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अक्टूबर 2025 में हिंद महासागर की लहरों के बीच दो पड़ोसी द्वीप—मेडागास्कर और सेशेल्स—ने सत्ता बदलते देखी, लेकिन मंज़र बिल्कुल अलग थे. कहीं युवाओं के उग्र प्रदर्शनों के बीच बंदूकें बोलीं तो कहीं बैलेट बॉक्स ने बदलाव की नई कहानी लिखी. दोनों ही देशों की राहें बताती हैं—अफ्रीका में लोकतंत्र अब भी एक अधूरी यात्रा है.
अक्टूबर 2025 में पश्चिमी हिंद महासागर के दो पड़ोसी देश—मेडागास्कर और सेशेल्स—ने सत्ता परिवर्तन देखा. दोनों ही द्वीप राष्ट्र हैं, लेकिन सत्ता बदलने का तरीका बिल्कुल अलग रहा. मेडागास्कर में युवाओं के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों के बाद सेना ने सत्ता संभाल ली जबकि सेशेल्स में यह बदलाव शांतिपूर्ण तरीके और लोकतांत्रिक चुनावों के ज़रिए हुआ. इन दोनों घटनाओं ने दिखाया कि हिंद महासागर के द्वीपीय देशों में राजनीतिक संस्कृति कितनी भिन्न दिशा में बढ़ रही है—कहीं लोकतंत्र मजबूत हो रहा है तो कहीं अस्थिरता फिर सिर उठा रही है.
मेडागास्कर और सेशेल्स में अलग-अलग तरीके से हुए सत्ता परिवर्तन ने अरब स्प्रिंग के दौरान उठाए गए एक महत्वपूर्ण सवाल को फिर से जगा दिया है. सवाल ये कि, क्या सिर्फ सरकार के परिवर्तन को ही लोकतांत्रिक प्रगति का संकेत माना जा सकता है?
मेडागास्कर में निकट भविष्य की लोकतांत्रिक सरकार की संभावनाओं पर संदेह पैदा करते हैं.
राजनीतिक उथल-पुथल और तख्तापलट मालागासी की राजनीति के लिए कोई नई बात नहीं है. 1960 में आज़ादी मिलने के बाद से मेडागास्कर ने कई तख्तापलट और नागरिक सरकार के काम में सैन्य दख़लअंदाज़ी देखी है. मेडागास्कर में ज़्यादातर आंदोलन या तख्तालपट भ्रष्टाचार और आर्थिक मुसीबतों से उपजे असंतोष से प्रेरित होते हैं. ताज़ा घटना 25 सितंबर को सामने आई, जब जेन-ज़ी प्रदर्शनकारियों ने राजधानी एंटानानारिवो और अन्य शहरों की सड़कों पर प्रदर्शन किया. जेन-ज़ी 1996 से 2010 के बीच जन्मे युवाओं को कहते हैं, हाल ही में नेपाल में भी जेन-ज़ी आंदोलन के बाद सत्ता परिवर्तन हुआ. मेडागास्कर में जेन-ज़ी के गुस्सा रोज़ाना की बिजली कटौती, पानी की लगातार कमी और व्यापक भ्रष्टाचार से पैदा हुआ था. आर्थिक मुद्दों पर शुरू हुआ विरोध जल्द ही राजनीतिक सुधार और राष्ट्रपति एंड्री राजोएलिना के इस्तीफे की मांग में बदल गया.
जिस दिन कैपसैट ने आंदोलनकारियों के समर्थन में आने का फैसला किया, तभी ये तय हो गया कि राष्ट्रपति राजोएलिना के अब सत्ता में गिने-चुने दिन बचे हैं. कुछ ही दिनों बात राजोएलिना देश छोड़कर भाग गए, जिससे एक राजनीतिक शून्य पैदा हो गया. संसद ने 14 अक्टूबर को 130-1 के बहुमत से "पद त्याग" के लिए उन पर महाभियोग चलाकर रही-सही कसर भी पूरी कर दी.
