राष्ट्रपति चुनाव से मिलते-जुलते चुनाव, जिसमें द्वीपों में रैलियां हुईं और सरकार की शक्तियों के दुरुपयोग के आरोप शामिल हैं, में सत्ताधारी मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) ने आर्थिक विकास मंत्री फ़ैयाज़ इस्माइल को पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर चुना. राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह के क़रीबी माने जाने वाले इस्माइल को 27,000 वोट (58 प्रतिशत) मिले जबकि उनके ख़िलाफ़ चुनाव लड़ने वाले सांसद इम्तियाज़ फ़हमी उर्फ़ इंथि को 20,000 वोट (42 प्रतिशत) वोट मिले. इम्तियाज़ फ़हमी राष्ट्रपति सोलिह के विरोधी, पार्टी प्रमुख एवं संसद के स्पीकर मोहम्मद नशीद के क़रीबी हैं. संयोग की बात है कि एमडीपी के अध्यक्ष पद के चुनाव में उम्मीदवारों को मिले वोट प्रतिशत 2018 के राष्ट्रपति चुनाव से मिलते-जुलते हैं- राष्ट्रपति चुनाव में 58 प्रतिशत वोट एमडीपी के विजेता उम्मीदवार सोलिह को और 42 प्रतिशत वोट तत्कालीन राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को मिले थे. लेकिन ये तुलना यहीं ख़त्म हो जाती है.
इस बार पार्टी के चुनाव में सोलिह की टीम ने दो और पदों- पार्टी की महिला और छात्र विंग- पर कब्ज़ा किया. वैसे तो शुरू में नशीद ने चुनाव प्रक्रिया का विरोध किया लेकिन बाद में इंथि और नशीद ने विजेता उम्मीदवार को बधाई दे दी. ऐसा करके उन्होंने संकेत दिया है कि वो नये पार्टी अध्यक्ष और राष्ट्रपति सोलिह के साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हैं.
इस बार पार्टी के चुनाव में सोलिह की टीम ने दो और पदों- पार्टी की महिला और छात्र विंग- पर कब्ज़ा किया. वैसे तो शुरू में नशीद ने चुनाव प्रक्रिया का विरोध किया लेकिन बाद में इंथि और नशीद ने विजेता उम्मीदवार को बधाई दे दी. ऐसा करके उन्होंने संकेत दिया है कि वो नये पार्टी अध्यक्ष और राष्ट्रपति सोलिह के साथ मिलकर काम करने के इच्छुक हैं. इस तरह से नशीद के गुट ने अगले साल होने वाले सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सहज रास्ते का वादा किया है. अब जब सभी गुटों ने नतीजे को स्वीकार कर लिया है तो इस्माइल का ये बयान सतर्कतापूर्वक आशावादी है कि ‘पार्टी बंटी हुई है लेकिन हम साथ मिलकर काम कर सकते हैं’. लेकिन सत्ताधारी पार्टी के लिए कई मुद्दे अभी भी बने हुए हैं. एमडीपी के अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अभियान कई हफ़्तों तक चला और किसी भी पक्ष ने कोई अवसर नहीं छोड़ा. इसकी शुरुआत पार्टी के लिए कार्यकर्ताओं की ज़्यादा प्रतिबद्धता के साथ हुई. पिछले तीन राष्ट्रपति चुनाव में (2008, 2013, और 2018) में मतदाताओं की भागीदारी 90 प्रतिशत से ज़्यादा रही थी. इस पृष्ठभूमि में पार्टी के अध्यक्ष पद के लिए 47,000 लोगों का मत देना 94,000 सदस्यों के दावे का आधा ही रहा. इस तरह या तो चुनाव आयोग की तरफ़ से 54,000 सदस्यों की बात सटीक साबित हुई या फिर पार्टी के भीतर नेतृत्व की लड़ाई जारी रहने से पार्टी के सदस्यों में मायूसी थी. ऐसा भी हो सकता है कि कम वोटिंग के पीछे दोनों कारण हों.
वैसे तो ये नतीजे सोलिह की टीम के लिए क्लीन स्वीप है, लेकिन लोगों के सामने जो विकल्प थे, ख़ास तौर से महिला और युवा विंग के लिए, उसने भी एमडीपी सदस्यों के इन वर्गों और इसके आगे मालदीव के आम मतदाताओं की व्यक्तिगत वफ़ादारी के बारे में विश्वास और निर्विरोध सोच पर असर डाला हो सकता है.
