टास्क फोर्स 6: SDGs में तेज़ी लाना: 2030 एजेंडा के लिए नए मार्गों की तलाश करना
सार
G20 के सदस्य देशों के अंतर्गत आने वाला समुद्र तटीय क्षेत्र यानी कोस्टलाइन पूरी दुनिया की कुल कोस्टलाइन का 45 प्रतिशत है. यही वजह है कि सतत विकास लक्ष्यों में महासागरों की अहम भूमिका को देखते हुए ब्लू इकोनॉमी यानी नीली अर्थव्यवस्था की ताक़त का इस्तेमाल करना बेहद महत्त्वपूर्ण है. हालांकि, इसमें तमाम चुनौतियां हैं, जैसे कि वित्तपोषण में एक बड़ा अंतर, वैश्विक मानकों की कमी और ‘ब्लू फाइनेंसिंग’ अर्थात नीले वित्तपोषण के तहत क्या-क्या आता है, इसको लेकर एक आम सहमति का अभाव. जैसे कि निवेश को नुक़सान पहुंचाने वाली सब्सिडी और परियोजनाओं को ख़राब बैंकेबिलिटी यानी बैंकों के मापदंडों के अनुरूप नहीं होने का सामना करना पड़ रहा है, इसलिए इसमें प्राइवेट, पब्लिक और कल्याणकारी वित्तपोषण की ज़रूरत बहुत शिद्दत के साथ महसूस की जा रही है. G20 ऋण-फॉर-नेचर स्वैप यानी जैव विविधता संरक्षण और पर्यावरण नीति उपायों में निवेश करने की प्रतिबद्धताओं के बदले विदेशी ऋण के कुछ भाग को माफ़ करने की अनुमति, ब्लू बॉन्ड्स एवं लोन, पर्यावरण संरक्षण के नतीज़ों पर आधारित वित्तपोषण और पैरामीट्रिक इंश्योरेंस यानी पुराने आंकड़ों, संभावित ज़ोख़िम एवं अन्य प्रासंगिक पहलुओं के आधार पर बीमा कवरेज जैसे लक्षित वित्तीय साधनों को प्रोत्साहन देकर ब्लू इकोनॉमी ट्रांज़िशन अर्थात नीली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन के लिए फाइनेंसिंग को उत्प्रेरित कर सकता है. इसके लिए जो प्रमुख सिफ़ारिशें हैं, उनमें ठोस मानकों और रूपरेखाओं को अपनाना; कमियों और ग़लतियों को दूर करना; लंबे समय तक चलने वाली सब्सिडी को समाप्त करना; नए-नए वित्तीय साधनों को अमल में लाना; सामंजस्यपूर्ण नीतियों और समन्वित प्रतिक्रियाओं को लागू करना; सार्वजनिक निवेश को बढ़ाना; निवेश को ज़ोख़िमों से मुक्त करना; प्राइवेट फाइनेंस को प्रोत्साहित करना और भागीदारी सुनिश्चित करना शामिल है.
-
चुनौती
‘नीली अर्थव्यवस्था‘ का मतलब
ब्लू इकोनॉमी यानी नीली अर्थव्यवस्था का मतलब समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत का संरक्षण करते हुए आर्थिक विकास के साथ-साथ बेहतर आजीविका एवं रोज़गार के लिए समुद्री संसाधनों का टिकाऊ इस्तेमाल करना है. ब्लू इकोनॉमी गतिविधियां सतत विकास, संसाधन उपयोग के साथ संरक्षण को संतुलित करने और सुधार को बढ़ावा देने के लिए महासागर को एक अहम जगह स्थान के रूप में स्वीकार करती हैं. ये गतिविधियां सामाजिक-आर्थिक विकास को पर्यावरण के पतन या नुक़सान से अलग करती हैं, इस प्रकार से न केवल समुद्री इकोसिस्टम के संरक्षण में सहायता मिलती है, बल्कि लाभों के साझाकरण को भी प्रोत्साहित किया जाता है, पहुंच में समानता एवं समावेशी विकास को बढ़ावा दिया जाता है और बेहतर कल्याण की ओर अग्रसर किया जाता है.