राजोएलिना की सरकार ने शुरू में दमनकारी कार्रवाई की लेकिन उनकी सरकार का बलप्रयोग युवा प्रदर्शनकारियों को डराने में नाकाम रहा. जब युवा नेताओं के साथ बातचीत विफल हो गई तो स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गई. शक्ति संतुलन में तब भारी बदलाव आया जब शक्तिशाली कैपसैट जेंडरमेरी ने भी प्रदर्शनकारियों के समर्थन में रैली निकाली. मेडागास्कर में CAPSAT (आर्मी कॉर्प्स ऑफ पर्सनल एंड एडमिनिस्ट्रेटिव एंड टेक्निकल सर्विसेज) को बहुत शक्तिताशी माना जाता है, और जेंडरमेरी का अर्थ पैरामिलिट्री पुलिस फोर्स है. जिस दिन कैपसैट ने आंदोलनकारियों के समर्थन में आने का फैसला किया, तभी ये तय हो गया कि राष्ट्रपति राजोएलिना के अब सत्ता में गिने-चुने दिन बचे हैं. कुछ ही दिनों बात राजोएलिना देश छोड़कर भाग गए, जिससे एक राजनीतिक शून्य पैदा हो गया. संसद ने 14 अक्टूबर को 130-1 के बहुमत से "पद त्याग" के लिए उन पर महाभियोग चलाकर रही-सही कसर भी पूरी कर दी. उच्च संवैधानिक न्यायालय ने तुरंत इस फैसले का समर्थन किया और कैपसेट के प्रमुख कर्नल माइकल रैंड्रियनिरिना को अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त किया. देश में स्थिरता और सुधार का वादा करते हुए उन्होंने 17 अक्टूबर को शपथ ली.
मेडागास्कर में युवाओं के प्रदर्शन की आड़ में हुए सैन्य तख्तापलट के विपरीत उसके पड़ोसी द्वीपीय देश सेशेल्स में सत्ता का हस्तांतरण बिल्कुल शांतिपूर्ण तरीके से हुआ. 26 अक्टूबर 2020 के राष्ट्रपति बने वेवल रामकलावन ने कोविड-19 महामारी के दौरान देश का सफल नेतृत्व किया. सार्वजनिक वित्त में सुधार किया और अपने काम के नाम पर दोबारा वोट मांगे. रामकलावन पर जनता ने दोबारा भरोसा नहीं किया. 62 साल पैट्रिक हर्मिनी चुनाव जीते, जो एक चिकित्सक और सेशेल्स की संसद के पूर्व अध्यक्ष (2007 से 2016 तक) रह चुके हैं. वेवल रामकलावन ने शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण का वादा किया और उसे पूरा भी कर दिखाया. अफ्रीकी देशों के संदर्भ में सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण दुर्लभ है.
अपने विजयी भाषण में, हर्मिनी ने जीवन-यापन की लागत कम करने और सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर बनाने का वादा किया. इसके अलावा, 1977 के तख्तापलट से लेकर अब तक मानवाधिकारों के हनन की जांच करने वाले सत्य और सुलह आयोग (ट्रुथ एंड रिकॉन्सिलिएशन कमीशन) की लंबे समय से लंबित सिफारिशों को लागू करने का संकल्प लिया. उन्होंने सेवानिवृत्ति की आयु 65 से घटाकर 63 करने का भी वादा कर खुद को एक व्यावहारिक सुधारवादी नेता के रूप में स्थापित किया.
हालांकि, दोनों द्वीपीय देशों में नेतृत्व परिवर्तन हुआ लेकिन बदलाव के तरीके और अंतिम नतीजे में काफ़ी फर्क है. मेडागास्कर में सत्ता परिवर्तन सड़कों पर हुए विरोध प्रदर्शनों से उपजा और इसका परिणाम सैन्य तख्तापलट के रूप में सामने आया. वहीं सेशेल्स में, सत्ता परिवर्तन शांतिपूर्ण ढंग से मतदान के माध्यम से हुआ. यही भिन्नता दोनों देशों की गहरी राजनीतिक संस्कृतियों और संस्थागत शक्तियों की मज़बूती को दिखाती है.
रामकलावन ने कतर के निवेशकों को यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध अल्दाबरा एटोल के पास असम्पशन द्वीप पर एक आलीशान रिसॉर्ट बनाने की मंजूरी दी. ये द्वीप दुनिया में विशालकाय कछुओं की सबसे बड़ी आबादी का घर है.
मेडागास्कर में, युवाओं के नेतृत्व वाले विद्रोह ने पीढ़ीगत हताशा के उसी व्यापक वैश्विक पैटर्न को प्रदर्शित किया, जैसा कि केन्या और मोरक्को जैसे अन्य अफ्रीकी देशों और बांग्लादेश और नेपाल जैसे एशियाई देशों में देखा गया है. इन सभी देशों में आंदोलन की शुरुआत के कारण असमानता, भ्रष्टाचार और बहिष्कार जैसे मुद्दे रहे. हालांकि, एक हकीकत ये भी है कि अफ्रीका के कई देशों में सैन्य-नेतृत्व वाली सरकारों को भी अमूमन सफलता नहीं मिली है. अगर किसी कम लोकप्रिय नेता को हटाया गया तो उसकी जगह जिन विरोधी ताकतों ने सत्ता पर कब्ज़ा किया, उन्होंने भी अक्सर निराश किया. ये नेता भी वैसे ही निकलते हैं, जैसे नेताओं का हटाने के लिए आंदोलन किया गया था.
