Author : Akshay Mathur

Published on Feb 01, 2021 Updated 0 Hours ago

जब सामरिक संबंधों की बात होती है तो भारत-प्रशांत का मतलब सब समझते हैं, लेकिन बिजनेस की दुनिया में इसका क्या अर्थ है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं  

मुंबई को हिंद-प्रशांत क्षेत्र के जियो-इकोनॉमिक्स का आर्थिक केंद्र बनाया जाए

दुनिया में भारत को आर्थिक राजनयिक का रोल निभाया है. आज जब जियो-पॉलिटिक्स (भौगोलिक स्थिति का जब किसी क्षेत्र की राजनीति या देशों के आपसी रिश्तों पर असर पड़ता है) का केंद्र ‘एशिया प्रशांत’ के बजाय पहचान दिलाने में मुंबई ने बड़ी भूमिका अदा की है. चाहे भारत को विदेश में निवेश के ठिकाने के तौर पर पेश करना हो, चाहे इसके वस्तुओं, सेवाओं, उद्यमियों का प्रचार करना हो, या विदेश में मिल रहे अवसरों को भुनाने की बात हो, मुंबई के बिजनेस लीडर्स ने देश की खातिर ‘हिंद-प्रशांत’ की ओर शिफ्ट हो रहा है तो मुंबई के पास खुद को इस क्षेत्र की जियो-इकॉनमिक्स के केंद्र में लाने का मौका है.

पहली बार हिंद-प्रशांत का आइडिया जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में भारतीय संसद में दिए भाषण  में दिया था. उन्होंने तब प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित सुरक्षा के ढांचे का विस्तार भारत और पूर्वी अफ्रीका के तटीय क्षेत्र तक किया था

जब सामरिक संबंधों की बात होती है तो हिंद-प्रशांत का मतलब सब समझते हैं, लेकिन बिजनेस की दुनिया में इसका क्या अर्थ है, इसे बहुत कम लोग जानते हैं. पहली बार हिंद-प्रशांत का आइडिया जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने 2007 में भारतीय संसद में दिए भाषण  में दिया था. उन्होंने तब प्रशांत क्षेत्र पर केंद्रित सुरक्षा के ढांचे का विस्तार भारत और पूर्वी अफ्रीका के तटीय क्षेत्र तक किया था. इसके बाद से जियो-पॉलिटिक्स में इसकी अहमियत बढ़ती गई है, खासतौर पर इसमें चीन के आक्रामक तेवर का काफी योगदान रहा है. इसी वजह से यूनाइटेड स्टेट्स पैसिफिक कमांड का विस्तार मई 2018 में इंडो-पैसिफिक कमांड तक हुआ. और इसी कारण से जापान, ऑस्ट्रेलिया, भारत और अमेरिका के बीच क्वॉड मिलिट्री को-ऑपरेशन फ्रेमवर्क यानी सैन्य सहयोग का आधार तैयार हुआ. इन्हीं सामरिक संबंधों पर ध्यान देने के लिए भारत के विदेश मंत्रालय ने भारत-प्रशांत के लिए अलग डिविज़न तक शुरू की.

अफ़सोस की बात है कि जियो-पॉलिटिक्स में एशिया-प्रशांत से हिंद-प्रशांत तक का जो विस्तार हुआ है, वैसी पहल जियो-इकॉनमिक्स के क्षेत्र में नहीं हुई. एशिया-प्रशांत इकोनॉमिक को-ऑपरेशन (APEC) की नब्बे के दशक में स्थापना हुई. इसके ज़रिये इस क्षेत्र में इकोनॉमिक और बिज़नेस सहयोग बढ़ाने की पहल शुरू हुई. इसमें मुख्य़ रूप से अमेरिका, चीन और जापान शामिल थे. भारत APEC का हिस्सा नहीं था. 2020 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के बीच जो व्यापार हुआ, उसमें से आधे से अधिक में अमेरिका, चीन और जापान का योगदान था. इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में तो यह सहयोग काफी ज्यादा था. एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बिजनेस डिवेलपमेंट पर भी इसका असर हुआ है. करीब 3.40 लाख बिजनेस एग्जिक्यूटिव APEC बिजनेस ट्रैवल कार्ड का इस्तेमाल सदस्य देशों में स्थित अपने ऑफिसों में बेरोकटोक आवाजाही के लिए करते हैं.

