Published on Nov 27, 2021 Updated 0 Hours ago

अगर म्यांमार में विदेशी निवेश के आंकड़ों पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि वहां सैनिक तख़्तापलट के बाद निवेश में भारी गिरावट आई है.

Myanmar: फ़ौजी तख़्तापलट के बाद म्यांमार में कैसे तेज़ी से बढ़ रहा है चीन का निवेश!

27 अक्टूबर 2021 को भारत के अडानी पोर्ट्स एंड स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन लिमिटेड (Adani Ports and Special Economic Zone Limited) ने म्यांमार (Myanmar/Burma) में अपने कारोबार को लेकर बड़ा फ़ैसला लिया. कंपनी ने सेना के क़ब्ज़े वाले एहलोन पोर्ट (Ahlone International Port Terminal) से जून 2022 तक अपना निवेश वापस निकालने का ऐलान कर दिया. इस घोषणा से एक दिन पहले 26 अक्टूबर को आसियन देशों (ASEAN Countries) का तीन दिनों का शिखर सम्मेलन शुरू हुआ था. इसमें म्यांमार का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था. दरअसल, आसियान ने सैनिक तख़्तापलट (Military Coup) की अगुवाई करने वाले जुंटा नेता मिन आंग लाइंग (Min Aung Hlaing) को सम्मेलन में शिरकत करने की इजाज़त नहीं देने का अनोखा फ़ैसला लिया था.

अगर म्यांमार में विदेशी निवेश के आंकड़ों पर ग़ौर करें तो हम पाते हैं कि वहां सैनिक तख़्तापलट के बाद निवेश में भारी गिरावट आई है. 2011 के बाद से म्यांमार में कुल एफ़डीआई का तक़रीबन 90 प्रतिशत हिस्सा आसियान देशों से आता रहा है. इस कालखंड में आसियान के सदस्य देशों के साथ म्यांमार के आर्थिक संपर्कों में निरंतर बढ़ोतरी होती रही. हालांकि तख़्तापलट के चलते और  सक्रियतावादी समूहों और पश्चिमी देशों के  दबाव में कई कंपनियों ने म्यांमार इकॉनोमिक होल्डिंग्स लिमिटेड (MEHL) और म्यांमार इकॉनोमिक कॉरपोरेशन (MEC) के साथ अपने ताल्लुक़ातों को सीमित करना शुरू कर दिया है.

2011 के बाद से म्यांमार में सबसे ज़्यादा निवेश करने वाला देश सिंगापुर है. सिंगापुर ने भी अब म्यांमार में अपने निवेश पोर्टफ़ोलियो से सेना से क़रीबी रिश्तों वाले फ़र्मों को हटाना शुरू कर दिया है. इसी तरह जापान ने भी तख़्तापलट के बाद म्यांमार को आर्थिक मदद में कटौती कर दी है. 

2011 के बाद से म्यांमार में सबसे ज़्यादा निवेश करने वाला देश सिंगापुर है. सिंगापुर ने भी अब म्यांमार में अपने निवेश पोर्टफ़ोलियो से सेना से क़रीबी रिश्तों वाले फ़र्मों को हटाना शुरू कर दिया है. इसी तरह जापान ने भी तख़्तापलट के बाद म्यांमार को आर्थिक मदद में कटौती कर दी है. म्यांमार में सक्रिय जापान के 180 से भी ज़्यादा कंपनियों में से क़रीब 11 प्रतिशत कंपनियों ने वहां अपनी गतिविधियां बंद करने का एलान कर दिया है. जापानी कंपनियों को अब म्यामांर में कारोबारी गतिविधियां चलाना मुश्किल लग रहा है. दरअसल कार्यक्षेत्र के भीतर और आस-पास हिंसक झड़पों, इंटरनेट पर जब-तब लगाई जा रही पाबंदियों और कर्मचारियों की किल्लत की वजह से कई दफ़्तर बंद हो चुके हैं. तख़्तापलट के बाद म्यामांर से रुख्सत लेने वाला सबसे ताज़ा अंतरराष्ट्रीय निवेशक अडानी बन गया है. म्यांमार में सक्रिय भारत की दूसरी सरकारी और निजी कंपनियां फ़िलहाल इंतज़ार करो और देखो की नीति अपना रही हैं.

