Published on Mar 02, 2024 Updated 0 Hours ago
बिजली बाज़ारों का एकीकरण करने में भारत की कोशिशों में कितना दम?

भारत ने साल 2030 तक 500 गीगावॉट गैर जीवाश्म ऊर्जा के उत्पादन का लक्ष्य रखा है. इसके लिए ऊर्जा क्षेत्र को उसके मुताबिक विकसित करना होगा. बिजली ग्रिड का मौजूदा ढांचा बहुत जटिल है. अगर ऊर्जा के क्षेत्र में एकीकरण और क्षेत्रीय सहयोग का फायदा लेना है तो वो इस बात पर निर्भर करता है कि नियामक संस्थाएं कैसे काम करती हैं. ग्रिड कैसे विकसित किया जाता है. फिलहाल भूटान, बांग्लादेश, भारत और नेपाल के बीच सत्ताइस जगह ऐसी हैं, जहां बिजली के तार एक-दूसरे देशों में जाते हैं. नेपाल तो अपने यहां पनबिजली परियोजनाओं में भारत को प्रवेश देने को तैयार है.

एकीकृत बिजली बाज़ार. भारत का मुख्य ज़ोर बिजली के एकीकृत आदान-प्रदान पर है. अगर इसे लेकर दुनियाभर में लोकप्रिय व्यवस्था को देखें तो ये कहा जा सकता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न बिजली बाज़ारों को आपस में जोड़ना जरूरी है.


ऊर्जा क्षेत्र में व्यापार को लेकर तीन मुख्य चुनौतियां हैं. पहली- किराए में बिजली का उत्पादन. दूसरा- बिजली खरीद के द्विपक्षीय समझौते. तीसरा- एकीकृत बिजली बाज़ार. भारत का मुख्य ज़ोर बिजली के एकीकृत आदान-प्रदान पर है. अगर इसे लेकर दुनियाभर में लोकप्रिय व्यवस्था को देखें तो ये कहा जा सकता है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए विभिन्न बिजली बाज़ारों को आपस में जोड़ना जरूरी है.

 भारत में क्या स्थिति है?


केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग (CERC) और ऊर्जा मंत्रालय की कोशिश है कि बिजली बाज़ार मजबूत हों. बिजली की संचारण प्रणाली में सुधार हो और वितरण कंपनियों की बिजली खरीद की लागत बेहतर हो. शेयर बाज़ार की ही तर्ज़ पर विद्युत आयोग ने बिजली बाज़ार की भी स्थापना की है. यहां से वितरण कंपनियां सही कीमत पर बिजली खरीद और बेच सकती हैं. भारत में फिलहाल 47 अन्तर्राज्यीय व्यापार लाइसेंस दिए गए हैं, जबकि तीन बिजली बाज़ार हैं. इनमें इंडियन एनर्जी एक्सचेंज लिमिटेड (IEX), पावर एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (PXI) और हिंदुस्तान पावर एक्सचेंज लिमिटेड (HPX) शामिल हैं.

 
आईईएक्स और पीएक्सआई के कारोबार का तरीका ऐसा है कि वो उत्पादन लागत के हिसाब से ही कीमत तय करती हैं. तीनों कंपनियों में सबसे अहम इंडियन एनर्जी एक्सचेंज लिमिटेड है. बिजली बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी 99 प्रतिशत है. ये बिजली समझौतों के लिए स्वचालित मंच मुहैया करता है. यहां से आप रिन्यूएबल एनर्जी सर्टिफिकेट, एनर्जी सेविंग सर्टिफिकेट भी ले सकते हैं. सरकार को इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों को प्रोत्साहित करना चाहिए. हरित ऊर्जा के क्षेत्र में ग्रीन टर्म अहेड मार्केट (G-TAM) जैसे नए मंच को बढ़ावा देना ज़रूरी है. इसकी मदद से कंपनियां अपनी ज़रूरत के हिसाब से अल्पकाल के लिए भी रिन्यूएबल एनर्जी खरीद सकती हैं.