राजधानी माले में ये वजह कुछ ज़्यादा थी जहां देश के अनुमानित 3,00,000 मतदाताओं में से आधे रहते हैं (इनमें से कुछ लोग ऐसे हैं जो अपने मूल द्वीप में मतदाता के तौर पर रजिस्टर्ड हैं). राजधानी में केवल 3,793 मतदाता (1,920 वोट इंथि को) एमडीपी के चुनाव में वोट देने के लिए आए. इससे पता चलता है कि पिछले साल अप्रैल में देशव्यापी स्थानीय परिषद के चुनाव में अपने परंपरागत गढ़ में यामीन की अगुवाई वाले विरोधी पीपीएम-पीएनसी गठबंधन से पिछड़ने के बाद एमडीपी का उबरना अभी भी बाक़ी है. पिछले दो वर्षों में जितना राजनीतिक विरोधियों ने अभियान चलाया है उससे भी ज़्यादा नशीद लगातार दावा कर रहे हैं कि सरकार भ्रष्ट है. ऐसे में आशंका इस बात की है कि अगर एमडीपी ने गुटबाज़ी ख़त्म नहीं की और सरकार की छवि को बेहतर करने के लिए काम नहीं किया तो पार्टी के कार्यकर्ताओं से अलग एमडीपी के प्रतिबद्ध मतदाताओं की बड़ी संख्या और 20-30 प्रतिशत ‘अनिश्चित’ मतदाता भी राष्ट्रपति चुनाव से दूरी बना सकते हैं. इस मामले में द्वीप के हिसाब से पार्टी के प्रशासनिक पदों को साझा करने में दोनों खेमों के बीच आपसी तालमेल भी उसी तरह होगा. इस्माइल के द्वारा चुनाव से पहले 20,000 ‘फ़र्जी सदस्यों’ के दावे के बाद इसकी शुरुआत पार्टी के सदस्यों के सत्यापन से हो सकती है
कभी न ख़त्म होने वाली विडंबना
चुनाव से पहले इस्माइल ने विरोधियों के इस अभियान को ज़्यादा महत्व नहीं दिया कि ये चुनाव राष्ट्रपति चुनाव के लिए पार्टी के उम्मीदवार को चुनने का पहला क़दम है. अब अपनी जीत के बाद उन्होंने कहा है कि ये नतीजा ‘राष्ट्रपति चुनाव जीतने’ के लिए था. स्पष्ट रूप से उनके दिमाग़ में राष्ट्रपति सोलिह हैं. लेकिन सोलिह ने ख़ुद कुछ नहीं कहा है. प्रतिस्पर्धी अभियान के दो वर्षों में उनके एक वक़्त के दोस्त और विश्वसनीय सलाहकार नशीद ने कई बार अपने इस इरादे का एलान किया है कि वो राष्ट्रपति चुनाव की उम्मीदवारी के मुक़ाबले में खड़ा होना चाहते हैं. इस दौरान सोलिह ने भावहीन चुप्पी बरकरार रखी है. लेकिन इस बार उनके प्रवक्ता ने कुछ ज़्यादा बोलते हुए एलान किया कि राष्ट्रपति ने किसी से ये नहीं कहा है कि वो ‘चुनाव नहीं लड़ेंगे’. ये घोषणा उन्होंने पार्टी के अध्यक्ष के चुनाव के दौरान एक चैट शो के बाद की जिसमें कहा गया कि सोलिह राष्ट्रपति का चुनाव नहीं लड़ेंगे. अगर इसकी वजह से पार्टी के कार्यकर्ताओं पर असर पड़ा भी तो ये नतीजे में नहीं नज़र आया.
यामीन अदालत के पांच जजों की पूर्ण पीठ के द्वारा पूर्व राष्ट्रपति नशीद को रिहा करने का संदर्भ दे रहे थे जिन्होंने ‘जेल से छुट्टी’ के दौरान यूके में राजनीतिक शरण ली थी. यामीन ने कहा कि बाद में गयूम की गिरफ़्तारी ‘उनके हितों की वजह से नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों में हुई थी.’
पार्टी के अध्यक्ष के साथ-साथ सोलिह के गुट ने एमडीपी की महिला विंग के अध्यक्ष पद पर भी कब्ज़ा किया. सोलिह गुट की रोज़ानिया एडम को 41,000 महिला सदस्यों (जैसा कि दावा किया गया) में से 60 प्रतिशत का वोट मिला. सिर्फ़ 49 प्रतिशत मतदान के साथ उन्हें 11,708 मत मिले जबकि उनकी विरोधी को 7,961. इसी तरह सोलिह गुट की रिफ़गा शिहम ने एमडीपी की युवा विंग के अध्यक्ष का चुनाव जीता जिसकी सदस्य संख्या 32,000 होने का दावा किया जाता है. वैसे तो ये नतीजे सोलिह की टीम के लिए क्लीन स्वीप है, लेकिन लोगों के सामने जो विकल्प थे, ख़ास तौर से महिला और युवा विंग के लिए, उसने भी एमडीपी सदस्यों के इन वर्गों और इसके आगे मालदीव के आम मतदाताओं की व्यक्तिगत वफ़ादारी के बारे में विश्वास और निर्विरोध सोच पर असर डाला हो सकता है.
