ये लेख ‘समान’ लेकिन ‘विभिन्न’ उत्तरदायित्व निभाने का लक्ष्य: COP27 ने दिखाई दिशा! श्रृंखला का हिस्सा है.
डब्ल्यूएमओ प्रोविजनल स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट 2022 रिपोर्ट जारी करने के साथ शर्म अल-शेख (Sharm el-Sheikh) में सीओपी 27 (COP27) की एक गंभीर शुरुआत हुई है. हालांकि इसके निष्कर्ष परेशान करने वाले हैं. साल 2022 में वैश्विक औसत तापमान औद्योगिकीकरण से पहले (1850-1900) के औसत के मुक़ाबले 1.15 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज़ की गई है और 2015-22 में आठ साल के दौरान रिकॉर्ड स्तर पर गर्म रहने की संभावना है. पिछले ढाई दशक में अकेले समुद्र तल में 10 फ़ीसदी की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है क्योंकि लगभग 30 साल पहले सैटेलाइट (satellite) से इसे मापने की प्रक्रिया शुरू हो पाई थी. इसके अलावा, कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी वायुमंडलीय ग्रीनहाउस गैसें (greenhouse gases) अब रिकॉर्ड स्तर पर हैं.
कार्बन के नेट जीरो एमिशन तक पहुंचने की कोशिश इससे पहले कभी भी अधिक नहीं रही है.मिस्र के कॉप 27 की अध्यक्षता ने शिखर सम्मेलन के प्रमुख लक्ष्यों को शमन, अनुकूलन, वित्त और सहयोग के रूप में परिभाषित किया है.
कार्बन के नेट जीरो एमिशन तक पहुंचने की कोशिश इससे पहले कभी भी अधिक नहीं रही है.मिस्र के कॉप 27 की अध्यक्षता ने शिखर सम्मेलन के प्रमुख लक्ष्यों को शमन, अनुकूलन, वित्त और सहयोग के रूप में परिभाषित किया है. तकनीकी समाधानों को पहले और दूसरे लक्ष्यों को रेखांकित करने और तीसरे और चौथे लक्ष्य से पैदा करने की ज़रूरत है. दरअसल, कॉप 27 स्वच्छ टेक्नोलॉजी और इनोवेशन के वादे को अपने मुख्य फोकस के तहत सूचीबद्ध करता है, जो ग्लासगो क्लाइमेट समझौते (2021) के बाद इसकी निरंतरता को सुनिश्चित करता है, जिसमें ‘प्रौद्योगिकी विकास और शमन और अनुकूलन कार्रवाई के कार्यान्वयन के लिए हस्तांतरण पर जोर दिया गया था, जिसमें तेजी लाने, प्रोत्साहित करने और इनोवेशन को बढ़ावा देना भी शामिल है. इससे आगे, क्लीनटेक और ग्रीन टेक को विकसित करने और मुख्यधारा में लाने की कोशिशों को बढ़ावा दिया जाना चाहिएऔर ‘सहयोगी कार्रवाई’की अवधारणा को जोर-शोर से बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
भारत : क्लीनटेक को अपनाना
कॉप 26 में भारत ने ख़ुद के लिए बेहद महत्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं. प्रधानमंत्री मोदी के ऐतिहासिक पांच सूत्री एज़ेंडा या ‘पंचामृत’ (पांच अमृत) में 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो पर लाना शामिल है; 500 गीगावाट गैर-जीवाश्म बिजली क्षमता को हासिल करना; रिन्युएबल उर्जा स्त्रोतों से 50 फ़ीसदी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना; 1 बिलियन टन उत्सर्जन कम करना; और 2030 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 45 प्रतिशत तक कम करना शामिल है.सबसे ज़ल्द, भारत सरकार का लक्ष्य 2022 तक 175 गीगावाट (जीडब्ल्यू) रिन्युएबल एनर्जी (आरई) क्षमता को स्थापित करना है, जिसमें क्लीन टेक्नोलॉजी का रणनीतिक उपयोग भी शामिल है.
क्लीनटेक वैसे उत्पादों या सेवाओं की कड़ी को संदर्भित करता है जो अलग-अलग उत्पाद के नुकसानदेह वातावारणीय असर को कम करता है या ऊर्जा दक्षता में सुधार करके, संसाधनों का निरंतर उपयोग करके, और उत्सर्जन और अपशिष्ट पदार्थों को नष्ट या शुद्ध करके इसे कम करता है. इसलिएआरई, इलेक्ट्रिक वाहनों, ग्रीन कंस्ट्रक्शन, लाइटिंग और अन्य डोमेन के उत्पादन के संबंध में प्रौद्योगिकियों के व्यापक स्पेक्ट्रम को शामिल कर सकता है.
कॉप 26 में भारत ने ख़ुद के लिए बेहद महत्वाकांक्षी क्लाइमेट एक्शन के लिए लक्ष्य निर्धारित किए हैं. प्रधानमंत्री मोदी के ऐतिहासिक पांच सूत्री एज़ेंडा या ‘पंचामृत’ (पांच अमृत) में 2070 तक कार्बन उत्सर्जन को नेट जीरो पर लाना शामिल है.
