Author : Terri Chapman

Published on Nov 26, 2021 Updated 0 Hours ago

विकसित दुनिया को ज़्यादा ज़िम्मेदारी लेने की ज़रूरत है और उसे उन मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए जो उसके विकास के नतीजे में सामने आये हैं.

लंबे समय तक चलने वाला टिकाऊ विकास: साझा समस्याओं के लिए साझा समाधान की ज़रूरत!

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जब देश टिकाऊ विकास (Sustainable Development) की ओर एकपक्षीय ढंग से बढ़ते हैं, तो यह अंतरराष्ट्रीय गतिकी (International Dynamics) और नाइंसाफ़ी की अनदेखी करता है. वैश्विक स्तर पर ज़्यादा न्यायसंगत और टिकाऊ विकास हासिल करने की दिशा में एक अहम क़दम होगा, उसके पारदेशीय (Transnational ) प्रभावों को ध्यान में रखना. यह संक्षिप्त नोट ऐसे दो उदाहरण पेश करता है, जो बताते हैं कि विकास के पारदेशीय प्रभाव कितने गहरे हैं और हमारे लिए उन्हें बेहतर ढंग से समझना और उन्हें ध्यान में रखना कितना जरूरी है.

पहला उदाहरण है, वायु प्रदूषण (Air Pollution). वायु प्रदूषण के सीमा-पार प्रवाहों, यानी एक देश से दूसरे देश में वायु प्रदूषण के पहुंचने पर कुछ ध्यान दिया गया है. हालांकि, हाल में, उपभोग के पैटर्न और वायु प्रदूषण की पारदेशीयता को आपस में जोड़ने की कोशिशें भी हुई हैं. उत्पादन की अत्यधिक खंडित और अंतरराष्ट्रीय प्रकृति का मतलब है कि किसी एक जगह उपभोग की गयी चीज़ों की वजह से पैदा हुए वायु प्रदूषण का उत्सर्जन कहीं और हुआ है. हाल का एक शोध बताता है कि वे प्रभाव गंभीर हैं और उन्हें हर साल प्रदूषण की वजह से होने वाली हज़ारों मौतों का कारण माना जा सकता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, वायु प्रदूषण हर साल 70 लाख असमय मौतों का कारण बनता है. इनमें से 38 लाख मौतें होती हैं घर के भीतर के प्रदूषण से, जो ईंधन के जलने, जहरीली भवन निर्माण सामग्री और घरेलू असबाब, कीटनाशकों और खरपतवार-नाशकों के मेल से पैदा होता है.  

वायु प्रदूषण पूरी दुनिया में असमय मौतों की मुख्य वजहों में से एक है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक, वायु प्रदूषण हर साल 70 लाख असमय मौतों का कारण बनता है. इनमें से 38 लाख मौतें होती हैं घर के भीतर के प्रदूषण से, जो ईंधन के जलने, जहरीली भवन निर्माण सामग्री और घरेलू असबाब, कीटनाशकों और खरपतवार-नाशकों के मेल से पैदा होता है. बाकी मौतों के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है वातावरण या घर के बाहर के वायु प्रदूषण को, जो बिजली उत्पादन, परिवहन, कृषि और उद्योग समेत विभिन्न इंसानी गतिविधियों से उत्पन्न होता है. वायु प्रदूषण के संपर्क में आने के बहुत से स्वास्थ्य दुष्प्रभाव होते हैं, जिनमें कैंसर, दिल की बीमारियां, स्ट्रोक, सांस की तकलीफ़ और गंभीर श्वसन संक्रमण शामिल हैं. वायु प्रदूषण से होने वाली 90 फ़ीसद मौतें निम्न और मध्यम आमदनी वाले देशों में होती हैं.

