Author : Dhaval Desai

Published on Apr 13, 2024 Updated 0 Hours ago

अगर हम मुंबई को वैश्विक केंद्र बना पाए तो यह दूसरे शहरों के लिए भी मिसाल होगी. इससे आर्थिक ग्रोथ तेज होगी और शहरी जीवनस्तर में सुधार भी होगा.

मुंबई को दुनिया का एंट्रेपोट व्यापार का केंद्र बनाना होगा

सड़कों पर गाड़ियों की संख्या के लिहाज से 2020 में मुंबई दुनिया का दूसरा सबसे भीड़भाड़ वाला शहर रहा. इस मामले में 2018 और 2019 की तुलना में पिछले साल इसकी रैंकिंग दो पायदान और चढ़ी. 2020 की शुरुआत में भारत और दूसरे देशों में कोविड-19 के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन लगाया गया, लेकिन इन पाबंदियों में ढील दिए जाने के तुरंत बाद ही मुंबई की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ बढ़ गई.

शहर में हमेशा गाड़ियों की यह भीड़भाड़ एक तरह से मुंबई के हाथ से उन मौकों के निकलने का भी प्रतीक है, जिनकी वजह से यह दशकों से उस मुकाम को हासिल नहीं कर पाया है, जिसे इसे कर लेना चाहिए था. कभी यह विदेशी व्यापार का केंद्र हुआ करता था-‘गेटवे ऑफ इंडिया’. आज मुंबई कई फिजिकल और सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर की जंजीरों में जकड़ा है, वह भी तब जबकि यह शहर देश की वित्तीय राजधानी है.

मुंबई को कई फिजिकल, सामाजिक-आर्थिक और रेगुलेटरी मानकों को लेकर नई शुरुआत करनी होगी. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह शहर महाराष्ट्र के जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक का योगदान देता है. 467 अरब डॉलर के साथ यह देश की सबसे बड़ी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था है. 

यह बात सही है कि इस शहर में कई ख़ामियां हैं. इसका अनियमित विकास हुआ है. यहां गरीबी के समुद्र के बीच समृद्धि के टापू दिखते हैं. मुंबई की करीब 42 फीसदी आबादी झुग्गियों में रहती है. इन लोगों को पीने का साफ पानी और सैनिटेशन जैसी बुनियादी सुविधाएं तक नहीं मिलतीं. समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी को लेकर जो स्टडी हुई हैं, उनमें बताया गया है कि मुंबई का बड़ा हिस्सा साल 2050 तक डूब चुका होगा. यहां की झुग्गी बस्तियां निचले इलाकों में हैं, जिन पर इसका सबसे बुरा असर पड़ेगा. इसमें कोई दो राय नहीं कि इन समस्याओं को नहीं सुलझाया गया तो मुंबई की परेशानी और बढ़ेगी.

इन मुश्किलों को दूर करने के लिए मुंबई को कई फिजिकल, सामाजिक-आर्थिक और रेगुलेटरी मानकों को लेकर नई शुरुआत करनी होगी. यह इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह शहर महाराष्ट्र के जीडीपी में 50 फीसदी से अधिक का योगदान देता है. 467 अरब डॉलर के साथ यह देश की सबसे बड़ी क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था है. इसलिए अगर 2030 तक भारत को 10 लाख करोड़ डॉलर की इकॉनमी बनना है तो मुंबई की उसमें बड़ी भूमिका होगी. मिसाल के लिए, न्यूयॉर्क सिटी और टोक्यो जैसे वैश्विक शहरों  का जीडीपी 1 लाख करोड़ डॉलर के करीब है. यह कितनी बड़ी बात है, इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इन शहरों का जीडीपी इंडोनेशिया और कनाडा जैसे देशों के जीडीपी के क़रीब-क़रीब बराबर है.

1990 के दशक में सरकार ने मिलों की ज़मीन को री-डिवेलप करने में जो ग़लतिययां की थीं, उससे सबक लेते हुए अगर वह पूर्वी तट के पास की ज़मीन में अक्लमंदी के साथ विकास कार्य करती है तो इससे यह शहर शंघाई या हॉन्गकॉन्ग जैसा इंटरनेशनल सेंटर बन सकता है. 

