Published on Jun 17, 2022 Updated 0 Hours ago

सोलिह ने दूसरी बार चुनाव मैदान में उतरने का एलान किया है, जिसके साथ ही भारत के लिए एक दोहरे चेहरे वाली समस्या खड़ी हो रही है.

मालदीव: राष्ट्रपति पद के लिए सोलिह की दोबारा दावेदारी

पिछले साल की अटकलबाजियों को ख़त्म करते हुए, मालदीव के राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह ने दूसरे कार्यकाल के लिए चुनाव मैदान में उतरने का एलान कर दिया है. ये चुनाव अगले साल होने हैं. दो महीनों में भूमिकाओं के एक महत्वपूर्ण उलटफेर में, संसद अध्यक्ष और सत्तारूढ़ एमडीपी (मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी) के प्रमुख मोहम्मद नशीद ने जवाब देने के अंदाज़ में ट्वीट किया कि ‘अभी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को प्राथमिकता देने और राष्ट्रपति पद के लिए अवसर तलाशने का समय नहीं है’. पिछले महीने पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में सोलिह की टीम के प्रत्याशी और आर्थिक मामलों के मंत्री फ़य्याज़ इस्माइल ने नशीद ख़ेमे के समर्थक के ख़िलाफ़ जीत हासिल की. इस चुनाव से पहले नशीद ने दोहराया था कि उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव के लिए एमडीपी से नामित होने की कोशिश की योजना बनायी थी, लेकिन सोलिह ने कहा कि कोविड-19 के बाद जब आर्थिक पुनरुद्धार पर ध्यान केंद्रित होना चाहिए तो यह उनके लिए दलगत राजनीति पर चर्चा करने का वक़्त नहीं है.

सोलिह ने राजधानी माले में कभी-कभार ही होने वाले संवाददाता सम्मेलन में अपने निर्णय का एलान किया. उन्होंने इशारा किया कि अगर वह एमडीपी द्वारा नामित किये गये, तो वह सत्तारूढ़ गठबंधन के उम्मीदवार होंगे. उन्होंने स्पष्ट किया कि मध्य अगस्त में होने वाला एमडीपी का सम्मेलन (कांग्रेस) तय करेगा कि क्या वे राष्ट्रपति उम्मीदवार के चयन के लिए प्राथमिक चुनाव (प्राइमरी) आयोजित करेंगे. याद रहे कि सोलिह ख़ेमे ने बीते दिसंबर में सम्मेलन संबंधी वोट के लिए पार्टी जनरल काउंसिल के चुनाव में दूसरों का सफाया कर दिया था

एमडीपी का सम्मेलन महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि यह तय करने के लिए कहा जा सकता है कि क्या सोलिह को प्राथमिक चुनाव का सामना करने की ज़रूरत है या फिर वह नशीद के कार्यकाल 2008-12 के दौरान पार्टी संविधान में किये गये संशोधन के तहत अपने आप पुन: नामित हो जायेंगे.

एमडीपी का सम्मेलन महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्योंकि यह तय करने के लिए कहा जा सकता है कि क्या सोलिह को प्राथमिक चुनाव का सामना करने की ज़रूरत है या फिर वह नशीद के कार्यकाल 2008-12 के दौरान पार्टी संविधान में किये गये संशोधन के तहत अपने आप पुन: नामित हो जायेंगे. उल्लेखनीय है कि, पार्टी ने उसके बाद से उन नये संशोधनों को लागू करने के प्रस्तावों की मांग की, जो इस नियम की व्याख्या में परस्पर विपरीत मतों को ख़त्म कर सकें. ऐसे संशोधनों पर मतदान करना अब भी जनरल काउंसिल का अधिकार होगा. तकनीकी रूप से, यह तय करना भी जनरल काउंसिल का अधिकार है कि पार्टी सम्मेलन कब होना चाहिए और उसका एजेंडा क्या होना चाहिए.

पार्टी सम्मेलन एक और वजह से भी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस राष्ट्रीय बैठक को ‘पंजीकृत सदस्यों’ के लिए एक-एक पखवाड़ा करके पांच बार टाला गया, ताकि तय किया जा सके कि वे आख़िरकार किस पार्टी से ताल्लुक रखते हैं. इसी क्रम में चुनाव आयोग का राजनीतिक दलों की सदस्यता के सत्यापन का फैसला आया, ताकि दोहराव (डुप्लीकेशन) ख़त्म किया जा सके. आयोग ने प्रत्येक फर्जी प्रविष्टि के लिए 10,000 मालदीवी रुफिया का जुर्माना लगाने का निर्णय भी लिया.

