Published on Aug 07, 2021 Updated 0 Hours ago

म्यांमार की अभी पहली प्राथमिकता अपने नागरिकों की जान बचाने की होनी चाहिए. डॉक्टरों को गिरफ्त़ार, घायल, या मारने के बदले उन्हें पूरे सम्मान के साथ वापस काम पर बुलाना चाहिए.

मुश्किल में म्यांमार: सैन्य तख़्तापलट के बीच कोरोना महामारी की तीसरी लहर

म्यांमार में सैन्य तख़्तापलट से मची हलचल के बीच अब कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर ने देश पर हमला बोल दिया है. 19 जुलाई तक देश में 229,521 कोरोना संक्रमण के मामले थे जबकि 5000 लोगों ने इस दौरान जान गंवाई, और देश की करीब 90 फ़ीसदी आबादी इससे प्रभावित थी. जुलाई के पहले सप्ताह तक देश के 330 में से 296 शहरों में  कोरोना संक्रमण के मामलों में तेजी दर्ज़ की गई. अचानक से कोरोना मामलों में आई इस तेजी के कई कारण हैं – मसलन, कोरोना संक्रमण को रोकने के गलत उपायों का चलन में होना,  स्वास्थ्य सेवाओं और स्क्रीनिंग सिस्टम को नज़रअंदाज़ करना, प्रदर्शन के दौरान भारी भीड़ जुटना और वैक्सीनेशन की धीमी गति. इसके अलावा स्वास्थ्य समेत देश की सार्वजनिक व्यवस्थाओं  पर सेना का प्रभाव देश को एक तरह से स्वास्थ्य आपातकाल की ओर धकेल रहा है.

हालांकि, साल 2010 से ही देश में शिशु स्वास्थ्य सेवा और महिला एवं शिशु मृत्यु दर के मामलों में स्वास्थ्य मानक बेहतर हुए हैं. लोगों के जीने के अनुमानित जीवन काल में भी वर्ष 1990 से 2017 के बीच 12 साल से भी ज़्यादा की बढोतरी दर्ज़ की गई है.  हालांकि एचआईवी, क्षय रोग और मलेरिया की रोकथाम को लेकर जो कार्यक्रम पहले प्रजातांत्रिक सरकार चला रही थी उसे  सैन्य शासन ने रोक दिया. ऊपर से स्वाथ्य्य संबंधी ढांचागत सेवाओं और क्षमता को बढ़ाने पर कम ख़र्च ही एक मात्र वास्तविकता है. यही नहीं दस लाख बच्चों का चेचक और दूसरी बीमारियों के ख़िलाफ़ टीकाकरण करने का अभियान भी इससे प्रभावित हुआ है. यूनिसेफ जो इस अभियान के लिए टीका मुहैया कराता है उसे अब यह चिंता सता रही है कि इससे देश में मानसून सीजन के ख़त्म होते ही बीमारी का प्रकोप तेजी से बढ सकता है.

1 फरवरी के बाद से ही म्यांमार में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चौपट हो गई हैं और कोरोना संक्रमण को रोकने को लेकर चलाए जा रहे उपायों की गति धीमी पड़ गई है.

1 फरवरी के बाद से ही म्यांमार में स्वास्थ्य व्यवस्थाएं चौपट हो गई हैं और कोरोना संक्रमण को रोकने को लेकर चलाए जा रहे उपायों की गति धीमी पड़ गई है. रणनीतिक लिहाज से म्यांमार भारत के लिए दक्षिण एशिया के लिए पुल का काम करता है जो भारत के लिए एक तरह से उत्तर पूर्व इलाके का द्वार है, उसे कोरोना वैक्सीन का पहला 1.7 मिलियन वैक्सीन डोज 22 जनवरी 2021 को मिला था.  नतीजतन, म्यांमार ने भारत के सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के साथ 30 मिलियन कोविशील्ड वैक्सीन के डोज के लिए समझौता करार पर हस्ताक्षर किया जिसमें 11 फरवरी तक कुछ वैक्सीन के डोज तो उसे मिल  भी गये. म्यांमार में देशव्यापी कोविड 19 वैक्सीनेशन अभियान 27 जनवरी को एनएलडी सरकार के तहत शुरू किया गया. इसमें भारत से डोनेशन के रूप में प्राप्त किए गए वैक्सीनेशन के डोज को सबसे पहले हेल्थकेयर स्टाफ और वॉलिंटियर,समेत  स्वास्थ्य कर्मचारियों को देने की योजना थी. लेकिन देश में सैन्य तख़्तापलट के चलते संक्रमण पर अंकुश लगाने वाली योजनाओं में भारी उथल पुथल हो गयी. देश की सत्ता पर सेना के कब्ज़ा करने के दो दिन बाद 3 फरवरी को समूचे देश के हेल्थकेयर वर्कर्स, डॉक्टर्स और जनसेवकों ने देश भर में सविनय अवज्ञा आंदोलन (सीडीएम) छेड़ दिया और सैन्य शासन के तहत काम करने से मना कर दिया. 