जुंटा ने साल 2021 के अंत तक 5.8 अरब अमेरिकी डॉलर के बराबर का विदेशी निवेश जुटा लेने का दावा किया था. ये दावा हवा हवाई ही जान पड़ता है. हालांकि यहां इस बात को ध्यान में रखना ज़रूरी है कि म्यांमार में निवेश करने वाले सबसे बड़े विदेशी निवेशकों में वो देश हैं जहां लोकतांत्रिक सरकारें नहीं हैं. मिसाल के तौर पर चीन और थाईलेंड का हवाला दिया जा सकता है. ज़ाहिर है कि इन देशों की सरकारों या वहां के कारोबारी समूहों के  लिए म्यांमार में अपनी गतिविधियों को रोकने या बंद करने के लिए तख़्तापलट कोई जायज़ वजह नहीं है.

म्यांमार में चीनी निवेश

ग़ौरतलब है कि म्यांमार में चीन के प्रति गहरी नाराज़गी का भाव बढ़ता जा रहा है. इसके बावजूद चीन बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) के तहत एक जटिल आर्थिक कॉरिडोर खड़ा करने की अपनी योजनाओं को निरंतर आगे बढ़ा रहा है. म्यांमार में सियासी संकट के बावजूद बीआरआई परियोजना का काम आगे बढ़ता जा रहा है. जुंटा ने चीन को इस काम को जारी रखने का पूरा भरोसा दिया है. 

जुंटा ने चीन-म्यांमार आर्थिक गलियारे (सीएमईसी) के तहत संचालित कई अहम विकास परियोजनाओं की वर्किंग कमेटियों का नए सिरे से गठन किया है. चीन के साथ अपने सहयोग को और मज़बूत करने के लिए जुंटा इन परियोजनाओं को नई रफ़्तार देने के साथ-साथ नए सिरे से कई अन्य परियोजनाएं शुरू करने की भी योजना बना रहा है.

 

सैन्य तख़्तापलट के बाद म्यांमार में चीनी परियोजनाएं: (BRI)

परियोजना का नाम कुल निवेश स्थान अवस्था फ़ौजी हुकूमत के तहत घटनाक्रम
मी लिन गियांग एलएनजी 2.5 अरब अमेरिकी डॉलर एयारवडी क्षेत्र काम जारी म्यांमार के निवेश आयोग द्वारा मंज़ूर
क्वाकफु स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन (KPSEZ) 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर क्वाकफु टाउनशिप, रखाइन प्रांत काम जारी भविष्य में और निर्माण की योजनाओं के साथ क्वाकफु स्पेशल इकॉनोमिक ज़ोन मैनेजमेंट कमेटी का पुनर्गठन
न्यू यांगून सिटी प्रोजेक्ट 1.5 अरब अमेरिकी डॉलर यांगून योजना के स्तर पर भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को अंतिम रूप दिया जा रहा है
चिनस्वेहॉ CBECZ उत्तरी शान प्रांत योजना के स्तर पर नई ज़मीनी सरहद क्रॉसिंग पर अधिकारियों द्वारा काम में तेज़ी लाई जाएगी
कानपिकेटी CBECZ 2.24 करोड़ अमेरिकी डॉलर उत्तरी काचिन प्रांत का विशेष क्षेत्र 1 काम जारी म्यांमार के निवेश आयोग द्वारा मंज़ूर
क्वाकफु पावर प्लांट 1.8 करोड़ अमेरिकी डॉलर क्वाकफु टाउनशिप, रखाइन प्रांत काम जारी पहले चरण का काम पूरा
क्वाकफु में गहरे समुद्र वाला बंदरगाह 1.3 अरब अमेरिकी डॉलर क्वाकफु टाउनशिप काम जारी चीनी कंसोर्टियम CITIC म्यांमार पोर्ट इंवेस्टमेंट लिमिटेड और KPSEZ मैनेजमेंट कमेटी के बीच संयुक्त उपक्रम