जिस तरह से इन शहरों ने अपनी तकदीर बदली, मुंबई भी ऐसा कर सकती है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि इस शहर में जगह की कमी है. ऐसे में पूर्वी तट पर 966 हेक्टेयर यानी करीब 10 वर्ग किलोमीटर ज़मीन को डेवलपमेंट के लिए खोलने के प्रस्ताव से यह कमी दूर हो सकती है. अभी यह ज़मीन मुंबई पोर्ट ट्रस्ट के पास है. अब जबकि शिपिंग, मैरीटाइम और तटीय व्यापार मुंबई के आसपास और पड़ोस के गुजरात में शिफ्ट हो रहा है तो मुंबई के पूर्वी तट पर इस ज़मीन के इस्तेमाल से लीजर इंफ्रास्ट्रक्चर, मरीना और इंटरनेशनल क्रूज टर्मिनल के साथ बहुत कुछ किया जा सकता है.

अभी इस क्षेत्र के विकास के लिए जो योजना बनाई गई है, उस पर सरकार की मंजूरी मिलनी है. इसमें कुल क्षेत्र का 26 फीसदी हिस्सा खुला होगा और उसमें बागीचे लगाए जाएंगे. मुंबई में अभी 8 फीसदी खुला एरिया ही ऐसा है, जिसका आम लोग इस्तेमाल कर सकते हैं. यहां जो डेवलपमेंट होगा, उसमें 36 फीसदी क्षेत्र लोगों की आवाजाही के लिए छोड़ा जाएगा, जबकि मुंबई शहर में अभी इसके लिए सिर्फ 17 फीसदी जगह छोड़ी गई है.

पूर्व ग़लतियों से सबक़ लेने की ज़रूरत

1990 के दशक में सरकार ने मिलों की ज़मीन को री-डिवेलप करने में जो ग़लतिययां की थीं, उससे सबक लेते हुए अगर वह पूर्वी तट के पास की ज़मीन में अक्लमंदी के साथ विकास कार्य करती है तो इससे यह शहर शंघाई या हॉन्गकॉन्ग जैसा इंटरनेशनल सेंटर बन सकता है. यह जानना भी दिलचस्प होगा कि आज कई बड़े फ़ाइनेंशियल सेंटर जितने क्षेत्र में फैले हैं, मुंबई का पूर्वी तटीय क्षेत्र उससे कहीं बड़ा है. ये फ़ाइनेंशियल सेंटर इसी वजह से दुनिया की निगाह में आए और उनकी बदौलत स्थानीय, घरेलू और क्षेत्रीय इकॉनमी में तरक्की हुई. आपको जानकर ताज्जुब होगा कि लंदन का कनेरी वॉर्फ कभी सिर्फ 40 हेक्टेयर में फैला घाट हुआ करता था, जहां भूमध्यसागर और कनेरी द्वीप से आने वाले जहाज़ों से सामान उतारा जाता था.

1987 के बाद यह क्षेत्र लंदन का सबसे बड़ा फ़ाइनेंशियल डिस्ट्रिक्ट बना, जहां डेढ़ लाख लोगों को रोज़गार मिला. यहां से सालाना 50 अरब डॉलर की आमदनी होती है. न्यूयॉर्क में मैनहटन की 41 से 59वीं स्ट्रीट के बीच एक छोटा सा एरिया है, जिसके दायरे में सिर्फ पांच पिनकोड आते हैं. वहां करीब 6 लाख लोगों को रोज़गार मिला हुआ है, जो 10 लाख डॉलर तक कमाई कर सकते हैं. एशिया में दुबई इंटरनेशनल फ़ाइनेंशियल सेंटर साल 2004 में 110 हेक्टेयर में बना और जल्द ही यह दुनिया का 8वां ग्लोबल फ़ाइनेंशियल पॉवरहाउस बन गया. इसके साथ ही इसकी गिनती लंदन, न्यूयॉर्क, हॉन्गकॉन्ग और सिंगापुर जैसे शहरों में होने लगी.

