Author : Ramanath Jha

Expert Speak Urban Futures
Published on Apr 15, 2025 Updated 0 Hours ago

एक लंबे समय के बाद अब वह केवल अधिक संसाधन जुटाने की राह ख़ोज रही है, बल्कि वह राज्य सरकार से अपने हिस्से की अतिरिक्त राशि मांगते हुए बकाया राशि को जारी करने की भी मांग कर रही है.

मुंबई महापालिका बजट में खतरे की घंटी!

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बृहन्मुंबई महानगर पालिका के प्रशासक ने 3 फरवरी 2025 को वित्त वर्ष 2025-26 के लिए निगम का वार्षिक बजट जारी किया. 744.27 बिलियन रुपए का यह बजट 2024-25 के बजट की तुलना में 20 प्रतिशत ज़्यादा है. बजट में बुनियादी ढांचे के कोई नए या मुख़्य काम को शुरू करने का उल्लेख नहीं है. हालांकि पहले से ही मंजूर बड़ी परियोजनाएं या फिर चल रही परियोजनाओं को जारी रखने के लिए भारी मात्रा में पैसा ख़र्च करना पड़ेगा. अतः स्थानीय प्रशासन ने संसाधनों का और अधिक बंटवारा करने की बजाय उनका विवेकपूर्ण उपयोग करते हुए पुराने कार्य को ही पूरा करने पर जोर देते हुए समझदारी का परिचय दिया है.

इस बजट में किसी नए कर की घोषणा नहीं की गई है. ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि BMC के चुनाव इसी वर्ष होंगे. परंपरागत रूप से यह देखा गया है कि सरकारें कर वृद्धि की पृष्ठभूमि में चुनाव नहीं लड़ा करती हैं या चुनाव लड़ना पसंद नहीं करती हैं.

महापालिका बजट

महापालिका के बजट में पूंजीगत निवेश के लिए 431.62 बिलियन रुपए या कुल बजट के 58 फ़ीसदी राशि का प्रावधान दिखाई देता है. इसका उपयोग मुख़्यतः शहर में नई संपत्तियों के निर्माण पर किया जाना है. दूसरी ओर राजस्व ख़र्च में वेतन, पेंशन समेत अन्य संस्थागत ख़र्च शामिल हैं. इसके लिए 312.04 बिलियन रुपए या कुल बजट की 41.52 फ़ीसदी राशि का प्रावधान किया गया है. BMC का राजस्व बजट हमेशा से ही काफ़ी बढ़ा हुआ था और अब इसे काबू में लाने की कोशिश होती देखकर अच्छा लगता है.

BMC का राजस्व बजट हमेशा से ही काफ़ी बढ़ा हुआ था और अब इसे काबू में लाने की कोशिश होती देखकर अच्छा लगता है.

लेकिन साल जैसे-जैसे आगे बढ़ेगा वैसे-वैसे राजस्व ख़र्च के बर्ताव पर पहनी नज़र रखना भी ज़रूरी होगा. यहां बुनियादी ढांचे के रखरखाव का उल्लेख किया जाना भी आवश्यक है. परंपरागत रूप से म्युनिसिपल इंफ्रास्ट्रक्चर मैनुएल्स में मेंटेनेंस शेड्यूल दिया जाता है जिस पर पूर्व निर्धारित समयावधि के हिसाब से अमल करना होता है. लेकिन नगरपालिका कर्मियों की ओर से होने वाली चूक की वजह से पूर्व में बुनियादी ढांचे की विफ़लता के अनेक मामले देखे गए हैं, जिसमें जनहानि भी हुई है. ऐसे में यह उम्मीद की जा रही है कि राजस्व बजट में बुनियादी ढांचे के रखरखाव के लिए पर्याप्त राशि का प्रावधान किया गया होगा. कुछ बुनियादी सुविधाओं को नियमित रखरखाव की ज़रूरत होती है जबकि कुछ को उनकी उम्र बढ़ने के बाद भारी या बड़े रखरखाव की आवश्यकता होती है. बुनियादी ढांचे के वार्षिक निरीक्षण और उन्हें बेहतर स्थिति में रखने के लिए राशि का प्रावधान उतना ही आवश्यक है जितना आवश्यक नई बुनियादी सुविधाओं संबंधी संपत्तियों के निर्माण पर पैसा ख़र्च करना होता है.