क्लीनटेक के लिए भारत का जोर बहुत स्पष्ट है. भारतीय आरई क्षेत्र वर्तमान में दुनिया का चौथा सबसे आकर्षक आरई बाज़ार है, जो पवन ऊर्जा के मामले में चौथे स्थान पर है, सौर ऊर्जा में पांचवां और रिन्युएबल ऊर्जा की समग्र स्थापित क्षमता के लिए चौथा है. 2021 के एक अध्ययन के अनुसारभारत के आरई क्षेत्र में अधिग्रहण का कुल वैल्यू 300 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया, जो 2020 में 1.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से कम के वैल्यू से 2021 के पहले 10 महीनों में 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच गया था.
भारत के क्लीनटेक इकोसिस्टम के विकास को प्रोत्साहित करने और आगे बढ़ाने के लिए सक्रिय उपाय किए जा रहे हैं. इनमें स्टार्टअप्स के लिए छूट, ऑटोमेटिक रूट के तहत 100 प्रतिशत तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के लिए परमिटऔर विशेष इन्क्यूबेटर्स और प्रोजेक्ट डेवलपमेंट सेल की स्थापना शामिल है, जिससे क्लीनटेक स्टार्टअप्स और इनोवेशन में तेजी आई है. इसके अलावा, आरई उत्पादन के प्रयास तेजी से आर्थिक तौर पर व्यवहार्य होते जा रहे हैं, बड़ी संख्या में क्लीनटेक स्टार्टअप उद्यम पूंजी जुटाने में सक्षम होने के साथ निवेशक और परोपकारी हितों में भी साफ तौर पर बढ़ोतरी देखी गई है. उदाहरण के लिए, अकेले अक्टूबर 2022 में, हायजेंको – एक स्टार्टअप जो ‘ग्रीन-हाइड्रोजन और ग्रीन-अमोनिया-सक्षम उद्योग के लिए समाधान प्रदान करता है’ – ने लगभग 25 मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए; और सोलर स्क्वायर एक बिजनेस-टू-कंज्यूमर रूफटॉप सोलर स्टार्टअप ने लगभग 12.5 मिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए.
इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) क्षेत्र का विकास करना और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में परिवर्तन को बढ़ावा देना कॉर्बन उत्सर्जन के ख़िलाफ़ जंग में तकनीक का लाभ उठाने के भारत के प्रयासों का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है. नेशनल इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन प्लान (एनईएमएमपी) 2020 का उद्देश्य हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहन (एक्सईवी) प्रौद्योगिकियों के लिए अनुसंधान और विकास (आरएंडडी) ; देश के एक्सईवी मैन्युफैक्चरिंग, सपोर्ट एंड ऑपरेशन इकोसिस्टम को मज़बूत करना; एक्सईवी के लिए मांग पैदा करना; और नागरिकों को एक्सईवी के लाभों के बारे में शिक्षित करने को बढ़ावा देना है. इस प्रकार, भले भारत में ईवी को अपनाने की गति अब तक धीमी रही हैलेकिन जैसे-जैसे एनईएमएमपी को अपनाने की गति बढ़ती है, यह इस बात की ओर संकेत करता है कि स्थितियां बदल जाएंगीं. आरई क्षेत्र की तरह, ईवी उद्योग भी तेजी से निवेश और इनोवेशन की ओर टकटकी लगाए है – 2021 में इस क्षेत्र में लगभग 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया था, जो 2030 तक बढ़कर 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो सकता है. पूर्वानुमानों के अनुसार2026 तक भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग में ईवी का हिस्सा लगभग 40 प्रतिशत हो सकता है, जिससे 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 1-गीगाटन की कमी हासिल करने के देश के लक्ष्य को पूरा किया जा सकता है.
क्लीन टेक्नोलॉजी तेजी से अन्य स्थानों को भी आकार दे रही हैं. उदाहरण के लिए,भारतीय रेलवे साल 2030 तक दुनिया का सबसे बड़ा ‘ग्रीन रेलवे’ बनने के लिए जी जान से कोशिश कर रहा है. इस उद्देश्य के लिए भारतीय रेलवे ने कई पहल किए हैं जिसमें अपने पूरे नेटवर्क का विद्युतीकरण करना, अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सौर और पवन ऊर्जा का इस्तेमाल करने के साथ ही रेलवे कोच में बायो टॉयलट (जैव-शौचालयों) को फिट करना शामिल है. इतना ही नहीं देश में बड़े स्तर पर चलाए जा रहे एलईडी बल्ब अभियान से प्रति वर्ष 40 मिलियन टन कार्बन उत्सर्जन कम हो रहा हैऔर भारत के सर्टिफायड बिल्ट एन्वायरमेंट (प्रमाणित निर्मित पर्यावरण) के हालिया विश्लेषण से पता चलता है कि ग्रीन बिल्डिंग की ओर तेजी आई है – 2017-21 के दौरान पिछले पांच वर्षों (2012-16) के मुक़ाबले ग्रीन सर्टिफायड बिल्डिंग्स की आपूर्ति में 37 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है.