बिजली बाज़ार को मजबूत करने, संचारण प्रणाली को सुधारने और वितरण कंपनियों को उचित लागत पर बिजली देने के अलावा भारत की कोशिश है कि सीमा पार से भी बिजली का व्यापार बढ़े. इससे दूरदराज क्षेत्रों में मौजूद संसाधनों का अधिकतम इस्तेमाल तो होगा ही, साथ ही दूसरे देशों में उत्पादित हो रही रिन्यूएबल एनर्जी का एकीकरण किया जा सके.

मार्केट कपलिंग एक ऐसी ही प्रक्रिया है जहां सभी बिजली बाज़ारों को खरीद और बिक्री की एक जैसी कीमत की जानकारी मिलती है. सीईआरसी ने 2021 में इसकी शुरुआत की और अगस्त 2023 में उसने देश के अलग-अलग बिजली बाज़ारों पर इसके प्रभाव का मूल्यांकन किया.

 

मार्केट कपलिंग का आसियान और यूरोपीय देशों पर प्रभाव

लाओस, थाईलैंड और मलेशिया के बीच त्रिपक्षीय बिजली खरीद समझौते के बाद आसियान पावर ग्रिड की क्षमता 7.7 गीगावॉट से बढ़कर 26-30 गीगावॉट होने की उम्मीद है. सिंगापुर और फिलीपींस के बिजली बाज़ार काफी प्रतिस्पर्धी हैं, जबकि बाकी आसियान देशों में अभी एक ही कंपनी से खरीद वाली व्यवस्था चल रही है.

आसियान देशों ने ये दिखाया है कि अगर बिजली बाज़ारों को आपस में जोड़ा जाए तो पावर ग्रिड के एकीकरण और सीमा पार बिजली संचारण के विस्तार की व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है. अगर सरकारी और निजी कंपनियों के बीच दीर्घकालिक समझौते होते हैं तो बिजली के उत्पादन, एकीकरण और वितरण का विस्तार होना तय है.

अगस्त 2015 में इसे लेकर नियम बनाए गए. इनका मकसद बिजली उत्पादन, संचारण का काम करने वाली कंपनियों के लिए एक समान व्यवस्था बनाना और एकीकृत बिजली बाज़ार को बढ़ावा देना है. 

अगर हम इसकी तुलना यूरोप में हुई मार्केट कपलिंग से करें तो बेल्जियम, फ्रांस और नीदरलैंड में 2006 के बाद से इस दिशा में क्रांतिकारी काम हुआ है. यूरोप में नॉर्थ-वेस्टर्न यूरोप प्राइस कपलिंग, साउथ वेस्टर्न यूरोप प्राइस कपलिंग और क्षेत्रीय आधार पर प्राइस कपलिंग जैसी पहल की गई हैं. अगस्त 2015 में इसे लेकर नियम बनाए गए. इनका मकसद बिजली उत्पादन, संचारण का काम करने वाली कंपनियों के लिए एक समान व्यवस्था बनाना और एकीकृत बिजली बाज़ार को बढ़ावा देना है.

मार्केट कपलिंग से यूरोप के एक बड़े क्षेत्र में बिजली की मांग और पूर्ति में संतुलन पैदा हुआ है. ये माना जा रहा है कि यूरोप में बिजली बाज़ारों के एकीकरण से इस क्षेत्र के समाज कल्याण कोष में साल 2030 तक सालाना 16 अरब यूरो से 43 अरब यूरो की बढ़ोतरी हो सकती है.

 

वितरण कंपनियों पर क्या असर?

भारत में बिजली बाज़ारों में शामिल होना स्वैच्छिक है. इससे जुड़ी कंपनियों की बिजली उत्पादन हिस्सेदारी महज 7 फीसदी है जबकि लंबी अवधि के बिजली खरीद समझौतों की हिस्सेदारी 87 प्रतिशत है. इससे वितरण कंपनियों पर बोझ बढ़ता है. वितरण कंपनियां समझौते तो दीर्घकाल के हिसाब से करती हैं लेकिन बिजली वितरण का काम और कीमत का निर्धारण बाज़ार के अल्पकालीन व्यवहार के हिसाब से करती हैं. अगर इन वितरण कंपनियों को बिजली बाज़ारों की सुविधा मिले तो फिर वो मांग और पूर्ति के हिसाब से ही बिजली की खरीद-बिक्री करेंगे. जिस समय बिजली की मांग अधिक होगी, तब ज्यादा बिजली खरीदेंगी. मांग कम होने पर ज्यादा बिजली बेचेंगी.

