शहरों में टिकाऊ और सतत सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आधारभूत संरचना एक ज़रूरी नींव है, क्योंकि यह शिक्षा, कामकाज और अन्य सेवाओं तक पहुंच को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. आज भी शहरों को समाज के हर सदस्य की ज़रूरत को ध्यान में रखकर रूपरेखित नहीं किया जाता है. शहरों के भीतर गतिशीलता की कमी की वजह से भौगोलिक अलगाव पैदा होता है. इस कारण शहरी क्षेत्रों में महिलाओं और वंचित समूहों के लिए नए अवसर सीमित हो जाते हैं और असमानता की स्थिति और बदतर हो जाती है. लैंगिक ज़रूरतों को ध्यान में रखे बिना शहरों में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, आबादी के एक बड़े वर्ग को सामाजिक और आर्थिक अलगाव की ओर ले जाता है.
शहरी गतिशीलता का अध्ययन लैंगिक नज़रिये से करना ज़रूरी है, क्योंकि सुरक्षित गतिशीलता (mobility) तक पहुंच सीधे तौर पर 2030 के सतत विकास लक्ष्यों (एसजीजी) के एजेंडा को पूरा करने से जुड़ा हो सकता है. इससे राजनीतिक, आर्थिक और सार्वजनिक जीवन में नेतृत्व के लिए महिलाओं की प्रभावी भागीदारी और बराबरी के अवसर सुनिश्चित किए जा सकते हैं (एसडीजी 5.5). ऐसे में, शहरी विकास में महिलाओं को परिवहन आधारभूत संरचना के अंतिम उपयोगकर्ताओं के रूप में देखना चाहिए और उनकी विविध आवश्यकताओं पर विचार करना चाहिए.
लैंगिक ज़रूरतों को ध्यान में रखे बिना शहरों में आधारभूत संरचनाओं का निर्माण, आबादी के एक बड़े वर्ग को सामाजिक और आर्थिक अलगाव की ओर ले जाता है.
परिवहन का लैंगिक परिप्रेक्ष्य
सामाजिक रूप से तय की गई महिलाओं व पुरुषों की भूमिका में अंतर के कारण अक्सर महिलाओं को यात्रा संबंधी कुछ निश्चित अभिलक्षणों (characteristics) का पालन करना पड़ता है, जो पुरुषों से अलग होता है. यात्रा के पैटर्न में इस अंतर के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसा कि ज़िम्मेदारियों में कमी-बेशी, सुरक्षा संबंधी चिंता, कमतर आय और मोलभाव व फैसला लेने की कम शक्ति. शहरी परिवहन तक सीमित पहुंच के चलते महिलाओं ने सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है. इस के चलते उन्हें बहुत हद तक लैंगिक आधारित हिंसा भी झेलनी पड़ती है. एशिया फाउंडेशन की महिला और गतिशीलता (मोबिलिटी) संबंधी रिपोर्ट से पता चलता है कि महानगरों में सार्वजनिक परिवहन में यात्रा के दौरान महिलाओं के ख़िलाफ़ 50 फ़ीसदी और सार्वजनिक परिवहन का इंतज़ार करते वक़्त 16 फ़ीसदी यौन उत्पीड़न के मामले सामने आए. यह भी पाया गया कि ख़राब आधारभूत संरचना जैसे स्ट्रीट लाइट्स, सार्वजनिक शौचालय और उपयोग योग्य फुटपाथ की कमी ने सार्वजनिक परिवहन से यात्रा को और अधिक असुविधाजनक और असुरक्षित बना दिया.
इसके अलावा यह भी देखा गया कि कार्य बल में महिलाओं की भागीदारी में एक सबसे बड़ी बाधा लंबी दूरी है. एक अनौपचारिक आर्थिक निगरानी सर्वेक्षण (Informal Economy Monitoring Survey) में इस बात को प्रमुखता से दर्शाया गया है कि शहरी इलाक़ों में महिलाएं कम वेतन वाले मौकों के लिए घर से दूर मिलने वाली बेहतर वेतन वाली नौकरी को मना कर दें, इस बात की संभावना काफ़ी ज़्यादा रहती है. ऐसा इसलिए हैं क्योंकि शहरी परिवहन उनकी सामर्थ्य, सुरक्षा और आराम संबंधी जरूरतों को पूरा नहीं करता है. एक अन्य उदाहरण से इस बात को बेहतर तरीके से समझा जा सका है. दरअसल, दिल्ली में जब झुग्गी बस्तियों में रहने वाली महिलाओं को हटाकर उन्हें महानगर की सीमाओं पर बसाया गया तो उनके रोजगार में 27 फीसदी की कमी आ गई.