लगातार तीसरी जीत
एमडीपी के आंतरिक चुनावों में सोलिह गुट की ये लगातार तीसरी जीत है. इससे पहले सोलिह गुट ने जनरल काउंसिल के सदस्यों, जो समय-समय पर होने वाले पार्टी सम्मेलन में मतदान करने वाले सदस्य होते हैं, के लिए देशव्यापी चुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद सोलिह गुट ने इस साल की शुरुआत में सदन के नेता के रूप में मोहम्मद असलम के लिए अच्छी जीत (40-25) हासिल की थी. लेकिन इसके बावजूद इंथि के अपेक्षाकृत अच्छे प्रदर्शन और ख़राब मतदान न सिर्फ़ पार्टी नेतृत्व बल्कि सोलिह गुट के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए. अब जबकि एक बार फिर नशीद के खेमे ने युद्ध विराम का एलान किया है, ये देखना बाक़ी है कि किस तरह पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों के प्रभारी अध्यक्ष के तौर पर स्पीकर नशीद और द्वीप के स्तर से ऊपर पार्टी का प्रशासन देखने वाले अध्यक्ष के तौर पर मंत्री इस्माइल एक साथ मिलकर आने वाले हफ़्तों और महीनों में पार्टी का प्रदर्शन सुधारने के लिए काम करते हैं. इसका नतीजा तभी आएगा जब एक साथ पार्टी के कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को ये भरोसा होता है कि एमडीपी में गुटबाज़ी बीते दिनों की बात हो गई है और अब कोई भी पक्ष राष्ट्रपति के चुनाव तक ताज़ा चुनौतियां पेश नहीं करेगा और अचानक दूसरे पर आक्रमण नहीं करेगा.
तात्कालिक सवाल नशीद के द्वारा 16 अगस्त को पार्टी का एक सम्मेलन बुलाना है जिसकी एकतरफ़ा घोषणा उन्होंने पहले की थी. इस सम्मेलन के लिए सोलिह के नियंत्रण वाली जनरल काउंसिल की मंज़ूरी की आवश्यकता होगा. संकेत ये था कि नशीद चाहते थे कि पार्टी के सम्मेलन में राष्ट्रपति चुनाव की दावेदारी के लिए तारीख़ तय की जाए लेकिन फ़ैयाज़ इस्माइल की जीत के बाद वो इस मामले में तेज़ी से आगे नहीं बढ़ना चाहेंगे. इशारा ये भी है कि राष्ट्रपति चुनाव की दावेदारी के लिए कोई तारीख़ तय होने के बाद ही मौजूदा राष्ट्रपति सोलिह दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने के अपने फ़ैसले का एलान करेंगे. नतीजा जो भी हो लेकिन मौजूदा तीन सहयोगी पार्टियों- जिनका वोट आधार सीमित योगदान ही देता है- के सामने राष्ट्रपति चुनाव जीतने का भरोसा हासिल करने के लिए एमडीपी को मिल-जुलकर काम करना होगा. मंत्री फ़ैयाज़ इस्माइल को अपने बधाई संदेश में गृह मंत्री और अधालथ गठबंधन के नेता शेख़ इमरान अब्दुल्ला ने ध्यान दिलाया कि कैसे ‘एक विशेष परिस्थिति के तहत राजनीतिक पार्टियों के आंतरिक हित देश के हित से नज़दीकी तौर पर जुड़े हैं’.
उप-चुनाव में यामीन खेमे की जीत
एक कम महत्वपूर्ण घटनाक्रम के तहत विपक्षी पीपीएम की फ़ातिमा नज़ीमा ने उपनगरीय विलीमाले में महिलाओं की विकास समिति की सीट पर जीत हासिल की. उन्होंने मालदीवियन नेशनल पार्टी (एमएनपी) में हाल में शामिल अमिनाथ शीज़ा को 358 के मुक़ाबले 359 वोट से हराया. नतीजों की पुष्टि को लिए दोबारा मतगणना कराई गई. सत्ताधारी एमडीपी ने इस सीट पर चुनाव नहीं लड़ा क्योंकि उसकी स्थानीय इकाई ने नामांकन पत्र ही दाख़िल नहीं किया जबकि ये सीट उसकी सदस्य के निधन की वजह से ही खाली हुई थी. लेकिन यही बात 1 फरवरी 2018 को ‘विद्रोह की कोशिश’ के पीछे ‘एक प्रमुख साज़िशकर्ता’ के तौर पर यामीन के सौतेले भाई और पूर्व राष्ट्रपति मामून अब्दुल गयूम के बारे में नहीं कही जा सकती. यामीन अदालत के पांच जजों की पूर्ण पीठ के द्वारा पूर्व राष्ट्रपति नशीद को रिहा करने का संदर्भ दे रहे थे जिन्होंने ‘जेल से छुट्टी’ के दौरान यूके में राजनीतिक शरण ली थी. यामीन ने कहा कि बाद में गयूम की गिरफ़्तारी ‘उनके हितों की वजह से नहीं बल्कि राष्ट्रीय हितों में हुई थी.’ गयूम के मामून रिफॉर्म मूवमेंट ने फ़ौरन सरकारी अधिकारियों से अपील की कि यामीन के द्वारा न्यायपालिका पर असर डालने के दावे और सत्ता में लौटने पर देश की सेना और पुलिस के प्रमुखों को जेल में डालने की धमकी की जांच की जाए. इससे अलग गयूम ने ज़ोर देकर कहा कि वो सिर्फ़ एमआरएम के साथ जुड़े हुए हैं. गयूम का ये बयान उनकी बेटी दुन्या मामून के इस दावे के बाद आया जिसमें उन्होंने कहा था कि गयूम अब एमएनपी का साथ दे रहे हैं.