एमडीपी ने हमेशा यह दावा किया था कि उसके 94,000 सदस्य हैं, जबकि चुनाव आयोग के रिकार्ड ने केवल 54,000 सदस्य दिखाये. तगड़ी लड़ाई वाले पार्टी अध्यक्ष पद के चुनाव में सदस्यों की संख्या, दावा की गयी संख्या के आधे से भी कम रही. पीपीएम (प्रोग्रेसिव पार्टी ऑफ मालदीव्स) ने उसके बाद से यह दावा किया है कि 391 पहचाने गये फ़र्ज़ी सदस्यों को नामांकित (इनरोल) करने का चुनाव आयोग का पार्टी पर आरोप गठबंधन सरकार के लिए ‘राष्ट्रपति चुनावों को चुराने’ का एक प्रयास है. उसने आयोग को चुनौती दी है कि क्या उसने इस नतीजे पर पहुंचने से पहले हरेक फॉर्म पर फिंगरप्रिंट का क्रॉस-वेरिफिकेशन किया है.

भटकाने की रणनीति?

दूसरे कार्यकाल के लिए कोशिश की सोलिह की घोषणा अभी प्रत्याशित नहीं थी. नतीजतन, घोषणा के समय को पड़ोसी भारत में सत्तारूढ़ भाजपा के दो पदाधिकारियों के पैगंबर मोहम्मद पर ईशनिंदात्मक बयानों पर छिड़े अनुपयुक्त विवाद से देश का ध्यान भटकाने के संभावित प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इस मुद्दे ने पूरी इस्लामी दुनिया को झकझोर दिया है.

सरकार में एमडीपी की सहयोगी पार्टियों समेत, मालदीव की ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने उन भाजपा नेताओं के बयानों की निंदा की है, जिन्हें उसके बाद पार्टी से हटाया जा चुका है. ख़ुद एमडीपी ने इस पर सीधे टिप्पणी नहीं करना चुना. सरकारी बयान ने नामों को उद्धृत नहीं किया, सामान्य रूप से ईशनिंदा की आलोचना व निंदा की, और भारत सरकार द्वारा अपमानजनक टिप्पणियों की भर्त्सना का स्वागत किया. एक यामीन समर्थक मीडिया हाउस ने सोलिह सरकार की प्रतिक्रिया को ‘ठंडा’ बताया.

दूसरे कार्यकाल के लिए कोशिश की सोलिह की घोषणा अभी प्रत्याशित नहीं थी. नतीजतन, घोषणा के समय को पड़ोसी भारत में सत्तारूढ़ भाजपा के दो पदाधिकारियों के पैगंबर मोहम्मद पर ईशनिंदात्मक बयानों पर छिड़े अनुपयुक्त विवाद से देश का ध्यान भटकाने के संभावित प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. इस मुद्दे ने पूरी इस्लामी दुनिया को झकझोर दिया है.

उल्लेखनीय है कि, संसद ने भारतीय विवाद पर विपक्षी पीपीएम-पीएनसी द्वारा लाये गये आपात प्रस्ताव को 33-10 से ख़ारिज कर दिया. इस दौरान एमडीपी और उसके सहयोगियों के काफ़ी संख्या में सदस्य अनुपस्थित रहे. बाद में, एमडीपी के संसदीय समूह ने दावा कि वे ‘इस्लाम का राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं होने देंगे’. इसी दौरान धर्म-केंद्रित अदालत पार्टी (एपी) ने भाजपा नेताओं की टिप्पणियों की निंदा की. पार्टी नेता इमरान अब्दुल्ला, जो गृह मंत्री भी हैं, ने दावा किया इस मामले में सरकार की स्थिति को बताना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं है. 

इस संदर्भ में सोलिह का मौजूदा सहयोगियों, विशेष रूप से, अदालत पार्टी, अरबपति कारोबारी गासिम इब्राहिम की जम्हूरी पार्टी और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल गयूम की मामून रिफॉर्म मूवमेंट के समर्थन से दूसरे कार्यकाल की कोशिश की बात दोहराना अतिरिक्त महत्व रखता है. इससे पहले, सोलिह और नशीद के बीच विभाजन भी गठबंधन के साथ बने रहने की एमडीपी की समझदारी पर आधारित था. नशीद यहां तक चले गये कि उन्होंने एमडीपी को ‘डूबती हुई सरकार’ को छोड़ने को कहा, वह भी तब जब पार्टी संसद में बिना किसी गठबंधन के समर्थन के सरकार चला सकती थी. पार्टी के पास संसद में 87 में से 65 सांसद हैं.  