हिंद-प्रशांत के लिए आर्थिक सहयोग का ऐसा कोई ढांचा नहीं है. भारत और अमेरिका रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप और ट्रांस-पैसिफिक पार्टनरशिप का हिस्सा नहीं हैं. इससे पता चलता है कि इस क्षेत्र की जियो-पॉलिटिक्स से हिंद-प्रशांत जियो-इकॉनमिक्स का तालमेल नहीं है. इसका भारत और ख़ासतौर पर मुंबई पर असर पड़ सकता है. आख़िर मुंबई से ही इस क्षेत्र में आर्थिक सहयोग बढ़ाने का ज़रिया बनने की उम्मीद की जा रही है, लेकिन उसके पास मदद के लिए कोई आर्थिक ढांचा नहीं है.

मुंबई के हक में एक बात यह भी है कि रिजर्व बैंक का मुख्य़ालय यहीं है. इसके अलावा, सिक्योरिटी रेगुलेटर यानी सेबी, सबसे बड़े प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंक, इक्विटी और कमॉडिटी एक्सचेंज और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक के मुख्य़ालय मुंबई में हैं. 

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सिंगापुर, हॉन्गकॉन्ग, शंघाई, शेनझेन, सिडनी, दुबई और टोक्यो जैसे बड़े आर्थिक केंद्र हैं. कंपनियों के आईपीओ के लिहाज से इस क्षेत्र में हॉन्गकॉन्ग का मुकाबला करना मुमकिन नहीं है. ढाई हजार से अधिक लिस्टेड कंपनियां यहां हैं, जिनकी वैल्यू 6 लाख करोड़ डॉलर है. हॉन्गकॉन्ग के रास्ते कंपनियों को मेनलैंड चाइना और वहां के वित्तीय बाजार तक पहुंच मिलती है. सिंगापुर की पहचान वेल्थ मैनेजमेंट सेंटर के रूप में है, जहां की कंपनियां तीन लाख करोड़ डॉलर के एसेट्स मैनेज करती हैं. इनमें से ज्य़ादा रकम एशिया-प्रशांत क्षेत्र की है और यहीं उसे निवेश भी किया गया है. शेनझेन, शंघाई और बीजिंग, चीन की सरकारी कंपनियों के दुनिया में पांव फैलाने के साथ बड़े आर्थिक केंद्र बनकर उभरे हैं.

अंतरराष्ट्रीय बिज़नेस सेंटर के तौर पर मुंबई का महत्व

भारत के पश्चिम में दुबई है, जो जाना-माना वित्तीय केंद्र है. उसकी पहुंच क्षेत्र के 3 लाख करोड़ डॉलर के सॉवरेन वेल्थ फंडों (अलग-अलग देशों के फंड) तक है. इस क्लब में दूसरे शहर भी शामिल हो रहे हैं. फिनटेक ने लॉस एंजिलिस और सैन फ्रांसिस्को को ग्लोबल फाइनेंशियल सेंटर बना दिया है. हालिया ग्लोबल फाइनेंशियल सेंटर्स रिपोर्ट में सैन फ्रांसिस्को 9वीं पोजिशन पर है. वह ज्यूरिख, लग्जमबर्ग और फ्रैंकफर्ट से भी आगे है, जो भारत-प्रशांत की जियो-इकॉनमिक्स के लिहाज से बड़ी बात है.

मुंबई के बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर लिस्टेड कंपनियों की वैल्यू यानी मार्केट कैप 3.6 लाख करोड़ डॉलर है, जबकि नेशनल स्टॉक एक्सचेंज की 2 लाख करोड़ डॉलर . ये हॉन्गकॉन्ग की तुलना में छोटे हैं, लेकिन उसे लगातार चुनौती दे रहे हैं. बीएसई पर पहले ही 5,000 कंपनियां लिस्टेड हैं, जो दुनिया के किसी एक्सचेंज की तुलना में सबसे अधिक है. इसी तरह, भारत 2019 में प्राइवेट इक्विटी के लिए दूसरा सबसे बड़ा मार्केट  रहा.

इस मामले में उसका नंबर भले ही चीन के बाद था, लेकिन भारत की ग्रोथ जबरदस्त रही. भारत ने खासतौर पर इंटरनेट और टेक्नोलॉजी सेक्टर में अच्छा प्राइवेट इक्विटी निवेश हासिल किया है. 2013 के बाद इन क्षेत्रों में एक अरब डॉलर से अधिक वैल्यूएशन वाली 20 कंपनियां खड़ी हुई हैं. मुंबई के हक में एक बात यह भी है कि रिजर्व बैंक का मुख्य़ालय यहीं है. इसके अलावा, सिक्योरिटी रेगुलेटर यानी सेबी, सबसे बड़े प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंक, इक्विटी और कमॉडिटी एक्सचेंज और एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक के मुख्य़ालय मुंबई में हैं.