इसके जवाब में जुंटा ने देश भर के स्वास्थ्य कर्मचारियों पर हिंसात्मक कार्रवाई करना शुरू कर दिया. फरवरी से लेकर मई तक स्वास्थ्य कर्मचारियों की ज़िंदगी पर 170 हमले हो चुके हैं, कई एंबुलेंस को नुकसान पहुंचाया गया है. यहां तक कि कई अस्पतालों में छापे मारे गए, उन पर बमबारी की गई और सेना ने कई अस्पतालों पर कब्ज़ा तक जमा लिया. सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने के दौरान घायल प्रदर्शनकारियों के इलाज पर पाबंदी लगा दी गई.प्रदर्शन स्थलों पर स्वास्थ्य कर्मचारियों के पहुंचने पर पाबंदी लगा दी गई और आपातकालीन सेवाएं मुहैया कराने वाले संस्थानों के मेडिकल औजारों पर छापे मारे गए. सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने के आरोप में अप्रैल से लेकर मई तक देश भर में करीब 400 डॉक्टरों को गिरफ्तार करने के लिए वारंट जारी किया गया. 

स्वास्थ्यकर्मियों की कमी


इस तरह की डरावनी हालत के चलते देश में कोरोना की टेस्टिंग और वैक्सीनेशन अभियान पर प्रतिकूल असर पड़ा. सत्ताधारी जुंटा के मुताबिक विद्रोह से पहले प्रति दिन जहां 25000 लोगों का कोरोना टेस्ट किया जा रहा था वह आंकड़ा गिर कर 2000 पर पहुंच गया. हालांकि सत्ताधारी जुंटा ने लोगों से वैक्सीन लेने की अपील की है लेकिन बड़ी तादाद में स्वास्थ्य कर्मचारियों की गिरफ्तारी से वैक्सीन डोज देने वाले पेशेवर स्वास्थ्यकर्मियों की किल्लत हो गई है. 23 अप्रैल तक सेना के अधीन वाली मीडिया के मुताबिक 1.5 मिलियन लोगों को वैक्सीन का पहला डोज लग चुका था जबकि केवल 300,000 लोगों को ही वैक्सीन के दोनों डोज लग पाया था. कई लोग ,यहां तक कि इसमें कई स्वास्थ्यकर्मी भी शामिल हैं जो- गिरफ्तारी के डर से छिपे हुए हैं – इन लोगों ने देश में वैक्सीन के दूसरे डोज का प्रतिरोध किया है. इसका नतीजा यह हुआ है कि भारत से दिए गए वैक्सीन के करीब 1.6 मिलियन डोज का देश में इस्तेमाल ही नहीं हो पाया.

ऑक्सीजन फैक्ट्रियों के बाहर उन लोगों की कतार लगी हुई है जिनके रिश्तेदारों को ऑक्सीजन की ज़रूरत है. ऐसे संकट के दौर में भी सत्ताधारी सैन्य जुंटा ने उन दुकानों पर छापेमारी की और नागरिकों को ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाने से रोका.


हालांकि, हाल के दिनों में फिर से कोरोना टेस्टिंग की दर 2000 प्रति दिन से करीब 8000 से 9400 प्रतिदिन तक पहुंची है. लेकिन कोरोना की पॉजिटिविटी रेट लगातार बढ रही है. जून के मध्य में मंत्रालय ने देश में वायरस के डेल्टा, अल्फा, और कप्पा वेरिएंट होने की पुष्टि की थी.  हालांकि, स्वास्थ्य विशेषज्ञों का मानना है कि देश में कई ऐसे मामले हैं जिनकी पहचान अभी नहीं की जा सकी है. जो अस्पताल पहले खुले थे अब वहां कर्मचारियों से लेकर बिस्तर और ऑक्सीजन की कमी देखी जा रही है. ऑक्सीजन फैक्ट्रियों के बाहर उन लोगों की कतार लगी हुई है जिनके रिश्तेदारों को ऑक्सीजन की ज़रूरत है. ऐसे संकट के दौर में भी सत्ताधारी सैन्य जुंटा ने उन दुकानों पर छापेमारी की और नागरिकों को ऑक्सीजन सिलेंडर भरवाने से रोका.