फिर मुंबई के साथ कहां चूक हुई? अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मुंबई के पूर्वी तटीय क्षेत्र को विकसित करने की योजना राजनीतिक दूरदृष्टि के अभाव में धुंधली पड़ गई है. यही हाल 2015 में बांद्रा-कुर्ला कॉम्प्लेक्स में इंटरनेशनल फाइनेंशियल सर्विसेज सेंटर (IFSC) के मेगा प्लान का भी है. इस तरह की ख़बरें आई हैं कि मुंबई के पूर्वी तटीय क्षेत्र और IFSC की योजना को केंद्र सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया है. असल में उसका ध्यान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पसंदीदा गुजरात इंटरनेशनल फाइनेंस-टेक सिटी पर है.

योजनाओं में देरी क्यों?

कई ऐसे बड़े प्लान थे, जिनसे मुंबई की पहचान दुनिया में बनती, लेकिन उनमें भी काफी देरी हो रही है. पनवेल में दूसरे इंटरनेशनल एयरपोर्ट की योजना 1980 के दशक के आखिर में बनी थी. इसका मकसद मुंबई एयरपोर्ट पर भीड़ कम करना था, लेकिन अभी तक दूसरा एयरपोर्ट नहीं बन पाया है. इस हवाई अड्डे को 2019 में पूरा हो जाना था, लेकिन ऐसा लगता है कि 2022 तक शायद ही वहां कोई गतिविधि शुरू हो पाए. शुरुआत में इस प्रॉजेक्ट की लागत 140 अरब रुपये रहने का अनुमान था, जो आज बढ़कर 165 अरब रुपये हो गया है.

मुंबई को वैश्विक व्यापार का केंद्र बनाने के लिए सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार और री-इंजीनियरिंग से ही काम नहीं चलेगा. अगर मुंबई की एक वित्तीय केंद्र की क्षमता का फायदा उठाना है तो उसके लिए रेगुलेटरी बदलाव करने होंगे. इसके साथ टैक्स संबंधी उलझनों को भी दूर करना होगा.

180 करोड़ रुपये की लागत से 22 किलोमीटर लंबे मुंबई ट्रांस हार्बर लिंक की योजना 1970 के दशक में बनी थी, जो मुंबई को नवी मुंबई से जोड़ता, लेकिन इस पर भी हाल ही में काम शुरू हुआ है और इसके 2022 की तय समयसीमा तक पूरा होने की उम्मीद नहीं. उपनगरीय रेल सेवा रोज 80 लाख लोगों को अपनी मंज़िल तक पहुंचाती है. इसका दबाव कम करने के लिए शहर में मेट्रो की योजना बनाई गई थी, लेकिन इस प्रॉजेक्ट में देरी हो रही है और इसकी लागत भी बढ़ी है. इनमें मेट्रो लाइन 3 महत्वपूर्ण है, जो ऐसे इलाकों को जोड़ने वाली थी, जहां की ज़रूरतें अभी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से पूरी नहीं हो पा रही हैं. इसमें सियासी दांवपेच और भ्रामक पर्यावरण चिंताओं के कारण अनिश्चितकालीन देरी हो रही है.

एक तरफ सस्टेनेबल पब्लिक ट्रांसपोर्ट प्रॉजेक्ट्स के सितारे गर्दिश में हैं तो दूसरी तरफ सरकार शहर के पश्चिमी तट पर 9.8 किलोमीटर लंबे कोस्टल रोड प्रॉजेक्ट्स पर आगे बढ़ रही है. अफसोस की बात यह है कि इससे कार मालिकों को ही अधिक फायदा होगा. इस प्रॉजेक्ट पर 140 अरब रुपये की लागत आएगी. इसके लिए समुद्र के किनारों को पाटकर 100 हेक्टेयर ज़मीन का इंतज़ाम किया जाएगा. ऐसा लगता है कि इसकी योजना बनाते वक्त उन गंभीर जलवायु संबंधी खतरों की अनदेखी की गई है, जिनका सामना यह शहर कर रहा है.