दुर्भाग्यवश देश की अर्बन लोकल बॉडीज (ULB ) यानी शहरी स्थानीय निकाय, संसाधनों को लेकर काफ़ी संघर्ष करती हैं. यह बात GST की ओर से इन संस्थाओं के राजस्व संबंधी सभी रास्तों पर कब्ज़ा करने के बाद और भी सटीकता से लागू होती है. BMC की स्थिति और भी गंभीर है. इसका कारण यह है कि BMC पर अनेक विशाल परियोजनाओं का काम डाल दिया गया है, जो BMC की पूर्व में मजबूत रही वित्तीय स्थिति पर दबाव में डालने का काम कर रही है. बजट में पहले से चल रही परियोजनाओं पर होने वाले कुल बिल यानी ख़र्च के रूप में 2.32 ट्रिलियन रुपए दर्शाए गए हैं. इस राशि को कमिटेड लायबिलिटी अर्थात प्रतिबद्ध देय राशि के रूप में दिखाया गया है. इस राशि में से 882.51 बिलियन रुपए केवल सड़क और पुलों के लिए ही रखे गए हैं. चूंकि वार्षिक बजटीय प्रावधान से यह बोझ नहीं उठाया जा सकता अतः BMC को अपने भारी भरकम रिजर्व यानी जमा राशि को हाथ लगाना होगा. 817.74 बिलियन रुपए की इस जमा राशि के एक बड़े हिस्से को कमिटेड लायबिलिटी और वर्तमान में जारी निर्माण कार्य पर ही ख़र्च करने की नौबत गई है. ऐसे में यह साफ़ है कि महानगरपालिका के पास मौजूद जमा निधि का खजाना तेजी से खाली होता जा रहा है और यह भविष्य में बहुत ज़्यादा सहायता करने की स्थिति में नहीं होगा. चूंकि हम अनिश्चितता के दौर में रह रहे हैं जहां अचानक आने वाला संकट शहर के सुचारू संचालन में व्यवधान डालता है. ऐसी स्थिति में स्थानीय निकाय के पास जमा निधि ही ऐसे संकट को पार करने में उसकी सहायता करती है. लेकिन भविष्य में उसे जमा निधि से सहायता मिलने की संभावना कम ही दिखाई देती है.

 

बड़ी परियोजनाओं के इस अत्यधिक बोझ को लेकर पड़ने वाला दबाव नगर पालिका के बजट में स्पष्ट दिखता है. इसी वजह से बजट का पहला स्टेटेड ऑब्जेक्टिव यानी लिखित उद्देश्य फिस्कल डिसिप्लिन अर्थात वित्तीय अनुशासन और सस्टेनेबिलिटी यानी वहनीयता है. इसके तहत दो लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं. पहला है रेवेन्यू ऑग्मेंटेशन यानी राजस्व वृद्धि हासिल करना और एक्सपेंडिचर रेशनलाइजेशन यानी व्यय युक्तिकरण अर्थात सोच-समझकर ख़र्च करनानिश्चित रूप से महापालिका प्रशासन चिंतित है और वह सिविक मशीनरी यानी नगरीय व्यवस्था को अपनी कमर कसने के लिए तैयार होने को कह रहा है. राजस्व वृद्धि करने के लिए नगरपालिका प्रशासन आय अर्जित करने या संसाधन जुटाने के नए स्रोत ख़ोज रहा है. इसकी शुरुआत करते हुए BMC ने राज्य सरकार को गुजारिश की है कि वह महापालिका की ओर से एकत्रित किए गए प्रीमियम में राज्य सरकार की हिस्सेदारी के प्रतिशत को कम करें, ताकि स्थानीय निकाय को प्रीमियम में ज़्यादा हिस्सेदारी मिल सके. यदि राज्य सरकार ने उसकी यह गुजारिश मान ली तो 2025- 26 के दौरान ही उसे 3 बिलियन रुपए की अतिरिक्त आय होगी. BMC ने वेकेंट लैंड टेनेंसी (VLT) यानी खाली भूमि किरायेदारी नीति भी जारी की है. इसके तहत वह उसके पास उपलब्ध खाली भूमि को दीर्घावधि की लीज पर दे सकेगा. इसके चलते BMC को 20 बिलियन रुपए मिल सकेंगे. BMC इस बात पर भी विचार कर रही है कि क्या वह सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (SWM) यूजर चार्ज लगा सकता है. ऐसा करने के लिए वह 2006 के सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट सैनिटेशन बायलॉज यानी अधिनियम में संशोधन करना चाहता है. उसका मानना है कि ऐसा हुआ तो वेस्ट मैनेजमेंट को इंडिपेंडेंट सस्टेनेबल यानी स्वतंत्रता के साथ वहनीय किया जा सकेगा.