एक बिजनेंस सेंटर के रूप में मुंबई की ताकत यहां से काम करने वाले कॉरपोरेट्स पर निर्भर करती है. शहर के कॉरपोरेट कल्चर और ग्लोबल इकॉनमिक इंटीग्रेशन में टाटा संस, रिलायंस इंडस्ट्रीज, महिंद्रा, गोदरेज जैसे भारतीय बहुराष्ट्रीय समूह और हिंदुस्तान यूनिलीवर, मॉर्गन स्टेनली और सिटीबैंक जैसे विदेशी बहुराष्ट्रीय समूहों की इकाइयों ने अहम रोल निभाया है.

इसके बावजूद मुंबई में दूसरी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को लाना मुश्किल बना हुआ है. असल में, वैश्विक कंपनियों में से आधे के क्षेत्रीय मुख्य़ालय सिंगापुर में हैं, इनमें से कई टेक्नोलॉजी कंपनियां हैं , जबकि ज्य़ादातर लोगों को गलतफहमी है कि ये वित्तीय क्षेत्र की कंपनियां हैं. 2007 के एक सर्वे से पता चला था कि 40 फीसदी अमेरिकी और 40 फीसदी यूरोपीय टेक्नोलॉजी कंपनियों का क्षेत्रीय मुख्यालय सिंगापुर में था. इससे पता चलता है कि इस शहर ने वैश्विक कंपनियों को लुभाने में किस हद तक सफलता पाई है.

पश्चिमी देशों की अधिकांश कंपनियों के एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मुख्यालय सिंगापुर या हॉन्गकॉन्ग में हैं. वहीं से वे अपनी भारतीय इकाइयों का काम भी देखती हैं. इतना ही नहीं, मुंबई में रहने वाले बिजनेस प्रोफेशनल्स के लिए भी ये दोनों शहर पसंदीदा ठिकाने हैं. इन दोनों शहरों में जब उन्हें काम करने भेजा जाता है तो अक्सर प्रमोशन मिलती है. साथ ही, वहां से वे पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में बिजनेस गतिविधियों की नब्ज पकड़ सकते हैं.

एशिया-प्रशांत के रियल एस्टेट में 2019 में अमेरिका और यूरोप से होने वाले निवेश पर धीरे-धीरे सिंगापुर, दक्षिण कोरिया, जापान और चीन से होने वाला इन्वेस्टमेंट हावी हो रहा था. इससे पता चलता है कि कामयाब एशियाई कंपनियां और रीजनल जियो-इकॉनमिक्स से तय होगा कि इस क्षेत्र के बिजनेस के लिए अगली बेस्ट लोकेशन कौन सी होगी. मिसाल के लिए, वियतनाम में हो-ची-मिन्ह शहर को चीन से मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के जाने का फायदा मिला है. वहीं, विदेशी पेशेवरों के लिए थाईलैंड का बैंकॉक शहर, हॉन्गकॉन्ग की तुलना में अधिक आकर्षक हो गया है.

सिंगापुर और हॉन्गकॉन्ग की बड़ी भूमिका

कुछ ऐसे भी शहर हैं, जिन्होंने अपने आकार से मुकाबले वैश्विक आर्थिक मामलों में कहीं बड़ी भूमिका निभाई है. मिसाल के लिए, जी-20 में सिंगापुर को स्थायी न्योता मिलता आया है. इसी शहर में APEC का सचिवालय है और इस शहर से APEC के सम्मेलन की भी दो बार मेज़बानी की है. सिंगापुर के वित्त मंत्री 2011 में IMF के इंटरनेशनल मॉनेटरी एंड फाइनेंशियल कमिटी के अध्यक्ष बने. वह पहले एशियाई थे, जिन्होंने यह मुकाम हासिल किया.

हॉन्गकॉन्ग में 1997 में IMF/वर्ल्ड बैंक की सालाना मीटिंग  हुई. 2005 में विश्व व्यापार संगठन की मंत्रिस्तर की बैठक भी इसी शहर में हुई थी. जी-20 के बनाए फाइनैंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड में भी दोनों शहरों को स्वतंत्र रूप से नुमाइंदगी मिल चुकी है. जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्रमशः 2019 और 2014 में जी-20 की मेजबानी की थी. तब ओसाका और सिडनी को दुनिया के सबसे ताकतवर देशों के सरकारी और बिजनेस लीडर्स की मेजबानी का मौका मिला. मलेशिया के कुआलालम्पुर शहर में दो बार APEC सम्मेलन हो चुका है, जबकि बैंकॉक में 2022 में तीसरी बार यह सम्मेलन होने जा रहा है.