शहरी परिवहन तक सीमित पहुंच के चलते महिलाओं ने सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंता जताई है. इस के चलते उन्हें बहुत हद तक लैंगिक आधारित हिंसा भी झेलनी पड़ती है.
महिलाओं के पास आने-जाने के लिए काफी कम विकल्प होते हैं. वे काफ़ी हद तक सार्वजनिक परिवहन, सार्वजनिक परिवहन से जुड़ने वाले साधनों (intermediate public transport) या परिवहन के गैर-मोटर चालित रूप यानी पैदल चलने (non-motorised transport) पर निर्भर रहती हैं. क्योंकि महिलाओं के लिए देखभाल या घरेलू ज़िम्मेदारियों की तुलना में वेतन देने वाली नौकरियां प्राथमिकता होती हैं, वे इसे वरीयता देती हैं और ऐसे में वह निजी परिवहन का उपयोग करें इस की संभावना कम होती है. ऐसे में, कोविड-19 महामारी ने महिलाओं के लिए गतिशीलता यानी मोबिलिटी को और कम कर दिया है. भीड़-भाड़ वाले इलाक़ों में सामाजिक दूरी बनाए रखने की ज़रूरत के कारण महिलाओं द्वारा सार्वजनिक परिवहन के साधनों के इस्तेमाल में कमी आई है. उदाहरण के लिए, दिल्ली-एनसीआर में कोविड-19 के बाद मेट्रो ट्रेनों में महिला यात्रियों की हिस्सेदारी 16 फ़ीसदी तक कम हुई है.
सड़क पर नजर
भारत में परिवहन के लिए महिलाओं के सामने विकल्प और प्राथमिकता में एक सबसे अहम कारक, व्यक्तिगत सुरक्षा है. ऐसे में बेहतर तरीक़े से डिज़ाइन की गई भौतिक आधारभूत संरचना जैसे उचित रोशनी के साथ चौड़े फुटपाथ, अंधेरे वाली जगहों को कम करना (dark corners) और देखने में बाधा डालने वाले ढांचे को हटाने के अलावा एक परिवहन से दूसरे तक पहुंच को सभी के लिए सुरक्षित व आसान बनाना, सार्वजनिक शौचालयों की अपलब्धता, महिलाओं के लिए विशेष सुरक्षित पार्किंग और बैठने की उचित व्यवस्था से न केवल गैर-मोटरयुक्त गतिशीलता (non-motorised mobility) बढ़ेगी बल्कि सार्वजनिक परिवहन की अंतिम व्यक्ति तक कनेक्टिविटी बेहतर होगी.
सन 1961 में लेखिका जेन जैकब्स ने शहरी वातावरण की अनौपचारिक निगरानी के महत्व पर प्रकाश डाला था. उन्होंने अपनी अवधारणा ‘सड़क पर नजरें’ (eyes on the street) लिखा में है कि सार्वजनिक स्थानों के गुलज़ार व आबाद रहने से लोग सुरक्षित महसूस करते हैं. इस तरह इससे एक अनौपचारिक निगरानी हो जाती है, भले ही आप वहां पर अनजान लोगों के बीच ही क्यों न हों.
अत्यधिक भीड़भाड़ में यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ सकती हैं. सुरक्षा चिंताओं की वजह से महिलाओं के पास सार्वजनिक परिवहन के साधनों में यात्रा करने के लिए एक सीमित अवधि होती है
सार्वजनिक परिवहन लेने या बदलने की जगह के पास चहल-पहल वाले वातावरण के निर्माण जैसे रेस्टोरेंट्स या दुकानें खोले जाने से वह जगह जीवंत सामुदायिक स्थान बन जाती है. यह ऊर्ध्वगामी (bottom-up) कम्युनिटी प्लानिंग यानी सामुदायिक योजना से संबंधित दृष्टिकोण (community planning approach) एक-दूसरे की देखभाल का नेटवर्क बना सकता है, और महिलाओं के लिए अप्रत्यक्ष निगरानी प्रदान कर सकता है.