मुंबई में कुछ बुनियादी कमियां भी हैं, जिनकी वजह से यह देश के दूसरे शहरों से पिछड़ गया है. जहां दिल्ली नेशनल कैपिटल रीजन ने देश की आर्थिक राजधानी के खिताब के मामले में मुंबई को पीछे छोड़ दिया है, वहीं बेंगलुरु भी देश की इनोवेशन और स्टार्टअप राजधानी बन गया है. हाल यह है कि नए राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद को भी मैन्युफैक्चरिंग, इलेक्ट्रॉनिक्स, फार्मास्युटिकल, बायोटेक और एक्सपोर्ट के क्षेत्र में मुंबई से अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हासिल हुआ है.

अगर योजना बनाकर नवी मुंबई और ठाणे से आगे टिकाऊ विकास किया जाए तो मुंबई के लिए वही एक उम्मीद है. पिछली सरकार ने देश में सबसे बड़े प्लांड शहर नवी मुंबई एयरपोर्ट इंफ्लुएंस नोटिफायड एरिया (NAINA) को मंजूरी दी थी. यह शहर 334 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में बसाया जाना था, जिस पर 2 लाख करोड़ रुपये की लागत आने का अनुमान था. हाल ही में सरकार ने 300 हेक्टेयर में मल्टी-यूज के लिए नवी मुंबई एरोसिटी की भी मंजूरी दी है, जिसे एयरपोर्ट के दक्षिणी सिरे पर बनाया जाएगा. लेकिन इन मेगा प्रॉजेक्ट्स को भी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा. इसलिए अगर ये भी कभी न ख़त्महोने वाले कंस्ट्रक्शन मोड में फंस जाएं तो हैरानी नहीं होनी चाहिए.

रेगुलेटरी बदलाव करने की ज़रूरत

मुंबई के रास्ते में कई चुनौतियां हैं, लेकिन उतने ही अवसर भी हैं. मुंबई को वैश्विक व्यापार का केंद्र बनाने के लिए सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार और री-इंजीनियरिंग से ही काम नहीं चलेगा. अगर मुंबई की एक वित्तीय केंद्र की क्षमता का फायदा उठाना है तो उसके लिए रेगुलेटरी बदलाव करने होंगे. इसके साथ टैक्स संबंधी उलझनों को भी दूर करना होगा. इसी वजह से सिंगापुर और जापान की तुलना में मुंबई शहर पिछड़ गया. उन शहरों ने आसान टैक्स ढांचा पेश किया और विदेशी निवेशकों को लुभाने की पहल भी की.

इधर, मुंबई को परस्पर विरोधी राज्य और केंद्र के नियमों से जूझना होगा. स्थानीय प्रशासनिक स्तर पर जो कमियां हैं, वे भी उसके आड़े आएंगी. ऐसे में पूर्वी तटीय क्षेत्र और NAINA के जरिये मुंबई शहर का दायरा बढ़ाने का काम रोज़गार बढ़ाने के मकसद से किया जाना चाहिए. इसमें आर्थिक फ़ायदों पर गौर किया जाए और यहां मिक्स्ड लैंड यूज की इजाज़त मिले. इसके साथ सस्टेनेबल पब्लिक ट्रांसपोर्ट के जरिये कनेक्टिविटी को भी बेहतर बनाना होगा.

इसमें दो राय नहीं कि मुंबई के सामने मुश्किलें हैं, लेकिन इसके बावजूद उसमें वैश्विक वित्तीय केंद्र बनने की क्षमता है. उसके पास विकास के लिए नई ज़मीन है, हुनरमंद और मेहनती पेशेवर हैं और तरक्की की राह पर बढ़ता निजी क्षेत्र है. बस, उसे इन सबका फायदा उठाना होगा. अगर हम मुंबई को वैश्विक केंद्र बना पाए तो यह दूसरे शहरों के लिए भी मिसाल होगी. इससे आर्थिक ग्रोथ तेज होगी और शहरी जीवनस्तर में सुधार भी होगा.


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