हद का पर्दाफ़ाश
उसी समय पुलिस ने यामीन की पार्टी पीपीएम के दफ़्तर से ‘इंडिया आउट’ टी-शर्ट्स ज़ब्त की. पुलिस ने इस बात की जांच भी शुरू की कि माले की सड़कों पर ‘इंडिया आउट’ लिखे नारे के साथ पर्चियां कहां से आई. पुलिस ने आधी रात में यामीन के घर और पार्टी के दफ़्तर की दीवार पर आधी रात में ‘इंडिया आउट’ अभियान को लेकर उनकी गिरफ़्तारी की मांग करने वाली नारेबाज़ी की जांच भी की. यामीन का अभियान उस वक़्त ग़ैर-क़ानूनी घोषित हो गया जब सोलिह ने राष्ट्रपति के हुक्मनामे के ज़रिए इंडिया आउट अभियान पर पाबंदी लगा दी. इसकी वजह एक भरोसेमंद पड़ोसी के प्रति इस अभियान का ‘प्रतिकूल’ रवैया था.
यामीन ने भले ही ‘इंडिया आउट’ अभियान का बहुत प्रचार किया हो लेकिन उनकी पार्टी का रुख़ दूसरी तरफ़ रहा और अमेरिकी सैन्य दल के दौरे के बाद शुरू मालदीव के साथ प्रशिक्षण अभ्यास पर उसका फोकस बना रहा. सितंबर 2020 में जिस द्विपक्षीय सैन्य सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर किया गया था और जिसे इस साल की शुरुआत में माले में एक और समझौते से मज़बूत बनाया गया था, माना जाता है कि उसी की वजह से ये प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित हुआ. ‘एक्सरसाइज़ ब्लैक मर्लिन 22-2’ नाम के इस कार्यक्रम में दूसरी चीज़ों के अलावा निशानेबाज़ी, आईईडी के ख़िलाफ़ जवाबी हमला, चढ़ाई और नज़दीक की लड़ाई शामिल हैं और ये 14 मई से 16 जून तक चलेगा. यामीन के अभियान में इन अंतर्निहित विरोधाभासों को देखते हुए, जिसके तहत ग़ैर-क़ानूनी ‘इंडिया आउट’ अभियान को गयूम के ख़िलाफ़ आरोपों से बदलने की कोशिश की गई और वो भी घटना के चार साल बाद, ऐसा लगता है कि कम-से-कम इस समय वो राष्ट्रपति चुनाव के अपने एजेंडे की हदों का पर्दाफ़ाश कर रहे हैं. भारत के अलावा गयूम ने भी अपने 30 वर्ष के लंबे राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान ‘कल्याणकारी योजनाओं’ के सहारे प्रतिबद्ध लोग तैयार किए हैं जिन्होंने 2018 के चुनाव में यामीन को हराने का काम किया.
अगले कुछ महीनों में यामीन को लेकर दो आपराधिक अदालतों का फ़ैसला आना है. ऐसे में यामीन के समर्थक उनका पहले से ज़्यादा समर्थन कर सकते हैं, ख़ास तौर पर उस स्थिति में जब उन्हें चुनाव लड़ने के अयोग्य ठहराया जाता है और मजबूर होकर उन्हें दूसरा उम्मीदवार देना पड़ता है जिसको ज़्यादा-से-ज़्यादा यामीन का ‘वोट ट्रांसफर’ किया जा सकता है. लगातार बदलती राजनीति में एमडीपी के लिए वक़्त आ गया है कि वो या तो अपने आंतरिक मतभेदों को दूर करे नहीं तो अपनी उम्मीद से ज़्यादा कठिन राष्ट्रपति चुनाव का सामना करे जैसा कि कोविड के बाद के युग में पार्टी अधयक्ष के चुनाव में कम मतदान ने दिखाया है.
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