BMC ने कहा है कि वह स्लम्स यानी झोपड़पट्टी में आने वाले 50,000 के आसपास कमर्शियल यूनिट्स पर संपत्ति कर लगाना चाहती है. यह एक साहसिक नवाचार है और इसके चलते ULB को 3.5 बिलियन रुपए मिल सकेंगे. इसके अलावा वेस्टर्न एक्सप्रेस हाईवे से जुड़े दहिसरचेक नाकेपर एक ट्रांसपोर्टेशन और कमर्शियल हब बनाने का प्रस्ताव है. इससे भी अतिरिक्त आय हासिल हो सकेगी. इसके अलावा BMC की वरली और क्रॉफोर्ड मार्केट जैसे इलाकों में अंडर यूटिलाइज्ड प्लॉट्स यानी कम उपयोग में आने वाले प्लॉट्स की नीलामी करने की भी योजना है. BMC की मनोरंजन कर वसूलने में तेजी लाने, अपनी विज्ञापन नीति को अंतिम रूप देने तथा ट्रेड लाइसेंस फ़ीस में वृद्धि करने की भी योजना है. संसाधनों को बढ़ाना भी आय अर्जित करने का एक महत्वपूर्ण कदम है. इसके अलावा बेहतर दिनों में शुरू किए गए गैर ज़रूरी ख़र्च में कटौती करके भी पैसा अर्जित किया जा सकता है. BMC अब इस दिशा में आगे बढ़ना चाहती है. ऐसा करने के लिए वह ख़र्च में युक्तिकरण की नीति लागू करने की इच्छुक है. इस नीति के तहत वह आस्थापना ख़र्च को न्यूनतम करने, कार्यबल की कुशलता बढ़ाने, 10 प्रतिशत ऊर्जा संरक्षण और प्वाइंट ऑफ यूटिलिटी यानी उपयोगिता के हिसाब से कार्य का चयन करना चाहती है.

शहर में क्वॉलिटी ऑफ लाइफ यानी जिंदगी की गुणवत्ता मुख़्यत: विकास योजना के अमल पर ही निर्भर है. इस बात की संभावना है कि व्यक्तिगत तौर पर विभागों के लिए किए गए प्रावधान के तहत विकास योजना पर होने वाला ख़र्च शामिल किया गया होगा.

BMC देश में सबसे ज़्यादा संख्या में सेवाएं मुहैया करवाती है. इसमें शिक्षा एवं स्वास्थ्य का महत्वपूर्ण सामाजिक बुनियादी ढांचा भी शामिल है. यह BMC की सेवाओं में सबसे अहम क्षेत्र है. इनके लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था की गई है. BMC को कुछ अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों का प्रभावी ढंग से प्रबंधन करने की आवश्यकता है. इसमें शहर की हवा, सॉलिड वेस्ट एंड सैनिटेशन मैनेजमेंट, ओपन स्पेसेस्और बगीचे, बाढ़ शमन एवं आपदा मुस्तैदी विशेषत: बाढ़ प्रबंधन का समावेश है. इन सभी के लिए संसाधन उपलब्ध करवाए गए है. यह बात विशेष रूप से संशोधित BRIMSTOWAD (बृहन्मुंबई स्टॉर्म वॉटर डिस्पोजल सिस्टम) मास्टर प्लान के तहत स्टॉर्म वॉटर ड्रेंस यानी बरसाती पानी निकास नाली में की गई वृद्धि से साबित होती है. BRIMSTOWAD मास्टर प्लान में नई नालियों का निर्माण, पुरानी नालियों का विस्तार, होल्डिंग पॉन्ड्स यानी पानी को जमा करने के तालाब और नालों की संख्या में विस्तार के साथ मीठी नदी का समावेश है