G20 देशों में नीली अर्थव्यवस्था और मौज़ूदा ख़तरे
G20 समूह समुद्र तटीय देशों से बना है और इसके सदस्य देशों के अंतर्गत पूरे विश्व का 45 प्रतिशत समुद्र तटीय क्षेत्र एवं 21 प्रतिशत एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन यानी विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र (EEZ) आता है. देखा जाए तो समुद्र से संबंधित गतिविधियां G20 देशों की आर्थिक प्रगति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, इनमें अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग, पर्यटन, प्राकृतिक संसाधन और जीवाश्म ईंधन उपलब्ध कराने जैसी गतिविधियां शामिल हैं. इतना ही नहीं G20 सदस्य देश जहाज निर्माण, मछली पकड़ने, समुद्री सेवाओं और अन्य सहायक उद्योगों के ज़रिए खाद्य एवं ऊर्जा सुरक्षा और आजीविका में सहायता करने में योगदान देते हैं. इसके अलावा वैश्विक समुद्र पूरी दुनिया की आधे से अधिक ऑक्सीजन का उत्पादन करता है, हीट सिंक यानी अत्यधिक या अवांछित गर्मी को अवशोषित करने के माध्यम के रूप में काम करता है और वैश्विक स्तर पर मौसम को स्थिरता प्रदान करने में सहायता करता है. समुद्री और तटीय पारिस्थितिकी तंत्र अहम तटीय सुरक्षा के साथ-साथ कार्बन भंडारण और कार्बन डाइऑक्साइड को वायुमंडल के अलग करने का भी काम करता है. महासागर सामुदायिक पहचान, मनोरंजन के साधन, ख़ूबसूरती एवं वैज्ञानिक लाभ जैसे गैर-भौतिक लाभ भी उपलब्ध कराता है, साथ ही समुद्र मानवजाति की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत का भी एक अहम हिस्सा है.
विभिन्न तरह के मानव जनित दबाबों, जैसे कि समुद्री प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, अत्यधिक मछली पकड़ने, अस्थिर तटीय विकास, समुद्री गवर्नेंस में अंतर, ख़राब प्रबंधन, कार्यान्वयन की क्षमता की कमी और तमाम दूसरे लक्ष्यों के ऊपर आर्थिक विकास की प्राथमिकता देने से समुद्री पारिस्थितिक तंत्र पर ख़तरा पैदा होता है. अन्य घातक और नुक़सान पहुंचाने वाले प्रभावों के अतिरिक्त, इससे प्राकृतिक पूंजी का पतन होता है और लचीलेपन में कमी आती है. इसके अलावा, SDG 14 (‘टिकाऊ विकास के लिए महासागरों, समुद्रों और समुद्री संसाधनों का संरक्षण और टिकाऊ तरीक़े से उपयोग’) और अन्य SDGs के बीच प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष तौर पर विभिन्न प्रकार का तालमेल है. सतत विकास प्रदान करने के लिहाज़ से वैश्विक महासागर की प्रधानता और प्रमुखता के मद्देनज़र ब्लू इकोनॉमी की ओर संक्रमण G20 देशों के लिए अत्यंत आवश्यक है.
वित्तपोषण का बड़ा अंतर
WWF के मुताबिक़ वैश्विक अर्थव्यवस्था में 2.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सालाना योगदान के साथ, समुद्र का कुल एसेट बेस यानी संपत्ति आधार कम से कम 24 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है. [1] अन्य अध्ययनों के मुताबिक़ वैश्विक इकोनॉमी में समुद्र का वार्षिक योगदान 1.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर है. [2] वास्तविकता में देखा जाए तो धरती पर जीवन महासागरों पर निर्भर है और बेहतरीन समुद्री एवं तटीय इकोसिस्टम अत्यधिक आर्थिक व सामाजिक लाभ प्रदान करते हैं. ऐसे में जबकि पारंपरागत समुद्री सेक्टर पूंजी को आकर्षित करना जारी रखते हैं, नीली अर्थव्यवस्था में निवेश बहुत कम है और एक हिसाब से अपर्याप्त है. अनुमान के अनुसार पिछले 10 वर्षों में ब्लू इकोनॉमी में सिर्फ़ 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश किया गया. [3] विश्व बैंक PROBLUE कार्यक्रम यानी देशों को उनकी ब्लू इकोनॉमी विकसित करने में मदद करने के लिए एक अम्ब्रेला मल्टी-डोनर ट्रस्ट फंड को 200 मिलियन अमेरिकी डॉलर प्राप्त हुए हैं, जो कि वर्ल्ड बैंक [4] के 7 बिलियन अमेरिकी डॉलर की पहले से चल रहीं महासागर परियोजनाओं के पोर्टफोलियो का एक छोटा सा प्रतिशत है. संरक्षित क्षेत्र के 10 प्रतिशत तक पहुंचने के लिए MPAs की स्थापना और रखरखाव हेतु (SDG 14 का लक्ष्य 14.5 प्रतिशत) वित्तपोषण अंतर प्रति वर्ष 7.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर है, जबकि ज़रूरी निवेश इसके वर्तमान मूल्य का 20 से 30 गुना है. [5] अन्य स्थिति से संबंधित तथ्यों के आधार पर यह स्थिति विशेष का मूल्यांकन करते हुए वर्ष 2030 तक 30 प्रतिशत संरक्षित क्षेत्रों (अंतर्देशीय जल, तटीय और समुद्री क्षेत्रों) को सुनिश्चित करने के कुनमिंग-मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायो-डॉयवर्सिटी फ्रेमवर्क के लक्ष्य को पूरा करने के लिए 27.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर प्रति वर्ष का वित्तपोषण अंतर प्रस्तावित करता है.