देश में वैक्सीनेशन को प्राथमिकता बनाने की योजना का नहीं होना चिंता का विषय है. इस तरह के कदम पहले से विचार कर व्यवस्थित तरीके से देश में लागू किया जाना चाहिए. यहां तक कि स्थानीय तौर पर उत्पादित या फिर विदेशी वैक्सीन की संतोषजनक मात्रा को सुरक्षित करना प्रमुख चिंता होनी चाहिए. सेना द्वारा देश में चलाए जा रहे वैक्सीनेशन कार्यक्रम के संबंध में ब्यौरा देने में आनाकानी करने का ही नतीजा था कि मार्च में कोवैक्स, जो दुनिया भर में वैक्सीन साझा कार्यक्रम चला रहा है, उसने 5.5 मिलियन वैक्सीन  डोज कि खेप को मुहैया कराने में देरी की. म्यांमार में वैक्सीन की ज़रूरतों के प्रति भारत पहला देश था जिसने मदद का हाथ बढ़ाया और उसे 3.7 मिलियन वैक्सीन की डोज उपलब्ध करवाया जबकि भारत में तब दूसरी लहर आ चुकी थी.  इसके बाद मई में चीन  ने 500,000 वैक्सीन डोज म्यांमार को मुहैया कराई.  हाल ही में म्यांमार की सैन्य शासन ने चीन से एक समझौता किया है जिसके तहत वह वैक्सीन के 5 लाख डोज चीन से खरीदने जा रहा है. रूस से भी म्यांमार ने 2 मिलियन वैक्सीन डोज  को खरीदा है जिसकी पहली खेप जल्द पहुंचने वाली है. इसके अतिरिक्त म्यांमार की सैन्य शासन ने म्यांमार दवाई कंपनियों से रूस की मदद से वैक्सीन के उत्पादन के लिए कहा है. रूस ने वैक्सीन उत्पादन में म्यांमार को मदद करने का भरोसा दिया है.

भारत ने बढ़ाया मदद का हाथ 

हालांकि, देश में चीन के प्रति लोगों में भारी असंतोष है क्योंकि उन्हें लगता है कि चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में म्यांमार की सैन्य शासन को बचा रहा है. इतना ही नहीं सैन्य शासन का विरोध करने वालों को चीन में निर्मित वैक्सीन के प्रति पूरा भरोसा  भी नहीं है. इन लोगों के पास वैक्सीन को स्वीकार करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प होगा ऐसा लगता नहीं है ख़ास कर अगर हाल के दिनों में कोरोना संक्रमण के बढ़ते मामले और इसके चलते हुई मौतों के आंकड़ों को देखते हैं.

चीन के मुकाबले अभी तक म्यांमार की जनता में भारत के ख़िलाफ़ रोष नहीं है,  क्योंकि यहां भारत के हस्तक्षेप को चीन की जबरदस्ती वाली नीतियों की तरह लोग नहीं देखते हैं.

अब जबकि भारत कोरोना की दूसरी लहर से बाहर निकल रहा है तो जल्द ही वैक्सीन मैत्री पहल की शुरुआत की जाएगी. नई दिल्ली ने हमेशा से यही कहा है कि म्यांमार के नागरिकों की बेहतरी के लिए सैन्य शासन के बावजूद कोरोना संक्रमण के ख़िलाफ़ तमाम मदद की जाएगी. कई विशेषज्ञों की राय के मुताबिक वैक्सीन की कूटनीति के पीछे इस इलाके में चीन के प्रभुत्व को कम करना है और इसका सकारात्मक असर भी जल्द ही होगा.  चीन के मुकाबले अभी तक म्यांमार की जनता में भारत के ख़िलाफ़ रोष नहीं है,  क्योंकि यहां भारत के हस्तक्षेप को चीन की जबरदस्ती वाली नीतियों की तरह लोग नहीं देखते हैं.

म्यांमार की अभी पहली प्राथमकिता अपने नागरिकों की जान बचाने की होनी चाहिए. डॉस्टरों को गिरफ्तार, घायल, या मारने के बदले उन्हें पूरे सम्मान के साथ वापस काम पर बुलाना चाहिए. सैन्य सरकार को फिर से अपनी रणनीति पर विचार करना चाहिए और सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने वाले स्वास्थ्य कर्मचारियों के ख़िलाफ़ लगी पाबंदी को हटा लेना चाहिए. साल 2030 तक म्यांमार के राष्ट्रीय स्वास्थ्य योजना में यूनिवर्सल हेल्थ कवरेज एक महत्वाकांक्षी योजना रही है. लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर करने के प्रयास और इससे जुड़ी योजनाओं पर अब ख़तरे के बादल मंडराने लगे हैं क्योंकि अगर देश की जनता  एक साथ महामारी से ना लड़ कर एक दूसरे के ख़िलाफ़ लड़ेगी तो यह बेहद चिंताजनक है. हालांकि यह परिदृश्य आने वाले समय में पूरी तरह से असंभव लगता है लेकिन मौजूदा सरकार को चाहिए कि वो देश में स्थिरता कायम करने के लिए शांतिपूर्ण तरीकों को अपनाए.

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