दक्षिण एशिया में बिजली का ज्यादातर व्यापार मध्यम और दीर्घकालिक समझौतों के आधार पर है. भारत-भूटन और भारत-बांग्लादेश के बीच सरकारों के स्तर पर ही काम होता है. पनबिजली परियोजनाओं के विकास के लिए सरकारें या तो अनुदान देती हैं या फिर रियायती दरों पर ऋण मुहैया कराती हैं, लेकिन अब इस क्षेत्र में कई ऐसे नए समझौते हो रहे हैं, जहां साझा उपक्रम और प्रतियोगी नीलामी प्रक्रिया को शामिल किया जा रहा है. इनमें बिजली वितरण कंपनियां भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा रही हैं.

अगर भारत के बिजली बाज़ारों को विदेशी बाज़ारों से जोड़ दिया जाए तो फिर वितरण कंपनियां दक्षिण एशिया के दूसरे देशों में भी बिजली निर्यात कर सकती हैं. आईईएक्स के ज़रिए नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में भी बिजली का व्यापार किया जा सकता है. 

भारत की बिजली की आयात-निर्यात की नीति में इस बात का अधिकार दिया गया है कि आप बिजली बाज़ारों के जरिए व्यापार और त्रिपक्षीय समझौते कर सकते हैं. बांग्लादेश ने भारत के रास्ते नेपाल से 500 मेगावॉट बिजली आयात करने की योजना बनाई है. इसी तरह भूटान भी अपनी दोर्जलिंग परियोजना से 1,125 मेगावाट बिजली भारत के रास्ते बांग्लादेश को निर्यात करना चाहता है.

अगर भारत के बिजली बाज़ारों को विदेशी बाज़ारों से जोड़ दिया जाए तो फिर वितरण कंपनियां दक्षिण एशिया के दूसरे देशों में भी बिजली निर्यात कर सकती हैं. आईईएक्स के ज़रिए नेपाल, भूटान और बांग्लादेश में भी बिजली का व्यापार किया जा सकता है. हालांकि इस समझौते के तहत वितरण कंपनियां दक्षिण एशिया के देशों में अपने व्यापार का विस्तार कर सकती हैं लेकिन इससे दक्षिण एशिया का एक साझा बिजली बाज़ार नहीं बनता. इसके जो नियम-कायदे हैं वो घरेलू बिजली बाज़ारों में ही लागू होते हैं, जिसकी वजह से इनका फायदा पूरे दक्षिण एशिया को नहीं मिलता.

 

भारत की मार्केट कपलिंग परिकल्पना का मूल्यांकन

सीईआरसी ने इसकी शुरुआत तीन उद्देशयों के लिए की थी. पहला- बिजली बाज़ार में एक समान कीमत की जानकारी देना. दूसरा- बिजली संचारण व्यवस्था का अधिकतम उपयोग. तीसरा- बिजली की खरीद-बिक्री की प्रक्रिया में पारदर्शिता लाना, सभी खरीदारों को एक साथ लाकर अधिकतम आर्थिक बचत करना.

सीईआरसी का मानना है कि मार्केट कपलिंग से बिजली बाज़ार में लेन-देन आसान होगा. इसके साथ ही प्रतियोगिता बढ़ने से ये क्षेत्र और बेहतर होगा. हालांकि इससे कीमतों में बड़ी गिरावट रोकने में मदद मिल सकती है लेकिन बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों में न्यूनतम कीमत पर बोली लगाने की प्रतिस्पर्धा बढ़ने से निवेशकों के बीच गलत संकेत जा सकते हैं. वैसे एक हकीकत ये भी है कि बड़ा बाज़ार मिलने से बिजली उत्पादन करने वालों और ग्राहकों दोनों का ज़ोखिम कम होगा. एक जैसी कीमतों का पता लगने के बाद कंपनियां भविष्य में उसी हिसाब से नए उत्पाद ला पाएंगी. हालांकि इसे लेकर अब भी कई चुनौतियां बरकरार हैं.