अत्यधिक भीड़भाड़ में यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ सकती हैं. सुरक्षा चिंताओं की वजह से महिलाओं के पास सार्वजनिक परिवहन के साधनों में यात्रा करने के लिए एक सीमित अवधि होती है. ‘सुरक्षित अवधि’ का यह समय काफ़ी कम होने (reduced ‘safe window’) के कारण निश्चित घंटों के दौरान भीड़ बढ़ सकती है, और ऐसे में सार्वजनिक परिवहन कम भरोसेमंद और असुरक्षित हो जाता है. भीड़भाड़ कम करने के लिए परिवहन सेवाओं को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके लिए छोटी दूरी की परिवहन सेवाओं की आवृत्ति (frequency) बढ़ाने और मल्टी जर्नी टिकट (multi-journey tickets) सुनिश्चित करने के लिए लचीले किराए कि सुविधा उपलब्ध की जानी चाहिए. नॉन पीक आवर्स में महिला ड्राइवरों द्वारा संचालित जीपीएस युक्त टैक्सी सर्विस से भी सुरक्षा बढ़ सकती है.
यात्रा का अलग पैटर्न
सार्वजनिक परिवहन लेने या बदलने की जगहों पर निगरानी बढ़ाकर सुरक्षा की चिंताओं को दूर किया जा सकता है. ऐसा परिवहन सेक्टर के प्राधिकरणों में नेतृत्व वाली भूमिकाओं में अधिक से अधिक महिलाओं की नियुक्ति, समर्पित टाक्स फोर्स के जरिए सक्रिय सीसीटीवी निगरानी और जीपीएस ट्रेकिंग सेवाओं के ज़रिए सुनिश्चित किया जा सकता है. अधिकतर भारतीय शहरों में अंतर सार्वजनिक परिवहन (intermediate public transport) जैसे टैक्सी सर्विस, ऑटो-रिक्शों और साइकिल रिक्शों का औपचारिक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ होता है. इससे उनको ढूंढना मुश्किल हो जाता है. केंद्रीय मोटर वाहन कानून 1988 (Central Motor Vehicle Act 1988) और राज्यों में मोटर वाहन नियम होने के बावजूद अंतर सार्वजनिक परिवहन के मार्गों, किराया, वाहन की स्थिति और टेक्नोलॉजी सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए कोई संस्था नहीं है. सुरक्षा और प्रभावी नज़र (tracking) रखने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि एक नियामक प्राधिकरण बने, जो आईपीटी सेवाओं के अंदर एकरूपता सुनिश्चित करे.
आंकड़ों को अलग-अलग करना ज़रूरी है, जिससे कि एक खास परिवहन के साधन को कितने फ़ीसदी पुरुष और महिला इस्तेमाल करते हैं, इसका आकलन किया जा सके.
आमतौर पर, लैंगिक आधार पर अलग-अलग आंकड़ों की कमी के कारण यात्रा पैटर्न में लैंगिक अंतर पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है. आंकड़ों को अलग-अलग करना ज़रूरी है, जिससे कि एक खास परिवहन के साधन को कितने फ़ीसदी पुरुष और महिला इस्तेमाल करते हैं, इसका आकलन किया जा सके. लैंगिक आधार पर अधिक से अधिक अलग किए गए आंकड़ों से महिलाओं के यात्रा पैटर्न और उनकी ज़रूरतों को समझने में मदद मिल सकती है. इससे महिलाओं द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले मार्गों की पहचान, सुरक्षा में कमी के कारण और परिवहन के साधनों के आसपास सुविधाओं की उपलब्धता को भी समझा जा सकता है.
बेहतर गतिशीलता से न केवल महिलाओं के लिए आर्थिक और सामाजिक अवसर बढ़ते हैं, बल्कि यह शहरी भीड़भाड़ और पर्यावरण के नुकसान को रोकने में भी अहम भूमिका निभाती है. सुरक्षित परिवहन तक सीमित पहुंच के कारण श्रम बाज़ार में भागीदारी के संदर्भ में महिलाओं के छिपे हुए अवरोध बढ़ सकते हैं. इसके साथ-साथ अन्य सेवाओं (जैसे- शिक्षा या स्वास्थ्य खासकर महामारी के दौरान) तक उनकी पहुंच पर भी नकारात्मक असर हो सकता है.
इस प्रकार, सार्वजनिक जगहों में महिलाओं की उपस्थिति उनके शहर के अधिकार और समावेशी शहरी विकास के लिए एक ज़रूरी आवश्यकता है.
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