‘इंडिया आउट’ का विस्तार

भारत में इस्लाम-केंद्रित विवाद ऐसे वक़्त में आया जब विपक्षी पीपीएम-पीएनसी गठजोड़ अपने अशोभनीय ‘इंडिया आउट’ अभियान के दायरे और पहुंच को विस्तार देने की कोशिश कर रहा था. इस अभियान पर सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश के ज़रिये रोक लगा दी. यामीन के सशस्त्र बलों और पुलिस को व्यक्तिगत रूप से चेतावनी दिये जाने के बाद कि ‘जब हम सत्ता में लौटेंगे’ तो उन्हें नतीजे भुगतने होंगे, उनकी टीम ने देश के चुनाव आयोग पर ‘भारतीय प्रभाव’ के ब्योरे मांगे हैं. 2013 के राष्ट्रपति चुनावों, जिसमें वह नशीद के ख़िलाफ़ विवादास्पद परिस्थितियों में जीते, से पहले यामीन ने आरोप लगाया था कि चुनाव आयोग ने नतीजों को उनके ख़िलाफ़ तोड़ने-मरोड़ने के लिए भारत के सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़ी एक टीम को काम पर रखा है. उनका ‘इंडिया आउट’ अभियान ख़ुद इस विश्वास पर केंद्रित है कि एक प्रभावशाली दक्षिण एशियाई पड़ोसी के रूप में नयी दिल्ली का लक्ष्य उन्हें हराना होगा, हालांकि ऐसे संदेहों की वजहों का उन्होंने कभी ज़िक्र नहीं किया है. 

‘इंडिया आउट’ और ‘इंडिया मिलिट्री आउट’ के बीच अपनी स्थिति को लेकर उलझा रहे, यामीन ने यह भी दोहराया है कि सरकार ने भारत के साथ समझौतों में ‘जालसाज़ी’ की थी. उन्होंने दावा किया कि उथुरू थिला फाल्हू (यूटीएफ) रक्षा समझौते पर संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा समिति (या ‘241 कमेटी’) को क़रार की वास्तविक कॉपी पेश करने के बजाय, रक्षा मंत्रालय ने केवल एमडीपी के बहुमत वाले पैनल के सामने एक प्रेजेंटेशन दिया. संसद के भीतर, संसदाध्यक्ष नशीद ने टिप्पणी की कि ‘स्वतंत्रता खोने की बात दूर क्षितिज पर भी नहीं है’, और इसके साथ ही उन्होंने देश के ‘संप्रभुता खोने’ (कथित तौर पर भारत के हाथों) पर चर्चा की विपक्ष की मांग ठुकरा दी.

प्रसंगवश, माले स्थित हाई कोर्ट ने निचली अदालत के उस निर्देश को पलट दिया है जिसमें अप्रैल में पारित राष्ट्रपतीय आदेश के आधार पर पुलिस को यामीन के आवास और पार्टी कार्यालय से ‘इंडिया आउट’ अभियान की सामग्री ज़ब्त करने के लिए कहा गया था. अध्यक्ष नशीद ने संसद में हाई कोर्ट के आदेश की आलोचना की. यह अस्पष्ट है कि क्या सरकार का इरादा हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का है.

पुलों के निर्माण पर सवाल

एक इंगित संदर्भ में, यामीन ने अन्यत्र कहा कि देश में पुलों के निर्माण की कोई ज़रूरत नहीं है, भले ही दूसरे यह कर रहे हों. संदर्भ है 50 करोड़ अमेरिकी डॉलर की लागत वाले थिलामाले समुद्री पुल का, जो देश का सबसे बड़ा अकेला प्रोजेक्ट है. जब यह पूरा होगा, तो यह चीन के वित्तपोषण से बने सिनामाले ब्रिज (यामीन के राष्ट्रपतित्व काल में बना यह पुल राजधानी माले को हवाई अड्डे वाले द्वीप हुलहुले से जोड़ता है) से भी बड़ा होगा.

पुलों या अन्य परियोजनाओं का नाम लिये बगैर अध्यक्ष नशीद ने संसद से कहा कि सरकार को बुनियादी ढांचे में बहुत ज़्यादा निवेश नहीं करना चाहिए (जब तक कि कोविड के बाद अर्थव्यवस्था पूरी तरह स्थिर न हो जाए). इसके बाद राष्ट्रपति सोलिह ने स्पष्ट किया कि वे जारी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए और क़र्ज़ नहीं लेंगे.

