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संग्रहालय समुद्र की यादों को सुरक्षित रखते हैं और तटीय समुदायों के अनुभव और ज्ञान को सामने लाते हैं. इसके जरिए वे 21वीं सदी में एक समावेशी, सतत और लोगों पर केन्द्रित नीली अर्थव्यवस्था को आकार देने में अहम भूमिका निभाते हैं.
समुद्र केवल पानी का विशाल विस्तार नहीं, बल्कि जीवन, संस्कृति और अर्थव्यवस्था का स्रोत है. तटीय समुदायों की कहानियाँ, उनके ज्ञान और पारंपरिक प्रथाएँ हमें यह सिखाती हैं कि कैसे समुद्र और मानव साथ-साथ विकसित हो सकते हैं. ब्लू इकोनॉमी इसी दृष्टिकोण से समुद्री संसाधनों का सतत उपयोग करते हुए स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाने की दिशा में एक नई राह खोलती है. समुद्री संग्रहालय इस यात्रा में पुल का काम करते हैं—अतीत की यादों से भविष्य की नींव तक.
एक सतत नीली अर्थव्यवस्था (ब्लू इकोनॉमी) को तटीय समुदायों के कल्याण को अपने केंद्र में रखना चाहिए. विकास प्रक्रिया के हर एक चरण में तटीय क्षेत्र के नागरिकों को शामिल करना और उन्हें सशक्त बनाना राजनीतिक स्थिरता और आर्थिक मज़बूती दोनों के लिए ज़रूरी है. ब्लू इकोनॉमी (नीली अर्थव्यवस्था) का अर्थ समुद्री संसाधनों का सतत उपयोग है. इसमें मत्स्य पालन, समुद्री पर्यटन, नवीकरणीय ऊर्जा, शिपिंग और समुद्री जैव प्रौद्योगिकी जैसी कई आर्थिक गतिविधियां शामिल हैं. हालांकि, इस भविष्य का निर्माण करने के लिए हमें अतीत की ओर देखना होगा. हिंद महासागर और भूमध्य सागर के बीच, तटीय गांवों और वैश्विक शक्ति केन्द्रों के बीच समुद्री व्यापार का इतिहास हमें याद दिलाता है कि समुद्र हमेशा जुड़ाव, बातचीत और साझा अस्तित्व के स्थान रहे हैं.
हिंद महासागर और भूमध्य सागर के बीच, तटीय गांवों और वैश्विक शक्ति केन्द्रों के बीच समुद्री व्यापार का इतिहास हमें याद दिलाता है कि समुद्र हमेशा जुड़ाव, बातचीत और साझा अस्तित्व के स्थान रहे हैं.
पुरातात्विक खोजें इस लंबे समुद्री इतिहास की गवाही देती हैं. 1938 में, इटली के पोम्पेई कस्बे में खुदाई के दौरान एक मूर्ति निकाली गई, जिसे कई लोग देवी लक्ष्मी का प्रतिरूप मानते थे, जबकि कुछ लोगों ने इसे एक यक्षी के रूप में पहचाना. पुरातत्ववेत्ता इस बात पर सहमत हैं कि यह पहली शताब्दी ईस्वी की एक भारतीय कलाकृति है. एक साल पहले, तमिलनाडु के अरिकामेडू में लगभग 400 रोमन एम्फोरा की खोज की गई थी. इन कंटेनर्स का इस्तेमाल शराब, तेल और गारम (फर्मेंटेड फिश सॉस) के परिवहन के लिए किया जाता था. ये कंटेनर भूमध्य सागर और हिंद महासागर के पार यात्रा कर चुके थे. ये खाद्य उत्पाद सिर्फ स्थानीय भारतीय उपभोग के लिए नहीं थे, बल्कि वहां रहने वाले यूनानी और रोमन व्यापारियों के लिए थे, जो घर से बहुत दूर होने के बावजूद अपनी पसंद और परंपराओं को बनाए रखना चाहते थे.
सबसे खास बात यह है कि समुद्री संग्रहालयों की जिम्मेदारी होती है कि वे एसडीजी 14 के तहत समुद्र में रहने वाले जीवों की सुरक्षा करें.