ऐसे निवेशों के प्रभाव दो तरह से सामने आते हैं. पहला, म्यांमार की अनेक विकास परियोजनाओं में भारी-भरकम निवेश के ज़रिए चीन वहां के बुनियादी ढांचे और आर्थिक मामलों में अपनी मज़बूत पकड़ सुनिश्चित कर रहा है. इसके अलावा वो अपनी गतिविधियों से जुंटा को अपने साथ का भरोसा भी दिला रहा है. कुल मिलाकर सामरिक और रणनीतिक मोर्चे पर म्यांमार पर चीन की पकड़ मज़बूत होती जा रही है. चीन इस पूरे इलाक़े में अपना दबदबा बढ़ा रहा है. म्यांमार की फ़ौज पहले चीन के प्रति संदेह का भाव रखती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे वो चीन के साथ कई प्रकार के करार करने लगी है. दूसरा, मौजूदा समय में म्यांमार में चीन द्वारा चलाई जा रही ज़्यादातर परियोजनाओं पर दस्तख़त और उनपर अमल करने का काम तख़्तापलट की घटना के बाद हुआ है. इससे ज़ाहिर होता है कि तमाम पाबंदियों और एफ़डीआई में गिरावट के बावजूद जुंटा ने दुनिया के सामने अपने मुल्क की समृद्धि का प्रदर्शन करने का मन बना लिया है. इस क़वायद में उन तमाम मसलों को ताक पर रख दिया गया है जिनपर पहले संजीदगी से ध्यान दिया जाता था. इन मसलों में पारदर्शिता का अभाव, चीन द्वारा अपनाए जाने वाले तौर-तरीक़ों और हथकंडों के प्रति भरोसे में कमी, कर्ज़ का जाल और विकास के ग़ैर-टिकाऊ तौर-तरीक़े शामिल हैं.

म्यांमार की फ़ौज पहले चीन के प्रति संदेह का भाव रखती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे वो चीन के साथ कई प्रकार के करार करने लगी है. दूसरा, मौजूदा समय में म्यांमार में चीन द्वारा चलाई जा रही ज़्यादातर परियोजनाओं पर दस्तख़त और उनपर अमल करने का काम तख़्तापलट की घटना के बाद हुआ है.

म्यांमार की फ़ौज पहले चीन के प्रति संदेह का भाव रखती थी, लेकिन अब धीरे-धीरे वो चीन के साथ कई प्रकार के करार करने लगी है. दूसरा, मौजूदा समय में म्यांमार में चीन द्वारा चलाई जा रही ज़्यादातर परियोजनाओं पर दस्तख़त और उनपर अमल करने का काम तख़्तापलट की घटना के बाद हुआ है. 

अतीत में अपनी विकास रणनीतियों में चीन के साथ अपने जुड़ावों को संतुलित करने के लिए म्यांमार कुछ दूसरे देशों को भी अपने यहां बुलावा या स्थान दिया करता था. इनमें भारत और जापान जैसे देश शामिल थे. बहरहाल इस साल हुई तख़्तापलट की घटना और पश्चिमी और क्षेत्रीय ताक़तों द्वारा म्यामांर पर लगाई गई पाबंदियों के चलते म्यांमार की चीन से नज़दीकियां बढ़ गई हैं. हालांकि देर-सवेर सैनिक नेताओं को अपनी स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए दूसरे देशों के साथ भी जुड़ाव बनाना ही पड़ेगा.

 