BMC सबसे पुरानी बस सेवा BEST का भी संचालन करती है. इस अंडरटेकिंग यानी उपक्रम के लिए 10 बिलियन रुपए दिए गए हैं. इस राशि से वह बसों के अपने काफिले में नई बसों को जोड़ने के साथ ही 2,000 इलेक्ट्रिक बस भी शामिल करेगा. मुंबई के पास दशकों से एक मजबूत जलापूर्ति व्यवस्था है. वह इसे इसी तरह मजबूत बनाए रखना चाहता है. इसी वजह से शहर के जलापूर्ति एवं सीवरेज विभाग को उन्नतिकरण के लिए 134.23 बिलियन रुपए की एक भारी-भरकम राशि दी गई है.

आश्चर्यजनक रूप से शहर के डेवलपमेंट प्लान यानी विकास योजना (DP 2034) को लागू करने के लिए अलग से राशि का प्रावधान नहीं किया गया है. शहर में क्वॉलिटी ऑफ लाइफ यानी जिंदगी की गुणवत्ता मुख़्यत: विकास योजना के अमल पर ही निर्भर है. इस बात की संभावना है कि व्यक्तिगत तौर पर विभागों के लिए किए गए प्रावधान के तहत विकास योजना पर होने वाला ख़र्च शामिल किया गया होगा. लेकिन बजट में DP के लिए अलग से हेड अर्थात मद बनाने को लेकर की गई सिफ़ारिश की उपेक्षा की गई है. DP में यह सिफ़ारिश की गई थी कि DP के लिए अलग से मद बनाकर उसके लिए किए गए प्रावधान को इसमें दर्शाया जाए.

निष्कर्ष

कुल मिलाकर मौजूदा स्थितियों को देखते हुए बजट में बेहतर करने का एक ईमानदार प्रयास किया गया है. लेकिन यह भी साफ़ है कि जिस ULB को देश की सबसे धनाढ्य यानी संपन्न महापालिका के रूप में पहचाना जाता था वह अब अपने सामर्थ्य से अधिक काम लेने की वजह से मुश्किल में दिखाई दे रही है. एक लंबे समय के बाद अब वह केवल अधिक संसाधन जुटाने की राह ख़ोज रही है, बल्कि वह राज्य सरकार से अपने हिस्से की अतिरिक्त राशि मांगते हुए बकाया राशि को जारी करने की भी मांग कर रही है. यह ऐसे वक़्त में हुआ है जब निर्वाचित स्थानीय निकाय अस्तित्व में नहीं है और महापालिका पर इस वक़्त सीधे राज्य सरकार का ही नियंत्रण है. वर्तमान स्थिति में सावधानी बरतना आवश्यक है. इस स्थिति में बेकार के ख़र्च से बचने की कोशिश होनी चाहिए.

निश्चित रूप से देश की अग्रणी ULB पर 2024 में हुए राष्ट्रीय और उसके बाद हुए नवंबर में हुए विधानसभा चुनाव का असर पड़ा है. इसी तरह वह अपने आसन्न चुनावों का दबाव भी झेल रही है. इन सारे दबावों के बावजूद मौजूदा स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि लोगों को आकर्षित करने वाले बुनियादी कार्यों की घोषणा करने की होड़ के कारण शहर के वित्तीय स्वास्थ्य पर विपरीत परिणाम पड़े. ऐसा हुआ तो एक वक़्त आएगा जब BMC के वित्तीय संसाधनों पर इतना बोझ बढ़ेगा कि वह टूटने की कगार पर पहुंच जाएगी. ऐसा हुआ तो यह घोर त्रासदी होगी.


रामनाथ झा, ऑबर्ज्वर रिसर्च फाउंडेशन में विशिष्ट फेलो हैं.

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