ऐसी खोजें हमें बताती हैं कि समुद्री इतिहास को सबसे अच्छे तरीके से 'क्षितिजीय' इतिहास के रूप में समझा जा सकता है. बंदरगाह, उनके आसपास की जगह, मछली पकड़ने वाले समुदाय और नौसैनिक शिपयार्ड अलग-अलग संस्थाएं नहीं थी. वो आदान-प्रदान करने वाली एक विशाल व्यवस्था को सहमति दिए जाने के हिस्से थे. नाविकों, व्यापारियों और कारीगरों द्वारा सिर्फ सामान ही नहीं बल्कि तकनीकें, प्रौद्योगिकियां और सांस्कृतिक प्रथाओं का भी प्रचार-प्रसार किया गया. उन्होंने ऐसे समुदाय बनाए जहां भाषा, धर्म और रीति-रिवाज की विविधता सह-अस्तित्व में थी और एक-दूसरे के हिसाब से ढलती थी. ये इतिहास सहस्राब्दियों पुराना है, और वर्तमान के लिए ये एक शक्तिशाली सबक सिखाता है.
आज, जब हम सतत नीली अर्थव्यवस्था की दिशा में काम कर रहे हैं, तो हमें सह-अस्तित्व और आदान-प्रदान की इन परंपराओं से प्रेरणा लेनी चाहिए. समुदाय-नेतृत्व वाली जो विभिन्न पहल चल रही हैं, वो पहले से ही हमें रास्ता दिखा रही हैं. मछुआरा सहकारी समितियों द्वारा संचालित मूंगा पुनर्स्थापन परियोजनाओं से लेकर पारंपरिक मछली पालन प्रबंधन प्रथाओं तक सफलता से चल रही परियोजनाएं उत्साह बढ़ाती है. मत्स्य पालन के प्रजनन क्षेत्रों की सुरक्षा हो या फिर स्थानीय जैव विविधता संरक्षण. तटीय समुदाय दिखा रहे हैं कि ये काम बेहतर तरीके से कैसे किया जा सकता है. पर्शियन गल्फ़ में, शिपयार्ड अभी भी लकड़ी की धोव (एक तरह की नाव) बनाते हैं. ये शिपयार्ड अक्सर भारतीय कारीगरों द्वारा कई पीढ़ियों से संजोई गई तकनीकों को आगे बढ़ाते हैं. ये प्रथाएं सिर्फ धरोहर नहीं हैं, बल्कि वो बदलती दुनिया के लिए अनुकूल, जीवंत समाधान हैं.
समुद्री संग्रहालयों की भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका होती है. ऐतिहासिक रूप से, कई नौसैनिक संग्रहालय केवल नौसेनाओं, युद्धों और जीत पर केंद्रित रहे हैं. फिर भी, समुद्री संग्रहालयों की नई पीढ़ी एक अलग कहानी बताने की कोशिश करती है. एक ऐसी कहानी, जो लोगों, व्यापार, प्रवास और सांस्कृतिक स्मृति पर केंद्रित है. ये संस्थान ज्ञान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाते हैं, विरासत की रक्षा करते हैं, और विविधता के प्रति सम्मान को बढ़ावा देते हैं. इन संग्रहालयों में तात्कालिक समकालीन मुद्दों की बात भी होती है. जलवायु परिवर्तन, मछलियों का बहुत ज़्यादा शिकार करना, माइक्रोप्लास्टिक और समुद्र तल का बढ़ना, जैसी चिंताएं भी इसमें शामिल होती हैं. इन चुनौतियों को समकालीन मुद्दों से जोड़कर ये संग्रहालय स्थानीय समुदायों को समुद्र के रक्षक के रूप में काम करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
आज, जब हम सतत नीली अर्थव्यवस्था की दिशा में काम कर रहे हैं, तो हमें सह-अस्तित्व और आदान-प्रदान की इन परंपराओं से प्रेरणा लेनी चाहिए. समुदाय-नेतृत्व वाली जो विभिन्न पहल चल रही हैं, वो पहले से ही हमें रास्ता दिखा रही हैं.