हालांकि, कई मालागासी लोग राजोएलिना को सत्ता से हटाए जाने को जनता की जीत के रूप में मनाते हैं, लेकिन कड़वा सच यही है कि अब मेडागास्कर पर बंदूकधारियों यानी सेना का कब्ज़ा था, ना कि सड़कों पर उतरे युवाओं का. अदालत ने मेडागास्कर के नए राष्ट्रपति कर्नल माइकल को 60 दिनों का बदलाव का एजेंडा लागू करने की सलाह दी, लेकिन कर्नल माइकल रैंड्रियनिरिना अब दो साल का परिवर्तन और एक संवैधानिक जनमत संग्रह का वादा कर रहे हैं. दुनिया भर में तख्तापलट करने वाले नेताओं ने अक्सर ऐसे ही वादे किए हैं, सत्ता में पकड़ मज़बूत होते ही वो अपने वादों को तोड़ देते हैं.
पूरे पश्चिम अफ्रीका में, ऐसी ही कहानियां सामने आई हैं. माली, बुर्किना फ़ासो और नाइजर में ऐसा ही हुआ. इन देशों में, सेनाओं ने सुधार के नाम पर नागरिक सरकारों को गिराकर, खुद सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया. माली में, जनरल असिमी गोइता ने 2021 में अपने तख्तापलट के बाद चुनावों का वादा किया था, लेकिन बाद में बिना मतदान के पांच साल का जनादेश हासिल कर लिया. दिलचस्प बात ये है कि इस जनादेश को "जितनी बार ज़रूरत हो", उतनी बार नवीनीकृत किया जा सकता है. चुनाव कराने की ज़रूरत नहीं है.
बुर्किना फ़ासो में, कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे ने 2022 में सत्ता हथियाने के बाद चुनावों को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया. जुलाई 2025 में, उन्होंने देश के चुनाव आयोग को भंग कर दिया. उन्होंने चुनाव आयोग को पैसे की बर्बादी बताया और कम से कम जुलाई 2029 तक सत्ता में बने रहने की बात कही. नाइजर में भी, जुंटा ने अपने तथाकथित लोकतांत्रिक सुधार को 2030 तक बढ़ा दिया है. ऐसे ही उदाहरण मेडागास्कर में निकट भविष्य की लोकतांत्रिक सरकार की संभावनाओं पर संदेह पैदा करते हैं.
दूसरी तरफ, सेशेल्स में सत्ता का शांतिपूर्ण हस्तांतरण एक दुर्लभ विरोधाभास पेश करता है. हालांकि, ये भी राजनीतिक प्रभुत्व की प्रवृति को दिखाता है. 2020 में रामकलावन के लिन्योन डेमोक्रेटिक सेसेल्वा (एलडीएस) गठबंधन को ऐतिहासिक जीत मिली थी. उसने सत्तारूढ़ यूनाइटेड सेशेल्स पार्टी (यूएसपी) की 43 साल पुरानी सत्ता की पकड़ को तोड़ दिया. फिर भी, सिर्फ पांच साल बाद, जनतना उसी पुरानी यूनाइटेड सेशेल्स पार्टी में लौट आए. हर्मिनी को 52.7 प्रतिशत, जबकि रामकलावन के गठबंधन को 47.3 प्रतिशत वोट मिले.
रामकलावन की हार के कई कारण थे. उन्होंने मेडागास्कर को कोविड-19 महामारी से उबरने और वित्तीय स्थिरता लाने में अच्छा काम किया, लेकिन भ्रष्टाचार, घोटालों और जीवन-यापन की बढ़ती लागत ने उनकी लोकप्रियता को कम कर दिया. रामकलावन ने कतर के निवेशकों को यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध अल्दाबरा एटोल के पास असम्पशन द्वीप पर एक आलीशान रिसॉर्ट बनाने की मंजूरी दी. ये द्वीप दुनिया में विशालकाय कछुओं की सबसे बड़ी आबादी का घर है. यहां आलीशान रिसॉर्ट बनाने देने के विवादास्पद फैसले ने पर्यावरणविदों और राष्ट्रवादियों को रामकलावन से अलग कर दिया.