नीली अर्थव्यवस्था के वित्तपोषण फ्रेमवर्क और वैश्विक मापदंडों का अभाव
जहां तक नीली अर्थव्यवस्था के लिए वित्तपोषण की बात है, तो यह फ्रेमवर्क, वैश्विक मापदंड़ों, तर्कसंगत कार्यप्रणाली और निवेशकों का मार्गदर्शन करने के लिए वित्तीय प्रोत्साहन की कमी से ग्रसित है, इस कारण से प्रभावशाली और ज़रूरी फैसले लेने की क्षमता सीमित हो जाती है. [6] ब्लू इकोनॉमी सस्टेनेबिलिटी फ्रेमवर्क समेत कई फ्रेमवर्क्स यूरोपियन यूनियन में ब्लू इकोनॉमी क्षेत्रों में निवेश निर्णयों के बारे में बताते हैं. इसके अतिरिक्त प्रस्तावित फ्रेमवर्क्स में मछली पकड़ने की टिकाऊ प्रथाओं में निवेश करने के लिए प्रिंसिपल्स फॉर इन्वेस्टमेंट इन सस्टेनेबल वाइल्ड-कॉट फिशरीज़, दि ओसन फाइनेंस फ्रेमवर्क (ADB) और एक ब्लू इकोनॉमी डेवलपमेंट फ्रेमवर्क (वर्ल्ड बैंक) शामिल हैं.
इंटरनेशनल फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने नीली अर्थव्यवस्था में वित्तपोषण के लिए दिशानिर्देशों में सस्टेनेबल ब्लू इकोनॉमी फाइनेंस प्रिंसिपल्स (70 संस्थानों द्वारा समर्थित) और सस्टेनेबल ओसन प्रिंसिपल्स (150 कंपनियों द्वारा समर्थित) को जोड़ दिया है. हालांकि, ये सिद्धांत और दिशानिर्देश मिलेजुले लाभ उपलब्ध कराते हैं, साथ ही विभिन्न राष्ट्रीय एवं क्षेत्रीय योजनाओं के अनुकूल हैं, इसके बावज़ूद उन्हें अलग-अलग तंत्र, अपर्याप्त जानकारी और जागरूकता की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. पहले से ही इस बात को लेकर अभी तक कोई सहमति नहीं है कि ब्लू फाइनेंसिंग क्या होती है और न ही इसको लेकर कोई सहमति बनी है कि गतिविधियों एवं नियामक तंत्रों का वर्गीकरण करने के लिए [7] और निवेश के असर का मूल्यांकन करने के लिए किस तरीक़े का उपयोग किया जाना चाहिए. इससे निरंतरता, पारदर्शिता एवं जवाबदेही की कमी सामने आती है और जो आख़िरकार निवेश के भरोसे को कमज़ोर करने का काम करती है.
निवेश को कमज़ोर कर रही है नुक़सानदायक सब्सिडी
नीली अर्थव्यस्था की ओर संक्रमण में समुद्री सेक्टर के लिए नुक़सानदायक सब्सिडी यानी आर्थिक सहायता भी रुकावटें पैदा करने वाली है, क्योंकि यह समुद्र की सेहत को कमज़ोर करने का काम करती है. हालांकि, इस सेक्टर में कुल कितनी आर्थिक मदद दी जा रही है उसकी पूरी सीमा निर्धारित नहीं है, लेकिन अनुमान है कि वर्ष 2018 में वैश्विक वार्षिक स्तर पर फिशिंग अर्थात मछली पकड़ने की सब्सिडी का अनुमान 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जिसने न केवल अत्यधिक मछली पकड़ने को बढ़ावा दिया, बल्कि अवैध तरीक़े से मछली पकड़ने को भी बढ़ावा दिया. [8] अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने वर्ष 2020 के लिए जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में 5.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का अनुमान लगाया है और यह सब्सिडी वर्ष 2021-23 में और अधिक बढ़ गई, जिससे समुद्र की सेहत प्रभावित हुई है. [9] ज़ाहिर है कि इसमें समुद्री प्रदूषण में प्लास्टिक उद्योग और उर्वरक सब्सिडी के प्रत्यक्ष योगदान को शामिल नहीं किया गया है. क्षमता को प्रोत्साहित करने वाली मत्स्य पालन आर्थिक मदद समुद्र में मछलियों को नुक़सान पहुंचाती है, इससे मछली की तमाम प्रजातियों के विलुप्त होने का ख़तरा पैदा हो जाता है और असमानता को बढ़ावा मिलता है, जो कि छोटे स्तर पर मत्स्य पालन के लिए आर्थिक व्यवहारिकता को कमज़ोर करती है और यह मछुआरा समुदायों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा को भी ख़तरे में डालती है. इसके साथ ही नुक़सानदेह सब्सिडी समुद्र के संरक्षण में कल्याणकारी निवेश और सार्वजनिक निवेश को रोकने का काम करती है, ज़ाहिर है कि प्रोत्साहन की कमी के चलते नीली अर्थव्यस्था में निवेश सीमित होता है.
परियोजनाओं की कम बैंक योग्यता
The views expressed above belong to the author(s). ORF research and analyses now available on Telegram! Click here to access our curated content — blogs, longforms and interviews.