चीन की कारोबारी महत्वकांक्षा

चीन को भी ये बात पता है कि आपसी संघर्ष का सामना कर रहे अशांत क्षेत्र में ढेर सारी परियोजनाएं चलाना जोख़िम भरा हो सकता है. म्यांमार के लोकतंत्र-समर्थक समूहों में चीन के प्रति असंतोष बढ़ता जा रहा है. चीन द्वारा संचालित कई कंपनियों में तोड़फोड़ की घटनाएं भी देखने को मिली हैं. भविष्य में ऐसे हमले और भी बढ़ सकते हैं. ग़ौरतलब है कि बीजिंग में स्थानीय मीडिया रिपोर्टों में म्यांमार में हुई तख़्तापलट की घटना की निंदा की जाती रही है. हालांकि अंग्रेज़ी माध्यम या सरकार के नियंत्रण वाले अख़बारों में इसे लेकर तटस्थ रुख़ बरक़रार रखा गया है. इससे साफ़ ज़ाहिर है कि चीन अपने पड़ोसी देश को शांत रखते हुए उससे अपनी क़रीबी बनाए रखना चाहता है. इस पूरी क़वायद से ऐसा लगता है कि चीन को ये भरोसा है कि म्यांमार का सैनिक नेतृत्व इन हालातों पर वक़्त रहते क़ाबू पा लेगा. चीन के विचार से म्यांमांर में आमतौर पर देखे जाने वाले नस्ली कलह के बीच देर-सवेर कारोबार सामान्य रूप से बहाल हो जाएगा.

इस पूरी क़वायद से ऐसा लगता है कि चीन को ये भरोसा है कि म्यांमार का सैनिक नेतृत्व इन हालातों पर वक़्त रहते क़ाबू पा लेगा. चीन के विचार से म्यांमांर में आमतौर पर देखे जाने वाले नस्ली कलह के बीच देर-सवेर कारोबार सामान्य रूप से बहाल हो जाएगा. 

निश्चित रूप से दुनिया के बाक़ी देश म्यांमार की चीन से बढ़ती नज़दीकियों को लेकर चिंतित हैं.

फ़िलहाल क्षेत्रीय ताक़तें और पश्चिमी देश म्यांमार पर आसियान द्वारा सामने रखे गए पांच-सूत्री कार्यक्रम को स्वीकार करने का दबाव बना रहे हैं. आसियान द्वारा नियुक्त किए गए विशेष दूत ने इस एजेंडे का प्रस्ताव रखा है. बहरहाल इस पर अमल होगा या नहीं, ये काफ़ी हद तक म्यांमार के सैनिक नेताओं की मर्ज़ी पर निर्भर करता है. अतीत में कई मौक़ों पर ऐसी क़वायदें नाकाम रही हैं. लिहाज़ा इस बार इन तौर-तरीक़ों से कामयाबी मिलेगी या नहीं, ये देखना अभी बाक़ी है.

हालांकि हाल के घटनाक्रमों से तो यही लगता है कि म्यांमार का फ़ौजी नेतृत्व वही करेगा जो उसे सही लगता है. हाल ही में आंग सांग सू ची के क़रीबी नेता को सज़ा सुनाई गई है. सज़ा पाने वाले शख्स दो दशकों से सू ची के क़रीबी रहे हैं. सू ची के ख़िलाफ़ भी अदालती कार्यवाही अंतिम दौर में है. अगर उन्हें भी लंबी सज़ा सुनाई जाती है तो दुनिया भर में उसका असर होगा और उसकी गूंज सुनाई देगी. बहरहाल म्यांमार का सैनिक नेतृत्व इस मसले पर सतर्क होकर आगे बढ़ेगा या इस बार भी अपने मनमाफ़िक दांव चलेगा, ये देखना अभी बाक़ी है. वैसे इतना तय है कि निकट भविष्य में क्षेत्रीय गुटों और पश्चिमी देशों की म्यांमार के प्रति नीतियां और कार्रवाइयां इसी मसले से तय होंगी.

 सू ची के ख़िलाफ़ भी अदालती कार्यवाही अंतिम दौर में है. अगर उन्हें भी लंबी सज़ा सुनाई जाती है तो दुनिया भर में उसका असर होगा और उसकी गूंज सुनाई देगी. 

म्यांमार ही नहीं बल्कि इस पूरे इलाक़े की आर्थिक वृद्धि और विकास के लिए म्यांमार में अमन चैन का माहौल होना ज़रूरी है. लिहाज़ा इस सिलसिले में सकारात्मक कार्रवाई की अहमियत जस की तस बरकरार है.

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तारुषि सिंह राजौरा ओआरएफ़ में रिसर्च इंटर्न हैं.

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