इसके विपरीत, हर्मिनी ने अपनी चिकित्सा पृष्ठभूमि और नशे के विरोधी नेता की छवि का फायदा उठाया. नशे का विरोध एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि मेडागास्कर में एक बड़ी आबादी हेरोइन की आदी है. रामकलावन प्रशासन पर तेज़ी से निरंकुश होने के भी आरोप लगे. हर्मिनी और उनकी पार्टी के कई सदस्यों को "जादू-टोना" करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया. इसने भी रामकलावन की छवि को और नुकसान पहुंचाने का काम किया.
मेडागास्कर के मामले में, एक अधिनायकवादी नेता को सत्ता से हटाना आगे की ओर ले जाने वाला कदम लग सकता है लेकिन ऐसा तभी होगा, जब सैन्य नेतृत्व देश में जल्द से जल्द नागरिक शासन को बहाल करे.
फिर भी, सेशेल्स के नतीजे अफ्रीका के दूसरे देशों के रुझानों को भी दर्शाते हैं, जहां सत्तारूढ़ दल अक्सर थोड़े-बहुत चुनावी झटकों के बाद वापसी करते हैं. उदाहरण के लिए, मलावी में, राष्ट्रपति लाज़र चकवेरा सिर्फ एक साल का कार्यकाल के बाद चुनाव बुरी तरह हार गए. लाज़र चकवेरा 2020 में अदालत द्वारा रद्द किए गए चुनाव के बाद सत्ता में आए थे. उनकी हार ने सत्ता में मुथारिका परिवार के वंश की वापसी का रास्ता साफ कर दिया. इस तरह के उलटफेर से पता चलता है कि विपक्ष की जीत भले ही प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण होती हो, लेकिन वो देश में कई दशकों से जड़ जमाए बैठे राजनीतिक नेटवर्क को ध्वस्त नहीं कर पाती है.
मेडागास्कर और सेशेल्स में अलग-अलग तरीके से हुए सत्ता परिवर्तन ने अरब स्प्रिंग के दौरान उठाए गए एक महत्वपूर्ण सवाल को फिर से जगा दिया है. सवाल ये कि, क्या सिर्फ सरकार के परिवर्तन को ही लोकतांत्रिक प्रगति का संकेत माना जा सकता है? मेडागास्कर के मामले में, एक अधिनायकवादी नेता को सत्ता से हटाना आगे की ओर ले जाने वाला कदम लग सकता है लेकिन ऐसा तभी होगा, जब सैन्य नेतृत्व देश में जल्द से जल्द नागरिक शासन को बहाल करे. सेना एक तय समय सीमा में नागरिक शासन बहाल करने के अपने वादे को पूरा करेगी या नहीं, अभी ये अनिश्चित है.
सेशेल्स में, लंबे समय से सत्ता में रही पार्टी की वापसी एक अलग तरह की चुनौती पेश करती है. हर्मिनी को भ्रष्टाचार से निपटने और युवाओं में नशे की लत छुड़ाने जैसे अपने वादे पूरे करने होंगे. देश के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को अस्थिर विकास परियोजनाओं से बचाना होगा. इन कामों में मिलने वाली सफलता ही ये साबित करेगी कि उनका नेतृत्व सत्ता के पतन की बजाए नवीनीकरण का प्रतीक है. उनकी कामयाबी ये तय करेगी कि सेशेल्स अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं को मज़बूत कर पाएगा या एकदलीय प्रभुत्व वाले अपने पुराने दिनों में वापस लौट जाएगा.
अपनी भौगोलिक निकटता के बावजूद, दोनों द्वीपीय राष्ट्र अलग-अलग राजनीतिक मोड़ पर खड़े हैं. मेडागास्कर के सामने सत्ता पर एक बार फिर सैन्य कब्ज़ा होने के बाद लोकतंत्र बहाल करने की चुनौती है. वहीं सेशेल्स को ये सुनिश्चित करना होगा कि शांतिपूर्ण परिवर्तन दशकों से सत्ता में जड़ जमाए बैठे अभिजात वर्ग को मज़बूत ना कर दे. अपनी अलग-अलग राहों के बावजूद, मेडागास्कर और सेशेल्स दोनों के सामने अब एक ही चुनौती है. ये चुनौती है अपने-अपने देश को स्थायी लोकतांत्रिक स्थिरता की ओर ले जाना.
समीर भट्टाचार्य ऑब्ज़र्वर रिसर्च फाउंडेशन में एसोसिएट फेलो हैं.
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Samir Bhattacharya is an Associate Fellow at Observer Research Foundation (ORF), where he works on geopolitics with particular reference to Africa in the changing global ...
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