 

चुनौतियां

 

बिजली बाज़ार में 90 फीसदी सौदे अब भी अनुबंध के हिसाब से होते हैं. 99 प्रतिशत व्यापार आईईएक्स के ज़रिए होता है. यही वजह है कि भारत में अभी मार्केट कपलिंग का खास फायदा नहीं दिख रहा है. अगर एक और कंपनी को इसमें जोड़ा जाएगा तो काम और जटिल हो जाएगा. एक केंद्रीकृत एल्गोरिद्म शायद अलग-अलग बिजली बाज़ारों के लिए बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाएगा, जिसकी वजह से इस क्षेत्र में काम कर रही कंपनियों की भागीदारी कम होगी. उनके कारोबार औऱ निवेश पर बुरा असर पड़ेगा. नई कंपनियां इस क्षेत्र में आने में संकोच करेंगी.

भारत में मार्केट कपलिंग के उद्देश्य तभी पूरे हो सकते हैं, जब वो बिजली प्रेषण की बाज़ार आधारित व्यवस्था (MBED) को चुने. इस प्रक्रिया में देश का पूरा बिजली उत्पादन बाज़ार आधारित होता है. भारत में अभी बिजली बाज़ारों की हिस्सेदारी सिर्फ 7 प्रतिशत है. इससे एक समान कीमत की जानकारी वाला उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा. वैश्विक तौर पर देखें तो मार्केट कपलिंग तभी सफल होती है, जब ये दो या ज्यादा देशों के बीच हो लेकिन भारत एक भी नए देश को इसमें नहीं जोड़ पाया है. भारतीय बिजली बाज़ार में ही जिस तरह आईईएक्स का एकाधिकार है, उसका भी इसमें विपरीत असर पड़ रहा है.

 

दक्षिण एशिया में बिजली व्यापार की संभावना : भारत के लिए कितना बड़ा मौका

एक अनुमान के मुताबिक साल 2030 तक दक्षिण एशिया में 411 अरब डॉलर की रिन्यूएबल एनर्जी उत्पादन की क्षमता है लेकिन ये सबसे कम एकीकृत बिजली बाज़ार वाला क्षेत्र है. यहां 350 गीगावॉट पनबिजली उत्पादन की क्षमता है लेकिन 18 प्रतिशत क्षमता का ही दोहन हो पाया है. इसी तरह यहां 939 गीगावॉट सौर ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है लेकिन 3.8 फीसदी का ही इस्तेमाल हुआ है. दक्षिण एशिया में 1,289 गीगावॉट पवन ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है लेकिन 3 प्रतिशत का ही दोहन किया जा सका है. लेकिन अब बिम्सटेक (BIMSTEC) जैसे समझौतों से कुछ उम्मीद बंधी है. ऊर्जा सहयोग को लेकर सार्क देशों में जो समझौता हुआ था, उससे बहुत कम फायदा हुआ. लेकिन चुनौतियां अब भी बाकी हैं. एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड जैसी पहल का मकसद रिन्यूएबल एनर्जी को बढ़ावा देना है. आदर्शवाद और व्यावहारिकता में संतुलन बनाकर ही इस उद्देश्य को हासिल किया जा सकता है. क्षेत्रीय बिजली बाज़ारों, बिजली संचारण की कीमतों का इस तरह नियमन और निर्धारण होना चाहिए कि दक्षिण एशिया के देशों को इसका अधिकतम फायदा मिले. भारत को इसकी अगुवाई करनी चाहिए. अगर दक्षिण एशिया के सभी बिजली बाज़ारों को आपस में जोड़ा जाए तभी भारत इस क्षेत्र में मौजूद ऊर्जा उत्पादन के अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएगा.

 

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