पुलों या अन्य परियोजनाओं का नाम लिये बगैर अध्यक्ष नशीद ने संसद से कहा कि सरकार को बुनियादी ढांचे में बहुत ज़्यादा निवेश नहीं करना चाहिए (जब तक कि कोविड के बाद अर्थव्यवस्था पूरी तरह स्थिर न हो जाए). इसके बाद राष्ट्रपति सोलिह ने स्पष्ट किया कि वे जारी परियोजनाओं को पूरा करने के लिए और क़र्ज़ नहीं लेंगे. इस बारे में संसद की उपाध्यक्ष ईवा अब्दुल्ला, जो नशीद ख़ेमे की हैं, ने भी मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार का ब्योरा मांगा है, ताकि देश आगामी सप्ताहों में तय समय पर 15 करोड़ अमेरिकी डॉलर का विदेशी क़र्ज़ चुकाने में सक्षम रहे.

भारत की बड़ी बुनियादी ढांचा कंपनी, एफकॉन्स ने एक विस्तृत प्रेजेंटेशन में स्थानीय मीडिया कर्मियों को समझाया है कि वे तीन चरणों वाली थिलामाले परियोजना को कैसे समयबद्ध ढंग से पूरा करने का इरादा रखते हैं. दो चरण अगले साल पूरे होने हैं, और आख़िरी चरण नवंबर 2024 में पूरा होगा. एक अन्य भारतीय कंपनी टीसीआईएल को चार द्वीपों में अस्पताल बनाने का काम सौंपा गया है, जो सोलिह सरकार का एक और प्राथमिकता क्षेत्र है.

दोहरे चेहरे वाली समस्या

भारत के लिए, मालदीव की घरेलू राजनीति दोहरे चेहरे वाली समस्या पेश करती है. यामीन ख़ेमे के ‘इंडिया आउट’ अभियान के प्रति विपक्षी कैडरों समेत दूसरे राजनीतिक दलों और आम जनता में ज़्यादा आकर्षण नहीं है. ये लोग भारत की कई दशकों से सभी क्षेत्रों में मदद, जो कोविड महामारी के दौरान और उसके बाद और भी ज़्यादा रही, को सराहते रहे हैं.

बिल्कुल हालिया ‘पैगंबर विवाद’ के मामले में भारत की आधिकारिक प्रतिक्रिया को लेकर राजनीतिक और ज़मीनी दोनों स्तरों पर राय बंटी हुई हो सकती है. यह देखा जाना बाकी है कि यह एक ऐसे देश में किस तरह का स्वरूप लेता है जहां 1965 में ‘इस्लामी राष्ट्रवाद’ ने ब्रिटेन का निष्कासन और मालदीव की आज़ादी सुनिश्चित की.    

मालदीव का ब्रिटिश के साथ दो सदी लंबा ‘प्रोटेक्टरेट एग्रीमेंट’ था. उन्होंने देश के आंतरिक मामलों में दख़ल देना शुरू किया. पहले, कथित तौर पर दक्षिणी सुवादिवे क्रांति (1959-62) को समर्थन देकर. बाद में, जब प्रधानमंत्री इब्राहिम नासिर सरकार की माले एयरपोर्ट की हवाई पट्टी चौड़ी करने की कोशिश, ताकि विदेशी पर्यटकों को बड़े विमान लेकर आ सकें, पर ब्रिटेन ने आपत्ति की, तो मालदीव ने ब्रिटिश का इतना विरोध किया कि उन्हें स्वतंत्रता समझौते पर दस्तख़त करने पड़े.

पिछले दशक में ‘इस्लामी राष्ट्रवाद’ को दूसरा मौक़ा तब मिला जब धार्मिक गैर सरकारी संगठनों ने निश्चित रूप से एक राजनीतिक विरोध की अगुवाई की, जिसके चलते फरवरी 2012 में राष्ट्रपति नशीद को इस्तीफ़ा देना पड़ा. कहा जाता है कि इन विरोधों के पीछे दिमाग यामीन का था. ये विरोध एक अन्य बड़ी भारतीय बुनियादी ढांचा कंपनी, जीएमआर ग्रुप के लिए कंस्ट्रक्शन-कम-कन्सेशन कांट्रैक्ट पर केंद्रित थे और इन्होंने राष्ट्रपति वहीद हसन की अगली सरकार के आदेश के तहत उसका निष्कासन सुनिश्चित किया.  

आपराधिक अदालत में यामीन के ख़िलाफ़ धन-शोधन के दो मामले हैं. दोनों में फ़ैसले इसी महीने निर्धारित थे, लेकिन इनमें से एक को टालकर सितंबर में कर दिया गया, और दूसरे के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है. इसे देखते हुए यामीन ने यह दावा करते हुए जनता के बीच एक नयी राजनीतिक लाइन ली कि ‘किसी सरकार में शामिल हरेक ने धन-शोधन किया’, मानो यह एक सार्वभौमिक परिघटना हो. दूसरी तरफ़, किसी राजनीतिक दल या सिविल सोसाइटी संगठन के नेता ने इस पर आपत्ति नहीं जतायी है.

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