 

अमीर देशों में उपभोग का पैटर्न

घरेलू वायु प्रदूषण के मसले से निपटने में देशों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है, लेकिन वायु प्रदूषण और उसके नतीजतन होनेवाली मौतें केवल घरेलू कामकाज की वजह से नहीं हैं. दुनिया की ऊंची आमदनी वाले देशों में उपभोग के पैटर्न निम्न आमदनी वाले देशों में प्रदूषण-संबंधी मौतों से सीधे जुड़े हुए हैं. उदाहरण के लिए, 2010 में जी-20 देशों में हुआ उपभोग वैश्विक स्तर पर 19 लाख असमय मौतों की वजह बना. ये मौतें सिर्फ़ वायु-प्रदूषण के चलते हुईं. इसके अलावा, शोधकर्ताओं ने द्विपक्षीय व्यापार को खंगाला और पाया कि वायु प्रदूषण से चीन में 38.7 हजार लोगों, भारत में 12.9 हजार लोगों, मेक्सिको में 3.9 हजार लोगों और रूस में 2.1 हजार लोगों की सालाना असमय मौतें संयुक्त राज्य अमेरिका में होने वाले उपभोग से जुड़ी हुई हैं. इसी तरह, 2017 के एक अध्ययन ने चीन में एक लाख से ज्यादा मौतों को अमेरिका और पश्चिमी यूरोप में हुए उपभोग से जोड़ा. इसी अध्ययन में पाया गया कि विश्व में वायु प्रदूषण के चलते हुई असमय मौतों में से 22 फ़ीसद के लिए, दूसरे देशों में उपभोग के वास्ते वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन को ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है.

सभी के लिए हर उम्र में स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और तंदुरुस्ती को बढ़ावा देने के टिकाऊ विकास लक्ष्य क्रमांक 3 या एसडीजी 3 को हासिल करने के लिए, जितनी ज़रूरत देशों को अपने घरेलू प्रदूषण से निबटने की होगी, उतनी ही ज़रूरत ऊंची आमदनी वाले देशों में उपभोग के पैटर्न में बदलाव की होगी.

अमेरिका और ऊंची आमदनी वाले दूसरे देशों ने हाल के दशकों में अपने यहां वायु गुणवत्ता में ज्य़ादातर सुधार ही देखा है, लेकिन एक हद तक ऐसा हुआ है उनके द्वारा अपने लिए वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन की प्रक्रिया को दूसरे देशों में स्थानांतरित करने से. दुर्भाग्य से, हाल-हाल तक इसके प्रभावों की मात्रा संख्यात्मक रूप में सामने नहीं आयी थी. सभी के लिए हर उम्र में स्वस्थ जीवन सुनिश्चित करने और तंदुरुस्ती को बढ़ावा देने के टिकाऊ विकास लक्ष्य क्रमांक 3 या एसडीजी 3 को हासिल करने के लिए, जितनी ज़रूरत देशों को अपने घरेलू प्रदूषण से निबटने की होगी, उतनी ही ज़रूरत ऊंची आमदनी वाले देशों में उपभोग के पैटर्न में बदलाव की होगी.

दूसरा उदाहरण है, जंगलों की कटाई. जैव-विविधता को बचाये रखने, जलवायु परिवर्तन से मुकाबले, और मोटामोटी पूरे मानव जीवन को टिकाये रखने के लिए दुनिया के जंगल बेहद अहम हैं. हालांकि, 1990 से, 42 करोड़ हेक्टेयर वन क्षेत्र खत्म हो चुका है. जंगलों की कटाई का एक बड़ा कारण कृषि है. 2000 और 2010 के बीच, उष्ण-कटिबंधीय वनों की कटाई का 40 फ़ीसद मुख्य रूप से मवेशियों, और सोयाबीन व पाम तेल उत्पादन के लिए हुआ.