इस तरह का तजुर्बा मुंबई के पास बहुत कम है. कई देशों की नुमाइंदगी वाला आर्थिक सम्मेलन यहां 2018 में हुआ और यह मौका एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की सालाना बैठक की वजह से मिला. ब्रिक्स न्यू डिवेलपमेंट बैंक की सालाना मीटिंग 2017 में दिल्ली में हुई थी, न कि मुंबई में. भारत ने अभी तक जी-20 की मेजबानी नहीं की है, लेकिन वर्किंग ग्रुप की मीटिंग 2015 में केरल के कुमारकोम और 2017 में यूपी के वाराणसी शहर में हुई. महानगरों से बाहर ऐसी बैठकें आयोजित करने की सराहना की जा सकती है, लेकिन यह काम इनमें भागीदारी कम होने की कीमत पर किया गया. हमें याद रखने की जरूरत है कि वैश्विक आर्थिक नीति-निर्माण में इन वर्किंग ग्रुप्स का बड़ा योगदान रहता है.

इधर हॉन्गकॉन्ग में मची उथलपुथल और चीन के घरेलू अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित करने से एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मुंबई के लिए बड़ी भूमिका निभाने के रास्ते खुल सकते हैं. लेकिन इसमें उसे कई ताकतवर आर्थिक केंद्रों से चुनौती मिलेगी. हाल ही में ऑस्ट्रेलिया, जापान और भारत ने सप्लाई चेन रजिस्टेंस इनीशिएटिव शुरू किया है. इसका मकसद चीन से सप्लाई चेन को बाहर शिफ्ट करना है. लेकिन इस पहल को बहुराष्ट्रीय कंपनियों की तरफ से अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली है. इसका मतलब है कि कंपनियों को जियो-पॉलिटिक्स की ख़ातिर राज़ी करना आसान काम नहीं है.

कई देशों की नुमाइंदगी वाला आर्थिक सम्मेलन यहां 2018 में हुआ और यह मौका एशियन इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की सालाना बैठक की वजह से मिला. ब्रिक्स न्यू डिवेलपमेंट बैंक की सालाना मीटिंग 2017 में दिल्ली में हुई थी, न कि मुंबई में. 

मुंबई को भारत-प्रशांत की आर्थिक गतिविधियों के केंद्र में लाने के लिए प्लानिंग करनी होगी. ‘बॉम्बे प्लान’ के एक नए वर्जन ‘बॉम्बे प्लान 2.0’ की जरूरत है ताकि 1945 में इस शहर को जियो-इकॉनमिक्स के केंद्र में लाने का जो सपना उद्योगपतियों ने देखा था, उसे और आगे बढ़ाया जा सके. भारत 2021 में ब्रिक्स और 2023 में जी-20 की अध्यक्षता करने जा रहा है. मुंबई के लिए बिजनेस और फाइनेंस के क्षेत्र में अपनी लीडरशिप स्थापित करने के लिहाज से ये अच्छे मौके हो सकते हैं. सिंगापुर के आर्थिक डिवेलपमेंट बोर्ड की तर्ज पर मुंबई इकॉनमिक डिवेलपमेंट बोर्ड भी बनाने के बारे में सोचा जा सकता है. इससे बहुराष्ट्रीय कंपनियों को शहर में लाने में मदद मिलेगी. इससे मुंबई खुद को फाइनेंशियल और बिजनेस सेंटर के तौर पर स्थापित कर पाएगा. हालांकि, ऐसे बड़े सपने पूरा करने के लिए उसे इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत बनाना होगा.

हिंद-प्रशांत क्षेत्र के शहरों की बात करें तो मुंबई में एक बात है, जो किसी दूसरे शहर में नहीं. वह ताकत यहां की क्रिएटिव इंडस्ट्री है, जो लगातार तरक्की कर रही है. मुंबई देश में सिनेमा, एडवर्टाइजिंग और प्रिंट मीडिया की राजधानी है. इनसे शहर को खास पहचान मिली है. अखबारों और फिल्मों की संख्य़ा के लिहाज़ से भारत दुनिया में पहले नंबर पर है. वहीं, एशिया में चीन और जापान के बाद आमदनी के लिहाज़ से वह तीसरा सबसे बड़ा सिनेमा मार्केट है. भारत में इनमें से ज्यादातर आमदनी मुंबई को ही होती है. यानी इस शहर में ऐसी कई खूबियां हैं, जो उसे आर्थिक केंद्र बना सकें.


ये लेख  कोलाबा एडिट सीरीज़ का हिस्सा है.

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