संग्रहालयों को लेकर ये दृष्टिकोण संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के साथ फिट बैठता है. सांस्कृतिक विविधता की सुरक्षा और उन तक पहुंच सुनिश्चित करके ये संग्रहालय गरीबी से लड़ने में योगदान देते हैं. (एसडीजी 1). वो जीवन भर सीखने और विभिन्नताओं का सम्मान बढ़ाकर शिक्षा को मजबूत करते हैं. (एसडीजी4). ये संग्रहालय देशों और संस्कृतियों में साझा मंच बनाकर असमानताओं को कम करते हैं. (एसडीजी10). ये समुदायों को स्थिर करते हैं (एसडीजी 11), जिससे शहर अधिक समावेशी और आर्थिक तौर पर मज़बूत बनते हैं. सबसे महत्वपूर्ण बात, समुद्री संग्रहालयों पर एसडीजी 14 के तहत जल के नीचे रहने वाले जीवों के जीवन की सुरक्षा की एक अनोखी ज़िम्मेदारी होती है. वो महासागरों की साक्षरता के संरक्षक हैं, जिन्हें समुद्रों के स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन, ज़्यादा मछली पकड़ने से होने वाले नुकसान और प्रदूषण के ख़तरों के बारे में नागरिकों को शिक्षित करने का काम सौंपा गया है.
ये जन-केंद्रित और विरासत-आधारित दृष्टिकोण समुद्र से जुड़ी नीतियों के लिए भी समान रूप से महत्वपूर्ण है. एक ऐसी ब्लू इकॉनमी, जो सिर्फ संसाधनों का दोहन करे, स्थानीय लोगों को बहिष्कृत करे या शीर्ष-से-नीचे तरीके से काम करे, वो नाकाम हो जाएगी. दूसरी तरफ, अगर ऐसी ब्लू इकॉनमी हो, जो स्थानीय नेतृत्व में निवेश करती हो, तटीय समुदायों को सशक्त बनाता है, और उन्हें क्षेत्रों के बीच जोड़ती है, तो वो स्थायी और परिवर्तनकारी बन सकती है. साझेदारियां, चाहे तटीय गांवों के बीच हों, ग्लोबल साउथ के क्षेत्रों के बीच हों, या समुद्री संग्रहालयों के नेटवर्क के माध्यम से हों, एकजुटता और आदान-प्रदान को बढ़ावा दे सकती हैं. वो विरासत को स्थायी भविष्य के लिए एक जीवित संसाधन में बदल सकती हैं.
समुद्री संग्रहालय इस संबंध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि उनमें अपनी स्मृति को संरक्षित करने और कथाओं को आकार देने की अद्भुत क्षमता होती है. वो हमें याद दिलाते हैं कि समुद्री इतिहास सिर्फ शक्ति और संघर्ष के बारे में नहीं है, बल्कि सह-अस्तित्व, नवाचार और साझा लचीलापन के बारे में भी है.
नीली अर्थव्यवस्था का भविष्य समुद्रों की इस लंबी, गहरे अर्थ वाली कहानी से फिर से जुड़ने पर निर्भर करता है. स्थानीय ज्ञान को महत्व देकर, समुदायों में निवेश करके, और वैश्विक साझेदारी बनाकर हम एक ऐसे समुद्री भविष्य को आकार दे सकते हैं, जो समावेशी, स्थायी और न्यायसंगत हो.
नीली अर्थव्यवस्था का भविष्य समुद्रों की इस लंबी, गहरे अर्थ वाली कहानी से फिर से जुड़ने पर निर्भर करता है. स्थानीय ज्ञान को महत्व देकर, समुदायों में निवेश करके, और वैश्विक साझेदारी बनाकर हम एक ऐसे समुद्री भविष्य को आकार दे सकते हैं, जो समावेशी, स्थायी और न्यायसंगत हो. इस नज़रिए से देखें तो समुद्री विरासत सिर्फ अतीत की एक धरोहर नहीं, बल्कि भविष्य के लिए एक मज़बूत नींव भी है.
पियरेंजेलो कैम्पोडोनिको इटली के इमिग्रेशन के राष्ट्रीय संग्रहालय के निदेशक हैं.
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Pierangelo Campodonico, born in 1958, became director of the Naval Museum of Genoa in 1988. In 1998, he was appointed director of the Galata Museo ...
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