जंगलों की कटाई रोकना अहम्

यह सही है कि जंगलों की सुरक्षा के लिए घरेलू उपायों की ज़रूरत है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय गतिकी (dynamics) भी महत्वपूर्ण है. दुनिया के कुछ हिस्सों में उपभोग का ऊंचा स्तर ऐसे दूसरे हिस्सों से आयात के ज़रिये बरकरार रहता है, जहां वनों को अक्षत रखने के लिए कम सुरक्षा-उपाय हो सकते हैं. ऊंची आमदनी वाले ज्य़ादातर देश, औसतन, वन उत्पादों के शुद्ध-आयातक (नेट-इम्पोर्टर) हैं, क्योंकि वे अपने यहां वन संरक्षण करते हैं और उपभोग के लिए मांग पूरी करने के वास्ते दूसरे देशों से आयात करते हैं. 2001 और 2015 के बीच, भारत, चीन, और जी-7 देशों ने अपना घरेलू वन आच्छादन (फॉरेस्ट कवरेज) बढ़ाया, जबकि दूसरी जगहों पर जंगलों की कटाई में उन्होंने बड़ा योगदान दिया. यूनाइटेड किंगडम, जापान, जर्मनी, फ्रांस, और इटली की वजह से हुई जंगल-कटाई का 90 फ़ीसद इन देशों की सीमाओं के बाहर हुआ है. 2019 के एक अध्ययन में पाया गया कि जंगलों की कटाई की बढ़ती हिस्सेदारी, जो कि उष्ण (ट्रॉपिक्स) और उपोष्ण कटिबंध (सब-ट्रॉपिक्स) में तक़रीबन 26 फ़ीसद है, अंतरराष्ट्रीय मांग की वजह से है. तक़रीबन 90 फ़ीसद मांग उन देशों से थी, जिनके यहां जंगलों की कटाई की दर घटी है. यह एक बार फिर इशारा करता है कि बहुत से देशों में बेहतर वन आच्छादन और संरक्षण की कामयाबी वनों की कटाई को दूसरे देशों में स्थानांतरित करके हासिल की गयी है.

100 से ज्यादा देशों के विश्व नेताओं ने हाल में ग्लासगो में हुई सीओपी26 की बैठक के दौरान ग्लासगो लीडर्स डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट एंड लैंड यूज पर दस्तख़त किये. इसमें 2030 तक जंगलों की कटाई और उनका क्षरण रोक देने की प्रतिबद्धता जतायी गयी है. 

100 से ज्यादा देशों के विश्व नेताओं ने हाल में ग्लासगो में हुई सीओपी26 की बैठक के दौरान ग्लासगो लीडर्स डिक्लेरेशन ऑन फॉरेस्ट एंड लैंड यूज पर दस्तख़त किये. इसमें 2030 तक जंगलों की कटाई और उनका क्षरण रोक देने की प्रतिबद्धता जतायी गयी है. लेकिन इन प्रतिबद्धताओं को कार्रवाई और वित्त द्वारा, और अंतरराष्ट्रीय समन्वित प्रयासों द्वारा समर्थन देना होगा. टिकाऊ विकास लक्ष्य क्रमांक 15 है- क्षेत्रीय पारिस्थितिकी तंत्र को बचाना, बहाल करना और उसके टिकाऊ इस्तेमाल को प्रोत्साहित करना, टिकाऊ ढंग से प्रबंधित जंगल, मरुस्थलीकरण से निपटना, और भूमि की गुणवत्ता गिरने से रोकना और उसे उलटना, और जैव-विविधता के नुकसान को रोकना. इस लक्ष्य की दिशा में उपलब्धियों के लिए, देशों को अपने सीमा-पार पदचिह्नों को सचमुच ध्यान में रखना होगा और उनसे निबटना होगा. सिर्फ़ अपने यहां जंगलों की कटाई को सीमित करना काफ़ी नहीं है.

टिकाऊ विकास की दिशा में प्रगति का आकलन केवल घरेलू स्तर पर करना बेहद अहम अंतरराष्ट्रीय गतिकी पर पर्दा डालता है. इसलिए, टिकाऊ विकास पर एक सच्चे अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य की जरूरत है. उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के लिए यह पर्याप्त नहीं है कि वे टिकाऊ विकास पर घरेलू दृष्टिकोण तक सीमित रहें. इसके बजाय उन्हें वैश्विक प्रभावों को ध्यान में रखना चाहिए.

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