क्लाइमेट एक्शन को उत्प्रेरित करने में क्लीनटेक की क्षमता को प्रदर्शित कर और टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन [[i]]के इर्द गिर्द अंतरराष्ट्रीय साझेदारी जोड़कर भारत कॉप के एज़ेंडे को आगे बढ़ा रहा है. भारत के क्लाइमेट एक्शन ना केवल कॉप 27 बल्कि आगामी जी 20 की अध्यक्षता के दौरान भी ध्यान का एक बिंदु होगी. भारत की महत्वाकांक्षी हरित प्रतिबद्धताएं ख़ास तौर पर असाधारण हैं क्योंकि इसका वार्षिक प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट 2 टन से काफी नीचे है – जो कि चीन का लगभग एक चौथाई, संयुक्त राज्य अमेरिका का आठवां हिस्सा और वैश्विक औसत के एक-तिहाई से भी कम है.यह भारत को नैतिक नेतृत्व की एक शानदार स्थिति में रखता है क्योंकि यह ग्लोबल साउथ के लिए क्लाइमेट जस्टिस की भी वज़ह है.
भारत के क्लाइमेट एक्शन ना केवल कॉप 27 बल्कि आगामी जी 20 की अध्यक्षता के दौरान भी ध्यान का एक बिंदु होगी. भारत की महत्वाकांक्षी हरित प्रतिबद्धताएं ख़ास तौर पर असाधारण हैं क्योंकि इसका वार्षिक प्रति व्यक्ति कार्बन फुटप्रिंट 2 टन से काफी नीचे है.
जैसा कि भारत प्रधानमंत्री मोदी द्वारा रेखांकित पंचामृत की दिशा में तेजी से काम कर रहा है, यह महत्वपूर्ण है कि टेक्नोलॉजी आर एंड डी में सरकार के रणनीतिक निवेश को बढ़ावा दिया जाए; अनुसंधान एवं विकास (R&D) को क्लाइमेट एक्शन (जलवायु कार्रवाई) के क्षेत्रों के साथ मिलाने के लिए केंद्रित प्रयास किए जाएं, जहांवैज्ञानिक सफलताओं की सबसे अधिक आवश्यकता होती है; और निजी क्षेत्र को तकनीकी चुनौतियों की पहचान करने, नई प्रौद्योगिकियों के प्रोटोटाइप बनाने, मार्केट इनसाइट प्रदान करने, तकनीकी परियोजनाओं में सह-निवेश करने और अंततः प्रौद्योगिकी के व्यावसायीकरण में मदद करने के लिए एक आवश्यक भागीदार के रूप में बोर्ड के तहत शामिल किया जाए.
इसके साथ ही, इनोवेशन की मांग को भी तेज करने की आवश्यकता है. भारत की केंद्र और राज्य सरकारें ग्रीन प्रोडक्ट्स को ख़रीदने, आपूर्तिकर्ताओं के बीच निश्चितता पैदा करने, लागत और जोख़िम कम करने और बाज़ार में अधिक उभरती प्रौद्योगिकियों को चलाने के लिए प्राथमिकता और बढ़ावा दे सकती हैं. क्लीनटेक कंपनियों को और प्रोत्साहन दिया जाना चाहिएऔर इसके भौतिक बुनियादी ढ़ांचे के निर्माण में मदद करके भी इसे समर्थन दिया जा सकता है – जिसमें पाइपलाइन, ट्रांसमिशन लाइन और ईवी के लिए चार्जिंग प्वाइंट शामिल हैं – जो बाज़ार में नई तकनीक प्रदान कर सकते हैं.
अंत में, जैसा कि बिल गेट्स बताते हैं, ‘बाज़ार, तकनीक और नीति तीन लीवर की तरह होते हैं जिन्हें हमें जीवाश्म ईंधन से ख़ुद को दूर करने के लिए खींचने की ज़रूरत है. इतना ही नहीं, हमें इन तीनों को एक ही समय और एक ही दिशा में खींचने की ज़रूरत है.’ [[ii]] भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इसकी जलवायु नीतियां और प्रौद्योगिकियां एक दूसरे के पूरक, सहजीवी और पारस्परिक रूप से मज़बूत हैं, और यह कि प्रौद्योगिकी के लिए बाज़ार अनुकूल होंऔर टेक्नोलॉजी के लिए बाज़ार का इस तरह निर्माण किया जाए जिसमें इनोवेशन को बढ़ावा मिल सकेऔर तकनीकी निवेशकों और आपूर्तिकर्ताओं के बीच विश्वास पैदा हो सके जो इसे अपनाने के लिए प्रेरित हो सकें.
[i]For instance, India and France jointly launched the International Solar Alliance (ISA) at the COP21 in 2015. Heads of around 120 nations affirmed their participation in the Alliance to help promote solar energy. More recently, at the COP26 in 2021, India and the UK announced the launch of the One Sun One World One Grid programme under the aegis of the ISA, to develop a worldwide green grid through which clean energy could be transmitted anywhere, anytime.
[ii]Bill Gates, How to Avoid a Climate Disaster: The Solutions We Have and the Breakthroughs We Need (London: Allen Lane, 2021)
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