करी को भी अपराध की श्रेणी के रूप में शामिल किया गया है. भारत, म्यांमार और थाईलैंड के बीच मानव तस्करी और प्रत्यावर्तन को समर्पित कोई त्रिपक्षीय ढांचा भी नहीं है, इसलिए इस काम में दिक्कत आती है. जब पीड़ितों के दस्तावेज़ ज़ब्त किए जाते हैं या असली-नकली कागजातों की पहचान करनी होती है तो इसकी पुष्टि करना मुश्किल हो जाता है. तीनों देशों में इस अपराध की कानूनी परिभाषाएं और न्यायिक अधिकार का क्षेत्र भी अलग होता है, जिससे अभियोजन का काम जटिल हो जाता है. धोखाधड़ी करने वाले परिसरों में मिलिशिया या सैन्य-सम्बंधित समूहों की भागीदारी इस पूरी प्रक्रिया में सहयोग को और ज़्यादा राजनीतिक बना देती है. इससे कानूनी कार्रवाई धीमी हो जाती है.

 

एक चुनौती ये भी है कि बचाए गए लोगों को वापस लाने के बाद उनके पुनर्वास का कोई स्पष्ट ढांचा नहीं है. इस बात की कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें मनोचिकित्सा संबंधी परामर्श, कानूनी सहायता या फिर कोई काम मिले. ऐसा नहीं होने पर इनके फिर से मानव तस्करी में फंसने या शामिल होने की आशंका बढ़ जाती है. 

 

आगे का रास्ता क्या?

केके पार्क एपिसोड म्यांमार की सीमा क्षेत्रों में साइबर धोखाधड़ी, तस्करी और सैन्यीकृत संरक्षकता के ख़तरे को उजागर करता है. हालांकि, इससे कार्रवाई से ये भी सामने आया कि अगर पड़ोसी देश चाहें तो म्यांमार पर एक्शन लेने का दबाव डाला जा सकता है. भारत और इसके दक्षिण-पूर्व एशियाई सहयोगी देशों के लिए भी ये एक सबक है. ये दिखाता है कि साइबर अपराध एक देश विशेष की समस्या नहीं रही. डिजिटल अपराध, प्रवासन, और मानव सुरक्षा को मिलाकर ये समस्या भौगोलिक सीमा के पार जाती है. 

“अगर पड़ोसी देश चाहें तो म्यांमार पर एक्शन लेने का दबाव डाला जा सकता है. भारत और इसके दक्षिण-पूर्व एशियाई सहयोगी देशों के लिए भी ये एक सबक है.”

इसलिए आगे का रास्ता तीन बुनियादी स्तंभों पर आधारित होना चाहिए: संस्थागत समन्वय, निवारक कूटनीति, और पीड़ित का पुनर्वास. भारत, म्यांमार और थाईलैंड को बचाव की अस्थायी कोशिशों से आगे बढ़कर एक व्यवस्थित त्रिपक्षीय या बहुपक्षीय तंत्र की स्थापना करने की ज़रूरत है. एक ऐसा तंत्र, जो कानूनी रूप से प्रवर्तन सहयोग, डिजिटल खुफिया साझा करने, और त्वरित प्रत्यावर्तन प्रोटोकॉल को एकीकृत करे. इसके साथ ही, आसियान और बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (BIMSTEC) जैसे क्षेत्रीय मंचों को भी इससे जोड़ना होगा. ये संगठन साइबर अपराध ढांचे को सामंजस्यपूर्ण बनाने और ऐसे नेटवर्क के खिलाफ सामूहिक निवारक क्षमता बनाने में ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं. 2025 में, दोनों क्षेत्रीय संगठनों ने इस पर काम करने का वादा किया. अप्रैल 2025 में बैंकॉक में आयोजित छठे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में सदस्य देशों ने आतंकवाद-विरोध, साइबर सुरक्षा, मानव तस्करी और अंतरराष्ट्रीय अपराध पर गृह मंत्रियों की एक तंत्र की संस्थागतकरण को समर्थन दिया. सितंबर में, अंतर्राष्ट्रीय अपराध पर 19वें आसियान मंत्री स्तरीय बैठक ने मलक्का घोषणा को अपनाया, जो ऑनलाइन धोखाधड़ी, मानव तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग से निपटने के साथ-साथ संयुक्त जांच को बढ़ावा देने पर जोर देती है. 47वें आसियान शिखर सम्मेलन में, नेताओं ने आधिकारिक रूप से “ऑनलाइन धोखाधड़ी” और मानव तस्करी को सीमा-पार सुरक्षा प्राथमिकताओं में शामिल किया. साथ ही, इन ख़तरों से निपटने के लिए क्षेत्रीय सहयोग का आह्वान किया.

 

घरेलू स्तर पर भी, भारत को इसे रोकने की अपनी निवारक संरचना को मज़बूत करना चाहिए. भर्ती कराने वाले एजेंटों की सख्त निगरानी करना, साइबर फोरेंसिक को बढ़ावा देना और विदेशों में नौकरी में धोखाधड़ी के ज़ोखिम को लेकर सार्वजनिक जागरूकता अभियान चलाना चाहिए. इसके साथ ही, मज़बूत पुनर्वास प्रणाली की ज़रूरत है. एक ऐसी प्रणाली, जो पीड़ित और अपराधी के बीच के अंतर को पहचानती हो. इसमें सज़ा देने से ज़्यादा ज़ोर पुनर्वास पर होना चाहिए.

 

अंत में यही कहा जा सकता है कि केके पार्क में ऑलाइन धोखाधड़ी परिसर में जुंटा की 'कड़ी कार्रवाई' को ऐसे अपराधों के ख़िलाफ़ एक निर्णायक बिंदु मानना जल्दबाजी होगा. जुंटा की ये कार्रवाई बाहरी आलोचना को शांत करने के लिए एक नियंत्रित प्रदर्शन हो सकती है. हालांकि, भारत और दक्षिण एशियाई देशों के लिए ये एक चेतावनी का संकेत है. इन देशों को ये समझना होगा कि दक्षिण-पूर्व एशिया के सीमा क्षेत्रों में फैले इन ऑनलाइन धोखाधड़ी की फैक्ट्रियों को हमेशा के लिए खत्म करना है तो सतत और समन्वित कार्रवाई की ज़रूरत होगी.


श्रीपर्णा बनर्जी ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन के स्ट्रैटजिक स्टडीज़ प्रोग्राम में एसोसिएट फेलो हैं.

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